New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 06 अगस्त, 2020 08:23 PM
  • Total Shares

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) होना आसान काम नहीं है. यह बेहद साधारण वक्तव्य है, क्योंकि मोदी की कार्यशैली के आगे इस तरह की पंक्तियों की विलक्षणता खत्म हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसलों से लोग अब चौंकना भी छोड़ चुके हैं क्योंकि यह मान बैठे हैं कि हर फैसले पर चौंकना है. 5 अगस्त 2020 को जब पूरा हिंदुस्तान राम (Ram) की भक्ति में सरोबार था तो यह खबर आई कि जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर (Jammu Kashmir LG) जगदीश चंद्र मुर्मू (JC Murmu) ने इस्तीफा दे दिया है. इस खबर के झटके से लोग उभरे ही थे कि एक फैसले ने और चौकाया कि पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) जम्मू कश्मीर के नए लेफ्टिनेंट गवर्नर होंगे. कुछ लोग मुर्मू के हटाए जाने पर विवेचना में लगे हुए हैं मगर उन्हें समझना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समीक्षकों से कहीं दूर और बहुत आगे की सोचते हैं.

5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया. अब से ठीक 1 साल पहले 5 अगस्त 2019 को अपने जम्मू कश्मीर मिशन का शिलान्यास उन्होंने घाटी से धारा 370 को हटाकर किया था. अब जम्मू कश्मीर मिशन के उद्घाटन की तैयारी करनी है. भारत जैसे लोकतंत्र का तकाजा है कि जश्न तो लोकतांत्रिक ही होना चाहिए. लिहाजा मनोज सिन्हा का अपॉइंटमेंट जम्मू कश्मीर के ऊपर मोदी का पॉलिटिकल स्ट्राइक है.

Jammu kashmir, Manoj Sinha, BJP, Narendra Modi, Prime Ministerपीएम मोदी के साथ मनोज सिन्हा माना जाता है कि दोनों ही नेताओं की ट्यूनिंग गजब है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं इस पॉलिटिकल स्ट्राइक के धमाके की गूंज पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी सुनाई देगी जहां पर बीजेपी के एक बड़े वोट बैंक भूमिहारों के घर में लंबे अरसे से सन्नाटा पसरा हुआ था. चुनाव जीतने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने मिशन जम्मू कश्मीर की शुरुआत कर दी थी जिसका पहला चरण 2019 में लांच किया गया था.

मिशन कश्मीर का पहला चरण

जम्मू कश्मीर में जब केंद्र सरकार ने धारा 370 को हटाया था तब जम्मू कश्मीर में राज्यपाल के रूप में एक खांटी राजनीतिक व्यक्ति की जरूरत थी. जिसके लिए सत्यपाल मलिक मुफीद व्यक्ति थे. महबूबा मुफ्ती से लेकर उमर अब्दुल्ला तक वह मिलते रहे और ऐसे मिलते रहे कि उन्हें अंदाजा ही नहीं हुआ कि राष्ट्रपति शासन धारा 370 को खत्म करने के लिए लगाया जा रहा है. उस वक्त जम्मू कश्मीर में ऐसे राज्यपाल की जरूरत थी जिस तरह की राजनीति सत्यपाल मलिक करते आए थे.

सत्यपाल मलिक क्रांति दल से लेकर जनता दल, समाजवादी पार्टी, कॉन्ग्रेस और लोकदल होते हुए भारतीय जनता पार्टी में आए थे. जम्मू कश्मीर के सभी दलों को साथ लेने के लिए इनसे अच्छा कोई चॉइस हो नहीं सकता था. ऊपर से 2019 के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोट बैंक पर भी नजर थी जहां से सत्यपाल मलिक आते हैं.

सत्यपाल मलिक ने राष्ट्रपति शासन लागू करने के बावजूद महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला से सरकार बनाने की संभावनाओं पर विचार करते रहे और इस बीच प्रधानमंत्री दफ्तर से निर्देश लेकर बीजेपी सरकार के मिशन जम्मू कश्मीर पर काम करते रहे. यह काम कोई सैन्य अधिकारी या जेसी मुर्मू जैसा प्रशासनिक अधिकारी नहीं कर सकता था. लिहाजा उस वक्त सत्यपाल मलिक को बैठाया गया था और सत्यपाल मलिक ने यह काम बखूबी किया.

मुर्मू की जरूरत

मगर एक बार जब हालात को सेना और ताकत के बल पर नियंत्रण करने की बारी आई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर के पद के लिए अपने खास अधिकारी रहे जेसी मुर्मू को चुना क्योंकि जेसी मुर्मू उस वक्त नरेंद्र मोदी की नजरों में चढ़ गए थे, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

भुज के भूकंप के रिलीफ वर्क से लेकर गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह के कामकाज तक को जेसी मुर्मू ने शानदार ढंग से निभाया. उसके बाद जे सी मुर्मू ही वह अधिकारी थे जिन्होंने गुजरात दंगों के मामले को बेहद बारीकी से संभाला और अमित शाह को जांच एजेंसियों के चंगुल से निकाला. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जेसी मुर्मू पर भरोसा था इसीलिए राज्यपाल बनाकर भेजा था. 7 महीने के कार्यकाल में जेसी मुर्मू ने प्रधानमंत्री के निर्देशों पर खरा उतरने का काम किया है मगर एक प्रशासनिक अधिकारी की अपनी सीमाएं होती हैं.

बीजेपी और मोदी भी ये समझते हैं कि जम्मू कश्मीर इस वक्त इस दोराहे पर खड़ा है वहां से रास्ता लोकतंत्र के तरफ ही जाता है. जितना काम किसी प्रशासनिक अधिकारी को करना था वह हो चुका, अब आगे का काम किसी राजनेता को सोचना चाहिए जो कि जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक दलों को मुख्यधारा में लाए और जम्मू कश्मीर को भारत के दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों की तरह मुख्यधारा का हिस्सा बनाए.

प्रधानमंत्री के नजदीकी अधिकारी राजीव महर्षि का सीएजी का कार्यकाल खत्म होने वाला है. हिसाब किताब का पूरा काम किसी विश्वास के अधिकारी को ही देना था इसलिए जेसी मुर्मू इसके लिए मुफीद व्यक्ति के रूप में चुने गए हैं.

जम्मू कश्मीर का फाइनल मिशन

फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला समेत दर्जनभर नेताओं की रिहाई इसी दिशा में एक कदम है. लंबे समय तक किसी इलाके की आबादी को संगीनों के साए में नहीं रखा जा सकता है. लोकतंत्र एक वेंटीलेशन है जहां पर गुब्बार निकलते रहे तो विस्फोटक हालात नहीं बनते हैं और वेंटिलेशन का रास्ता कोई सैन्य या प्रशासनिक अधिकारी नहीं बल्कि मंझा हुआ एक राजनेता निकाल सकता है. इस रास्ते में जोखिम बहुत हैं.

जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा का चुनाव ऐसे ही है जैसे लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला का चुनाव हुआ था. ओम बिरला ने नरेंद्र मोदी की कसौटी पर खड़ा उतर कर यह साबित कर दिया है कि मोदी वह जौहरी हैं जिन्हें हीरे की परख बाकी नेताओं से बेहतर है.

जम्मू कश्मीर में मनोज सिन्हा जैसे नेताओं के लिए अच्छी बात यह है कि वह किसी बैगेज के साथ वहां नहीं जा रहे हैं. बल्कि एक नई राजनीतिक शुरुआत एक मंझा हुआ राजनेता, नए सिरे से करेगा तो उसके नतीजे बेहतर आ सकते हैं. फिर मनोज सिन्हा जैसा व्यक्ति सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्री अमित शाह के संपर्क में रहेगा जिसकी वजह से दिल्ली का नियंत्रण राज भवन पर बना रहेगा.

मगर अब सवाल उठता है कि मनोज सिन्हा का चयन इस पद के लिए क्यों किया गया? मोदी एक तीर से कई निशाने साधते हैं. मनोज सिन्हा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए नेता है और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से आईआईटीके छात्र भी रहे हैं. मोदी सरकार में संचार राज्य मंत्री के अलावा रेल राज्य मंत्री का भी प्रभार मनोज सिन्हा ने संभाला था. गाजीपुर में 2019 की हार को लेकर आज भी लोग चकित रहते हैं कि कोई इतना काम करा कर कैसे हार सकता है.

मगर मनोज सिन्हा की पहचान काम के अलावा सबसे ज्यादा देश भर में इस बात को लेकर हुई, कि वह उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए. कहा जाता है कि मनोज सिन्हा को इशारा कर दिया गया था कि आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले हैं. इसके लिए वो पूजा-अर्चना के लिए निकलने वाले थे. हेलीकॉप्टर भी तैयार था मगर योगी आदित्यनाथ बाजी मार ले गए. उससे पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनोज सिन्हा का सिक्का चलता था.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में भूमिहार बेहद मजबूत स्थिति में है और भूमिहारों ने बीजेपी का जमकर का साथ दिया था. किसी जमाने में या भूमिहार कांग्रेस के कट्टर समर्थक हुआ करते थे और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इनके नेता कल्पनाथ राय हुआ करते थे.

कल्पनाथ राय के खत्म होने के बाद इस पूरे इलाके में भूमिहारों के नेतृत्व को लेकर वह वेक्यूम बना हुआ था जिसमें कई माफिया भी पैदा हुए और इसी में कृष्णानंद राय जैसे नेता पैदा हुए जिनके साथ मनोज सिन्हा ने राजनीति में आगे बढ़ने का काम किया. मगर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद और गाजीपुर से चुनाव हारने के बाद मनोज सिन्हा हाशिए पर चले गए थे.

कहां तो एक व्यक्ति उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने वाला था और कहां चुनाव हार कर गाजीपुर के बाजार में घूमता फिरता था. 2014 से लेकर 2019 तक इस इलाके में मनोज सिन्हा के नाम पर भूमिहारों का डंका बजाता था. मगर भूमिहारों को लगने लगा था कि वह बीजेपी के हाथों ठगे गए हैं.

यहां तक कि मनोज सिन्हा के समर्थक कहने लगे थे कि 2019 के लोकसभा चुनाव की हार सपा बसपा गठबंधन की हार से ज्यादा योगी आदित्यनाथ के साथ ना देने की हार है. बीजेपी की तरफ से कहा गया कि वहां पर सपा बसपा का अचूक गठबंधन बन गया था जहां पर मुस्लिम और पिछड़ी जातियों ने अफजाल अंसारी को वोट दिया और मनोज सिन्हा हार गए.

मनोज सिन्हा के समर्थक कहते हैं थे यह वही गाजीपुर है जहां पर ओमप्रकाश सिंह जैसे राजपूत जीता करते थे. अगर योगी आदित्यनाथ ने साथ दिया होता तो मनोज सिन्हा जीत जाते. गाजीपुर के मनोज सिन्हा के समर्थक कहते हैं कि योगी की हिंदू वाहिनी सेना भी चुनाव में घर बैठी थी. उत्तर प्रदेश के चुनाव आने वाले हैं और ऐसे में मनोज सिन्हा की अनदेखी बीजेपी को भारी पड़ने वाली थी.

योगी आदित्यनाथ को इस बात से परवाह नहीं है. पूर्वी उत्तर प्रदेश से हीं दोनों नेता आते हैं. बीजेपी के साथ समस्या है कि एक म्यान में दो तलवार रह नहीं सकती थी लिहाजा भूमिहार वोट बैंक को साधने के लिए मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का सर्वे सर्वा बनाकर भूमिहारों को संदेश दिया है कि बीजेपी को उनकी परवाह है.

इस तरह से उत्तर प्रदेश में चल रही है खेमेबाजी को भी विराम मिलेगा. मनोज सिन्हा को जम्मू कश्मीर का लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाकर मोदी ने बीजेपी के दूसरे रंग के नेताओं में संदेश दिया है कि उनके दर पर देर है अंधेर नहीं है. मगर इतना भर नहीं है कि मनोज सिन्हा केवल लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाकर इसलिए भेजे गए हैं. क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के भूमिहारों को खुश करना है. बल्कि मनोज सिन्हा संघ से जुड़े हुए बीजेपी के पुराने नेता हैं जो तीन बार सांसद रह चुके हैं.

केंद्र में बेहतरीन काम किया है और जमीन पर भी अंसारी बंधुओं के खिलाफ कृष्णानंद राय के मामले में सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई कर मुख्तार अंसारी को जेल भिजवाया है. एक साहसी नेता के रूप में इनकी पहचान है क्योंकि कृष्णानंद राय हत्या मामले में सारे गवाह पलट गए मगर मनोज सिन्हा डटे रहे और सुप्रीम कोर्ट से सजा दिलवाकर आए.

मनोज सिन्हा पेशे से इंजीनियर हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी है, वहां से आते हैं. सिन्हा ने उस इलाके में टेलीकम्युनिकेशन और रेलवे का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में बेहतरीन काम किया है. मोदी के मिशन कश्मीर के लिए अगर एक काबिल राजनेता बनारस से मिले तो मोदी के लिए इससे अच्छा क्या हो सकता है.

ये भी पढ़ें -

ओवैसी और पर्सनल लॉ बोर्ड की कृपा से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का मुद्दा खत्म नहीं होने वाला

Manoj Sinha को मोदी-शाह ने बनाया तो LG है, लेकिन अपेक्षा मुख्यमंत्री जैसी है!

Ram Mandir का संकल्प सन 92 से नहीं, पिछले 492 वर्षों से था!

लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय