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Updated: 06 अक्टूबर, 2019 12:01 PM
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28 सितंबर, 2015 को दादरी में मोहम्मद अखलाक को पीट पीट कर मार डाला गया था. एक सनकी हमलावर भीड़ को शक था कि अखलाक के घर के फ्रीज में जो मीट रखा है वो गोमांस है. तीन साल बाद भी मॉब लिंचिंग की घटनाओं में कोई खास फर्क नहीं लगता. मध्य प्रदेश और झारखंड की दो हालिया घटनाएं इस बात की गवाह भी हैं और सबूत भी.

दादरी की घटना को लेकर देश भर में बवाल हुआ था. असहिष्णुता और अवॉर्ड वापसी पर भी जोरदार बहसें हुई. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का बयान आया और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे ब्रह्म-वाक्य की तरह मान लेने की सलाह दी. गोरक्षकों के उत्पात पर प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सरकारों को डॉजियर बनाने को भी कहा था, लेकिन ऐसी घटनाओं में कभी कोई फर्क नहीं देखने को मिला.

अभी जुलाई में ही 49 सेलीब्रिटी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर चिंता जतायी थी, ज्यादा देर भी नहीं हुई कि 62 अन्य शख्सियतें काउंटर ऑपरेशन में लामबंद हो गयीं - फिर भी मॉब लिंचिंग की घटनाओं में कहीं कोई कमी नहीं आ रही है. गोहत्या के बाद बच्चा चोर बता कर जहां तहां लोगों को पीट पीट कर मार दिया जाता रहा - और अब तो खुले में शौच के खिलाफ भी मॉब लिंचिंग शुरू हो गयी है. अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे आतंकवाद के बाद मॉब लिंचिंग देश के लिए बड़ा खतरा बनने जा रहा हो.

मॉब लिंचिंग बेकाबू क्यों हो गया है?

मॉब लिंचिंग की हाल की दो घटनाएं दिल दहला देने वाली हैं - एक मध्य प्रदेश से और दूसरी झारखंड से. पहलू खान और तबरेज अंसारी की मौत को ही भूलना मुश्किल हो रहा था - लेकिन अब तो ये भीड़ बच्चों को भी नहीं बख्श रही है. झारखंड में तो गोहत्या के इल्जाम में एक ऐसे शख्स को मार डाला है जिसके लिए कुछ दिन पहले तक खुद ब्रश करना तक मुश्किल हो रहा था.

खुले में शौच के लिए बच्चों को मार डाला :

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक पंचायत भवन के सामने दो बच्चों को पीट पीट कर मार डाला गया. ये दोनों एक दलित परिवार के बच्चे थे - 12 साल की रोशनी और 10 साल का अविनाश.

shivpuri victims village mourning बच्चों की पीट पीट कर हत्या के बाद शिवपुरी के गांव में मातम पसरा हुआ है

रोशनी और अविनाश का कसूर सिर्फ इतना बताया जा रहा है कि दोनों पंचायत भवन के सामने शौच के लिए बैठे थे. तभी कुछ लोग लाठी-डंडों से पीटने लगे. बुरी तरह घायल बच्चों को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वे रास्ते में ही दम तोड़ चुके थे.

गोहत्या के शक में अपाहिज को मार डाला :

झारखंड के खुंटी जिले के एक गांव में केलेमतुस बारला को सनकियों की एक भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला. बीबीसी से बातचीत में केलेमतुस बारला की पत्नी करुणा बड़ा ही वाजिब सवाल उठाती हैं - 'कई सालों तक वो खुद ब्रश भी नहीं कर पाते थे. बिना किसी की मदद के कहीं जाते भी नहीं थे. उन्हें मारने वाले लोग इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं? एक लाचार आदमी को मारते वक्त उनके हाथ क्यों नहीं कांपे? उन्हें दया क्यों नहीं आई?'

करुणा के सवालों का जवाब बहुत मुश्किल है, या कहें अब तो है भी नहीं. पांच साल पहले करुणा के बेटे को ऐसा बुखार हुआ कि मौत हो गयी. बेटे की मौत की खबर सुन कर करुणा के पति चेन्नई से बदहवासी की हालत में घर लौट रहे थे और हादसे के शिकार हो गये. हादसे में बुरी तरह जख्मी करुणा के पति के बायें हिस्से ने काम करना बन कर दिया. तब से वो अपने दायें हाथ और पैर के साथ साथ पत्नी की मदद पर पूरी तरह निर्भर थे. मुसीबतें जब आती हैं तो ऐसे ही आती हैं - केलेमतुस के अपाहिज हो जाने के बाद घरवाले भी बंटवारा कर अलग हो गये.

परिवार में अकेली बची करुणा के सवालों का शायद ही किसी के पास जवाब हो, '22 तारीख की शाम मुझे बताया गया कि उन्हें लोगों ने पीट-पीट कर मार दिया है. कहा गया कि उन पर गाय का मांस काटने का आरोप लगा था. बताइए कि जिस आदमी के शरीर का आधा हिस्सा बेकार हो, वह गाय कैसे काटेगा?'

मायावती की ट्विटर पॉलिटिक्स

BSP नेता मायावती जब से सोशल मीडिया पर आई हैं लगता है उनकी राजनीति भी ट्विटर तक ही सीमित होकर रह गयी है. रोहित वेमुला के मामले में तो मायावती ने संसद में थोड़ा बहुत शोर भी मचाया था. स्मृति ईरानी के साथ मायावती की गर्मागर्म बहस भी हुई थी - लेकिन शिवपुरी के बच्चों की हत्या के मामले में तो ऐसा लग रहा है जैसे रस्मअदायगी ही कर रही हों.

अब जरा मायावती का ट्वीट पढ़िये और जान लीजिए बीएसपी नेता के लिए किसी दलित की मौत के क्या मायने होते हैं - बच्चों को तो भूल ही जाइए!

अब मायावती को कौन समझाये कि वे बच्चे हैं - 10 और 12 साल के बच्चे किशोर भी नहीं कहे जा सकते. वे बच्चे हैं - नाबालिग वाली भी कहानी नहीं चलेगी. ये मासूम बच्चे हैं - और मायावती को वे दलित युवक लग रहे हैं. हद है.

मायावती को क्यों लगता है कि दलित हत्या के नाम पर एक ट्वीट कर वो मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार की नाकामियों के तोहमत से बच जाएंगी? बाहर से ही सही, लेकिन कमलनाथ सरकार को BSP सपोर्ट तो किया ही हुआ है.

वो तो हाड़-मांस का एक ऑब्जेक्ट है जिसे शिकार होना है!

अभी 24 सितंबर की ही तो बात है. विदेशी मीडिया के सामने संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ कहा था - हमारा संगठन किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ है - और अगर इसमें कोई संघ का आदमी शामिल पाया जाता है तो बाहर कर दिया जाएगा. फिर तो कानून अपना काम करेगा ही. मोहन भागवत मॉब लिंचिंग को लेकर विदेशी मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे.

आखिर क्यों नहीं थम रही मॉब लिंचिंग की घटनाएं? देश का कोई भी ऐसा हिस्सा तो हो जहां कोई हंसती खेलती जीती जागती जिंदगी किसी बौखलाई भीड़ की दया की मोहताज न हो - दया की भीख मांगना भी उस भीड़ से अपनी मौत से दूरी कम करने वाली साबित हो.

मुश्किल तो ये है कि ऐसी आततायी भीड़ से बचाने वाली पुलिस भी पूर्वाग्रहग्रस्त है. हाल ही में पुलिसवालों को लेकर आये एक सर्वे से मालूम हुआ कि पुलिसकर्मी भी मानते हैं कि गोहत्या के आरोपियों की मॉब लिंचिंग कहीं से कोई गलत बात नहीं है.

फिर तो पक्का मान चलना होगा कि वे तो मार ही डालेंगे. बहाना भी कोई न कोई खोज ही लेंगे. फर्क इस बात से उन्हें कतई नहीं पड़ता कि बहाना डायन का बनाना है, या गोहत्या का आरोपी - या फिर बच्चा चोर या खुले में शौच के अपराध की सजा देनी है.

फर्क ये भी नहीं पड़ता कि जो शिकार मिला है उसका धर्म या जाति कुछ विशेष है या नहीं. फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि वो जवान है या बुजुर्ग. बालिग है या नाबालिग. फर्क तो इस बात से भी नहीं पड़ता कि कहीं वो दुधमुंहा बच्चा तो नहीं है!

वो तो हाड़-मांस का एक चलता फिरता ऑब्जेक्ट है जिसे शिकार होना है. हर बार ये भी जरूरी नहीं कि वो चलने फिरने लायक ही हो. झारखंड के केलेमतुस बारला तो अपने बूते अपने काम करने में भी अक्षम थे. एक हाथ और एक पैर बेकार थे. सिर्फ एक हाथ और एक पैर से जो कुछ संभव था कर पाते थे - लेकिन गोहत्या का आरोप लगाकर पीट पीट कर मार डालने के लिए वो पूरी तरह फिट केस बन गये. मध्य प्रदेश की 12 साल की रोशनी और 10 साल के अविनाश ने तो मॉब लिंचिंग जैसा खूंखार शब्द शायद कभी सुना भी न हो!

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