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Updated: 25 अप्रिल, 2016 07:17 PM
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चुनावी सीजन में शराबबंदी सबसे बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है - तभी तो जयललिता का बात बात पर विरोध करने वाले एम करुणानिधि भी इस मुद्दे पर हामी भरने के सिवा कुछ और नहीं सोच पाए. जयललिता के सत्ता में आने पर शराबबंदी की घोषणा करते ही करुणानिधि ने भी पूर्ण शराबबंदी का वादा कर दिया.

ये शायद नीतीश कुमार के वादे और उस पर अमल करने का नतीजा है.

बढ़ चला बिहार

ये नीतीश कुमार ही हैं जिन पर बिहार में गली मोहल्लों में शराब की दुकाने खुलवाने के आरोप लगते रहे. साल 2012 में एक बार नीतीश ने कहा भी था, "अगर आप पीना चाहते हैं तो पीजिए और टैक्स पे कीजिए. मुझे क्या? इससे फंड इकट्ठा होगा और उससे छात्राओं के लिए मुफ्त साइकल की स्कीम जारी रहेगी."

लेकिन 9 जुलाई 2015 को नीतीश खुद को रोक नहीं पाये. पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में नीतीश कुमार भाषण देकर बैठे ही थे कि एक महिला की आवाज ने उनका ध्यान खींचा: "मुख्यमंत्री जी, शराब बंद कराइए. घर बर्बाद हो रहा है." देखते ही देखते सारी मौजूद सारी महिलाओं ने सुर में सुर मिला दिया.

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वो चुनावी सीजन था. पूरा बिहार इलेक्शन मोड में आ चुका था. नीतीश उठे और माइक पर एलान कर दिया - "अगली बार सत्ता में आने पर शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दूंगा."

चुनावी सीजन है

बिहार की ही तरह ये चुनावी सीजन ही था कि तमिलनाडु में शराबबंदी पर वादों की बौछार होने लगी. माना गया कि इस बार भी और इसके ठीक पहले भी नीतीश के सत्ता में आने में महिलाओं की ही मुख्य भूमिका रही. तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके की भी महिलाओं में खासी पैठ मानी जाती है - और उनकी शराबबंदी की घोषणा को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है.

शराबबंदी लागू करने का वादा करते हुए भी जयललिता ने विरोधियों को टारगेट किया, "तमिलनाडु में शराब की बिक्री पर 1937 में ही पाबंदी लगाई गई थी जिसके बाद 30 जनवरी 1948 को उसे बढ़ाया गया. पाबंदी हटाने वाली डीएमके और करुणानिधि की सरकार थी."

पहले तो डीएमके नेताओं ने जयललिता की इस बात को लोगों को ठगने की कोशिश के तौर पर समझाया, लेकिन अपने स्टैंड पर वो ज्यादा देर टिक नहीं पाए - सत्ता में आने पर खुद भी शराबबंदी लागू करने की घोषणा कर डीएमके ने जयललिता के सियासी शह से बचाव का बचा हुआ रास्ता अख्तियार किया.

आधा है आधे की जरूरत है

शराबबंदी लागू करने की चुनावी बयार का एक जोरदार झोंका केरल में भी दस्तक दे चुका है. सत्ताधारी यूडीएफ ने तीन या चार सितारा कैटेगरी से पांच सितारा में तब्दील हुए होटलों के लिए विदेशी शराब बार लाइसेंस नहीं जारी करने की बात कही है. ओमन चांडी ने साफ कर दिया है कि अगले 10 साल में वो राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर देंगे, बशर्ते आगे भी उनकी कुर्सी कायम रहे.

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आखिर कब तक? चुनाव आने तो दो...

नीतीश के मामले में महिलाओं का वोट पाने के लिए शराबबंदी अचूक हथियार साबित हो चुका है. माना जाता है कि शराब के चलते घरेलू हिंसा को बढ़ावा मिलता है - और इसका बच्चों पर काफी बुरा असर पड़ता है. महिलाओं को ये बात सीधे सीधे समझ आ रही है - और उनका वोट राजनीतिक दलों पर दबाव बना रहा है. हालांकि, सरकार को इससे भारी राजस्व घाटा होता है.

पहले से ही कई राज्यों में शराबबंदी लागू है और कई जगह प्रक्रिया में है. जब भी शराबबंदी की बात आती है गुजरात का जिक्र जरूर आता है. जहां पूर्ण शराबबंधी लागू है. तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि लाइसेंस लेकर कोई भी शराब पी सकता है - बस उसका कोटा निर्धारित है.

हाल फिलहाल इस मामले में यूपी एक ऐसे राज्य के तौर पर सामने आया है जहां शराब सस्ती कर दी गई है. यूपी की अखिलेश सरकार ने शराब की एक चौथाई कीमत कम कर दी है.

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ऐसा तब जब यूपी में भी जहरीली शराब से मौतें होती ही रहती हैं. उधर, पंजाब ड्रग्स और कई तरह की नशीली दवाओं की तस्करी से जूझ रहा है. यूपी और पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं. यूपी में मायावती सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं.

हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर चुनाव की तारीख नजदीक आते आते अपनी विरोधी समाजवादी पार्टी पर लीड लेने के लिए मायावती भी यूपी की सत्ता में आने पर शराबबंदी की घोषणा कर दें. फिर तो समाजवादी पार्टी को भी तमिलनाडु फॉर्मूला अपनाने को मजबूर होना पड़ेगा.

पंजाब में भी आप नेता अरविंद केजरीवाल सत्ता हासिल करने की कोशिश में हैं. फर्ज कीजिए, नशाखोरी से परेशान पंजाब में केजरीवाल शराबबंदी की घोषणा कर देते हैं - फिर कैप्टन अमरिंदर को भी कुछ न कुछ सोचना ही पड़ेगा.

अगर तमिलनाडु और केरल में सियासी इतिहास की नई इबारत लिखी जाती है तो यूपी और पंजाब में कुछ भी हो सकता है. है कि नहीं?

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