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Updated: 25 जनवरी, 2021 05:45 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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'जय श्री राम' के नारे को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का गुस्सा फिर से फूट पड़ा है. दरअसल, कोलकाता के विक्‍टोरिया मेमोरियल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर हुए एक कार्यक्रम के दौरान ममता बनर्जी के संबोधन से पहले कुछ लोगों ने 'जय श्री राम' के नारे लगा दिए. नारेबाजी से नाराज ममता बनर्जी ने नसीहत देते हुए कहा- 'सरकार के कार्यक्रम की गरिमा होती है. यह कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है. पीएम मोदी और सांस्कृतिक मंत्रालय की मैं आभारी हूं कि उन्होंने समारोह का आयोजन कोलकाता में किया है और मुझे आमंत्रित किया है. किसी को आमंत्रित करने के बाद उसकी बेइज्‍जती करना शोभा नहीं देता है. विरोध के रूप में मैं कुछ भी नहीं बोलूंगीं.' इसके बाद ममता बनर्जी ने 'जय हिंद-जय बांग्‍ला' बोलकर अपना भाषण खत्म कर दिया.

वैसे ममता बनर्जी 'जय श्री राम' का नारा सुनकर अक्सर ही भड़क जाती हैं. ममता 'दीदी' के सामने 'जय श्री राम' का नारा लगाने की वजह से पहले कई लोग जेल भी जा चुके हैं. ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी हमेशा से ही 'जय श्री राम' के नारे पर बिफर पड़ती हों. ममता हिंदूविरोधी नही रही हैं. लेकिन, अपनी एक भूल की वजह से ममता को ये राजनीतिक त्रास झेलना पड़ रहा है. ममता को जल्द ही इस नारे पर आने वाले गुस्से से बचने का कोई रास्ता निकालना पड़ेगा. अगर ममता बनर्जी ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाती हैं, तो शायद उन्हें आने वाले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

 

भाजपा के जाल में फंसीं ममता और कर दिया था विरोध

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भाजपा हमेशा से ही हिंदूविरोधी होने का आरोप लगाती रही है. लेकिन, इस आरोप को स्वयंसिद्ध ममता बनर्जी ने ही किया था. कहा जा सकता है कि वो इस नारे का विरोध भाजपा की बनाई एक रणनीति के तहत कर बैठी थीं. ममता की तेज-तर्रार नेता वाली छवि के हिसाब से भाजपा की यह रणनीति कामयाब हो गई थी. लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में भाजपा की बंगाल इकाई ने पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में रामनवमी के दिन सशस्त्र जुलूस निकाले थे. जुलूस के दौरान 'जय श्री राम' के नारों का भरपूर उपयोग किया गया था. इस जुलूस के मामले में ममता बनर्जी भाजपा के विश्वास पर सौ फीसदी खरी उतरीं. ममता बनर्जी ने भाजपा के रामनवमी जुलूस का पुरजोर विरोध किया था. भाजपा ने ममता बनर्जी के इस विरोध का जमकर प्रचार किया. जिसकी वजह से राज्य में वोटों का बड़ा ध्रुवीकरण हुआ.

इस घटना के बाद पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में हिंदू मतदाताओं का ममता बनर्जी से मोहभंग हुआ था. भाजपा को लोकसभा चुनाव 2019 में इसका फायदा भी मिला था. कहा जा सकता है कि 'जय श्री राम' के नारे के सहारे वोटों के ध्रुवीकरण से भाजपा ने 18 लोकसभा सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की थी. वहीं, लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान दो अन्य जगहों पर ममता बनर्जी के काफिले के सामने भाजपा के कार्यकर्ताओं ने 'जय श्री राम' के नारे लगाए थे. नारेबाजी से गुस्साई ममता बनर्जी ने अपनी गाड़ी से उतरकर इन लोगों को गुंडा कहा था. इन मामलों में कई लोग गिरफ्तार भी हुए थे. भाजपा की बंगाल इकाई ने ट्विटर पर ये वीडियो शेयर भी किए थे. वीडियो में ममता बनर्जी 'जय श्री राम' के नारे को गाली कहती हुई भी दिख रही थीं. सोशल मीडिया पर ये वीडियो बहुत वायरल हुए थे. 'जय श्री राम' के नारे का विरोध केवल ममता बनर्जी ही नहीं टीएमसी के कई नेता भी करते रहे हैं. ऐसे में लोगों के बीच ममता 'दीदी' की छवि बदलती चली गई.

 

नारे का विरोध कहीं ममता की रणनीति तो नहीं

चर्चा इस बात पर भी हो रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करते हुए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने जो किया, कहीं ये उनकी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है. ममता बनर्जी इन दिनों तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो रहे नेताओं की वजह से मुश्किल में दिख रही हैं. हो सकता है कि विधानसभा चुनाव से पहले चाची और भतीजे के साथ चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से नाराज चल रहे अन्य लोग भी टीएमसी का साथ छोड़ दें. बंगाल में ममता सरकार के विधायकों के इस्तीफे का दौर और उनकी खुलेआम बगावत इसके संकेत दे रहा है. ममता सरकार में बन मंत्री रहे राजीब बनर्जी का हालिया इस्तीफा हो या बैशाली डालमिया का पार्टी से निष्कासन, सारी बात घूम-फिरकर बड़े नेताओं के लगातार जारी पलायन पर आकर टिक गई है. ऐसे में ममता बनर्जी के सामने उनके सबसे विश्वस्त वोटबैंक को बचाने की चुनौती भी आ खड़ी हुई है. पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी मतदाताओं वाला ये मुस्लिम वोटबैंक 2011 से ही ममता के साथ जुड़ा हुआ है. लेकिन, AIMIM के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी की राज्य में दस्तक के बाद ममता बनर्जी के करीबी रहे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने नई पार्टी का ऐलान कर तृणमूल कांग्रेस के इस वोटबैंक में सेंध लगाने की बिसात बिछा दी है. माना जाता है कि इस वोटबैंक का पश्चिम बंगाल की 90 से ज्यादा सीटों पर सीधा प्रभाव है. इस वोटबैंक में थोड़ा सा भी भटकाव आता है, तो वह ममता बनर्जी के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर देगा. ऐसे में कहा जा रहा है कि इस वोटबैंक को साधने के लिए ही ममता ने मंच से ये गुस्सा दिखाया था.

छवि सुधारने की लगातार करती रहीं कोशिश

अपनी इस हिंदूविरोधी छवि को सुधारने के लिए ममता बनर्जी ने काफी प्रयास किए हैं. ममता बनर्जी ने 'जय श्री राम' के नारे के विरोध पर अपने बचाव में कहा था कि हम जय श्री राम का नारा क्यों लगाएं. हमारे पास मां शक्ति के दुर्गा और काली के रूप हैं. हम जय मां काली और जय मां दुर्गा कहेंगे. वहीं, हर चीज को बंगाली अस्मिता से जोड़ने वाली ममता बनर्जी बंगाल की संस्कृति को 'बाहरी' लोगों से बचाने की अपील करती भी नजर आई हैं. यहां 'बाहरी' लोगों का मतलब भाजपा से है. ममता सरकार ने बीते साल सितंबर में करीब 8000 पुजारियों को 1,000 रुपये महीने का मानदेय और एक घर देने की घोषणा की थी. इसके साथ ही ममता बनर्जी ने राज्य में कुल 37,000 दुर्गा पूजा क्लबों के लिए सालाना अनुदान को भी दोगुना बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया था. अब ममता सरकार के ये फैसले विधानसभा चुनाव में उनके कितने काम आएंगे, ये तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा.

एक ही गलती बार-बार दोहरा रही हैं ममता बनर्जी

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले पश्चिम बंगाल के हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं पर ममता बनर्जी का एकछत्र कब्जा था. लेकिन, 'जय श्री राम' के नारे का विरोध कर ममता बनर्जी ने अपने ही पैरों पर राजनीतिक कुल्हाड़ी मार ली थी. वहीं, बाबरी मस्जिद विध्वंस के सभी आरोपियों की अदालत से रिहाई पर ममता बनर्जी का कोई बयान नहीं आने पर राज्य के मुस्लिम मतदाता भी उनसे काफी नाराज हुए थे. हालांकि, तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रे ने इस मामले पर बयान देते हुए कहा था कि यह अदालत का फैसला है, इसलिए हम अभी नहीं कह सकते कि हम इसका समर्थन या विरोध करते हैं. ममता बनर्जी एक ही गलती को बार-बार दोहरा रही हैं. हालांकि, वह ऐसा क्यों कर रही हैं, इसका जवाब ममता बनर्जी या उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ही दे सकते हैं. लेकिन, उन्हें कोशिश करनी होगी कि 'जय श्री राम' के नारे पर अब उनका गुस्सा काबू में आ जाए.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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