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Updated: 16 मई, 2020 07:00 PM
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औरैया में मजदूरों की मौत (Auraiya Accident) की खबर लोगों की आंख खुलते ही इसलिए मिल पायी क्योंकि मरने वालों की संख्या दो दर्जन थी और घायलों की तीन दर्जन. लॉकडाउन (Lockdown) लागू होते ही दिहाड़ी मजदूर मीडिया में सुर्खियों का हिस्सा बन चुके थे और तब से शायद ही कोई दिन बीता हो जब मजदूरों से जुड़ा कोई न कोई हादसा सुनने को न मिला हो.

कभी किसी ट्रक से तो कभी किसी बस से कुचल कर तो कभी ट्रेन से कट कर मजदूरों की मौत की खबरें आ रही हैं. ये मजदूर लगातार अपने घर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं - और कभी भूखे-प्यासे तो कभी थक कर रास्ते में ही दम तोड़ दे रहे हैं.

बीजेपी के एक नेता ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) को पत्र लिख कर याद दिलाने की कोशिश भी की है - 'ये सब अपने ही लोग हैं.' सुप्रीम कोर्ट का भी यही सवाल है कि पैदल चले जा रहे मजदूरों को रोका तो जा नहीं सकता? फिर क्या किया जा सकता है - जिस पर केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिख कर ये सुनिश्चित करने को कहा है कि वे मजदूरों को पैदल चलने से रोकें और कोशिश करें कि वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन या बसों से ही अपने घर पहुंच सकें.

उत्तर प्रदेश में हुआ औरैया हादसा इसके बाद का वाकया है - और ये हादसा व्यवस्था की पूरी पोल खोल कर भी रख दे रहा है. यही वजह है कि मजदूरों की मौत लॉकडाउन के दौरान हुए इंतजामों पर सवालिया निशान लगा रही है.

लॉकडाउन की कामयाबी पर उठते सवाल

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 15 मई को ही लॉकडाउन व्यवस्था समीक्षा बैठक में सभी जिलाधिकारियों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को साफ तौर पर बता दिया था कि ध्यान दिया जाये कि कोई भी प्रवासी कामगार या मजदूर पैदल यात्रा न कर पाये. मुख्यमंत्री का निर्देश था कि हर थाना क्षेत्र में एक टीम बना कर पैदल या बाइक से यात्रा करने वाले प्रवासियों को रोकने के इंतजाम किये जायें. साथ ही, ट्रक जैसे असुरक्षित वाहनों से सवारी ढोने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की हिदायत भी दी गयी थी. हो सकता है ये योगी आदित्यनाथ की अपनी पहल हो, वैसे केंद्र सरकार की तरफ से भी देश की सभी राज्य सरकारों को पत्र लिख कर ये सुनिश्चित करने को कहा गया था कि प्रवासी मजदूरों को न तो सड़क पर पैदल चलने दिया जाये और न ही रेल ट्रैक पर. अगर जरूरत पड़े तो उनके जाने के लिए विशेष बसों का इंतजाम किया जाये या फिर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से भेजने की व्यवस्था की जाये. केंद्र की तरफ से ये पत्र सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के बाद लिखा गया था.

सुप्रीम कोर्ट का सवाल था कि क्या पैदल चल कर जा रहे मजदूरों को किसी तरह से रोका जा सकता है?

जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि राज्य सरकारें ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कर रही हैं, लेकिन ये लोग इंतजार नहीं कर रहे हैं और गुस्से में पैदल ही निकल पड़ रहे हैं. सरकार ऐसे लोगों से सिर्फ आग्रह ही कर सकती है. अगर कोई मान नहीं रहा है तो उनके खिलाफ बल प्रयोग भी नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा हुआ तो रिएक्शन भी होगा.

फिर तो यही लगता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों पर अमल हुआ होता तो औरैया में हुई मजदूरों की मौत को निश्चित तौर पर रोका जा सकता था. अगर मजदूरों को ले जा रहे ट्रकों को रोक लिया गया होता तो हादसे की नौबत आती ही नहीं. मुख्यमंत्री के आदेश के बाद अगर ट्रकों को जहां का तहां रोक लिया गया होता तो ये स्थिति पैदा ही नहीं हुई होती.

अब सवाल ये उठता है आखिर ऐसी क्या वजह है कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी ट्रक मजदूरों को लेकर बेरोक-टोक आ जा रहे हैं?

auraiya accidentअफसर लापरवाह न होते तो औरैया हादसे में 24 मजूदरों की मौत रोकी जा सकती थी

NBT ऑनलाइन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है. लखनऊ के एक चौराहे पर ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस अफसर की बातें व्यवस्था की पोल अपनेआप खोल दे रही हैं. अफसर ने बताया, 'मजदूरों को हम कहां रखें? जो जा रहे हैं, उन्हें रोक भी लें तो कहां ले जाएं? हमारे अधिकारियों ने इसे लेकर हमें कोई निर्देश नहीं दिए हैं.'

बस इतनी सी बात है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समीक्षा बैठक की. निर्देश दिये. थाने स्तर तक टीमें बनाने की बात भी कह दी. अधिकारियों ने पुलिस अफसरों को मजदूरों को पैदल न चलने से रोकने की हिदायत भी दे दी, लेकिन ये नहीं बताया कि रोकने के बाद मजदूरों को कहां ले जाना है - यही लॉकडाउन के जमीनी इंतजाम हैं. फिर औरैया जैसे हादसे तो होते ही रहेंगे. जो बच जाएंगे उनकी किस्मत और जो मर जाएंगे ये उनकी किस्मत की बात है.

ऐसा लगता है, नीतीश कुमार की बातें सही साबित होने लगी हैं - '...लॉकडाउन फेल हो जाएगा'.

ये बात नीतीश कुमार ने बिहार के दिहाड़ी कामगारों के लिए कही थी जो दिल्ली में सड़क पर उतर चुके थे - और पैदल ही घर निकल पड़े थे. नीतीश कुमार के साथ साथ अपील तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कर रहे थे, लेकिन दोनों के अपने अपने राजनीतिक स्वार्थ थे. ये मजदूर दिल्ली में रहते तो केजरीवाल सरकार को इनके लिए सारे इंतजाम करने पड़ते. ऐसे मजदूरों के बिहार पहुंचते ही नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ जातीं. बहरहाल, मजदूरों ने किसी की अपील की परवाह नहीं की और घर के लिए निकल पड़े तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा. न भूख का डर आड़े आया न मौत का - फिर कोरोना वायरस का डर क्या मायने रखता है.

सच तो ये है कि ये मजदूर अपनी जिंदगी तो खतरे में डाले ही कोरोना वायरस संक्रमण जैसी महामारी के खतरे में दूसरों को भी डाल दिये, लेकिन क्या इसके लिए अकेले ये ही जिम्मेदार हैं?

जो इंतजाम मजदूरों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभी किये जा रहे हैं पहले भी तो किये जा सकते थे - अगर लॉकडाउन लागू करने से पहले नहीं याद आये तो मजदूरों के याद दिलाने पर तो व्यवस्था हो ही सकती थी. आखिर किस बात के लिए इतना इंतजार किया गया? ये संभव था कि अगर वक्त रहते मजदूरों की रोजी-रोटी के उपाय सोचे गये होते तो भला वे क्यों घरों की ओर जाने का फैसला करते. घर परिवार से दूर वे इसीलिए रह रहे थे क्योंकि उनके इर्द-गिर्द रोजी-रोटी के साधन नहीं थे. जो चिंता अब राज्य सरकारों को हो रही है कि मजदूर अपने घर लौट गये तो कल-कारखाने कैसे चलेंगे, निर्माण कार्य कैसे होंगे - अगर पहले सोचे होते तो क्या ये नौबत आने से रोकी नहीं जा सकती थी.

ये सब अपने ही लोग हैं

मजदूरों को लेकर देश भर में अगर कोई फील्ड में एक्टिव नजर आया है तो वो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही हैं. ये योगी आदित्यनाथ ही रहे जो दिल्ली सीमा पर यूपी के मजदूरों की भीड़ देखते ही उनके घर जाने के लिए रातों रात बसों का इंतजाम किया था. ये योगी आदित्यनाथ ही हैं जिन्होंने कोटा में फंसे छात्रों के बाद बसें भेज कर यूपी के मजदूरों को वापस लाकर घर पहुंचाया - और ये योगी आदित्यनाथ की ही सरकार है जो यूपी में कामगारों के लिए 20 लाख रोजगार के इंतजाम में भी लगी है. वैसे तो योगी आदित्यनाथ ने श्रम कानूनों में बदलाव करके काम के घंटे 8 से बढ़ा कर 12 कर दिया था, लेकिन जब मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा तो आदेश वापस भी ले लिया है.

देश भर में दिहाड़ी मजदूरों की हालत और उनके साथ होते हादसों को लेकर बीजेपी नेतृत्व की भी चिंता बढ़ने लगी है. बीजेपी उपाध्यक्ष ओम माथुर ने तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर मजदूरों की हालत की याद दिलाने की भी कोशिश की है.

ओम माथुर ने अपने पत्र में लिखा है, 'ये सब हमारे ही लोग हैं. मेरा निवेदन है कि प्रधानमंत्री केयर्स फंड से जो 1000 करोड़ रुपये की राशि प्रवासी मजदूरों के लिए आवंटित की गयी है उस राशि का उपयोग मजदूरों को उनके घर तक सहज और सुलभता से पहुंचाने में किया जाये तो उचित होगा.'

बीजेपी सांसद ओम माथुर 1000 करोड़ रुपये की उस रकम का जिक्र कर रहे हैं जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर्स फंड से मजदूरों के लिए देने की घोषणा की थी. वैसे तो मोदी सरकार के 20 लाख करोड़ के पैकेज में भी बाकियों के साथ साथ गरीबों और मजदूरों की रोजी-रोटी के उपायों की बात है, लेकिन ओम माथुर चाहते हैं कि उस रकम से मजदूरों को उनके घर तक छोड़ने का कोई कारगर इंतजाम हो सके.

द प्रिंट ने सूत्रों के हवाले से प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया है कि मजदूरों को लेकर चल रही खबरों से बीजेपी नेतृत्व किस हद तक चिंतित है. रिपोर्ट के मुताबिक, अमित शाह ने बीजेपी दफ्तर पहुंच कर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को मजदूरों की मदद के लिए कई सुझाव दिये हैं जिसे बाकी पार्टी पदाधिकारियों से साझा किया गया है.

कम से कम अगले दो हफ्ते तक बीजेपी काडर को आलाकमान से साफ साफ निर्देश मिला है कि वे सुनिश्चित करें कि न तो हाइवे पर और न ही रेल पटरियों पर एक भी प्रवासी मजदूर की मौत न हो. साथ ही, जो मजदूर ऐसी जगहों पर मिलें उनको चप्पल, साबुन, भोजन पानी और मास्क भी मुहैया कराने को कहा गया है.

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