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Updated: 20 मई, 2019 11:00 AM
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Exit Poll में सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे यूपी से ही आ रहे हैं - क्योंकि कोई भी ये मानने को तैयार न था कि सपा-बसपा गठबंधन फेल हो जाएगा. फाइनल तो 23 मई के आंकड़े ही होंगे, लेकिन अभी तो यही लगता है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 'मोदी-मोदी' का बैनर लिये गोरखपुर का नाम भी बदलापुर कर दिया है. कम से कम गठबंधन के संबंध में तो यही लगता है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल ( India Today Axis My India poll ) के मुताबिक यूपी में बीजेपी की सीटें अमित शाह की अपेक्षाओं के अनुरूप तो नहीं होंगी, लेकिन राजनीतिक विरोधियों का पस्त हो जाना जरूर सुकून देने वाला होगा.

जितना बुरा हाल दिल्ली में आम आदमी पार्टी का नहीं हुआ है, कहीं उससे भी बुरा यूपी में कांग्रेस का लग रहा है - वो वाकई वोटकटवा लगने लगी है.

गोरखपुर का 'बदलापुर'

ये तो नामुमकिन है कि योगी आदित्यनाथ कभी गोरखपुर का नाम बदलने के बारे में सोचेंगे, लेकिन ऐसा हो पाता तो निश्चित रूप से वो बदलापुर जरूर कर देते. 2018 में गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी की शिकस्त योगी की राजनीतिक साख पर गहरा दाग था.

योगी ने गोरखपुर का दाग तो समाजवादी पार्टी से गठबंधन के सांसद प्रवीण निषाद को झटक कर ही हल्का कर दिया था, बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें दिलाकर वो अपनी साख भी बचा लिये हैं. हालांकि, फाइनल मुहर इस पर 23 मई को ही लगेगी.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के अनुसार उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से NDA को 62 से 68 सीटें मिलती दिख रही हैं. ये आंकड़ा उससे काफी कम है जो अब तक बीजेपी नेतृत्व दावा करता रहा.

narendra modi, yogi'बदलापुर' की बहुत बहुत बधाई!

अमित शाह का ये दावा तो सही होता लगता है कि देश में बीजेपी और साथियों को 300 से ज्यादा सीटें मिलेंगी, लेकिन यूपी में वैसा कुछ नहीं हो पाया. अमित शाह ने चुनाव में जो भी प्रयोग किये वे सफल तो लगते ही हैं.

अमित शाह ने यूपी को लेकर दावा किया था कि बीजेपी और साथियों के सीटों की संख्या 74 ही होगी, 72 नहीं - लेकिन एग्जिट पोल में इस हिसाब से 10-12 सीटों का नुकसान होता लगता है. 2014 में बीजेपी और सहयोगियों को मिलाकर यूपी की 80 में से 73 सीटें मिली थीं.

ये गठबंधन को क्या हो गया

अब तो लगता है सपा-बसपा गठबंधन को लेकर मुलायम सिंह यादव ही सही थे. ये बात अलग है कि जब मायावती मैनपुरी पहुंची तो मुलायम सिंह यादव अभिभूत नजर आ रहे थे, लेकिन उसके पहले यही कहना रहा कि गठबंधन करके तो पार्टी आधी सीटें गवां दी. गठबंधन के तहत बीएसपी 38 सीटों पर और समाजवादी पार्टी 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.

सपा-बसपा गठबंधन में सबसे बड़ा पेंच वोट ट्रांसफर का ही रहा है. बीएसपी तो अपने वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर कराने को लेकर आश्वस्त रही, लेकिन दूसरी तरफ से उसे डर लग रहा था. मजबूरी दोनों तरफ थी. बीजेपी से मुकाबले के लिए दोनों ने हाथ मिलाया. अखिलेश यादव की बगल में बैठ कर मायावती ने कहा भी था कि वो गठबंधन जरूर कर रही हैं लेकिन गेस्ट हाउस कांड भूली बिलकुल नहीं हैं. बाद में भी जब तब वो ये बात जरूर दोहराती रहीं, अब भविष्य में अलग होने की सूरत में ये बात काम आ सकती है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल में महागठबंधन को 10 से 16 सीटें मिलने की संभावना जतायी गयी है. वैसे एबीपी न्यूज के एग्जिट पोल में गठबंधन के हिस्से में यूपी की 56 सीटें आने की संभावना जतायी गयी है - देखना होगा फाइनल तक कौन टिकता है.

अखिलेश यादव से ज्यादा ये आंकड़ा मायावती की फिक्र बढ़ाने वाला है. 2012 के बाद से ये लगातार तीसरा मौका है जब मायावती को बुरी शिकस्त मिलने जा रही है. 2014 के हिसाब से देखें तो इस बार नतीजे बेहतर होने के इशारे कर रहे हैं, लेकिन उम्मीदों के बिलकुल खिलाफ हैं.

मायावती सपा-बसपा गठबंधन के बूते ही प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही थीं. एग्जिट पोल तो उनका सपना तोड़ने वाले ही नहीं, चकनाचूर करने वाले लगते हैं.

मायावती के मुकाबले अखिलेश यादव कम नुकसान में हैं. बल्कि, फायदे में भी हो सकते हैं. 2014 में तो परिवार की पांच ही सीटें मिल पायी थीं - अगर ज्यादा न भी हों तो कोई चिंता वाली बात नहीं है. वैसे भी अखिलेश यादव तो 2022 की तैयारी कर रहे हैं. कहा भी था कि वो मायावती को प्रधानमंत्री बनाने में जुटे हैं और बीएसपी नेता अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने में मदद करेंगी.

प्रियंका की जबान पर तो सरस्वती बैठी रहीं

बड़े अरमानों के साथ प्रियंका गांधी वाड्रा को राहुल गांधी ने कांग्रेस का महासचिव बनाकर पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया था. वैसे तो प्रियंका वाड्रा भी 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों की ही तैयारी कर रही हैं, लेकिन जो तस्वीर सामने आ रही है वो तो कांग्रेस के लिए भयानक है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के मुताबिक कांग्रेस को यूपी में 1 से 2 सीटें मिल सकती हैं. दो से कम का मतलब कांग्रेस यूपी में कोई एक सीट हार भी सकती है - अमेठी या रायबरेली. अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और रायबरेली से सोनिया गांधी.

अमेठी से हार के डर से ही राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. अमेठी में बीजेपी की स्मृति ईरानी कांग्रेस अध्यक्ष को टक्कर दे रही हैं. 2014 में चुनाव हार जाने के बावजूद स्मृति ईरानी लगातार अमेठी से संपर्क बनाये रहीं - और कोई न कोई बहाना निकाल कर अक्सर वहां पहुंच जाती रहीं.

अगर एग्जिट पोल नतीजों के करीब है तो ये कांग्रेस के लिए भी बहुत बुरे संकेत हैं. अमेठी में ही प्रियंका वाड्रा ने एक बयान दिया था जिससे कांग्रेस के वोटकटवा रोल की चर्चा छिड़ गयी. बाद में बवाल बढ़ने पर प्रियंका ने साफ किया कि कांग्रेस ने हर उम्मीदवार जीतने के हिसाब से खड़ा किया है, न कि वोट काटने के लिए.

करीब महीने भर तो प्रियंका वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से भी चुनाव लड़ने की हवा उड़ाई, लेकिन बाद कांग्रेस ने पांच साल पहले जमानत जब्त करा चुके उम्मीदवार को ही टिकट दे दिया. लगता है कांग्रेस नेतृत्व ने हवा का रूख पहले ही भांप लिया था.

यूपी में हुए इस उलटफेर के लिए सीनियर पत्रकार राजदीप सरदेसाई MBC वोट यानी अति पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की अहम भूमिका मानते हैं. राजदीप सरदेसाई की नजर में पहले मुलायम सिंह यादव एमबीसी वोटों को अपने हाथ से नहीं जाने देते थे, इस बार बीजेपी ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें अपने पाले में मिला लिया है.

राजदीप सरदेसाई जिस तरफ ध्यान दिला रहे हैं वो समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बड़ा धक्का रहा. गोरखपुर और आस पास के इलाकों में निषाद वोटों का खासा दबदबा है. गोरखपुर से सांसद प्रवीण निषाद को बीजेपी ने समाजवादी पार्टी से छीन लिया. निषाद पार्टी को दो टिकट देने जरूर पड़े लेकिन बीजेपी को उसका बड़ा फायदा मिला.

मुलायम सिंह यादव के बारे में राजदीप सरदेसाई कहते हैं कि वो सिर्फ यादवों के नहीं बल्कि पिछड़े और अति पिछड़ वर्ग में भी लोकप्रिय नेता रहे हैं. सरदेसाई याद दिलाते हैं कि किस तरह मुलायम सिंह यादव ने मल्लाह वोटों की अहमियत को सबसे पहले लपकते हुए फूलन देवी को टिकट दिया और चुनाव जिताया था.

यूपी में बीजेपी की सीटें कम मिलने की स्थिति में सबसे ज्यादा नुकसान योगी आदित्यनाथ का हो सकता था. त्रिपुरा से लेकर कर्नाटक चुनाव तक तो योगी आदित्यनाथ छाये हुए थे, लेकिन जिन तीन राज्यों में बीजेपी ने सरकारें गंवाई योगी बिलकुल नहीं चल पाये थे. बीजेपी की हार के साथ ही योगी के स्टार प्रचारक होने की छवि भी धूमिल पड़ती जा रही थी - अगर एग्जिट पोल सही हैं तो योगी ने खोई हुई ताकत और छवि बचा ली है.

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