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Updated: 09 मई, 2019 05:16 PM
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अभी आपके सामने जो राजनीतिक गठबंधन दिखायी दे रहे हैं, जरूरी नहीं कि आगे भी वे उसी रूप में नजर आयें - क्योंकि 23 मई, 2019 इन सभी की एक्सपायरी डेट है. दरअसल, आम चुनाव के नतीजे 23 मई को आने वाले हैं और उससे पहले ही सरकार बनाने की तैयारियां जोर पकड़ चुकी हैं. पांच चरण के चुनाव पूरे हो गये हैं. अब सिर्फ दो दौर के मतदान बाकी हैं, लेकिन अभी से संभावित हार-जीत का अंदाजा लगाकर सारे राजनीतिक दल रणनीति तैयार कर लिये हैं. ये भी साफ है कि चुनाव के पहले के सारे समीकरण नतीजों के हिसाब से बदल भी सकते हैं.

मुमकिन है सपा-बसपा गठबंधन या बिहार महागठबंधन का मौजूदा स्वरूप भी बदल जाये या उनसे निकल कर कोई एनडीए तो कोई यूपीए में पहुंच जाये - ये भी मुमकिन है कि एनडीए-यूपीए से इतर कोई गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस गठबंधन ही खड़ा हो जाये. ऐसा कुछ भी हो सकता है. खास बात ये है कि चुनाव नतीजे आने से पहले भी ऐसे समीकरण फाइनल हो जायें - ये सब नयी सरकार के गठन की कवायद है जिसमें हर हिस्सेदार अपने किरदार के साथ दौड़ पड़ा है. विपक्ष के 21 दलों के नेता वोटिंग खत्म होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर बीजेपी के खिलाफ एक सेफगार्ड चाहते हैं. विपक्षी दल पहले से ही राष्ट्रपति को बता देना चाहते हैं कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वे वैकल्पिक सरकार की तैयारी कर चुके हैं - और समर्थन पत्र सौंपने में जरा सी भी देर नहीं होगी.

पॉलिटिक्स का पोलियो वैक्सीन क्या कारगर होगा?

21 राजनीतिक दलों के नेता संभवतः 21 मई को अपनी सामूहिक रणनीति को फाइनल टच देने वाले हैं. ये तारीख एक दिन पहले की भी हो सकती है. विपक्षी खेमे में बेहद सक्रिय चंद्रबाबू नायडू इस सिलसिले में दिल्ली आकर राहुल गांधी से मुलाकात कर चुके हैं और तारीख पर धीरे धीरे आम सहमति बन रही है. दिल्ली के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू कोलकाता रवाना हो गये - ममता बनर्जी से मुलाकात करने और बीजेपी के खिलाफ बंगाल के लोगों से वोट मांगने. ये सब तो मेल-मुलाकात की खबरें है असली बात तो 23 मई को नतीजे आने के बाद की तैयारी है.

ये सारी तैयारी जनादेश के खंडित रूप में आने की स्थिति से मुकाबले के लिए है. किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे, हर कोई ये मान कर चल रहा है - लेकिन ऐसा ही हो विपक्ष का कोई नेता नहीं चाहता. विपक्ष को मालूम है कि बहुमत न मिलने की सूरत में भी सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ही होगी. गोवा और मणिपुर विधानसभाओं के नतीजे आने के बाद जिस तरीके से बीजेपी ने सरकार बना ली या कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर जो छीनाझपटी हुई, विपक्षी दल के नेता ऐसे वाकये दोहराये जाने को लेकर सशंकित हैं.

opposition leadersबीजेपी के डर से राष्ट्रपति की शरण लेना चाहते हैं विपक्ष के नेता.

विरोधी दलों के नेता 21 नेताओं के हस्ताक्षर वाला एक संयुक्त पत्र राष्ट्रपति को सौंपने की तैयारी कर रहे हैं. बाकी बची दो दौर की वोटिंग खत्म हो जाने के बाद राष्ट्रपति से मिल कर कहना चाहते हैं कि नतीजे आने के बाद, किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न होने की स्थिति में, वे वैकल्पिक सरकार बनाने को लेकर समर्थन पत्र पेश करेंगे.

फिलहाल लोक सभा की 543 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं और सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 272 है. 2014 में बीजेपी 282 सीटें जीतने में कामयाब रही और साथी दलों को मिलाकर पार्टी के पास 336 सांसदों का सपोर्ट रहा.

23 मई के बाद विपक्ष को किसी अनहोनी की आशंका हो रही है, यही वजह है कि सभी नेता एहतियाती उपायों में जुट चुके हैं. ठीक वैसे ही जैसे पोलियो से बचाव के लिए बच्चों को वैक्सीन पिलायी जाती है. विपक्षी दल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पहले से ही पत्र देकर ताकीद करना चाहते हैं कि बाद में किसी हेरफेर की गुंजाइश न बचे. मुश्किल तो ये है कि पोलियो वैक्सीन भी अब तक सौ फीसदी कारगर कभी नहीं रही है.

बहन जी पर ऐसी मेहरबानी क्यों?

हफपोस्ट इंडिया को दिये एक इंटरव्यू में बीजेपी के सीनियर नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ने हाल ही में केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के बहुमत हासिल करने को लेकर शक जताया था. ऐसी ही राय बीजेपी नेता राम माधव की भी आ चुकी है. राम माधव को नहीं लगता कि इस बार बीजेपी 282 जैसा आंकड़ा हासिल कर अपने बूते सरकार बनाने लायक होगी. राम माधव कहते हैं कि बीजेपी अगर अपने बल पर 271 सीटें भी जीत ले तो सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. राम माधव की नजर में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी ही.

सुब्रमण्यन स्वामी ने जो आंकड़ा पेश किया है वो राम माधव से काफी कम है. स्वामी के अनुसार बीजेपी अपने बल पर 230 या 220 सीटें जीत सकती है और एनडीए के साथियों को 30 सीटें मिल सकती हैं. ऐसा होने पर भी आंकड़ा 250-260 ही पहुंचता है. ऐसी हालत में बीजेपी करीब 30 सांसदों का इंतजाम करना होगा.

बीजेपी को सरकार बनाने के लिए अगर इस हिसाब से 30 सीटों की जरूरत पड़ती है तो उसे ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक या बीएसपी नेता मायावती के मदद की राह देखनी होगी. स्वामी को लगता है कि चुनाव नतीजे आने के बाद मायावती एनडीए में शामिल हो भी सकती हैं. स्वामी कहते हैं, 'बीएसपी ज्वाइन कर सकती है और मुझे आश्चर्य नहीं कि वो नेतृत्व में बदलाव की शर्त रखें.'

अभी तो नहीं लेकिन पहले अखिलेश यादव भी कहा करते रहे कि सिर्फ सपा और बसपा ही नहीं बल्कि बीजेपी के खिलाफ सभी लोग साथ हैं - यहां तक कि कांग्रेस भी. बाद में मायावती के सख्त हो जाने के बाद अखिलेश यादव भी खामोश हो गये. हालांकि, मायावती के भाषणों में हमेशा ही बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर बराबर वाले हमले देखे जाते हैं.

यूपी के प्रतापगढ़ में बीजेपी की रैली में बीएसपी नेता मायावती के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़ा ही नरम रूख देखा गया. रैली में मोदी ने कहा, 'अब ये साफ हो चुका है कि समाजवादी पार्टी ने गठबंधन के बहाने बहन मायावती का तो फायदा उठा लिया, लेकिन अब बहन जी को समझ आ गया है कि सपा और कांग्रेस ने बहुत बड़ा खेल खेला है. अब बहन जी खुले आम कांग्रेस और नामदार की आलोचना करती हैं.'

प्रधानमंत्री मोदी के इस दावे को मायावती ने खारिज तत्काल खारिज कर दिया. मायावती ने कहा, 'सपा-बसपा-आरएलडी का गठबंधन मजबूत है और पीएम मोदी इससे परेशानी में है, इसीलिए सपा-बसपा में दूरियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.'

बहुमत को लेकर बीजेपी की आशंका और गठबंधन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की एक और बात बहुत सारे संकेत देती है - 'बहुमत से सरकार चलती है और सहमति से देश चलता है.'

केसीआर एंड कंपनी की कवायद भी चालू है

इस बीच गठबंधन का एक और प्रयास फिर से चालू हो चुका है. ये गठबंधन होगा या तीसरा मोर्चा जो भी नाम और शक्ल ले, इसकी अगुवाई तेलंगाना में दोबारा सत्ता संभालने वाले केसीआर यानी के. चंद्रशेखर राव कर रहे हैं.

केसीआर ने पहले भी तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कोशिश की थी, लेकिन विरोधी दलों के कम ही नेताओं के उत्साह दिखाने के चलते वो शांत होकर बैठ गये थे. असल में केसीआर उस मोर्चे की कल्पना कर रहे हैं जो गैर-बीजेपी ही नहीं बल्कि गैर-कांग्रेस दलों का भी हो. कांग्रेस के साथ खटपट को देखते हुए केसीआर ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी से मुलाकात कर गठबंधन पर चर्चा की है. केसीआर ने केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन से भी गठबंधन को लेकर विचार विमर्श किया है. वैसे भी पी. विजयन वायनाड से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने से खफा बताये जाते हैं जिसके चलते राहुल गांधी को कहना पड़ा था कि वो लेफ्ट नेताओं के खिलाफ कुछ भी नहीं बोलेंगे.

कुमारस्वामी और विजयन तक तो ठीक है, लेकिन केसीआर के डीएमके नेता एमके स्टालिन से भी मुलाकात की तैयारी है. केसीआर 13 मई को स्टालिन से मिल कर गठबंधन पर चर्चा करना चाहते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि डीएमके और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ है और वो यूपीए का हिस्सा है. स्टालिन पहले ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता चुके हैं जिसका कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी ने सपोर्ट नहीं किया है. कुछ दिन पहले केसीआर ने ममता बनर्जी से भी मिल कर गठबंधन पर गहरायी से विचार विमर्श किया था. मुलाकात के बाद केसीआर चाहते थे कि ममता उनके साथ मीडिया के सामने आयें और दोनों मिलकर बयान दें, लेकिन ममता बनर्जी इसके लिए राजी नहीं हुईं.

पांच दौर के मतदान हो जाने के बाद ज्यादार राजनीतिक दल संभावित नतीजों का अपने अपने हिसाब से आकलन कर रहे हैं. नतीजे आ जाने के बाद हड़बड़ी में कोई चूक न हो इसलिए वे पहले से मुस्तैद हैं और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर मुस्तकिल इंतजाम चाहते हैं. 2014 की तरह अगर स्पष्ट जनादेश आता है तब तो कोई बात नहीं, लेकिन खंडित जनादेश की स्थिति में भगदड़ मचनी तो तय है. विपक्ष को डर है कि बहुमत न मिलने पर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बीजेपी सरकार बनाने का दावा पेश करने के साथ ही क्षेत्रीय दलों और गठबंधनों को तोड़ने की कोशिश कर सकती है, इसलिए वे मिल कर किसी भी तरह की खरीद-फरोख्त की संभावना खत्म करना चाहते हैं - फिर तो मान कर चलना चाहिये कि मौजूदा गठबंधनों की मियाद 23 मई तक ही है.

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