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Updated: 30 दिसम्बर, 2022 09:36 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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गीता के अनुसार, परिवर्तन संसार का नियम है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी होतीं हैं जो कभी नहीं बदल पातीं. ऐसी अपरिवर्तनीय चीजों में कुछ लोगों का स्वभाव भी शामिल है - राजनीति में भी ऐसे कई नाम मिल जाएंगे, एक बार ध्यान से सोच कर देखिये.

जय श्रीराम (Jai Sri Ram Slogan) के नारे पर ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का ताजा रिएक्शन उनकी पॉलिटिकल लाइन से ज्यादा उनके स्वभाव को ही जाहिर करता है - और पीछे लौट कर देखें तो ऐसे कई मौके याद आते हैं जब जय श्रीराम सुनते ही ममता बनर्जी आपे से बाहर हो जाती हैं.

अब तो ऐसा लगने लगा है कि बीजेपी कार्यकर्ता ममता बनर्जी के विरोध में नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस नेता को चिढ़ाने के लिए ही जय श्रीराम के नारे लगा रहे हैं. अव्वल तो बीजेपी के कार्यक्रमों में जय श्रीराम के नारे नियमित रूप से लगते ही हैं, लेकिन हमेशा ही ऐसा नहीं होता. या कम से कम ऐसी नारेबाजी पर ज्यादा जोर नहीं दिखता.

जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सभाओं में जय श्रीराम से ज्यादा मोदी-मोदी पर जोर होता है. जैसे मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कार्यक्रम हो तो हर हर महादेव बोला जाता है. वैसे हर हर महादेव, जय श्रीराम की तरह राजनीतिक नारा नहीं है. बल्कि, जैसे वृंदावन में राधे-राधे कहते रहते हैं, बनारस में हर हर महादेव का उद्घोष होता रहा है.

ममता बनर्जी को जय श्रीराम के नारे से ज्यादा चिढ़ 2019 के चुनाव नतीजे आने के बाद देखी जाने लगी. और जैसे जैसे 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आती गयी, ये चिढ़ चरम पर पहुंचती चली गयी.

ऐसी एक घटना तब काफी चर्चित हुई थी, जब रास्ते में जय श्रीराम का नारा सुन कर ममता बनर्जी ने काफिले की गाड़ियां रोक दी थी - और नारे लगाने वालों के करीब पहुंच कर ममता बनर्जी ने जी भर धमकाया भी था.

अभी 6 दिसंबर की ही तो बात है, ममता बनर्जी अजमेर गयी हुई थीं. ममता बनर्जी ख्वाजा के दरबार में भी गयीं और पुष्कर के मंदिर में भी. ममता बनर्जी का विरोध करने जो लोग पहुंचे वे भी जय श्रीराम के ही नारे लगा रहे थे. वैसे तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन ममता बनर्जी का विरोध तो इस तरीके से बीजेपी कार्यकर्ता ही किया करते हैं.

यूपी चुनाव 2022 के दौरान ममता बनर्जी बनारस गयी हुई थीं. जब शहर के चेतगंज इलाके से ममता बनर्जी का काफिला गुजर रहा था तो कुछ उत्साही युवक पहले से ही इंतजार कर रहे थे. ममता बनर्जी को देखते ही वे जय श्रीराम के नारे लगाने लगे. उन लोगों ने काले झंडे दिखाने की भी कोशिश की थी, जिसे ममता बनर्जी ने अपने ऊपर हमले की कोशिश करार दिया था.

पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद जब ममता बनर्जी गोवा की तैयारी के लिए पहुंचे तो विरोध करने वाले वहां भी जय श्रीराम के नारे के साथ पहले से इंतजार कर रहे थे. कोलकाता में वंदे भारत एक्सप्रेस के उद्घाटन के मौके पर एक बार फिर ममता बनर्जी ने जय श्रीराम का नारा सुनने के बाद अपने तरीके से कड़ा विरोध और उसका प्रदर्शन भी किया - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी वाला ये दूसरा मौका रहा जब ममता बनर्जी ने खुलेआम विरोध जताया.

वैसे ममता बनर्जी चाहतीं तो थोड़ा संयम दिखा सकती थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मां के निधन से शोक में थे. ऐसा भी नहीं है कि ममता बनर्जी ने मौके पर शोक नहीं जताया, लेकिन जय श्रीराम के नारे को लेकर जो हरकत की, लगा जैसे अपनी सारी संवेदनाओं पर ममता बनर्जी ने खुद ही पानी फेर दिया हो.

चीखने और चुप होने में बड़ा फर्क है

25 अप्रैल 2019 को बिहार में एक चुनावी रैली हो रही थी. रैली में अपने समर्थकों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे जोर जोर से लगा रहे थे - और बगल में बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बस मुस्कुराये जा रहे थे.

narendra modi, mamata banerjeeऐसा क्यों लगता है ममता बनर्जी भी राहुल गांधी की तरह कन्फ्यूज होने लगी हैं?

असल बात तो ये है कि नीतीश कुमार उससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते थे. तब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ एनडीए के गठबंधन सहयोगी हुआ करते थे. मामला बिहार था और मोदी का कार्यक्रम था, लिहाजा नीतीश कुमार को मौजूदगी भी दर्ज करानी थी, लेकिन जो नारेबाजी चल रही थी उसमें शामिल होना उनकी तत्कालीन राजनीतिक लाइन के खिलाफ थी. बाद में नीतीश कुमार को तीन तलाक और जम्मू कश्मीर से जुड़ी धारा 370 के मुद्दे पर अपने बरसों पुराने स्टैंड से पीछे हटते भी देखा गया.

नीतीश कुमार की ऐसी ही खामोशी 2020 के बिहार चुनाव तक देखी गयी, जो चुनाव नतीजे आने के बाद तो करीब करीब शांत ही हो गयी थी. अब तो वो फिर से अपनी राजनीतिक लाइन अलग कर चुके हैं. नीतीश कुमार की ही तरह ममता बनर्जी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक में एक बात कॉमन है कि ये तीनों ही बीजेपी के साथ मिल कर सत्ता की राजनीति कर चुके हैं, लेकिन ये तीनों ही अभी बीजेपी से अलग हैं.

नीतीश कुमार तो पूरी तरह बीजेपी और मोदी विरोधी लाइन पकड़ चुके हैं, लेकिन ममता बनर्जी कुछ कुछ नवीन पटनायक जैसे संकेत दे रही हैं. ऐसा इसलिए भी लगता है क्योंकि ममता बनर्जी विपक्षी दलों से दूरी जाती हुई देखी जा रही हैं - लेकिन ऐन उसी वक्त वो अपनी राजनीतिक लाइन से समझौता भी नहीं करना चाहतीं.

कोलकाता में क्यों बिफर उठीं ममता बनर्जी: कोलकाता में दो साल के भीतर ये दूसरा मौका रहा जब ममता बनर्जी जय श्रीराम का नारा लगाये जाने पर नाराज हो गयीं - 23 जनवरी, 2021 को भी कुछ कुछ ऐसा ही देखने को मिला था, लेकिन वो मौका बिलकुल अलग था.

30 दिसंबर का कार्यक्रम पहले से तय था. प्रधानमंत्री को कोलकाता में कई कार्यक्रमों में शामिल होना था, लेकिन हीरा बा के निधन के चलते उनको गुजरात जाना पड़ा. मोदी ने मां के अंतिम संस्कार में हिस्सा तो लिया ही, पहले से तय कार्यक्रमों को भी रद्द नहीं होने दिया.

अहमदाबाद से ही प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यक्रम में वर्चुअल मौजूदगी दर्ज करायी और हरी झंडी दिखाकर वंदे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन भी किया. कोलकाता से ही ममता बनर्जी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के मां के निधन पर गहरा शोक भी व्यक्त किया.

ममता बनर्जी ने मोदी को ये सलाह भी दी कि वो मां के अंतिम संस्कार से लौटे हैं, लिहाजा वो आराम करें. ममता ने मोदी से ये भी कहा कि वो कार्यक्रम को छोटा ही रखें - और मोदी की मां को ममता बनर्जी ने अपनी मां जैसी ही बताया.

हीरा बा को श्रद्धांजलि देते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जो कहा वो भावुक कर देने वाले शब्द थे, 'दुख की इस घड़ी में हम सभी आपके साथ हैं... आपके परिवार को सहने की शक्ति मिले... मां की तरह कोई और हो ही नहीं सकता... अभी आप आराम कीजिये - क्योंकि आप सीधे मां के अंतिम संस्कार से आ रहे हैं.'

लेकिन उसके बाद रेल प्रोजेक्ट की बात पर आते ही ममता बनर्जी सीधे राजनीति पर आ गयीं. प्रोजेक्ट के उद्घाटन के लिए मोदी को शुक्रिया कहने के साथ ही ये भी याद दिलाया कि पांच में से चार प्रोजेक्ट तो उसी जमाने के हैं जब वो केंद्र में रेल मंत्री हुआ करती थीं. ममता बनर्जी ने एनडीए के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के साथ साथ कोलकाता कुछ नेताओं के योगदान की तरफ भी ध्यान दिलाया.

राजनीति शुरू हो चुकी थी. हो सकता है, ममता बनर्जी ने भाषण छोटा रखा होता तो मोदी भी उनकी बात मान लेते, लेकिन निजी कारणों से बंगाल न आने के लिए क्षमा मांगने के साथ ही वो भी शुरू हो गये - और बताना शुरू कर दिया कि जिस नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बंगाल के लोगों का भावनात्मक लगाव है, वो खुद भी एक एक वाकया याद रखते हैं.

मोदी का कहना रहा, '... 30 दिसंबर का इतिहास में बड़ा महत्व है... इसी दिन 1943 में नेताजी ने अंडमान में तिरंगा झंडा फहराया था... बंगाल को आज वंदे भारत मिल गई है... जिस भूमि ने वंदे मातरम का जयघोष दिया, वहां से आज वंदे भारत ट्रेन चल रही है.'

और फिर ममता बनर्जी के रेलवे के काम को लेकर क्रेडिट लेने को काउंटर करते हुए बोले, 'हमने 475 वंदे भारत ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा है... देश के विकास के लिए रेलवे का विकास जरूरी है - हम रेलवे के कायाकल्प का राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे हैं.'

कार्यक्रम के ही दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं की तरफ से जय श्रीराम के नारे लगाये जाने लगे - और एक बार फिर ममता बनर्जी को गुस्सा आ गया. ममता बनर्जी मंच पर गयी ही नहीं. ममता बनर्जी को समझाने की कोशिश रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी की - और काफी देर तक राज्यपाल सीवी आनंद बोस भी मनाने की कोशिश करते रहे, लेकिन ममता बनर्जी का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वो मंच के सामने रखी कुर्सियों में से एक पर जाकर बैठ गयीं. बाद में गुस्सा थोड़ा कम हुआ तो भाषण भी दिया, लेकिन मंच पर नहीं ही गयीं.

जब नेताजी के कार्यक्रम में बिफर उठी थीं ममता बनर्जी: पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले केंद्र सरकार की तरफ से नेताजी सुभाष जयंती पर कोलकाता में एक कार्यक्रम रखा गया था. मुख्यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी को भी बुलाया गया था. ममता बनर्जी पहुंची भी.

प्रधानमंत्री मोदी और ममता बनर्जी दोनों मंच पर ही मौजूद थे, तभी सामने से कुछ बीजेपी कार्यकर्ता जय श्रीराम के नारे लगाने लगे. ममता बनर्जी भड़क उठीं और भाषण के लिए बार बार आग्रह किये जाने पर एक ही बात कहती रहीं, 'आमि बोलबे ना...' मुझे नहीं बोलना है.

ममता बनर्जी कुछ देर वहां रहीं और फिर लौट गयीं. बाद में एक इंटरव्यू में ममता बनर्जी ने बताया था कि वो बोली नहीं, लेकिन रुकी रहीं - और वहां से चाय पीकर ही निकली थीं.

एक चीख और एक समझदार चुप!

हिंदी कवि धूमिल ने चीखने और चुप रहने दोनों महत्व बताते हुए फर्क भी समझाया है - धूमिल की मशहूर कविता मोचीराम में चीख और चुप दोनों ही अलग अलग फर्ज के तौर पर सामने आते हैं -

मैं जानता हूं कि 'इन्कार से भरी हुई एक चीख'

और 'एक समझदार चुप'

दोनों का मतलब एक है -

भविष्य गढ़ने में, 'चुप' और 'चीख'

अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से

अपना-अपना फर्ज अदा करते हैं.

जैसे रैली में नीतीश कुमार नापंसद नारेबाजी के बावजूद धैर्य के साथ मंच पर बैठे रहे, ममता बनर्जी भी चाहतीं तो चुप रह जातीं, लेकिन वो भावनाओं पर काबू नहीं पा सकीं. ऐसा करना हर किसी के लिए संभव भी नहीं होता.

देखा जाये तो ममता बनर्जी और नीतीश कुमार दोनों ही एक दर्द के एक ही दौर से गुजर रहे हैं. दोनों की ख्वाहिश देश का प्रधानमंत्री बनने की है, लेकिन गाड़ी अपने अपने राज्यों से बाहर निकल ही नहीं पा रही है. दोनों ही विपक्ष को एकजुट करने की जी जान से कोशिश कर चुके हैं, लेकिन विपक्ष है कि मानता ही नहीं है.

ममता बनर्जी मालूम नहीं बीजेपी के साथ कौन सा फ्रेंडली मैच खेलना चाहती हैं. हाल फिलहाल ममता बनर्जी की बीजेपी नेतृत्व से नजदीकियों को अचरज भरी निगाह से देखा जा रहा है. अमित शाह का मुस्कुराते हुए स्वागत करतीं ममता बनर्जी की तस्वीरें वायरल हो जाती हैं. प्रधानमंत्री मोदी से बात करते वक्त वो उनकी मां को हमारी मां बताती हैं - लेकिन जय श्रीराम का नारा सुनते ही भड़क जाती हैं.

ममता बनर्जी ऐसा करके अपनी राजनीति कहां तक ले जा पाएंगी, समझना मुश्किल हो रहा है. खासकर ऐसे दौर में जब प्रधानमंत्री पद के एक और दावेदार अरविंद केजरीवाल भी जय श्रीराम बोलने लगे हों - और बुजुर्ग कांग्रेसी एके एंटनी कांग्रेस को मंदिर जाने और हिंदू वोटर से जुड़ने की सलाह दे रहे हों.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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