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Updated: 05 अगस्त, 2020 07:16 PM
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
  @siddhartarora2812
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1992 में 7 दिसम्बर को पाकिस्तान (Pakistan) में छुट्टी घोषित हो गयी थी क्योंकि उनको बाबरी ढांचे (Babri Structure) के दुःख में रैली निकालनी थीं. पाकिस्तान ने यूनाइटेड नेशन में भी एक अर्ज़ी लगाई थी कि भारत का मुसलमान (Muslims) सुरक्षित नहीं है. भारत में मुस्लिमों की आस्था से खिलवाड़ किया जाता है, भारत में माइनॉरिटी की कोई कद्र नहीं है. सन 86 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव (Rajiv Gandhi) को लगा कि सरकार हिन्दुओं का भरोसा नहीं जीत पा रही है इसलिए उन्होंने रामजन्म भूमि (Ram Janmabhoomi) के विवादित परिसर -जिसमें बाबरी ढांचा भी शामिल था में पूजा करने की इजाज़त देकर ताला खुलवा दिया. ताला? ताला 1949 में हुए एक पंगे के बाद लगा था जब हिन्दू महासभा (Hindu Mahasabha) ने ज़बरदस्ती रामजी की मूर्ति मस्जिद के अन्दर रखवा दी थी. उस वक़्त ताला जड़कर बात आगे के लिए टाल देना मौजूदा सरकार को सबसे आसान लगा. लेकिन ये टालमटाली भी 1859 के अंग्रेज़ों की दखलंदाज़ी के बाद शुरु हुई थी.

1855 में पहली बार हिन्दू मुस्लिम के बीच राम-मंदिर को लेकर जूते लात हुई जिसके चार साल बाद अंग्रेज़ों ने मस्जिद के बाहर फेंसिंग लगवाई. उससे पहले का विवाद 1822 में निर्मोही अखाड़े के क्लेम के बाद भड़का था. निर्मोही अखाड़े का कहना था कि ये मस्जिद राममंदिर को तोड़कर बनी है. मगर अयोध्या जो है ही राम जन्मभूमि, जहां के राजा रहे हैं श्रीराम, उनके जन्म का अब प्रमाण चाहिए था, क्यों? क्योंकि मीर बाक़ी ताश्कंदी, मुग़लिया जनरल ने राम मंदिर को तोड़कर अवध की सबसे बड़ी मस्जिद बनवाई थी.

सन 1528 वो साल था जब आस्था पर कुदालें चलीं और क्योंकि ये सिपहसलार बाबर का पाला हुआ था, इसलिए इसने मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा. अब सोचिए, सन 1528 में हुए गुनाह पर पहला सवाल ही 294 साल बाद 1822 में फैज़ाबाद कोर्ट के अन्दर उठाया गया. फिर पहला थप्पड़ उसके 33 साल बाद 1855 में चला और 59 में अंग्रेज़ कूदे. फिर 90 साल बाद सन 1949 में हिन्दू सभा अपनी पर उतर आई, ज़बरदस्ती मूर्तियां अन्दर स्थापित की गयीं.

Ram Temple, Ram Janmabhoomi Mandir, Ayodhya, Prime Ministerभूमि पूजन से पहले अयोध्या में भगवान राम की पेंटिंग बनाता एक कलाकार

फिर एक गैप, 43 साल के झुन-चुन के बाद डेढ़ लाख जोश से भरे कारसेवकों ने विवाद के लिए एक नये मुद्दे को जन्म दे दिया. इतिहास ने ख़ुद को दोहराया पर इस बार हुकूमत ने नहीं, भीड़तंत्र ने बाबरी ढांचा धराशाई किया और राम-मंदिर फिर बनाने का संकल्प लिया. इन 492 सालों में हिन्दुओं और मुस्लिमों के मन में एक दूसरे के प्रति बहुत घृणा रही, नफ़रत खौलती रही जिसका फ़ायदा अंग्रेज़ों और कांग्रेस दोनों ने बराबर उठाया.

लेकिन आज पीढियां बदल चुकी हैं, अब नई पीढ़ी इसे बस मुद्दे की तरह देखती है जो आखिरकार सॉल्व हो गया. अधिकांश मुस्लिम भले ही ख़ुश न हों पर नाराज़ भी नहीं हैं, इनको अब फ़र्क ही नहीं पड़ता है. बहुत ज़रा से मुस्लिम हैं जो इसे सियासी मुद्दा बनाकर बाकी मुसलमानों को भड़काने में लगे हैं पर असफल हो रहे हैं.

एक मुट्ठी भर मुस्लिम ऐसे भी हैं जो राम-मंदिर बनने से ख़ुश हैं. इनको ज्ञान है कि पूर्वजों से जो गलतियां हुई थीं उसका परिणाम ये ही परिणाम होना था, हमारे पूर्वजों ने आक्रमण किया होगा पर हम अब इसी देश के नागरिक हैं और इस देश में रहती हर पीढ़ी हमें इसीलिए अपना मानती है क्योंकि हम उनकी गलतियों को स्वीकारते हैं.

इसके ठीक विपरीत हिन्दुओं का एक बड़ा तबका है जो आज बहुत ख़ुश है. एक छोटा हिस्सा वो भी है जिसे इस मंदिर के बनने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, इनके लिए भी यही ख़ुशी की बात है कि मुद्दा खत्म हुआ है. अब कुछ मुट्ठी भर लोग वो भी हैं जिनको मिर्ची लग रही है, जिन्होंने बरनॉल की सेल बढ़ा दी है पर बाकी नागरिक इतने ख़ुश हैं कि इनकी आपत्ति पर ध्यान भी नहीं दे पा रहे हैं. ध्यान देने की ज़रुरत भी नहीं है.

कल मैंने न्यूज़ पर अयोध्या नगरी देखी, इतनी रौशनी, इतने हर्षोउत्साहित जनसमूह को देख ख़ुद के वहां न होने का बहुत अफ़सोस हुआ. मेरी नानी, जिनकी नासाज़ तबियत के चलते उन्हें होश नहीं रहता था कि कौन-सा दिन है, कौन-सी तिथि है पर वो भी कल से मंदिर और राम-नाम की बात कर रही हैं.

जो राम जी की योद्धा रूप में तस्वीर आप देख रहे हैं, ये मोहल्ले के कुछ लोकल लड़कों ने बनाई है. कल शाम एक बच्ची को दीया जलाते देखा, उसकी अंगुली पर गलती से गर्म तेल गिर गया, उसकी मां ने उसको मना किया तो बोली 'नहीं मैं ही जलाऊंगी, श्रीराम जी को अच्छा लगेगा न कि मैंने भी उनके लिए ख़ुद दीये जलाए, मम्मी की हेल्प नहीं ली'

मैं सच बताऊं, रौशनी में डूबी अयोध्या, आवारा लड़कों का एकजुट होकर पेंट करना, बच्ची का दीया जलाना और मेरी नानी का बच्चों की तरह ख़ुश होना मेरी आंखें नम कर गया, मैं नतमस्तक हुआ उन श्रीराम के आगे, हमारी सभ्यता के आगे जिसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमें जोड़े रखा.

इस जुड़ाव को न पाकिस्तान तोड़ पाया, न यूएन का प्रेशर, न ही घर में बैठे वामी लकड़बग्घे जिन्होंने कई पीढियां सत्यानाश कर दीं पर श्रीराम से भारतवासियों का कनेक्शन न तोड़ पाए. लेकिन दिन बदल गये हैं, अबतक हमारा संघर्ष उस कनेक्शन को बचाने का था पर आज पूरे विश्व तक श्रीराम नाम पहुंचाने की नींव रखी जा रही है. जय श्रीराम

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लेखक

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' @siddhartarora2812

लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.

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