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Updated: 10 अक्टूबर, 2019 09:36 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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पहले येदियुरप्पा, फिर एचडी कुमारस्वामी और फिर येदियुरप्पा का मुख्यमंत्री बनना. जैसा कर्नाटक का हाल है, शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब किसी न किसी बात को लेकर कर्नाटक सुर्ख़ियों में नहीं आता. कर्नाटक को लेकर चर्चा तेज है. कारण बने हैं मीडिया और पत्रकार. कर्नाटक के अंतर्गत मीडिया नियंत्रित रहे इसलिए राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. कर्नाटक विधानसभा की कार्रवाई अब टीवी चैनलों पर नहीं दिखाई जाएगी. ताजे ताजे विधानसभा अध्यक्ष बने विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने निजी चैनलों पर सदन की कार्यवाही के लाइव प्रसारण पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं. बताया जा रहा है कि ये विचार स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का है. येदियुरप्पा ने बीते दिनों ही कहा था कि वो राज्य के विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध करेंगे कि मीडिया को सदन की कार्यवाही को टेलीकास्ट करने पर रोक लगाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें. ध्यान रहे कि जल्द ही कर्नाटक विधान सभा की कार्यवाही शुरू होने वाली है. जैसा सियासी घमासान हालिया दिनों में कर्नाटक में देखने को मिला है. साफ़ है कि सदन में जहां एक तरफ खूब आरोप प्रत्यारोप लगेंगे. तो वहीं गाली गलौज और अभद्र भाषा का भी इस्तेमाल खूब किया जाएगा. इतनी बातों से ये खुद न खुद साबित हो जाता है कि आखिर कर्नाटक सरकार द्वारा क्यों मीडिया के कैमरों को सदन से दूर किया गया है.

कर्नाटक, मीडिया, विधान सभा, बैन, Karnataka    कर्नाटक विधानसभा में मीडिया पर लगी पाबंदी के बाद एक बार फिर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है

वहीं मामले के चर्चा में आने के बाद, जो तर्क राज्य सरकार की तरफ से रखे गए हैं वो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. राज्य सरकार का कहना है कि अपने लाव लश्कर के साथ आकर मीडिया सदन की कार्यवाही को प्रभावित करता है जिसका सीधा असर वहां मौजूद मंत्रियों की कार्यप्रणाली में देखने को मिलता है. ध्यान रहे कि राज्य सरकार टीवी चैनलों को कार्यवाही का फुटेज दे देगी जिसे बाद में वो अपने चैनल पर चला सकते हैं.साथ ही निजी चैनलों के पत्रकारों के सदन में प्रवेश पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है लेकिन उन्हें सदन के भीतर विडियो बनाने की अनुमति नहीं होगी.

विधानसभा अध्यक्ष कागेरी के अनुसार, हमने सदन के अन्दर कैमरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है. सदन की तमाम कार्यवाही की रिकॉर्डिंग की जाएगी और पत्रकार विधानसभा सचिवालय से विजुअल्स ले सकेंगे. कैमरापर्सन को विधानसभा और विधान परिषद् में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी. विधानसभा अध्यक्ष ने ये भी कहा कि, वहां पत्रकारों को बैठने की अनुमति है मगर कैमरा लाने और किसी भी तरह की रिकॉर्डिंग करने की अनुमति नहीं है.

एक बड़ा वर्ग है जो राज्य सरकार के इस फैसले को अलोकतांत्रिक मान रहा है. सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि मीडिया के लिए दखल अंदाजी की बात कहना सरासर गलत है. मीडिया जो कुछ भी कर रही है अपने काम के मद्देनजर कर रही है. बात कर्नाटक विधानसभा में मीडिया की पाबंदी पर शुरू हुई है तो ये बताया बहुत जरूरी है कि ये कोई पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ है. इससे पहले साल 2012 और 2018 में भी हम कर्नाटक विधान सभा में ऐसा ही कुछ मिलता जुलता बैन देख चुके हैं.

साल 2012 में क्यों लगा था बैन

बात 2012 की है वर्त्तमान में राज्य के उप मुख्यमंत्री और तब येदियुरप्पा सरकार में मंत्री लक्ष्मण सावादी का एक विडियो खूब वायरल हुआ था. वायरल हुए उस विडियो में सावादी सत्र के दौरान मोबाइल पर पोर्न विडियो देख रहे थे जिसे लेकर न सिर्फ राज्य सरकार की जमकर आलोचना हुई बल्कि जिसे लेकर कांग्रेस और जेडीएस के मेम्बेर्स ने सरकार पर तमाम तरह के गंभीर आरोप भी लगाए. मामले को लेकर बैकफुट पर आने के बाद राज्य सरकार ने विधान सौदा में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी.

2018 में भी लगा था बैन

2012 के बाद कर्नाटक विधानसभा में मीडिया का प्रवेश तब निषेध किया गया जब सूबे की कमान एच डी कुमारस्वामी ने संभाली. कुमारस्वामी ने डायरेक्टर जनरल ऑफिस को निर्देशित किया था कि विधानसभा भवन के बाहर मीडिया के लिए अलग स्थान बनाया जाए और यहीं से मीडिया को ब्रीफ किया जाए. तब ये फैसला क्यों लिया गया? इसपर कुमारस्वामी सरकार का भी तर्क वही था जो फ़िलहाल येदियुरप्पा सरकारने दिया है. कुमार स्वामी को भी लग रहा था कि मीडिया शासन के काम में दखल अंदाजी कर रही है. तत्कालीन सरकार के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति दर्ज की गई थी और मामले में दिलचस्प बात ये रही की कुमारस्वामी को अपना आर्डर वापस लेना पड़ा.

अनुशासित ढंग से किया जा रहा है मीडिया को नियंत्रित

चाहे कर्नाटक सरकार हो या फिर अन्य राज्यों की सरकार. जैसा व्यवहार मीडिया के साथ हो रहा है वो अपने आप में एक गहरी चिंता का विषय है. बात अभी हाल फिलहाल की हो तो मीडिया पर पाबंदी वित्त मंत्रालय ने भी लगाई थी . केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने नॉर्थ ब्लॉक में मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी थी और सिर्फ उन्हीं पत्रकारों को अन्दर जाने की इजाजत थी जो मान्यता प्राप्त हैं और जिन्होंने पहले से अधिकारियों से मिलने का समय ले रखा हो. मामले की जमकर आलोचना हुई थी जिसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यालय से जारी एक स्पष्टीकरण में कहा गया था कि वित्त मंत्रालय के भीतर मीडियाकर्मियों के प्रवेश के संबंध में एक प्रक्रिया तय की गई है और मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है.

मामला चर्चा में आने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यालय ने ट्वीट कर वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध से जुड़ी खबरों पर अपना रुख स्पष्ट किया था.

स्पष्टीकरण में कहा गया था कि पीआईबी से मान्यता प्राप्त सहित सभी मीडियाकर्मियों को पहले से लिए गए अपॉइंटमेंट के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा. वित्त मंत्रालय, नॉर्थ ब्लॉक में प्रवेश पर और कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. मीडियाकर्मी अधिकारियों से मिलने के लिए समय ले सकते हैं.

मीडिया को कैसे अनुशासित किया जा रहा है इसका एक अन्य उदाहरण हम बीते दिनों उत्तर प्रदेश में घटित हुई एक घटना को देखकर भी समझ सकते हैं. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के एक प्राइमरी स्कूल में मिड डे मील के नाम पर बच्चों का नमक रोटी खाने का मामला प्रकाश में आया था. विडियो के बाद योगी सरकार की जमकर किरकिरी हुई और आनन फानन में कार्रवाई करते हुए विडियो बनाने वाले पत्रकार पर जिले के डीएम की तरफ से एफआईआर  दर्ज कर दी गई. जिले के डीएम अनुराग पटेल ने अपना तर्क पेश करते हुए कहा था कि विडियो बनाने वाला पत्रकार प्रिंट का पत्रकार था और प्रिंट के पत्रकार को विडियो लेने की इजाजत नहीं है.

ये दोनों मामले उदाहरण हैं. आए रोज देश भर से ऐसे मामले प्रकाश में आ रहे हैं जिनमें शासन प्रशासन द्वारा इस बात का भरसक प्रयास किया जा रहा है कि कैसे पत्रकार अपनी हदों में रहें और केवल वही करें जो उनका काम है. कह सकते हैं कि मीडिया को लेकर पाबंदी के मामले में सभी पार्टियां पाबंद हैं जो बिलकुल अनुशासित ढंग के साथ बिलकुल एक जैसी कार्रवाई कर रही हैं और मीडिया को लेकर इन सभी का विरोध भी कमोबेश एक जैसा ही है.

बहरहाल बात चूंकि कर्नाटक की चल रही है तो ये फैसला बरक़रार रहता है या फिर इसे वापस लिया जाएगा इसका फैसला आने वाला वक़्त करेगा. मगर जैसा रुख सरकारों का मीडिया के प्रति है वो ये साफ़ बता रहा है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर इस तरह का प्रहार उसे और कुछ नहीं बस खोखला करने का काम करेगा. जो न तो देश के लिए सही है और न ही खुद मीडिया के लिए.    

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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