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Updated: 24 जुलाई, 2019 08:11 PM
शलभ मणि त्रिपाठी
शलभ मणि त्रिपाठी
  @shalabh.tripathi
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बीते 11 जुलाई की ही बात है, जब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देर रात सरकार की तरफ से एक आपात पत्रकार वार्ता बुलाई गई. देर रात बुलाई गई इस पत्रकार वार्ता का मकसद था उस घटना का खुलासा करना, जिसमें उन्नाव में मदरसा छात्रों से कथित तौर पर 'जय श्री राम' बोलने को कहा गया, और ऐसा ना करने पर उनकी पिटाई करते हुए माब लिंचिंग की कोशिश की गई थी. दरअसल इस घटना को लेकर तेजी से एक नकारात्मक माहौल बनने लगा था. कुछ लोगों की तरफ से घटना को मजहबी रंग दिए जाने का प्रयास भी होने लगा. सलमान खुर्शीद सरीखे नेता भी इस पूरे विवाद में कूद पड़े थे और तमाम बुद्धिजीवी भी अपने-अपने तरीके से इस पूरी घटना की व्याख्या करते हुए सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालने लगे थे.

पर इस पूरे वाकए की हवा तब निकल गई जब सरकार ने घटना का असल खुलासा किया. पता चला कि दरअसल मदरसा छात्रों के साथ ये घटना तब हुई जब वे क्रिकेट खेल रहे थे. कुछ और बच्चे भी वहां क्रिकेट खेलने पहुंचे. खेल के दौरान ही दोनों गुटों में खेल-खेल में झगड़ा हुआ और फिर मारपीट होने लगी. इस मारपीट में दोनों तरफ से बच्चों को चोटें आईं. मदरसे के छात्र जब इकट्ठा होने लगे, तब दूसरा गुट भाग गया. इस दौरान ना तो किसी ने धार्मिक नारे लगाए, ना ही धार्मिक नारे लगाने के लिए किसी को मजबूर किया गया. पर घटना के बाद घटनास्थल पर जमा हुए कुछ लोगों ने दिमाग लगाया. और देखते ही देखते ये वाकया देश भर के टेलीविजन चैनलों की सुर्खियों में तब्दील हो चुका था. इस एंगल के साथ कि क्रिकेट खेल रहे मदरसा छात्रों से जबरदस्ती जयश्री राम बुलवाने की कोशिश, ना बोलने पर निर्मम पिटाई.

unnao madrasa childrenउन्नाव में खेल-खेल में छात्रों की बीच लड़ाई हो गई जिसे मॉब लिंचिग का नाम दिया गया

तेजी से हरकत में आई उन्नाव पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर घटना की तफ्तीश शुरू कर दी. सबसे पहले इन लड़कों का सुराग लगाया गया, जिन पर कथित तौर पर मारपीट का आरोप था. मोबाइल लोकेशन और तमाम प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीच में पता लगा कि वे तो मौके पर थे ही नहीं. बस यहीं से तफ्तीश की दिशा बदल गई. पूछताछ हुई तो पता चला कि बच्चों के इस झगड़े में बाद में पहुंचे कुछ बड़ों ने घटना को नया रंग दे डाला. और तो और मीडिया के कैमरे पहुंचने से पहले बच्चों को बकायदा बताया गया कि उन्हें क्या बोलना है. समय रहते यूपी सरकार ने घटना पर काबू कर लिया, अन्यथा इस घटना का असर कुछ घंटों में आसपास के जिलों में देखने को मिल सकता था.

वैसे योगी आदित्यनाथ सरकार में उत्तर प्रदेश में ये पहली घटना नहीं थी, जिसे मजहबी रंग देने की नाकाम कोशिश की गई. कानपुर में भी ऐसा ही हुआ था जब एक नौजवान ने आरोप लगाया कि बाइक से जाते हुए उसे रोक कर उससे जय श्री राम बोलने को कहा गया, ना बोलने पर उसकी पिटाई करते हुए मॉब लिंचिंग की कोशिश की गई. पर जांच के बाद ये मामला भी झूठा निकला. इसी तरह कानपुर के ही एक आटो ड्राइवर आकिब को लेकर एक खबर मीडिया में सुर्खिया बनी. कहा गया कि जय श्री राम ना बोलने पर तीन लोगों ने उसकी पिटाई की. जांच हुई तो पता चला कि आकिब की पिटाई तो हुई थी पर तीन लोगों को आटो में ना बैठाने के चलते. बाद में खुद आकिब ने भी ये स्वीकार किया कि पिटाई का जय श्री राम के नारे से कोई लेना देना नहीं था. ये महज सवारी को लेकर हुआ झगड़ा भर था.

सवाल ये उठता है कि आखिर इस तरह की घटनाओं का मकसद क्या है. और इसके पीछे आखिर कौन लोग हैं और मीडिया का एक समूह इन घटनाओं को लेकर ज्यादा उत्साहित क्यों रहता है. योगी आदित्यनाथ ने 2017 में काम संभालने के बाद ये संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी सरकार मजहबी आधार पर कोई फैसला नहीं ले रही है. सरकार की देखरेख में हिंदुओं के त्यौहारों पर जिस तरह के सरकारी इंतजाम किए गए, वैसी ही व्यवस्था मुस्लिमों के पर्वों पर भी रही. कानून व्यवस्था, साफ सफाई, बिजली पानी का इंतजाम दीपावली होली और ईद बकरीद पर एक जैसा देखने को मिला. इतना ही नहीं गरीब कन्याओं के विवाह को लेकर शुरू हुई मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना का लाभ भी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय की बेटियों को मिला.

mob lynchingमॉब लिंचिग पर पूरे देश में राजनीति गर्म हो जाती है

सरकार बनने के फौरन बाद कुछ अति उत्साही अधिकारियों की तरफ से जब लखनऊ के हज हाऊस को भगवा रंग में रंगवाने की कोशिश की गई तब भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को लताड़ लगाते हुए हज हाऊस को पहले की तरह ही रखने के आदेश दिए. केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से गांवों और गरीबों के लिए आ रही आवास, बिजली, सड़क और शौचालय योजनाओं का लाभ भी बिना किसी भेदभाव के नीचे तक पहुंच रहा है. प्रदेश में आज ऐसे हजारों उदाहरण हैं जिनमें अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आवास, शौचालय, उज्जवला, आयुष्मान और सौभाग्य योजना का लाभ मिला. किसानों की कर्जमाफी से लेकर किसान सम्मान निधि देने तक में भी किसी तरह के भेदभाव के आरोप नहीं लगे. सरकारी शिक्षा के सुधार की दिशा में लिए जा रहे फैसलों के तहत योगी आदित्यनाथ ने सरकारी स्कूलों में जब एनसीआरटी की पुस्तकें पढाने का आदेश दिया तब यह आदेश मदरसों के बच्चों की बेहतरी के लिए भी लागू किया गया. कानून व्यवस्था को लेकर अपनाई जा रही आक्रामक नीति में धर्म और जाति-पाति से अलग अपराधियों के साथ अपराधियों जैसे बर्ताव की नीति लागू की गई. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ योगी सरकार का रवैया भी हर वर्ग के लोगों को रास आ रहा है. उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए पिछले 15 सालों में ये अनुभव नया है.

ये वो तमाम बातें थीं जिनके चलते उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक समुदाय में ये विश्वास बैठने लगा है कि तमाम पूर्वाग्रहों से इतर प्रदेश की योगी सरकार बिना भेदभाव के काम कर रही है. शायद यही बात कुछ कट्टरपंथियों और सियासी दलों को रास नहीं आई और इसका नतीजा देखने को मिला कुछ मनगढंत घटनाओं के तौर पर. किसे याद नहीं कि असहिष्णुता के नाम पर ऐसा ही शिगूफा 2014 में भी खड़ा करने का प्रयास किया गया था जब केंद्र में एक बड़े बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी ने पीएम की कमान संभाली थी. पर फिलहाल इन घटनाओं की सच्चाई सामने आ चुकी है और उत्तर प्रदेश का अमन चैन बरकरार है.

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लेखक

शलभ मणि त्रिपाठी शलभ मणि त्रिपाठी @shalabh.tripathi

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिज्ञ हैं

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