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Updated: 23 नवम्बर, 2018 04:31 PM
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मायावती मध्य प्रदेश में हद से ज्यादा सक्रिय हैं और बीजेपी यूपी में उनकी जड़ें खोदने में लगी है - बीजेपी पूरा कैलेंडर तैयार कर दलित और पिछड़े वर्ग सम्मेलनों के जरिये मायावती के पोल-खोल में जुट गयी है.

मौजूदा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से हाथ न मिलाने का तोहमत ढो रहीं मायावती लगातार सफाई भी दे रही हैं. अब तक इल्जाम लगाती रहीं कि कांग्रेस बीएसपी को खत्म करने की साजिश रच रही थी. खत्म करने की साजिश भी क्या थी - 'गठबंधन में सम्मानजनक सीटें न देना.'

अब मायावती कह रही हैं कि मध्य प्रदेश और केंद्र बीजेपी की सरकार होने के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है. लब्बोलुआब तो यही लगता है कि बीजेपी मायावती के पीछे पड़ी है - और कांग्रेस पीछे-पीछे.

विधानसभा चुनाव में 2019 विमर्श और चर्चा के केंद्र में मायावती

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में मध्य प्रदेश का चुनाव की तुलना टीवी गेम शो 'कौन बनेगा करोड़पति' की थी. राजनाथ सिंह का करोड़पति सवाल था - 'दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया - कौन मुख्यमंत्री बनेगा?' अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किया जाने वाला कौन बनेगा करोड़पति भले ही अपने आखिरी हफ्ते में चल रहा हो, लेकिन राजनीति में ये गेम शो लंबा चलने वाला है.

mayawatiजीरो लोक सभा सीट वाली बीएसपी नेता मायावती इतनी महत्वपूर्ण क्यों?

राजनाथ सिंह के सवाल पर दिग्विजय सिंह का जवाबी सवाल था - '2019 में प्रधानमंत्री कौन बनेगा - नरेंद्र मोदी बनेंगे या राजनाथ सिंह?' दिग्विजय ने बताया कि राजनाथ सिंह की भी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाएं हैं.

सुषमा स्वराज के चुनाव न लड़ने के ऐलान पर भी दिग्विजय सिंह ने शशि थरूर और पी. चिदंबरम से अलग टिप्पणी की थी. सुषमा स्वराज के फैसले पर प्रतिक्रिया में दिग्विजय सिंह का कहना रहा, 'सुषमा जी मेरी नजर में काफी सम्मानजनक हैं. अगर नरेंद्र मोदी की जगह सुषमा स्वराज प्रधानमत्री होतीं तो यह सरकार कहीं ज्यादा सफल होती.' दिग्विजय सिंह का ये बयान कुछ कुछ वैसे ही जैसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ने कहा था - 'जवाहरलाल नेहरू की जगह अगर सरदार वल्लभभाई पटेल पहले प्रधानमंत्री बने होते तो देश की तस्वीर अलग होती.' प्रधानमंत्री पद को लेकर दिग्विजय सिंह का रिएक्शन तात्कालिक जरूर हैं, लेकिन ये कांग्रेस की उस रणनीति का हिस्सा भी हैं जिसमें कोशिश है कि कांग्रेस भले ही सत्ता में न लौट पाये, लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर मोदी की जगह कोई और बैठ जाये.

जाहिर है 2019 के ऐसा विमर्श होगा तो गठबंधन का का भी सवाल उठेगा ही. दिग्विजय सिंह कहते हैं, 'मैं मायावती जी का बहुत सम्मान करता हूं और अखिलेश मेरे पुत्र समान हैं... मुलायम सिंह जी का भी मैं बहुत सम्मान करता हूं... हम चाहेंगे कि इनके साथ विचारधारा का गठबंधन हो... देश की राजनीति के सामने विकल्प क्या है? गांधी की विचारधारा या गोलवरकर की विचारधारा?'

मायावती का चर्चा के केंद्र में आना यूं ही नहीं है. मध्य प्रदेश की असली लड़ाई मुरैना में देखने को मिल रही है. माना जा रहा है कि मुरैना की 6 सीटों पर मुकाबला काफी करीबी है. 2013 में यहां की 6 सीटों में से दो सीटें मायावती की झोली में आयी थीं और दो पर बीएसपी दूसरे नंबर पर रही. अब मुरैना की चार सीटों पर मायावती के सामने प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है तो बीजेपी को बीएसपी से सीटें झटकने की. कांग्रेस इस बीच सत्ता विरोधी लहर का पूरा फायदा उठाना चाहती है - और इसी वजह ने लड़ाई को काफी रोचक बना दिया है.

मायावती कोई भी फायदेमंद मौका नहीं चूकतीं और मुरैना के मेला ग्राउंड में उनकी रैली के पीछे भी यही सोच रही - इलाके के लोगों ने भी मायावती का बिलकुल भी निराश नहीं किया. मायावती को सुनने के लिए अच्छी खासी भीड़ जुटी थी. काफी कुछ यूपी की रैलियों जैसी भी कह सकते हैं.

देश का कोई भी इलाका हो, मायावती के पास सुनाने के लिए तो यूपी के ही किस्से होते हैं. यूपी मायावती के लिए हर जगह केस स्टडी भी होता है - और सक्सेस स्टोरी भी. फिर मध्य प्रदेश में भला अलग क्या बतातीं. मायावती बोलीं, 'उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की जब भी सरकार बनी है... विकास, कानून-व्यवस्था के साथ मेरी सरकार ने वहां दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए काम किया.'

फिर मायावती ने समझाया कि मध्य प्रदेश बीजेपी और कांग्रेस के कुशासन के लंबे रिकॉर्ड से छुटकारा पाना चाहता है - और बहुजन समाज पार्टी ही मध्य प्रदेश को नयी दृष्टि और चौतरफा विकास की उम्मीद दे सकती है.

मायावती ने आगे की भी बातें समझाने की कोशिश की, 'भाजपा और कांग्रेस दोनों आरक्षण को कमजोर करने की नीति पर चल रहे हैं... क्योंकि वे बड़े उद्योगपतियों का एजेंडा लागू करना चाहते हैं.'

मायावती इसकी वजह भी बताती हैं - क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही को बड़े उद्योगपतियों से भारी चंदा मिलता है.

ये मायावती की ताकत है जो पीछे-पीछे कांग्रेस - और पीछे बीजेपी पड़ी है

एससी-एसटी कानून पर सवर्णों के गुस्से का शिकार हुई बीजेपी को परवाह इसलिए नहीं हुई क्योंकि वो बहुत दूर की सोच कर चल रही है. लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर स्थल पर बीजेपी दलितों के लिए एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रही है. माना जा रहा है कि 25 दिसंबर को होने जा रही इस रैली में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल होंगे. इसी मंच से मोदी-शाह की जोड़ी एससी-एसटी एक्ट पर बीजेपी के स्टैंड को सही ठहराने के साथ साथ उसके फायदे भी गिनाएगी, ऐसा लगता है.

बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चे की तरफ से सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलनों की शुरुआत पहले ही हो चुकी है और फिलहाल यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय मोर्चा संभाले हुए हैं. जाटव सम्मेलन में महेंद्र नाथ पांडेय मायावती को टारगेट करते हैं - 'मायावती कांशीराम की वजह से राजनीति में आईं लेकिन वह दलितों के साथ नहीं बल्कि शाही अंदाज में रहती हैं... कांशीराम कार्यकर्ताओं के साथ बैठते थे, जैसे हम भाजपा के लोग... मायावती पर दौलत का नशा है...'

2014 से बीएसपी के पास लोक सभा की कोई भी सीट नहीं है. कैराना के बाद तो वो अजीत सिंह की आरएलडी से भी पीछे हो चुकी हैं. फिर भी 2019 के लिए मायावती सिर्फ प्रासंगिक नहीं बल्कि केंद्रबिंदु बनी हुई हैं. मायावती चाहतीं तो यूपी में हुए लोक सभा सीटों के लिए तीन उपचुनावों में से दो तो हथिया ही सकती थीं, फिर भी ऐसा कुछ उन्होंने नहीं किया. फूलपुर के लिए समाजवादी पार्टी सपोर्ट को तैयार थी, बशर्तें मायावती खुद मैदान में होतीं. अगर ऐसा नहीं होना था तो समाजवादी पार्टी के साथ मायावती 50-50 का सौदा तो कर ही सकती थीं - और कैराना में तो उनका हक भी बनता था.

दरअसल, मायावती के पास जो सबसे बड़ी ताकत है, वो वोट ट्रांसफर की क्षमता है. अपने गठबंधन के साथी को वो डंके की चोट पर अपने वोट बैंक का पूरा हिस्सा थमा सकती हैं. फूलपुर और गोरखपुर के नतीजे इस बात की मिसाल हैं.

मायावती की यही वो ताकत जिसकी वजह से बीजेपी उनके पीछे पड़ी है कि किसी भी सूरत में गठबंधन न बने - और कांग्रेस पीछे-पीछे लगी है कि जैसे भी संभव हो मायावती के साथ 2019 तक गठबंधन जरूर बन जाये.

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