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Updated: 02 अक्टूबर, 2022 04:11 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था - और अब जाकर सब कुछ उनके मनमाफिक होने जा रहा है. राहुल गांधी ने ये कहते हुए इस्तीफा दिया था कि वो चाहते हैं कि गांधी परिवार से बाहर का ही कोई कांग्रेस की कमान संभाले.

जब तक ऐसा नहीं हो पा रहा था, तब तक के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बना दिया था. सोनिया गांधी का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी कोई इंतजाम नहीं हुआ तो उसी व्यवस्था को एक्सटेंशन दिया जाता रहा. माना जाता है कि सोनिया गांधी ने जानबूझ कर कमान अपने हाथ में रखने का फैसला किया, कहीं ऐसा न हो राहुल गांधी की जिद पूरी करने के चक्कर में गांधी परिवार को पार्टी से ही हाथ न धोना पड़े.

तमाम मान मनौव्वल के बावजूद राहुल गांधी ने जिद नहीं छोड़ी. बार बार अलग अलग स्तरों से गुजारिश के बावजूद राहुल गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं ही हुए. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी राहुल गांधी से ये सवाल पूछा गया तो भी उनका जवाब करीब करीब वैसा ही रहा, जैसा पहले हुआ करता था.

कुछ दिनों तक जोरदार चर्चा भी रही और ये भी लगने लगा था कि अशोक गहलोत ही कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे, लेकिन राजस्थान के मोह की वजह से वो ऐसा खेल रचे कि वो मौका भी आ ही गया जब वो ऐलान कर दिये कि मौजूदा माहौल में वो कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं. अशोक गहलोत के बाद कुछ देर तक दिग्विजय सिंह भी ट्रेंड में रहे - लेकिन फिर वो भी मीडिया के सामने आकर अशोक गहलोत की तरह ही बोल दिये कि वो चुनाव में उम्मीदवार नहीं बल्कि सिर्फ प्रस्तावक की भूमिका में ही रहेंगे.

बहरहाल, वो घड़ी भी आ ही गयी जिसका राहुल गांधी की तरफ से सेट किये गये पैरामीटर के हिसाब कांग्रेस नेताओं को इंतजार रहा. अब कांग्रेस को एक स्थायी अध्यक्ष मिलने जा रहा है. नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. 17 अक्टूबर को वोटिंग होने जा रही है - और 19 अक्टूबर को नतीजे भी आ जाएंगे.

नतीजे आने से पहले ही मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को नये कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में देखा जाने लगा है. हालांकि, चुनाव जीतने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को शशि थरूर को चुनाव में हराना भी होगा. मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस ने आधिकारिक उम्मीदवार के तौर पर पेश तो नहीं किया है, लेकिन शशि थरूर को ऐसा ही लगता है.

विवाद तो शशि थरूर (Shashi Tharoor) के मैनिफेस्टो में दिखाये गये भारत के नक्शे पर भी हुआ है, फिर भी शशि थरूर ने ऐतराज जताया है. शशि थरूर का कहना है कि सोनिया गांधी ने उनको आश्वासन दिया था कि चुनाव में कांग्रेस का कोई भी आधिकारिक उम्मीदवार नहीं होगा. चुनाव में गांधी परिवार तटस्थ रहेगा. ज्यादा उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने का सोनिया गांधी ने स्वागत भी किया था - और इसी वजह से मैं रेस में आगे आया.

मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ नामांकन के मौके पर सीनियर कांग्रेस नेताओं की मौजूदगी पर ही शशि थरूर ने नाराजगी जतायी है. मल्लिकार्जुन खड़गे के नामांकन के दौरान अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे कांग्रेस के सीनियर नेताओं की मौजूदगी देखी गयी. शशि थरूर का कहना रहा कि उनके नामांकन में कांग्रेस के आम कार्यकर्ता शामिल रहे.

गांधी परिवार को खड़गे क्यों पसंद हैं?

मल्लिकार्जुन खड़गे के समर्थकों ने उनके जन्मदिन के जश्न की पूरी तैयारी कर रखी थी, लेकिन उनको पता चला तो साफ मना कर दिया - क्योंकि 21 जुलाई, 2022 को ही प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी सोनिया गांधी से पूछताछ करने वाले थे.

mallikarjun khargeमल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस को अपना सब कुछ न्योछावर करने जा रहे हैं, बाकी सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर निर्भर करता है कैसे इस्तेमाल करते हैं?

जन्मदिन मनाने की कौन कहे, 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे सड़क पर उतर कर सोनिया गांधी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के एक्शन को लेकर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन में शामिल हो गये थे. दिल्ली पुलिस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को हिरासत में भी लिया था.

और ये भी ध्यान देने वाली बात है कि जिस दिन राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में प्रवेश करती है, उसी दिन कांग्रेस अध्यक्ष के उम्मीदवार के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पक्का होकर सामने आता है. जब मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकन दाखिल कर रहे होते हैं, तो राहुल गांधी कर्नाटक में पदयात्रा कर रहे होते हैं. 17 अक्टूबर को जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे होंगे, तब यात्रा बेल्लारी में होगी. बेल्लारी से 1999 में सोनिया गांधी लोक सभा का चुनाव लड़ चुकी हैं. वो सोनिया गांधी का पहला चुनाव था जब अमेठी के साथ साथ वो बेल्लारी से भी लड़ी थीं.

19 अक्टूबर को जब कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के नतीजे आएंगे, तब भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक में आखिरी चरण में होगी. कर्नाटक में अगले साल विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं - और ये तो सबको मालूम ही है कि मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर्नाटक से ही आते हैं.

दलित चेहरा, अनुशासित सिपाही: 2013 में जब कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा का चुनाव जीता तब मल्लिकार्जुन खड़गे भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में आगे रहे, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने सिद्धारमैया को कुर्सी पर बिठा दिया - मल्लिकार्जुन खड़गे ने विरोध में एक भी शब्द नहीं बोला.

दलित समुदाय से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बन कर गांधी परिवार के लिए बड़ी राहत होंगे. पंजाब में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव भी मल्लिकार्जुन खड़गे ने ही दिया था, ऐसा समझा जाता है.

कितने काम के होंगे मल्लिकार्जुन खड़गे?

2014 की मोदी लहर में भी जब कांग्रेस के तमाम दिग्गज हार गये थे, कांग्रेस 44 सीटों पर ही सिमट गई थी, मल्लिकार्जुन खड़गे ने कर्नाटक की अपनी गुलबर्गा सीट बचा ली थी - और लोक सभा में उनको कांग्रेस का नेता बनाये जाने की वजह भी यही रही. हालांकि, सीटें कम होने के कारण उनका नेता, प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल सका था. अभी वो राज्य सभा में कांग्रेस के नेता हैं.

1972 से लेकर 2014 तक लगातार 10 चुनाव जीतने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को पहली बार 2019 में हार का मुंह देखना पड़ा तो उसकी भी खास वजह रही - मालूम पड़ा बेटे के मोह में वो चुनाव हार गये थे. 1972 में पहली बार विधायक बने मल्लिकार्जुन खड़गे 2009 में लोक सभा के लिए चुने गये थे.

2019 में मल्लिकार्जुन खड़गे को हराने वाला कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के ही नेता रहे, उमेश जाधव. उमेश जाधव और मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे एक दूसरे के जानी दुश्मन बन चुके थे. तब कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन की सरकार हुआ करती थी, और पिता के प्रभाव से प्रियांक खड़गे मंत्री भी बन गये थे. उमेश जाधव इस बात का जोरदार विरोध करते रहे, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे के आगे उनकी एक नहीं चल पाती थी.

2019 के आम चुनाव से पहले उमेश जाधव कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गये और मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ उम्मीदवारी हासिल कर ली - फिर क्या था, चुनावी शिकस्त देकर बदला भी ले ही लिया.

जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रदर्शन की बात है, अगर गांधी परिवार ने बहुत ज्यादा उम्मीद न पाल रखी हो, तो मान कर चलना चाहिये वो भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बहुत ज्यादा निराश नहीं करेंगे.

ये एक उदाहरण से समझा जा सकता है. सोनिया गांधी ने पंजाब संकट के हल के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में तीन नेताओं की कमेटी बनायी थी. मल्लिकार्जुन खड़गे कई दिनों तक घंटों पंजाब कांग्रेस के नेताओं के साथ मीटिंग करते रहे. कई नेताओं के साथ एक से ज्यादा बार भी उनकी मुलाकात हुई. एक मीटिंग में वो उनकी बात सुनते. फिर सोनिया गांधी को रिपोर्ट देते. सोनिया गांधी के निर्देशों के साथ फिर कांग्रेस नेताओं से मिलते - और ये सिलसिला चलता रहा.

पंजाब में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुल कर प्रयोग किये और फिर कांग्रेस का जो हाल हुआ सबने देखा ही - लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे की कोशिशों में कोई कमी रही हो ये तो कोई नहीं कह सकता.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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