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Updated: 10 मार्च, 2022 11:03 AM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पांच चुनावी राज्यों के नतीजों में से सबकी नजरें उत्तर प्रदेश पर ही टिकी हुई है. और, इसका कारण भी साफ ही है. क्योंकि, यूपी चुनाव नतीजे काफी हद तक भविष्य में राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाले होंगे. इन सबके बीच पांचों चुनावी राज्यों के एग्जिट पोल सामने आने के बाद से ही ईवीएम सुर्खियों में छाई हुई है. वैसे, अन्य राज्यों में ईवीएम को लेकर इतना हो-हल्ला नजर नहीं आ रहा है, जितना उत्तर प्रदेश को लेकर मचा हुआ है. दरअसल, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ईवीएम फ्रॉड (EVM Fraud Allegation) के आरोप लगाते हुए वोटों की चोरी करने की बात कही है.

हालांकि, इसे गनीमत ही माना जा सकता है कि अखिलेश यादव ने ईवीएम के हैक किए जाने का दावा नहीं किया है. लेकिन, फिर भी उन्होंने वोटों की चोरी जैसा शब्द गढ़ दिया है. अखिलेश यादव ने ईवीएम पर की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान लोकतंत्र की आखिरी लड़ाई से लेकर बदलाव के लिए क्रांति जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था. खैर, मतगणना से पहले और नतीजे आने के बाद ईवीएम पर संदेह जताकर उसके साथ छेड़छाड़ करने का दावा नया नहीं है. आमतौर पर तकरीबन हर चुनाव में हारने वाले सियासी दलों की ओर से ये संभावना जताई जाती रही है. और, ईवीएम को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है. जबकि, ये एक स्थापित तथ्य है कि ईवीएम से छेड़छाड़ किसी भी हाल में संभव नही है.

EVM Tampering Allegationईवीएम हैक करने को लेकर चुनाव आयोग के ओपन चैलेंज पर कोई राजनीतिक दल आगे नहीं आया था.

हैक करने का चैलेंज स्वीकारने कोई नहीं आया

2017 में चुनाव आयोग ने ईवीएम को लेकर ओपन चैलेंज दिया था कि कोई भी राजनीतिक दल आकर इन मशीनों को हैक कर दिखाए. लेकिन, ईवीएम पर आरोप लगाने वाली कई सियायी पार्टियां इस चैलेंज से दूर रही थीं. वहीं, एनसीपी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनिधियों ने कोशिश की. लेकिन, कामयाब नहीं हो सके थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ईवीएम पर आरोप लगाना जितना सरल ही उसे हैक करना उतना ही मुश्किल है. वैसे, चुनाव आयोग ने ईवीएम को हैक करने के लिए सियासी दलों को जब ये चैलैंज दिया था. उससे पहले यूपी चुनाव हुए थे. जिसमें भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला था. इसके बाद उसी साल हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी ईवीएम का मुद्दा काफी गरमाया था.

चुनाव हारने वाली पार्टियों के लिए 'इस्केप प्लान'

किसी भी चुनाव में एकदूसरे को सियासी चुनौती दे रहे राजनीतिक दलों के बीच मुद्दों से लेकर तमाम तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं. आमतौर पर इन मुद्दों पर ही जनता वोट करती है. लेकिन, इनमें से अगर किसी विपक्षी दल को हार का सामना करना पड़ता है, तो ईवीएम ही निशाने पर आती है. 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार के केंद्र की सत्ता में स्थापित होने के बाद ईवीएम पर आरोपों की झड़ी लगना एक आम सी बात हो गई है. हालांकि, कुछ वर्ष पहले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हर ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन का इस्तेमाल किया जाने लगा है. जिससे मतदान के समय ही एक पर्ची पर दिए गए वोट के बारे में जानकारी सात सेंकेंड के लिए मशीन की पारदर्शी स्क्रीन पर दिखाई पड़ती है. हालांकि, इन तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा पर ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप लगते रहे हैं.

ये चौंकाने वाला तथ्य है कि पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जहां भाजपा सत्ता में नहीं है. इन राज्यों के चुनावी नतीजों को लेकर कभी भी सत्तारूढ़ दलों ने ईवीएम और वोटों की चोरी जैसे आरोप नहीं लगाए हैं. लेकिन, जिन राज्यों के चुनाव में भाजपा सत्ता पर काबिज होती है. वहां ईवीएम पर सवाल खड़े किए जाना वर्तमान राजनीति का नया ट्रेंड बन गया है. ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन लगे होने के बावजूद ये दावा किया जाता रहा है कि वोट किसी अन्य पार्टी को दिए जाने पर भी भाजपा को ही जा रहा है. हालांकि, इस तरह के आरोपों और दावों को साबित नहीं किया जा सका है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अपनी हार के असली कारणों को स्वीकार करने की बजाय ईवीएम पर आरोप लगाकर अपने लिए 'इस्केप प्लान' तैयार करती हैं.

वैसे, 2009 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बहुमत न मिल पाने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम के खिलाफ खुलकर अविश्वास जताया था. यहां तक कि भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने अपनी किताब 'डेमोक्रेसी ऐट रिस्कः कैन वी ट्रस्ट ऑवर ईवीएम मशीन?' में सीधे ईवीएम मशीन पर ही कई सारे प्रश्नचिन्ह लगा दिए थे. हालांकि, इसे निजी आरोप कहना ज्यादा सही होगा. क्योंकि, 2009 में लालकृष्ण आडवाणी ही एनडीए के पीएम उम्मीदवार थे. लेकिन, भाजपा ने इसके बाद कभी ईवीएम पर सवाल नहीं खड़े किए. फिर चाहे वो हारी हो या जीती हो. ये अलग बात है कि 2014 के बाद से ईवीएम को लेकर सिर्फ कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी जैसे दल ही आवाज उठा रहे हैं.

सही मायनों में भाजपा के उभार ने ही विपक्षी दलों में ईवीएम के प्रति अविश्वास को बढ़ाया है. वरना जिन राज्यों में विपक्षी दल जीतते हैं. वहां की ईवीएम बिल्कुल सही काम करती हैं. चुनावों को लेकर जारी हुए एग्जिट पोल के आंकड़ों सामने आने के बाद पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में ईवीएम पर सवाल नहीं उठाए गए. लेकिन, यूपी के एग्जिट पोल में भाजपा को बढ़त मिलने के अनुमान के साथ ही ईवीएम सवालों के घेरे में आ गई. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जब तक भाजपा सत्ता पर काबिज रहेगी, ईवीएम के साथ छेड़छाड़ होती ही रहेगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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