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Updated: 11 सितम्बर, 2021 06:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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भवानीपुर उपचुनाव (Bhabanipur Bypoll) में सबसे दिलचस्प खासियत ये है कि दो हारे हुए उम्मीदवार एक बार फिर चुनाव मैदान में होंगे - ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के लिए भवानीपुर जहां मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए वैतरणी है, बीजेपी की कोशिश होगी कि भवानीपुर को भी नंदीग्राम का संग्राम बना दिया जाये.

तृणमूल कांग्रेस के हिसाब से देखें तो भवानीपुर उपचुनाव का रिजल्ट ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल की कुर्सी पर बने रहने के लिए एक्सेस कार्ड है. ममता बनर्जी का ये उपचुनाव हर हाल में जीतना जरूरी है - वरना, एक्सेस बंद हो जाएगा और फिर मजबूरन कोलकाता छोड़ कर अभी से दिल्ली शिफ्ट होना पड़ सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ममता बनर्जी ने टीएमसी संसदीय बोर्ट की चेयरपर्सन बन कर संदेश तो यही देने का प्रयास किया है.

भवानीपुर उपचुनाव को लेकर बीजेपी के संभावित उम्मीदवारों की सूची में कई नाम रहे और दिनेश त्रिवेदी तो सबसे आगे ही चल रहे थे. ममता बनर्जी के खिलाफ दिनेश त्रिवेदी को उतार कर बीजेपी नंदीग्राम की तरह दूर से मजे ले सकती थी क्योंकि वो भी तो तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर ही भगवा धारण किये हुए हैं. ये दिनेश त्रिवेदी ही हैं जिनको यूपीए सरकार में ममता बनर्जी ने रेल बजट के बीच मंत्री पद से इस्तीफा दिला कर मुकुल रॉय को अपने कोटे से नया मंत्री बनाया था. हो सकता है दिनेश त्रिवेदी के मन में बदले की भावना अब भी बची हुई हो, लेकिन नतीजे अगर नंदीग्राम जैसे नहीं आते तो नये सिरे से जलालत की झेलनी पड़ती, लेकिन वो साफ बच गये.

भले ही भवानीपुर उपचुनाव को एकतरफा माना जा रहा हो, लेकिन ममता बनर्जी की राह अभी से काफी मुश्किल लगने लगी है. नंदीग्राम की बात और थी. तब ममता बनर्जी की सीधे बीजेपी से लड़ाई थी, लेकिन प्रियंका टिबरेवाल (Priyanka Tibrewal) ने जिस तरीके से ममता बनर्जी को ही भवानीपुर में बाहरी होने का इशारा कर उकसाने की कोशिश की है, ममता बनर्जी को अपने संयम की भी परीक्षा देनी होगी.

बेशक ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं और भवानीपुर उनकी पुरानी सीट रही है. ये भी ठीक है कि पहली बार भी ममता बनर्जी भवानीपुर से उपचुनाव लड़ कर ही विधानसभा पहुंची थीं - और ठीक दस साल बाद भी वैसे ही मैदान में उतर रही हैं, लेकिन ममता बनर्जी को ये भी ध्यान रखना होगा कि प्रियंका टिबरेवाल के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं होगा - और ममता बनर्जी का पक्ष ठीक उसके उलट होगा.

ममता बनर्जी ही नहीं, बाकियों के लिए भी ये एक उलझाऊ सवाल है कि बीजेपी नेतृत्व ने आखिर क्या सोच कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के खिलाफ एक हारे हुए उम्मीदवार को खड़ा करने का फैसला किया होगा - क्योंकि ममता बनर्जी अब वही ममता बनर्जी नहीं हैं जो नंदीग्राम के चुनाव मैदान के साथ पूरे पश्चिम बंगाल में बीजेपी से कदम कदम पर टकरा रही थीं. ममता बनर्जी अब 2019 के मुकाबले 2024 के लिए प्रधानमंत्री पद की मजबूत दावेदार बन चुकी हैं और राजनीति की ये गर्माहट दिल्ली में 10, जनपथ ही नहीं, 7, लोक कल्याण मार्ग तक भी महसूस की जाने लगी है.

नेशनल फ्रेम में अपनी बढ़ती ताकत के बावजूद ममता बनर्जी ने अगर प्रियंका टिबरेवाल को हल्के में लेने की कोशिश की तो बिलकुल ठीक नहीं होगा - क्योंकि भवानीपुर उपचुनाव को भी बीजेपी नेतृत्व बंगाल चुनाव की तरह ही लड़ने की तैयारी कर रहा है.

भवानीपुर में पूरा बंगाल देख रही है बीजेपी

भवानीपुर के नतीजों को लेकर ममता बनर्जी के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ज्यादा आश्वस्त होंगे. हार ऐसी चीज होती है जिससे हिम्मत डोल जाती है - और ऐसा तब तो होता ही है जब अपना ही करीबी रहा कोई शख्स खुल कर चैलेंज करे और शिकस्त दे डाले. ममता बनर्जी के साथ यही तो हुआ है. जो शुभेंदु अधिकारी कभी ममती बनर्जी की हर जगह जीत सुनिश्चित कराते रहे, वही एक दिन पाला बदले और मैदान में सरेआम चित्त कर डाले.

mamata banerjee, priyanka tibrewalममता बनर्जी को भवानीपुर में भी नंदीग्राम की तरह ही सतर्क रहना होगा - क्योंकि बीजेपी जख्मी शेर की तरह झपटने वाली है!

बिलकुल ऐसा ही तो नहीं, लेकिन बीजेपी ने 1999 में भी ऐसा ही प्रयोग किया था - और वो प्रयोग भी हार जीत से ज्यादा राजनीतिक लड़ाई में चैलेंज कर दिये जाने वाले मैसेज के लिए ही था - ये बात बेल्लारी लोक सभा सीट पर हुए चुनाव की है. 1998 में बीजेपी ने केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दिला कर दिल्ली की पांचवी और पहली मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिला दी थी, लेकिन चुनाव नतीजे आये तो बाजी कांग्रेस की शीला दीक्षित के हाथ लग चुकी थी. हालांकि, सुषमा स्वराज अपनी हौज खास सीट से चुनाव जीत गयी थीं.

जब आम चुनाव का वक्त आया और सोनिया गांधी ने अमेठी के साथ साथ बेल्लारी से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया तो बीजेपी ने सुषमा स्वराज को भेज दिया था. तब सुषमा स्वराज ने बड़े ही कम समय में कन्नड़ भाषा सीखा और चुनाव प्रचार में फर्राटे से बोलने लगी थीं - प्रियंका टिबरवाल तो बंगाली बोलना पहले से ही जानती हैं. मारवाड़ी परिवार से आने वाली प्रियंका टिबरवाल हिंदी भाषी हैं और पेशे से वकील हैं.

वकालत का पेशा ही प्रियंका टिबरेवाल के बीजेपी में आने का जरिया बना और माध्यम पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो. प्रियंका टिबरेवाल, बाबुल सुप्रियो की कानूनी सलाहकार भी रह चुकी हैं और 2014 में उनकी ही सिफारिश पर बीजेपी में शामिल हुई थीं.

दो चुनाव हारने के बाद प्रियंका टिबरेवाल भवानीपुर उपचुनाव लड़ने जा रही हैं. पहला चुनाव प्रियंका टिबरेवाल ने 2015 में कोलकाता नगर निगम का लड़ा था, लेकिन हार गयीं. हाल के विधानसभा चुनाव में भी वो एंटाली सीट से बीजेपी उम्मीदवार थीं लेकिन तृणमूल कांग्रेस के स्वर्ण कमल साहा से 50 हजार से ज्यादा वोटों से हार गयीं.

भवानीपुर में गैर बंगाली वोटर 40 फीसदी से ज्यादा हैं और मुस्लिम वोट करीब 20 फीसदी है - प्रियंका टिबरेवाल को लड़ाने में कोई कसर बाकी न रहे, इसलिए बीजेपी ने उपचुनाव के लिए कमेटी तो बनायी ही है, वॉर्ड स्तर भी जिम्मेदारी नेताओं को दी है.

विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भवानीपुर से बंगाली फिल्म एक्टर रूद्रानिल घोष को टिकट दिया था, ताकि साफ सुथरी छवि वाले तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार शोभनदेव चटर्जी को बराबरी का टक्कर दे सकें.

भवानीपुर में बीजेपी का वोट शेयर तो बढ़ा, लेकिन रूद्रानिल घोष को शोभन चटर्जी से करीब 28 हजार वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा था. बीजेपी चाहती तो रूद्रानिल को ही फिर से मैदान में उतार सकती थी, लेकिन एक रणनीति के तहत नये उम्मीदवार उतारने का फैसला किया गया. ममता बनर्जी के खिलाफ कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार न खड़ा करने का फैसला किया है, लेकिन सीपीएम ने, कमजोर ही सही, एक उम्मीदवार उतार दिया है - श्रीजीब बिस्वास.

ममता बनर्जी के खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार बनाये जाने पर प्रियंका टिबरेवाल का कहना रहा, 'मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं है, बल्कि अन्याय के खिलाफ है... ये लड़ाई बंगाल के लोगों को बचाने के लिए है... ये लड़ाई उस पर्सन के खिलाफ है - जो चुनावी हिंसा के दौरान खामोश रहा.' 

चुनावी मुद्दे का जिक्र करते हुए प्रियंका टिबरेवाल ने कहा, 'मेरा मुद्दा रहेगा... लोकतंत्र में लोगों को बचाना जरूरी है... पश्चिम बंगाल में ये नहीं हो सकता कि किसी एक की दादागिरी चले... ये ठाकुर रविंद्र नाथ और विवेकानंद की भूमि है - ये इंसानियत को बचाने की लड़ाई है.'

बीजेपी युवा मोर्चा की उपाध्यक्ष प्रियंका टिबरेवाल पश्चिम बंगाल में हुई चुनावी हिंसा के मामलों में भी काफी एक्टिव रही हैं हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के साथ ही प्रियंका टिबरेवाल ने सुप्रीम कोर्ट में भी कैविएट दायर किया है.

क्या प्रियंका के उकसावे में ममता आ जाएंगी?

भवानीपुर उपचुनाव के लिए बीजेपी उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल की एक और भी विशेषता है, पश्चिम बंगाल में बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के बावजूद वो निर्गुट आंदोलन की नेता जैसी ही हैं. हो सकता है उनकी उम्मीदवारी में ये भी प्लस प्वाइंट बना हो. पश्चिम बंगाल में बीजेपी के भीतर पहले तो गुटबाजी थी ही, शुभेंदु अधिकारी के आने जाने से बढ़ गयी है. अब तो एक गुट पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का है और दूसरा शुभेंदु अधिकारी का. बीजेपी की बैठकों में गुटबाजी का नजारा साफतौर पर देखा जाता है, सिवा तब के जब जेपी नड्डा मीटिंग ले रहे होते हैं.

ममता बनर्जी के बारे में बाकी बातों के अलावा प्रियंका टिबरेवाल ने एक ऐसी बात भी कही है जो साफ तौर पर सिर्फ उकसाने वाली है. विधानसभा चुनावों से पहले से ही ममता बनर्जी बीजेपी के मोदी-शाह को बाहरी बता कर हमला बोल देती थीं.

जब ममता बनर्जी नंदीग्राम पहुंची तो भी शुभेंदु अधिकारी के समर्थकों ने ममता बनर्जी को बाहरी बताने की कोशिश की, लेकिन बीजेपी के प्रति ममता बनर्जी के आक्रामक रूख के चलते वो लगभग न्यूट्रलाइज हो गया. अब भवानीपुर में ये नये सिरे से उभारने की कोशिश की जा रही है.

देखा जाये तो ममता बनर्जी का निवास भवानीपुर में है और प्रियंका टिबरेवाल का एंटाली में, लेकिन वो अपना जन्म स्थान बता कर ममता बनर्जी को बाहरी बताने की कोशिश कर रही हैं. बताते हैं कि प्रियंका टिबरेवाल का जन्म 7 जुलाई 1981 को भवानीपुर में ही हुआ था.

प्रियंका टिबरेवाल से जब पूछा गया कि उनका चुनावी स्लोगन क्या रहेगा, तो तपाक से बोलीं, 'मैं भवानीपुर में पैदा हुई हूं, ममता बनर्जी वहां पैदा नहीं हुई हैं.'

ऐसा लगता है ये ममता बनर्जी के 'बांग्ला निजेर मेयेकेई चाये' कैंपेन पर जवाबी प्रहार रहा. ममता बनर्जी ने 'बंगाल अपनी बेटी चाहता है' के नाम पर ही चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की. ममता बनर्जी के स्लोगन को ही प्रियंका टिबरेवाल अब बंगाल की जगह भवानीपुर से जोड़ कर पेश कर रही हैं.

चुनावी मुद्दे और हिंसा के बीच शुरुआती दौर में ही प्रियंका टिबरेवाल का जिस बात पर ज्यादा जोर दिखा वो यही था कि वो खुद भवानीपुर में पैदा हुई हैं, न कि ममता बनर्जी.

विधायक मदन मित्रा ने ममता बनर्जी को लेकर एक नया सॉन्ग रिकॉर्ड किया है और वो 'बांग्ला निजेर मेयेकेई चाये' में बांग्ला की जगह इंडिया जोड़ दिया है - 'इंडिया निजेर मेयेकेई चाये.'

अपनी स्टाइल और ड्रेस के लिए मशहूर मदन मित्रा कहते हैं, 'ये ममता बनर्जी को श्रद्धांजलि है... जो भवानीपुर में रिकॉर्ड संख्या में वोटों के साथ जीतने जा रही हैं - और हमारा मकसद है 2024 के लोक सभा चुनाव में उनको प्रधानमंत्री के रूप में देखें.'

ऐसा लगता है जैसे प्रियंका टिबरेवाल का भवानीपुर में पैदा होना ही बीजेपी के लिए उम्मीदवार पर अंतिम निर्णय लेने में बड़ा मददगार साबित हुआ होगा.

सवाल ये है कि क्या ममता बनर्जी भी प्रियंका टिबरेवाल का उनके ही लहजे में काउंटर करेंगी? शायद नहीं!

ममता बनर्जी की जिस हिसाब से नजर दिल्ली की राजनीति पर टिकी हुई है, लगता नहीं कि ममता बनर्जी भवानीपुर में बाहरी होने के मुद्दे को तूल देना चाहेंगी - अगर प्रियंका के खिलाफ भी ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी की तरह पेश आने की कोशिश की तो राह ज्यादा मुश्किल हो सकती है.

बीजेपी ने प्रियंका टिबरवाल के रूप में तीर समझ कर जो तुक्का फेंका है, वो निशाने पर भले न लगे, लेकिन माहौल तो पूरा बनाये रखने वाला है. मान कर चलना होगा कि बीजेपी नेतृत्व भवानीपुर में नंदीग्राम से ज्यादा ही ताकत और सतर्कता के साथ चुनाव लड़ने जा रहा है - ऐसे में ममता बनर्जी को हर कदम पर ये जरूर याद रखना ही होगा कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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