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Updated: 14 अक्टूबर, 2022 02:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) भी अब शशि थरूर की तरह चुनाव प्रचार में लग गये हैं, लेकिन वो अपने प्रतिद्वंद्वी की किसी भी बात से इत्तेफाक नहीं रखते - और कह रहे हैं कि शशि थरूर कोई उनके एग्जामिनर नहीं हैं.

इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं कि शशि थरूर (Shashi Tharoor) से वो अपनी तुलना नहीं करना चाहते - और संगठन में विकेंद्रीकरण को लेकर शशि थरूर की पहल की तरफ ध्यान दिलाने पर वो उनकी बातों पर रिएक्ट न करने के नाम पर सवाल टाल जाते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे शशि थरूर ने अपनी तरफ से एक मैनिफेस्टो भी जारी किया है - और युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ ही कांग्रेस में हाई कमान कल्चर खत्म करने का वादा किया है, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे को ऐसी बातों से कोई मतलब नहीं लगता.

शशि थरूर के नाम पर मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही जवाब देने से बचने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन उनकी बातों से संकेत तो यही मिल रहे हैं कि कांग्रेस में कुछ भी नहीं बदलने वाला है - और अगर कांग्रेस में कुछ भी नहीं बदलता तो ये भी समझ लेना चाहिये कि कांग्रेस का आगे भी कुछ नहीं होने वाला है.

मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी की पहली पसंद न रहे हों, भले ही वो आखिरी वक्त तक कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से दूर होने के दावे करते रहे हों - जो शक शुबहे अशोक गहलोत के रबर स्टांप कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने को लेकर गुलाम नबी आजाद तक जता रहे थे, लगता है मल्लिकार्जुन खड़गे उनको काफी पीछे छोड़ देंगे.

अशोक गहलोत ने तो राजस्थान में अपने समर्थक विधायकों के कंधे पर हाथ रख कर जो जादू दिखाया, वो तो यही बता रहा है कि वास्तव में अगर वो कांग्रेस अध्यक्ष बन जाते तो गांधी परिवार (Gandhi Family) को घोर निराशा होती - क्योंकि राजस्थान और सचिन पायलट के मामले में तो कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कुछ भी नहीं सुनते. क्या पता, किसी दिन केसी वेणुगोपाल के हस्ताक्षर से एक पत्र ट्विटर पर डाल देने को कहते कि दो साल पहले सचिन पायलट के नकारा, निकम्मा और पीठ में छुरा भोंकने वाला होने की वजह से कांग्रेस पार्टी से छह साल के लिए बाहर कर दिया गया है - और गांधी परिवार बस मुंह देखता रह जाता.

और ये भी अशोक गहलोत के उस बयान का ही असर लग रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे अभी से अपने मिशन में लग गये हैं. अशोक गहलोत का ये कहना कि मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत एकतरफा होगी, मल्लिकार्जुन खड़गे का हौसला बढ़ा दिया है. भारत जोड़ो यात्रा के होस्ट बने होने के बाद भी दिग्विजय सिंह भी अपनी तरफ से मल्लिकार्जुन खड़गे का भरपूर प्रचार कर रहे हैं - और नतीजा ये हो रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे सफाई देते देते थक गये हैं कि वो कांग्रेस के अघोषित आधिकारिक उम्मीदवार नहीं हैं.

और गांधी परिवार के बचाव का सिलसिला यहीं से शुरू हो जाता है - और राहुल गांधी के 'एक व्यक्ति, एक पद' वाले कमिटमेंट की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहते हैं कि वो और कुछ करें न करें, वो कांग्रेस के उदयपुर प्रस्ताव को हर हाल में लागू जरूर करेंगे.

नये कांग्रेस अध्यक्ष का पहला काम क्या होगा

कहने को तो मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अपना पहला काम जो बताया है, वो नीतीश कुमार के साथ साथ लालू प्रसाद यादव को भी निराश करने वाला है. बल्कि ये कहना ही बेहतर होगा कि वो बात 2024 में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने का सपना देख रहे हर नेता को निराश करने वाला है. ऐसे सपने तो अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी भी देख रही होंगी, लेकिन हो सकता है कांग्रेस के प्रति उनकी भावनाओं को मल्लिकार्जुन खड़गे की बातें खुशी ही दे रही हों.

mallikarjun kharge, shashi tharoor, sonia gandhi, rahul gandhiचुनाव नतीजों की कौन कहे, अभी तो कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी नहीं हुआ - और मल्लिकार्जुन खड़गे ने ड्यूटी संभाल ली!

नीतीश कुमार ने महागठबंधन में जाते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. राहुल गांधी से मुलाकात के बाद यूपी में अखिलेश यादव को महागठबंधन का नेता भी घोषित कर दिया, लेकिन सोनिया गांधी के मेडिकल चेक अप के लिए विदेश दौरे पर होने के कारण बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी. सोनिया गांधी के लौटने पर लालू यादव और नीतीश कुमार की मुलाकात भी हुई.

लालू यादव ने तो ये कह कर मुलाकात को महत्वपूर्ण बताने की कोशिश की कि वो कोई 'फोटो खिंचाने' के लिए नहीं गये थे. हालांकि, नीतीश कुमार की तरफ से यही खबर आयी कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव खत्म हो जाने विपक्ष को एकजुट करने के मुद्दे पर बात करने का आश्वासन दिया है.

और अब पटना जाकर मल्लिकार्जुन खड़गे ऐलान कर चुके हैं कि अध्यक्ष बनने के बाद अब वही नीतीश कुमार के साथ आगे की रणनीति पर फैसला लेंगे. मतलब, सोनिया गांधी ने भी नीतीश कुमार और लालू यादव को अपने तरीके से ऐसा ही संदेश देने की कोशिश की थी. और मतलब, ये भी कि नीतीश कुमार के अखिलेश यादव को नेता घोषित करने का मामला अभी अधर में ही समझा जाना चाहिये. क्या ये कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी को मिल रहे सपोर्ट का असर है?

कांग्रेस को आखिर गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष क्यों चाहिये था?

पहली वजह तो बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के परिवारवाद की राजनीति को उखाड़ फेंकने की अपील को काउंटर करने के लिए. एक वजह ये भी है कि जैसे राहुल गांधी और सोनिया गांधी कांग्रेस को चलाना चाहते हैं, गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष भी वैसे ही चला सके. एक खास वजह और भी है कि जो भी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे वो चुपचाप कागजों पर साइन करता रहे, कभी कोई सवाल न पूछे.

मतलब, जैसे कांग्रेस के कोषाध्यक्ष काम करते रहे हैं, राजनीतिक कामकाज भी वैसे ही करने वाला एक नेता चाहिये था. ऐसा होने से राहुल गांधी को भी काम करने में आसानी होगी. क्योंकि सोनिया गांधी भी दस्तखत कररने से पहले सवाल तो पूछती ही होंगी. गलती करने से रोकने के लिए कई बार समझाने की कोशिश भी करती होंगी - और दस्तखत पर भी करती होंगी तो वैसे ही थक हार कर जैसे कोई भी मां अपने बेटे की जिद के आगे हां कर देती है.

अब अगर गांधी परिवार से बाहर के कांग्रेस अध्यक्ष की जरूरत और मकसद को समझने की फिर से कोशिश की जाये तो मल्लिकार्जुन खड़गे के इंटरव्यू से काफी चीजें साफ हो जाती हैं - अब तो लगता है गांधी परिवार को वो मिल ही गया है जिसकी शिद्दत तलाश थी. कुछ कागजी काम बचे हैं जिसकी न तो गांधी परिवार को परवाह होगी, न ही मल्लिकार्जुन खड़गे को कोई परवाह लगती है.

गांधी परिवार के बचाव में जुट गये हैं खड़गे दरअसल, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को एक ऐसे ही कांग्रेस अध्यक्ष की दरकार थी, जो गलतियों का सारा ठीकरा अपने ऊपर ले ले और उपलब्धियों का पूरा क्रेडिट खुले दिल से समर्पित कर दे - ये तो साफ साफ समझ आने लगा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये काम अभी से चालू कर दिया है.

इंटरव्यू में मल्लिकार्जुन खड़गे से ये जानने की कोशिश होती है कि नामांकन से ठीक पहले जब वो कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस से खुद को बाहर बता रहे थे, फिर अचानक क्या हो गया जो वो सीधे जाकर नामांकन कर दिये? और अब घूम घूम कर पूरे मन से प्रचार भी करने लगे हैं?

मल्लिकार्जुन खड़गे जवाब में साफ साफ समझाने की कोशिश करते हैं कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने कभी भी उनको अपना उम्मीदवार नहीं बताया है - और एक बार ये बोल देने के बाद आखिर तक वो अपने इसी स्टैंड पर कायम रहते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे तो इस बात से भी साफ साफ इनकार कर रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी के लिए किसी सीनियर नेता का उनको कोई मैसेज मिला था - और ये भी मानने को तैयार नहीं हैं कि वो सोनिया गांधी से मिले भी थे.

सोनिया गांधी से मुलाकात की बात पर पर वो एक ही वाकये का जिक्र करते हैं, जब राजस्थान को लेकर रिपोर्ट देनी थी. राजस्थान में नये नेता चुनने को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे को सोनिया गांधी ने पर्यवेक्षक बना कर भेजा था - और साथ में राजस्थान के प्रभारी महासचिव होने के नाते अजय माकन भी गये थे, लेकिन अशोक गहलोत के समर्थक विधायकों ने ऐसे अंगड़ाई ली कि आगे की लड़ाई बीच में ही छोड़ कर दोनों ही नेता बैरंग लौट आये - और पूरे प्रकरण पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को विस्तृत रिपोर्ट दी थी.

रबर स्टांप अध्यक्ष और रिमोट कंट्रोल से काम करने के सवालों पर मल्लिकार्जुन खड़गे अपने अनुभव का पूरा इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनकी बातें राजनीतिक जवाब न होकर, डिप्लोमैटिक ज्यादा लगती हैं - हालांकि, हर बार ठीक वैसा ही नहीं होता क्योंकि एक प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो कहावत सुनायी है वो तो समझ से परे है.

मल्लिकार्जुन खड़गे का ये जबाव तो राहुल गांधी को न सिर्फ चैलेंज कर रहा है, बल्कि पछाड़ने तक की कोशिश कर रहा है - और लगे हाथ कांग्रेस के भविष्य की तरफ भी मजबूत इशारे कर रहा है.

लगता नहीं कि कांग्रेस में कुछ बदलने वाला है

कांग्रेस में हाई कमान कल्चर पर शशि थरूर ने बहस आगे बढ़ा दी है. बार बार वो अपने मैनिफेस्टो की याद दिला रहे हैं, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ऐसी चीजों को फालतू मानते हैं. ऐसा लगता है जैसे वो मान कर चल रहे हों कि वो चाह कर भी ये सब नहीं खत्म कर सकते. और बातों बातों में भड़क जाते हैं. कहते हैं, शशि थरूर मेरे एग्जामिनर नहीं हैं.

शशि थरूर के दावों को मल्लिकार्जुन खड़गे ठीक उसी अंदाज में खारिज करते जैसे नीतीश कुमार राजनीति की ए-बी-सी के नाम पर प्रशांत किशोर की टिप्पणियों को. मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, 'मैं अपने दम पर ब्लॉक अध्यक्ष से यहां तक पहुंचा हूं, क्या तब शशि थरूर वहां थे. उन्होंने कहा कि मैं संगठन का आदमी हूं मैं जानता हूं कौन क्या है? किसकी किस चीज में विशेषज्ञता है. मैं पूरी टीम बनाकर काम करूंगा.'

उदयपुर घोषणा पत्र को लागू करेंगे: मल्लिकार्जुन खड़गे का पूरा जोर कांग्रेस के उदयपुर कमिटमेंट को लागू करने पर है - और पहला काम तो मल्लिकार्जुन खड़गे ने नामांकन भरते ही कर दिया - राज्य सभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा देकर.

उदयपुर चिंतन शिविर का हवाल देते हुए ही तो राहुल गांधी ने कमिटमेंट की बात की थी - और फिर अशोक गहलोत को अपने लिए जयपुर से दिल्ली तक, विधायकों की बगावत से माफी मांगने तक हड़कंप मचा रहा.

अपनी उम्मीदवारी को लेकर बार बार कुरेदे जाने पर मल्लिकार्जुन खड़गे सोनिया गांधी की कार्यशैली की तरफ इशारा करते हैं - हम लोग सामूहिक फैसला लेते हैं. याद दिलाते हैं कि सोनिया गांधी के पास बतौर अध्यक्ष 20 साल के कार्यानुभव की जिक्र करते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे पूछते हैं, अगर उन्होंन पार्टी और सरकार के हित में अच्छे फैसले लिए हैं क्या मुझे उनसे सलाह नहीं लेनी चाहिये? और फिर अपनी आगे कि ड्यूटी अभी से निभाना शुरू कर देते हैं - आप सिर्फ गांधी परिवार को लेकर टारगेट क्यों कर रहे हैं? सही बात है, गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष से अपेक्षा भी तो यही होगी. है कि नहीं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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