New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 29 सितम्बर, 2022 07:50 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का नोटिफिकेशन आने के बाद, बात बस इतनी ही आगे बढ़ी है कि दो नेताओं ने ही अब तक नामांकन पत्र लिया है. एक हैं शशि थरूर और दूसरे पवन बंसल. शशि थरूर ने तो नामांकन फॉर्म अपने लिए लिया है, लेकिन कांग्रेस के कोषाध्यक्ष पवन बंसल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि फॉर्म वो अपने लिये नहीं बल्कि किसी और के लिए लिये थे.

अभी तक किसी ने भी नामांकन फॉर्म भर कर दाखिल नहीं किया है - और आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक, अब जो भी नामांकन दाखिल होगा वो आखिरी दिन यानी 30 सितंबर को ही हो पाएगा, क्योंकि रिटर्निंग ऑफिसर मधुसूदन मिस्त्री 29 सितंबर को दिल्ली से बाहर होंगे.

कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में आये उम्मीदवारों में से सिर्फ कमलनाथ ने ही अब तक खुल कर कहा है कि वो मध्य प्रदेश नहीं छोड़ना चाहते. कमलनाथ का कहना है कि दिल्ली जाकर ये बात वो सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को भी बता चुके हैं. देखा जाये तो कमलनाथ भी अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की ही तरह क्षेत्रीय राजनीति को तरजीह दे रहे हैं. अशोक गहलोत तो मुख्यमंत्री भी हैं, जबकि कमलनाथ तो बीजेपी के ऑपरेशन लोटस की चपेट में आकर जल्दी ही सत्ता भी गंवा दिये थे.

बाकी संभावित उम्मीदवारों में मुकुल वासनिक, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल तो चर्चा में बने हुए हैं ही - अब एक नाम जो गंभीरता से लिया जाने लगा है वो है, भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह का.

दिग्विजय सिंह और अशोक गहलोत दोनों ही गांधी परिवार के करीबी नेताओं में शुमार रहे हैं, लेकिन थोड़ा अलग से तुलना करें तो जिस तरह अशोक गहलोत, सोनिया गांधी के ज्यादा भरोसेमंद हैं, राहुल गांधी की शुरुआती राजनीति में कई साल तक साथ काम करने के कारण दिग्विजय सिंह का उन ज्यादा प्रभाव हो लगता है.

ऐसा तो नहीं कह सकते कि दिग्विजय सिंह नाम अचानक ही चर्चा में आ गया है, लेकिन दिग्विजय सिंह के गोलमोल जवाबों से पहले कभी ऐसा नहीं लगा कि वो अपनी तरफ से सरप्राइज के संकेत दे रहे हैं.

अब सवाल ये है कि राजस्थान में कांग्रेस विधायकों का नया पैंतरा देखने के बाद सोनिया गांधी के मन में गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष (Non-Gandhi Congress President) को लेकर क्या चल रहा होगा?

राहुल की जिद के आगे मजबूर हैं सोनिया

2017 में राहुल गांधी की ताजपोशी के बाद सोनिया गांधी अपनी तरफ से कांग्रेस की राजनीतिक जिम्मेदारियों से निवृत हो चुकी थीं, लेकिन राहुल गांधी के इस्तीफे दे देने के बाद मजबूरी में उनको फिर से कांग्रेस के आंतरिक अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी थी, जिसे वो अब तक ढोती आ रही हैं - क्योंकि गैर-गांधी अध्यक्ष को लेकर शुरू से ही उनके मन में आशंका बनी हुई थी.

sonia gandhi, rahul gandhi, digvijay singhदिग्विजय सिंह की मानें तो कांग्रेस अध्यक्ष कोई भी बने, गांधी परिवार के रुतबे पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा - आशंका तो इसी बात को लेकर है

ये तो सोनिया गांधी ने खुद भी सोचा होगा और तब अहमद पटेल और दूसरे सलाहकारों की भी यही राय बनी होगी कि किसी बाहरी के हाथ में कांग्रेस की कमान गयी तो गांधी परिवार के हाथ से मामला फिसल सकता है - गांधी परिवार से इतर किसी के अध्यक्ष होने पर झगड़ा बढ़ने की भी आशंका रही.

सोनिया गांधी को उम्मीद रही होगी कि हो सकता है एक न एक दिन राहुल गांधी का मन बदल जाये और लंबे ब्रेक के बाद फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राजी हो जायें. तीन साल यूं ही बीत भी गये लेकिन राहुल गांधी टस से मस नहीं हुए.

2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी के इस्तीफा देने की कई वजहें समझ में आयीं. एक तो अमेठी से राहुल गांधी की हार की भी भूमिका लगती है. एक खास वजह अब तक ये समझ में आयी है कि वो बीजेपी जैस राजनीतिक विरोधियों के हमले से बचने के लिए भी ऐसा करना चाहते थे. एक वजह ये भी मानी गयी कि राहुल गांधी खुद इस्तीफा देकर दूसरों को नसीहत देना चाह रहे थे - लेकिन कोई माने तब तो?

अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ व्यापक पैमाने पर कैंपेन चला रहे हैं. फिलहाल तो ज्यादा जोर उनका तेलंगाना पर ही लगता है. 2023 में ही तेलंगाना में भी विधानसभा के चुनाव हो ने वाले हैं.

अमित शाह जब अध्यक्ष हुआ करते थे तब कहा करते थे कि बीजेपी में कोई भी अध्यक्ष बन सकता है, लेकिन कांग्रेस में तो परिवार से ही कोई होगा. ये कांग्रेस ही नहीं, ज्यादातर क्षेत्रीय दलों की स्थिति तो ऐसी ही है - सिर्फ नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ही ऐसी है जिस अब तक परिवारवाद की राजनीति का इल्जाम लगाने का कोई स्कोप नहीं रहा है.

राहुल गांधी के फिर से कांग्रेस अध्यक्ष न बनने के पीछे भले ही उनके राजनीतिक विरोधी जिम्मेदारियों से भागना करार दें, लेकिन ये भी तो है कि अरसे से वो कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर वो एक कंफर्ट जोन डेवलप कर चुके हैं - और बगैर अध्यक्ष बने भी अगर वो सारे कामकाज अपने मनमाफिक कर लेते हों तो भला फिर से मुसीबत क्यों मोल लें.

लेकिन अब तो सवाल ये पैदा हो रहा है कि सोनिया गांधी के रहते जो कंफर्ट जोन राहुल गांधी को मिलता रहा है, जिसमें वो अपने पालतू पिडि के साथ खेलते हुए भी कांग्रेस के काम निबटाते रहे हैं - क्या गांधी परिवार से अलग के किसी को अध्यक्ष बनाये जाने के बाद भी वही सुविधा बहाल रह पाएगी?

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ते वक्त कहा था कि नये कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर एक रबर स्टांप का इंतजाम किया जा रहा है, लेकिन हाल फिलहाल अशोक गहलोत ने राजस्थान के मामले में जो रंग दिखाया है - क्या कांग्रेस अध्यक्ष बनने की सूरत में वो ऐसे काम नहीं करेंगे?

जिस तरीके से सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाये जाने से रोकने के लिए वो फटाफट जाल बिछा देते हैं, क्या किसी और राज्य के मामले में अशोक गहलोत ऐसी चालें चलने से परहेज करेंगे?

राजस्थान के मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही नहीं, पूरे देश को पता है कि विधायकों के बहाने जो कुछ भी हो रहा है, उसके पीछे किसी और का नहीं बल्कि अशोक गहलोत का ही हाथ ले, लेकिन पेशेवर जादूगर रहे अशोक गहलोत के हाथ की सफाई तो देखिये - कांग्रेस आलाकमान के ऑब्जर्वर अजय माकन और मल्किकार्जुन खड़गे सीधे सीधे उनको क्लीन चिट दे देते हैं.

गहलोत और दिग्विजय में फर्क ही क्या है?

अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह में तात्कालिक तौर पर देखें तो बड़ा फर्क यही है कि उनमें राजस्थान जैसा कोई राजनीतिक स्वार्थ नहीं है. दिग्विजय सिंह को अशोक गहलोत जैसा ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश को लेकर कमलनाथ जैसा भी कोई मोह नहीं है.

दोनों में कई सारी कॉमन बातें हैं. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के करीबी होने के साथ साथ दोनों ही संघ और बीजेपी के खिलाफ सख्त रवैया अपनाये रखते हैं. दोनों ही अपनी राजनीति के आखिरी पड़ाव पर हैं - लेकिन दिग्विजय सिंह के सामने सचिन पायलट जैसा कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है.

और जो सबसे खतरनाक कॉमन चीज है, वो ये कि दोनों ही बेहद घुटे हुए राजनीतिज्ञ हैं. अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह को भले ही चाणक्य जैसा कोई तमगा नहीं हासिल है, लेकिन दोनों बिलकुल वही करते हैं जो उनके हिसाब से तात्कालिक तौर पर राजनीतिक रूप से दुरूस्त होता है. दिग्विजय सिंह के बयान कभी कभी बैकफायर भी कर जाते हैं, लेकिन उसका भी वो देर सबेर फायदा उठा ही लेते हैं.

हो सकता है अशोक गहलोत के सामने सचिन पायलट जैसा कोई केस नहीं होता या फिर वो भी दिग्विजय सिंह की तरह अपने राज्य के मामलों से बहुत मतलब नहीं रखते तो ये सब नहीं होता जिसकी वजह से राजस्थान कांग्रेस में बवाल मचा हुआ है.

जहां तक दिग्विजय सिंह की कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवारी की बात है, वो खुद ही आगे बढ़ कर अपना नाम चर्चा में रख चुके हैं. मीडिया से बातचीत के दौरान ही एक बार अध्यक्ष पद को लेकर उनके जब उनके सामने मामला उठा तो, दिग्विजय सिंह का कहना रहा - 'आप मेरा नाम खारिज करके क्यों चल रहे हैं?'

जब ये पूछा गया कि क्या वो भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने जा रहे हैं, दिग्विजय सिंह का कहना रहा, नामांकन की आखिरी तारीख की तरफ इशारा करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि लोगों को 30 सितंबर तक इंतजार करना चाहिये.

अब जबकि राजस्थान के बवाल में अशोक गहलोत की भूमिका मानी जा रही है, दिग्विजय सिंह की तभी की कही एक बात काफी महत्वपूर्ण लगती है - 'अगर अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं भी हुआ तो भी नेहरू-गांधी परिवार का रोल वही होगा जो आज है.'

शायद यही एक चीज है, जो दिग्विजय सिंह को अशोक गहलोत से अलग करती है - और हो सकता है, अशोक गहलोत के बाद राहुल गांधी के प्लान बी में दिग्विजय सिंह का ही नाम हो, लेकिन ये भी तो सकता है कांग्रेस के नये अध्यक्ष के चुनाव में कोई प्लान सी भी सामने आ जाये.

इन्हें भी पढ़ें :

क्लीन चिट से अशोक गहलोत बचाए नहीं, निपटा दिए गए हैं

कांग्रेस में अब 'आलाकमान' गहलोत हैं, और राजस्थान संकट में उन्हें जीतना ही होगा

अपने ही इंद्रजाल में फंस कर रह गए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय