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Updated: 31 अक्टूबर, 2020 10:34 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अभी तक बिखरे विपक्ष से चुनौती मिल रही थी. मायावती (Mayawati) के बीजेपी को सपोर्ट करने की संभावनाएं जताने के बाद दोनों की चुनौतियां बढ़ सकती हैं. मायावती अगर बीजेपी के पाले में पहुंच जाती हैं तो खुद तो कमजोर होंगी ही, बीजेपी की चुनौतियां भी डबल हो सकती हैं. मान लीजिये, बदले हालात में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) फिर से, राहुल गांधी न सही, प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) से हाथ मिला लेते हैं तो बीजेपी की राह उतनी आसान तो नहीं ही रह जाएगी.

मायावती तो पहले से ही बीजेपी के खेमे में खड़ी नजर आ रही थीं. अब बीएसपी नेता ने समाजवादी पार्टी को हराने के लिए बीजेपी के सपोर्ट तक से गुरेज न करने का ऐलान कर दिया है. मायावती ने ये बात कही तो आने वाले दिनों में होने जा रहे विधान परिषद चुनावों के लिए कही है, लेकिन इसमें भी शक की कोई गुंजाइश नहीं बनती कि ये स्टैंड 2022 में होने जा रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों तक कायम नहीं रहेगा.

फर्ज कीजिये 2022 में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कहीं सत्ता विरोधी लहर खड़ी हो गयी तो उनके साथ TINA फैक्टर वाली स्थिति तो है नहीं. ऐसा भी नहीं हो सकता कि बीजेपी अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार ही बदल दे और वो भी तब जब अयोध्या में राम मंदिर तैयार होने को होगा.

तब तो यूपी के मैदान में अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी दो दो चेहरे होंगे. मतलब जनता के सामने पूरा विकल्प होगा. अपनी पसंद का नेता चुनने का.

यूपी में बन रहे हैं नये राजनीतिक समीकरण

बीएसपी को किन परिस्तिथियों में समाजवादी पार्टी के खिलाफ बीजेपी के सपोर्ट तक कर डालने का फैसला हुआ, उसकी भी एक दिलचस्प कहानी सामने आयी है. मायावती के मुताबिक बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को फोन किया था लेकिन वो नहीं उठा.

मायावती का कहाना है कि अखिलेश यादव के निजी सचिव ने भी बात नहीं करायी. बाद में समाजवादी पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव से सतीश चंद्र मिश्र की बात हुई जरूर लेकिन बताया गया कि पार्टी सिर्फ एक सीट पर ही चुनाव लड़ेगा.

कहानी ये है कि बीएसपी चाहती थी कि डिंपल यादव चुनाव लड़ें और पार्टी उसके लिए सपोर्ट करे. डिंपल यादव लोक सभा चुनाव हार गयी थीं. मायावती का कहती हैं, अगर हम प्रत्याशी नहीं देंगे तो कोई पूंजीपति हमारे विधायकों की खरीद-फरोख्त कर राज्यसभा सीट जीत जाएगा. अगर ये सिर्फ कहानी नहीं है तो सतीश चंद्र मिश्र ने राम गोपाल यादव को ये बात भी बतायी ही होगी - और फिर अखिलेश यादव भी सारी चीजों से वाकिफ होंगे ही.

priyanka gandhi vadra, akhilesh yadavमायावती ने बीजेपी के सपोर्ट की बात कर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा को खुल कर राजनीति करने की छूट दे डाली है

मायावती ने बीजेपी को खुला सपोर्ट देने का ऐलान करके समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को करीब आने और एक दूसरे से हाथ मिलाने का मौका दे दिया है. अब इसका नफा नुकसान भी मायावती को ही झेलना होगा और असर तो बीजेपी पर भी होगा ही.

अखिलेश यादव हमेशा ही गठबंधन के पक्षधर दिखे हैं. बरसों पहले से वो मायावती के साथ चुनावी गठबंधन चाहते थे. अखिलेश यादव को लगता था कि अगर सपा और बसपा हाथ मिला लें तो कोई ताकत उनको हरा नहीं सकती. 2017 में अखिलेश यादव ऐसी ही बातें कांग्रेस के लिए कहा करते थे. साइकिल को हाथ का सहारा मिल जाये तो स्पीड तेज हो जाएगी. गठबंधन तो कांग्रेस के साथ भी हुआ और बीएसपी के साथ भी - और दोनों ही मामलों में नतीजे एक जैसे रहे. दोनों ही गठबंधन टूट गये. जो कुछ सुनने समझने को मिला है उससे तो यही लगता है कि अखिलेश यादव की तरफ से नहीं बल्कि दूसरी तरफ से ही गठबंधन तोड़ा गया है. राहुल गांधी को लेकर सुनने को मिला था कि कांग्रेस नेता ने अखिलेश यादव का फोन उठाना ही बंद कर दिया था जो गठबंधन टूटने का आधार बना. मायावती ने तो सार्वजनिक घोषणा कर ही बता दिया कि वो समाजवादी पार्टी के साथ आगे से कोई भी गठबंधन नहीं रखने वाली हैं.

सपा और कांग्रेस का जो गठबंधन हुआ था उसे आखिर में प्रियंका गांधी ने ही अमलीजामा पहनाया था. तब डिंपल यादव के फोन पर प्रियंका गांधी के आधी रात के एक फोन की चर्चा रही जिसके बाद अखिलेश यादव को राहुल गांधी पसंद आने लगे थे. मान कर चला जा सकता है कि अखिलेश यादव के प्रियंका गांधी के साथ हाथ मिलाने का स्कोप बचा हुआ है. वैसे भी राहुल गांधी तो अमेठी छोड़ कर वायनाड शिफ्ट हो ही चुके हैं.

चाहे वो CAA का विरोध रहा हो या प्रवासी मजदूरों का मुद्दा कांग्रेस नेताओं के खिलाफ विरोध के तेज स्वर मायावती की तरफ से ही मिले हैं - अखिलेश यादव अपेक्षाकृत सॉफ्ट ही देखे जाते रहे हैं.

याद कीजिये प्रियंका गांधी वाड्रा के अस्पताल जाकर भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर आजाद रावण से मिलने के बाद मायावती जब आपे से बाहर हो गयी थीं तो अखिलेश यादव ने ही उनको शांत कराया था. तब के सपा-बसपा गठबंधन ने सोनिया गांधी के लिए रायबरेली और राहुल गांधी के लिए अमेठी सीटों पर अपने उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया था. प्रियंका गांधी वाड्रा के चंद्रशेखर से मुलाकात के बाद मायावती अपने प्रत्याशी खड़ा करने पर आमादा हो गयी थीं - और फिर जैसे तैसे अखिलेश यादव ने ही उनको ऐसा न करने के लिए मनाया था. जाहिर है ये बातें भी कांग्रेस को याद होगी ही.

ऐसे में जबकि मायावती ने सपा के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है - अखिलेश यादव फिर से कांग्रेस की तरफ स्वाभाविक तौर पर आकर्षित हो सकते हैं. बदले हालात में कांग्रेस के लिए भी सपा के साथ फिर से चुनावी गठबंधन की संभावना बढ़ी हुई होगी.

अब तो कुर्बानियों के लिए तैयार रहना होगा

ये समझना थोड़ा मुश्किल लगता है कि यूपी में जो कुछ हुआ है वो मध्य प्रदेश की राजनीति का असर है या यूपी का असर एमपी में हो रहे उपचुनावों पर हो रहा है. मायावती अब खुल कर बीजेपी की मदद में कूद पड़ी हैं. मकसद साफ है बीजेपी विरोधी पार्टियों के वोट काट कर बीजेपी को फायदा पहुंचाना.

मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं और 27 सीटों पर बीएसपी के उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं. समझना मुश्किल नहीं है, बीएसपी उम्मीदवार कांग्रेस के वोट ही काटेंगे. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को ज्यादा वोट इसी इलाके से मिले थे. बीएसपी को दो सीटों के अलावा कई सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे.

सबसे बड़ी बात तो ये है कि मायावती ने यूपी में खुद को कमजोर करके कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को हाथ मिलाकर मजबूत होने का मौका दे डाला है. अगर मायावती बीजेपी के सपोर्ट के लिए नहीं तैयार होतीं और कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी अलग अलग होती तो मायावती के पास भी बीजेपी को टक्कर देने का मौका रहता. भविष्य की राजनीति के बारे में सोचें तो लगता है जैसे यूपी की सियासत दो खेमों में बंटने जा रही है.

एक खेमा बीजेपी के साथ होगा जिसमें मायावती, अनुप्रिया पटेल और कोई और भी हो सकता है - दूसरे खेमे में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी और उनको अगर कोई सपोर्ट करने का फैसला करता है तो वो होगा.

ये भी साफ है अगर मायावती ने बीजेपी के साथ भविष्य में चुनाव लड़ने का कोई मन बना रखा है तो सत्ताधारी पार्टी झोली में जो भी बख्श दे उसी से संतोष करना होगा. अगर अनुप्रिया पटेल की कोई जिद हुई तो नुकसान भी मायावती को ही सहना पड़ेगा क्योंकि बीजेपी तो बार बार घाटा सहने से रही.

बीजेपी को जो कुर्बानी देनी थी, राज्य सभा की नौवीं सीट छोड़ कर दे चुकी है. इस कुर्बानी के लिए मायावती को कितनी कुर्बानियां बीजेपी के लिए देनी पड़ेगी अभी अंदाजा भी नहीं होगा.

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#मायावती, #भाजपा, #बसपा, Mayawati, Akhilesh Yadav, Priyanka Gandhi Vadra

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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