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Updated: 21 मई, 2019 05:17 PM
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इस बार के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक चर्चा हुई पश्चिम बंगाल की, लेकिन अच्छी नहीं, बल्कि गलत वजहों से. पश्चिम बंगाल में हर चरण के चुनाव में हिंसा हुई. ऐसा नहीं है कि वहां सेना के जवानों की तैनाती नहीं की गई थी, लेकिन बावजूद इसके हिंसा जमकर हुई. वोटिंग पर्सेंटेज पिछली बार से भी अच्छा रहा. इसलिए नहीं कि लोगों ने बढ़-चढ़कर वोटिंग की, बल्कि इसलिए कि वहां फर्जी वोटिंग काफी अधिक हुई. यहां सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि जब सेना के जवान तैनात थे, तो फिर हिंसा कैसे हो गई? वोटिंग पर्सेंटेज को देखते हुए एक अहम सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर सेना के होने के बावजूद फर्जी वोटिंग कैसे हुई?

दरअसल, इसके लिए जिम्मेदार है केंद्र सरकार. मोदी सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था तो बंगाल में तैनात की, लेकिन इस तैनाती में एक बड़ी भूल कर दी. मोदी सरकार की इन विफलताओं का फायदा हुआ टीएमसी को. इसके अलावा और भी कई वजहें हैं, जिन्होंने सीधे ममता बनर्जी और उनके प्रशासन को फायदा पहुंचाने का काम किया. पश्चिम बंगाल में फर्जी वोटिंग और हिंसा के लिए केंद्र सरकार की इंडिया टुडे की पत्रकार मनोज्ञा लाइवाल बता रही हैं कुछ वजहों के बारे में. चलिए डालते हैं इन पर एक नजर...

मोदी सरकार, पश्चिम बंगाल, लोकसभा चुनाव 2019आईटीबीपी पहाड़ी इलाकों के जवान होते हैं, जिन्हें पश्चिम बंगाल जैसी गर्मी झेलने की आदत नहीं होती.

1- आईटीबीपी के जवानों की तैनाती

इंडो तिब्बतियन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के जवान ठंडे इलाकों में ड्यूटी करते हैं. उनकी तैनाती पहाड़ों पर होती है. लेकिन केंद्र सरकार ने आईटीबीपी को ठंडे इलाकों से निकाल कर चिलचिलाती धूप में लाकर छोड़ दिया. पश्चिम बंगाल में पारा करीब 40 डिग्री को छू रहा है. ऐसे में ठंडे इलाके से आए आईटीबीपी के जवान पश्चिम बंगाल की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाए. नतीजा ये हो रहा है कि वह अपना ध्यान चुनावी प्रक्रिया में लगाने के बजाए गर्मी से बचने में लगाते रहे. जिसे पंखा मिल गया वो उसके सामने बैठ गया, जिसे कुछ नहीं मिला वो अपनी शर्ट ही उतार कर गर्मी से बचने की कोशिश करने लगा.

2- गर्मी ने बिगाड़ दी पेट्रोलिंग

गर्मी से परेशान होने की वजह से आईटीबीपी के जवानों ने अपेक्षाकृत पेट्रोलिंग भी बहुत ही कम की. कम पेट्रोलिंग की वजह से ही जगह-जगह बमबारी जैसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं. अगर पेट्रोलिंग सही से होती तो बेशक शरारती तत्वों पर लगाम लगाई जा सकती थी. इन्हीं शरारती तत्वों ने चुनावी माहौल बिगाड़ा, जिससे सुरक्षाकर्मियों का ध्यान बंटा. एक ओर गर्मी की मार और दूसरी ओर शरारती तत्वों की हरकतें, सबने मिलकर फर्जी वोटिंग को आसान बना दिया. जवानों पर गर्मी की मार को देखते हुए वोटर्स को धमकाए जाने की घटनाएं भी खूब सामने आईं.

3- पंखे में बैठे जवान टीएमसी के लिए मददगार साबित हुए

चुनाव जारी थे और लोगों को संभालने की जिम्मेदारी आईटीबीपी को सौंपी गई थी. गर्मी की मार से बचने के लिए बहुत सारे जवान अपनी ड्यूटी छोड़कर पंखों की हवा खाते नजर आए. इसे जवानों की लापरवाही समझना गलत होगा, बल्कि ये कहना चाहिए कि पश्चिम बंगाल की गर्मी उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी. इस मौके का फायदा टीएमसी ने खूब उठाया. जवाब पंखे में बैठकर हवा खाते रहे और छप्पा वोटिंग धड़ल्ले से चलती रही. नतीजा ये है कि इस बार पिछली बार से भी अधिक चुनाव (83.8%) हुआ है.

4- बीएसएफ को तैनात करने का भी नुकसान

ऐसा नहीं है कि सिर्फ आईटीबीपी की तैनाती ही केंद्र सरकार की विफलता रही है. बीएसएफ को भी पश्चिम बंगाल में तैनात करना गलत फैसला रहा. बीएसएफ बॉर्डर पर तैनात होने वाली फोर्स होती है. बंगाल की सीमा से शरणार्थियों का आना और तस्करी आदि की घटनाओं के चलते लोगों में बीएसएफ के प्रति एक गुस्सा है. बीएसएफ की तैनाती से लोगों का सेना में विश्वास डगमगा गया. लोग भी ये सोचने लगे कि सेना तो महज तीन दिनों के लिए है. आखिरकार बाद में तो बंगाल पुलिस की ही सुननी होगी.

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