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Updated: 15 फरवरी, 2022 08:10 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 के पहले चरण के मतदान में वोटिंग परसेंटेज गिरा था. तो, सबकी नजरें दूसरे चरण के लिए 55 सीटों पर होने वाले मतदान पर लग गई थी. माना जा रहा था कि दूसरे चरण के मतदान में वोटिंग के आंकड़े बढ़ेंगे. दरअसल, अधिकांश सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं के प्रभाव को मद्देनजर रखते हुए इस तरह के दावे किए जा रहे थे. लेकिन, चुनाव आयोग की ओर से अंतिम आंकड़ा सामने आने के बाद साफ हो गया कि दूसरे चरण में भी मतदान फीसदी गिरा है. दूसरे दौर की 55 सीटों पर हुआ मतदान 62.52 फीसदी ही रहा, जो 2017 के विधानसभा चुनाव में हुए 65.53 फीसदी मतदान से 3 फीसदी कम है.

2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो पिछली बार केवल 0.36 फीसदी वोटिंग बढ़ने से भाजपा इन 55 सीटों में से 38 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. मुस्लिम मतदाताओं के प्रभाव को देखते हुए ये एक तरह से समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जा रहा है. और, इसमें सियासी छौंक लगाने के लिए आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी भी साथ निभा रहे थे. हालांकि, 55 सीटों में से 52 पर समाजवादी और केवल 3 सीटों पर आरएलडी के प्रत्याशी थे. वहीं, भाजपा ने सहारनपुर दंगे, कल्याणकारी योजनाएं और कानून-व्यवस्था को अपना हथियार बनाते हुए दूसरे चरण में कदम रखा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूपी चुनाव 2022 की पहली फिजिकल रैली सहारनपुर में ही हुई थी. मतदान के आंकड़े अब सबके सामने आ चुके हैं, तो आइए जानते हैं कि क्या कहता है यूपी चुनाव 2022 के दूसरे चरण का वोटिंग ट्रेंड?

UP Election 2022 Voting trend दूसरे चरण की 55 सीटों पर हुआ मतदान 62.52 फीसदी ही रहा, जो 2017 के चुनाव में हुए 65.53 फीसदी मतदान से 3 फीसदी कम है.

मुस्लिम बहुल सीटों पर बढ़ा मतदान प्रतिशत किसके पक्ष में?

यूपी चुनाव 2022 के दूसरे चरण को लेकर माना जा रहा था कि पांच सालों से 'चुप्पी' साधे बैठा मुस्लिम मतदाता इस चरण में अपनी ताकत का मुजाहिरा कर देगा. क्योंकि, दूसरे चरण में मुस्लिम मतदाता ही किंगमेकर माने जाते रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो दावा था कि मुस्लिम मतदाता दूसरे चरण में भाजपा को वोट की चोट पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे. दरअसल, इन 55 सीटों में 30 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 से 55 फीसदी तक है. इसके बावजूद रामपुर और अमरोहा जिले को छोड़ दिया जाए, तो जिलावार मतदान के आंकड़ों में मुरादाबाद, संभल, बिजनौर, सहारनपुर, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर में वोटिंग प्रतिशत गिरा है. मुस्लिम मतदाताओं का गुस्सा मतदान प्रतिशत के रूप निकलकर सामने आता नहीं दिख रहा है. हालांकि, कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटिंग बढ़ी है. लेकिन, यहां इस बात को भी दिमाग में रखना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए तीन तलाक कानून के जरिये मुस्लिम महिलाओं के एक बड़े वर्ग को अपने साथ लाने की कोशिश की है. बहुत हद तक संभव है कि मतदान में दिखा ये उछाल युवा मतदाताओं की वजह से हो. क्योंकि, किसी भी तरह के मतदाता को वोटिंग ट्रेंड में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसा लग रहा है कि 30 से ज्यादा सीटों पर दबदबा रखने वाले मुस्लिम मतदाता शायद इस बार भी चुप्पी साध गए हैं.

बसपा और एआईएमआईएम का 'खेला'

यूपी चुनाव 2022 के दूसरे चरण में भाजपा को टक्कर देने के लिए समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन, बसपा, कांग्रेस, एआईएमआईएम ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर काफी भरोसा जताया है. इन चारों पार्टियों ने मिलकर इस चरण की 55 सीटों पर 77 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था. समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन ने 18, बसपा ने सबसे ज्यादा 23, कांग्रेस ने 21 और एआईएमआईएम ने 15 मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया था. वैसे, भाजपानीत एनडीए के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने स्वार टांडा सीट से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और कद्दावर नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान के खिलाफ हमजा अली खान को टिकट दिया है. तो, एक तरह से मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 78 हो जाती है. वैसे, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुस्लिम मतदाताओं को साथ में बनाए रखने के लिए मुंह से भले ही उनका नाम न लिया हो. लेकिन, अब्दुल्ला आजम खान के साथ रैली कर संदेश देने की कोशिश तो कर ही दी थी. साथ ही आक्रामक रूप से मुरादाबाद की सभी 6 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार ही घोषित किए थे. यह एक तरह का संदेश माना जा सकता है.

लेकिन, यहां आंकड़े समाजवादी पार्टी के हक में बहुत ज्यादा गवाही देते नजर नहीं आते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, आरएलडी और बसपा के गठबंधन ने यहां भाजपा को चुनौती देते हुए 11 संसदीय सीटों में से 7 कब्जा ली थीं. और, भाजपा को चार सीटों पर समेट दिया था. 2019 में दूसरे चरण की इन 55 सीटों पर समाजवादी पार्टी, आरएलडी और बसपा गठबंधन का वोट शेयर भाजपा से ज्यादा था. लेकिन, इस बार समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन में बसपा शामिल नहीं है. वहीं, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी मुस्लिम बहुल सीटों पर खूब जोर लगाया था. अगर 2017 के विधानसभा चुनावों की बात की जाए, तो बसपा और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन के बीच मुस्लिम वोटों के बंटवारे से बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर और अमरोहा जैसे जिलों में भाजपा का ग्राफ ऊपर बढ़ा था. अब अगर बसपा और एआईएमआईएम को थोड़े से भी मुस्लिम वोट मिल जाते हैं, तो एक बार फिर 'खेला' होने की संभावना बढ़ जाएगी. वहीं, 11 विधानसभा सीटों पर सपा-आरएलडी गठबंधन और बसपा के बीच सीधी खींचतान नजर आ रही है.

दलित और पिछड़ा वर्ग का समीकरण?

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में दलित और पिछड़ा वर्ग हमेशा से ही चुनाव का रुख बदलने वाला माना जाता रहा है. दूसरे चरण के मतदान में भी दलित, पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग की बड़ी आबादी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो गैर-जाटव और गैर-यादव ये वोटबैंक लंबे समय से भाजपा के साथ खड़ा नजर आया है. भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाएं के जरिये ये वर्ग सर्वाधिक लाभ उठाने वाला कहा जा सकता है. तो, बहुत हद तक संभव है कि इसका भरोसा भाजपा पर कायम रहे. वैसे, वोटिंग ट्रेंड को लेकर यहां भी एक दिलचस्प आंकड़ा है कि नकुड़ विधानसभा सीट पर 75.50 फीसदी वोट पड़े हैं. ये वही नकुड़ सीट है, जहां से भाजपा के बागी मंत्री धर्म सिंह सैनी को समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन ने टिकट दिया था. क्या इस संभावना को नकारा जा सकता है कि भाजपा से बगावत करने वाले धर्म सिंह सैनी को सबक सिखाने के लिए इतनी वोटिंग की गई हो. खैर, इन सीटों पर ओबीसी कुर्मी, मौर्य, लोधी, कुशवाहा, सैनी और गुर्जर जैसी जातियों के वोट अच्छी-खासी संख्या में हैं.

मतदान ऊपर-नीचे हुआ, तो किसका नुकसान?

यूपी में मतदान प्रतिशत में थोड़े से भी बदलाव को लेकर माना जाता है कि ये सत्ता परिवर्तन की झलक दिखा रहा है. लेकिन, अगर इस पर थोड़ा करीब से नजर डालें, तो स्थिति साफ होती है कि 2007 के विधानसभा चुनाव में हुए 49.56 फीसदी मतदान के बाद 2017 में इन 55 सीटों पर मतदान प्रतिशत सीधे 65.53 फीसदी पहुंच गया था. वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनने के वक्त वोटिंग परसेंटेज में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी. केवल 0.36 फीसदी वोटिंग बढ़ने से इन 55 सीटों में से 38 सीटों पर भाजपा ने जीत का परचम लहरा दिया था. अगर 2007 से लेकर 2017 तक के मतदान प्रतिशत का विश्लेषण करें, तो साफ हो जाता है कि वोट प्रतिशत बढ़ने से विपक्षी दल को फायदा हुआ है. लेकिन, वोट प्रतिशत घटने से क्या हुआ है, इसका अंदाजा लगाया जाना मुश्किल है. तो, यूपी चुनाव 2022 में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा लगाना इतना आसान नहीं है. क्योंकि, इस बार भी मतदान के आंकड़ों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है. लेकिन, ये माइनस में है, जो मतदाताओं में उत्साह की कमी भी दर्शाता है. 

अखिलेश क्यों लगा रहे हैं ईवीएम पर आरोप?

ये बात कई बार साबित हो चुकी है कि ईवीएम के जरिये होने वाले मतदान में फर्जीवाड़े की संभावना 'शून्य' के बराबर होती है. बावजूद इसके पहले चरण की तरह ही समाजवादी पार्टी ने दूसरे चरण के मतदान के दौरान भी वोटिंग को लेकर ईवीएम में साइकिल का बटन दबाने पर कमल की पर्ची निकलने समेत दर्जनों शिकायतें चुनाव आयोग से की हैं. जबकि, खुद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दावा किया है कि दूसरे चरण में जनता के समर्थन को देखते हुए कह सकते हैं, दो चरणों में ही सपा-गठबंधन द्वारा जीती जा रही सीटों का शतक पूरा हो गया है. दोनों चरणों में मिले जनता के शत-प्रतिशत समर्थन का हार्दिक शुक्रिया. सात चरणों में से अब तो पूरे हो गये दो, जनता भाजपा से कह रही ‘गो बैक, गो’. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि इस तरह के दावों के साथ समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव आयोग को दर्जनों की संख्या में की गई शिकायतें कहीं, पराजय का अग्रिम बहाना तो नहीं? 

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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