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Updated: 05 जुलाई, 2018 01:36 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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भारत जैसे देश में रोजगार की बड़ी समस्या है. रोजगार ही वो मुद्दा था, जिसने 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाई थी. पीएम मोदी ने भी लोगों से वादा किया था कि उनकी सरकार देश में हर साल करीब 1 करोड़ रोजगार पैदा करेगी. अब लोकसभा चुनाव दोबारा आ गए हैं, लेकिन अभी भी देश में बहुत से युवा बेरोजगार भटक रहे हैं. हाल ही में पीएम मोदी ने स्वराज्य मैगजीन को एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि देश में नौकरियां तो बहुत पैदा हुई हैं, लेकिन आंकड़ों की कमी है. वह बोले कि नौकरियों को मापने का तरीका बहुत पुराना है जो आज के जमाने में रोजगार को मापने के लिए पर्याप्त नहीं है. यानी अब मोदी सरकार नौकरियां मापने के तरीके को ही बदलने की तैयारी कर रही है, ताकि ये दिखाया जा सके कि देश में मौजूदा आंकड़ों से अधिक नौकरियां पैदा हुई हैं.

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राज्यों का भी दिया हवाला

पीएम मोदी ने अपना पक्ष मजबूत करते हुए राज्यों के आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि अगर राज्यों में नौकरी पैदा हो रही है तो ऐसा कैसे हो सकता है कि देश में रोजगार पैदा नहीं हो रहा हो. उन्होंने पूर्ववर्ती कर्नाटक सरकार के 53 लाख नौकरियों के आंकड़े और पश्चिम बंगाल सरकार के 68 लाख नौकरियां पैदा करने के आंकड़े का उदाहरण भी दिया. पीएम ने ईपीएफओ के आंकड़े भी गिनाए और कहा कि पिछले साल संगठित क्षेत्र में 70 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं, जबकि असंगठित क्षेत्र में कुल रोजगार का 80 फीसदी रोजगार पैदा हुआ है. वह बोले कि आज सड़क निर्माण में बढ़ोत्तरी हुई है, रेलवे, राजमार्ग, एयरलाइंस में भी बढ़ोत्तरी हुई है. उनका मानना है कि जब इन सबमें बढ़ोत्तरी हुई है तो इनसे रोजगार भी पैदा हुआ है. उन्होंने यह भी कहा कि मुद्रा योजना के तहत 12 करोड़ से भी अधिक का कर्ज दिया गया, तो ये कैसे हो सकता है कि इससे व्यक्ति की जीविका का निर्माण ना हुआ हो. पिछले साल भर में 1 करोड़ घरों का निर्माण हुआ, जिसने भी रोजगार पैदा किया होगा. अब अगर मोटे तौर पर देखा जाए तो बात में दम तो है. जब इतना कुछ हो रहा है, तो इसके लिए लोगों को नौकरी पर भी तो रखा ही जा रहा होगा, लेकिन इसके आंकड़े सही-सही नहीं दिखाई दे रहे हैं.

जीडीपी मापने का फॉर्मूला पहले ही बदला जा चुका है

सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने जीडीपी को मापने का फॉर्मूला भी बदल दिया था. नए फॉर्मूले में अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों को भी शामिल किया गया था, जो पहले लिस्ट से नदारद थे, जैसे स्मार्टफोन सेक्टर और एलईडी टेलीविजन सेट. इसके बाद 2013-14 में जीडीपी की दर 4.7 फीसदी से संशोधित होकर 6.9 फीसदी हो गई थी. जबकि 2012-13 के लिए जीडीपी का आंकड़ा 4.5 फीसदी से संशोधित होकर 5.1 फीसदी हो गया था. जिस तरह जीडीपी मापने का फॉर्मूला बदलते ही जीडीपी की दर बढ़ गई, अगर ठीक उसी तरह से रोजगार मापने के फॉर्मूले में बदलाव करने के बाद रोजगार को आंकड़ों में यानी नौकरियों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी देखने को मिले तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी.

अभी क्या हैं बेरोजगारी के हालात?

सीएमआईई के अनुसार मौजूदा समय में बेरोजगारी 6.1 फीसदी है, जो पिछले 15 महीनों में सबसे अधिक है. वहीं अगर इकोनॉमिक सर्वे की बात की जाए तो 2013-14 में बेरोजगारी की दर 4.9 फीसदी थी, जो 2016-17 में मामूली बढ़कर 5 फीसदी हो गई. देश में रोजगार के मौके बढ़े हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसकी रफ्तार उम्मीद से बहुत ही कम है. मोदी सरकार के कार्यकाल में सालाना सिर्फ 2 लाख नौकरियां ही पैदा हो सकी हैं.

रोजगार पर नोटबंदी ने भी एक बड़ी चोट मारी थी, खासकर असंगठित क्षेत्र में, जहां पर भुगतान कैश में किया जाता है. कैश की कमी होने की वजह से उस क्षेत्र में बहुत से लोगों की नौकरी चली गई थी. ऐसा नहीं है कि दोबारा उन लोगों को कोई नौकरी नहीं मिली, लेकिन इसने बेरोजगारी के आंकड़े में कुछ बढ़ोत्तरी ही करने का काम किया. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि मोदी सरकार बेरोजगारी मापने के फॉर्मूले में क्या बदलाव करती है, जिससे बदले हुए आंकड़े सामने आ सकें.

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