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Updated: 27 अक्टूबर, 2022 11:54 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को दिल्ली से बाहर एक ऐसी जगह की जरूरत थी जहां वो थोड़ी मजबूती से अपने कदम रख सकें - और किस्मत देखिये कि पंजाब ने तो पूरा पांव पसारने का ही इंतजाम कर दिया.

ये पंजाब के ही लोग हैं जो अरविंद केजरीवाल के राजनीति में आने के बाद पहले आम चुनाव 2014 में लोक सभा की चार-चार सीटें तोहफे में बख्श दी थीं. वो भी तब जबकि वो खुद बनारस में गंगा में डूबकी लगाने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने शीला दीक्षित के खिलाफ मिली कामयाबी दोहरा पाने से चूक गये थे - जाहिर है दिल में आग तो धधक ही रही होगी.

अब तो पूरी तरह साफ हो चुका है कि अरविंद केजरीवाल का लक्ष्य चुनाव जीत कर सरकार बनाना नहीं, गुजरात (Gujarat Elections 2022) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करना है. चैलेंज भी इस कदर कि 2024 की राह थोड़ी आसान हो जाये - ये बात अलग है कि अभी अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर अभी तक कोई खास राष्ट्रीय हैसियत नहीं बना पाये हैं.

अरविंद केजरीवाल अक्सर बताते भी रहते हैं कि वो पढ़े लिखे हैं. दिल्ली में स्कूल और अस्पताल बनाये हैं क्योंकि इंजीनियरिंग किये हुए हैं और ऐसा अब देश भर में करना भी चाहते हैं - लेकिन तभी ये सुन कर बड़ा ही अजीब लगता है जब अरविंद केजरीवाल नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर के साथ लक्ष्मी और गणेश की तस्वीर (Laxmi Ganesh Photos on Currency Notes) लगाने की बातें करने लगते हैं.

बेशक रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले कम होती जा रही है, और ये अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है - लेकिन क्या रुपये पर और तस्वीरें लगा देने से अर्थव्यवस्था सुधर जाएगी? रुपये पर तस्वीर लगाना और अयोध्या में राम मंदिर बनाया जाना दोनों ही अलग अलग चीजें हैं. राम मंदिर इसलिए नहीं बन रहा है कि वहां चंदे में ज्यादा पैसे आएंगे तो देश की अर्थव्यवस्था सुधर जाएगी. राम मंदिर को लेकर लोगों की आस्था अलग है, और जरूरी नहीं कि लोग नोटों को लेकर भी ऐसा ही सोचते हों.

फिर भी अगर अरविंद केजरीवाल को लगता है कि वो लोगों के मन की बात कर रहे हैं तो अपनी बात पर यकीन करना चाहिये. हो सकता है ये बात अभी गुजरात के लोगों को अच्छी लगे और वे बीजेपी को होल्ड कर अरविंद केजरीवाल को ही मौका दे दें - और ऐसा फिर 2024 में भी हो जाये.

अरविंद केजरीवाल अगर पहले गुजरात और फिर देश में सरकार बनाने में सफल रहते हैं तो भला कौन रोक सकता है, जब किसी को देश की जनता ने मैंडेट दे रखा हो. वैसे भी चमड़े के सिक्के चलाने का इतिहास रहा ही है - और ये कोई चार्वाक दर्शन जैसी बातें तो हैं नहीं.

केजरीवाल के हिंदुत्व कार्ड में कितने पत्ते?

हमेशा की तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर पहले अपने अगले कदम का टीजर चलाया - ये बताते हुए कि वो महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस करने जा रहे हैं. ऐसा करके अरविंद केजरीवाल एक उत्सुकता तो जगा ही देते हैं कि कुछ न कुछ 'खेला' तो करेंगे ही. अगर कुछ खास नहीं भी किये तो कोई बम तो फोड़ेंगे ही.

और फिर वादे के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल मीडिया के सामने प्रकट हुए, 'मेरी केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री जी से अपील है...' - ऐसा बताते हुए वो नोटों पर गणेश और लक्ष्मी की तस्वीरें लगाने की मांग कर बैठे. कहने की जरूरत नहीं, अरविंद केजरीवाल ने ऐसी मांग के लिए दिवाली का खास मौका चुना जब लक्ष्मी-गणेश की ही पूजा भी होती है.

arvind kejriwal, narendra modiअरविंद केजरीवाल के हिंदुत्व के राजनीतिक पिटारे में और क्या क्या है?

कोई ये न समझे कि अरविंद केजरीवाल नोटों से महात्मा गांधी की तस्वीर हटाने की बात कर रहे हैं, लिहाजा खुद ही ये भी समझाया, 'भारतीय करेंसी पर एक तरफ गांधी जी की तस्वीर है, उसे वैसे ही रहने दें... दूसरी तरफ गणेश और लक्ष्मी जी की तस्वीर भारतीय करेंसी पर लगाया जाये... इससे पूरे देश को उनका आशीर्वाद मिलेगा.'

राजनीतिक विरोधियों के कुछ रिएक्शन तो अरविंद केजरीवाल ने अपनी तरफ से पहले ही खत्म कर दिये, 'हम ये नहीं कह रहें हैं कि सारे नोट बदले जायें... लेकिन जो नये नोट छपते हैं, उन पर ये शुरुआत की जा सकती है - और धीरे धीरे सर्कुलेशन में ये नये नोट आ जाएंगे.'

साथ ही अरविंद केजरीवाल ने ये भी बताया कि ये कोई मौलिक डिमांड नहीं है. कोई ये न सोचे कि दुनिया में ऐसा पहली बार होने जा रहा है. अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'इंडोनेशिया एक मुस्लिम देश है... वहां 2 पर्सेंट से भी कम हिंदू हैं... लेकिन वे भी अपने नोट पर गणेश जी की तस्वीर छाप रखे हैं... ये बहुत अहम कदम है, जो केंद्र सरकार को उठाना चाहिये.'

नौकरशाही और वो भी रेवेन्यू विभाग में काम करने के बाद राजनीति में आये अरविंद केजरीवाल ने नोटों पर लक्ष्मी-गणेश के फोटो लगाने के फायदे भी समझाये, 'देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा... ऐसी मुझे उम्मीद है... हम लोग अक्सर प्रयास करते हैं, लेकिन अगर देवी देवताओं का आशीर्वाद न हो तो वो प्रयास फलीभूत नहीं होते हैं... इसीलिए ये सुझाव मन में आया.'

हो सकता है मन की कुछ बातें अरविंद केजरीवाल ने अभी नहीं बतायी हो. मसलन, ऐसे उपायों से भ्रष्टाचार पर भी काबू पाया जा सकता है. हिंदुत्व की राजनीति के प्रभाव के बाद महात्मा गांधी वैसे भी थोड़े कमजोर पड़ने ही लगे हैं, ऐसे में अगर नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें होंगी तो लोग हो सकता है, रिश्वत लेने से भी डरें. संभव है अरविंद केजरीवाल आने वाले दिनों में ऐसे फायदे भी समझायें.

ये बिजनेस नहीं तो क्या है: 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कारोबारियों की एक सभा में कहा था, 'मैं खुद बनिया हूं - और धंधा समझता हूं.' अरविंद केजरीवाल का ये बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान से मिलता जुलता रहा जिसमें वो कहे थे कि गुजराती होने की वजह से उनके खून में बिजनेस है.

एक बार कांग्रेस के खत्म होने की बात करते हुए बीजेपी नेता अमित शाह ने महात्मा गांधी से जुड़ा एक प्रसंग याद दिलाया था और तब महात्मा गांधी को 'एक चतुर बनिया' कहा था. अरविंद केजरीवाल तो उसके कई कदम आगे बढ़ चुके लगते हैं. वो काफी आगे की बातें कर रहे हैं. हालांकि, अभी अरविंद केजरीवाल ने नोटों से महात्मा गांधी की तस्वीर हटाने की मांग नहीं की है, क्या मालूम कभी लगे कि ऐसा करने से वोट ज्यादा मिल सकते हैं तो वैसी भी मांग कर सकते हैं.

नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर छापने की अरविंद केजरीवाल की मांग के बाद तो अमित शाह की राय भी बदल ही गयी होगी. अरविंद केजरीवाल ने जो डिमांड की है, वो तो सीधे बीजेपी की जड़ें खोद डालने की कोशिश है.

जब गुजरात में अयोध्या कार्ड खेला था: अरविंद केजरीवाल के एक साथी मंत्री राजेंद्र पाल गौतम का वीडियो वायरल होने के बाद आम आदमी पार्टी की खूब फजीहत हुई थी - और मंत्री को तो कुर्सी तक गंवानी पड़ी थी.

दिल्ली के एक धर्मांतरण कार्यक्रम में अपने एक मंत्री की मौजूदगी के चलते अरविंद केजरीवाल को गुजरात में काफी दिक्कतें झेलनी पड़ी थीं. अरविंद केजरीवाल देश को नंबर 1 बनाने के लिए तिरंगा यात्रा पर निकले थे और रास्ते में जगह जगह उनके खिलाफ पोस्टर लगा दिये गये थे जिन पर लिखा था - 'मैं हिंदू धर्म को पागलपन मानता हूं.' AAP कार्यकर्ताओं को रास्ते में लगे पोस्टर हटाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.

जब अरविंद केजरीवाल को लगा कि मामला ज्यादा गड़बड़ हो जाएगा तो अयोध्या के प्रति लोगों की आस्था याद दिलाने की कोशिश की. दाहोद पहुंचे अरविंद केजरीवाल ने अपनी एंटी-हिंदू छवि को लेकर मचे बवाल पर तो कुछ नहीं बोला, लेकिन एक नया वादा कर डाला कि अगर गुजरात में उनकी सरकार बनी तो वो सबको अयोध्या ले जाकर राम लला के दर्शन कराएंगे.

अरविंद केजरीवाल का कहना रहा, अगले साल अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा... मैं अभी दिल्ली लोगों को अयोध्या भेजता हूं... आना जाना सबकुछ फ्री है... जब लोगों की ट्रेन होती है तो मैं खुद लोगों को छोड़ने जाता हूं... जब वे वापस आते हैं तो लेने जाता हूं... लोग बहुत खुश होते हैं... मुझे बहुत आशीर्वाद देते हैं.'

अयोध्या ले जाने के वादे के बाद नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर अरविंद केजरीवाल की पहली डिमांड है. कुछ दिन पहले ही वो प्रधानमंत्री मोदी से अपील कर रहे थे ये कहते हुए कि वो स्कूल और अस्पताल अच्छे बनाते हैं - और वो मिल जुल कर ये काम करना चाहते हैं.

केजरीवाल की कामयाबी का राज क्या है?

गुजरात में क्या होगा, अभी कहना ठीक नहीं होगा. अभी तो चुनावों की घोषणा भी नहीं हुई है. पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनना वहां के वैक्यूम को भरने जैसा था. जैसे बीजेपी ने 2014 में केंद्र में एक बड़ा मौका देखा और पूरी समझदारी से सोच समझ कर एक एक कदम रखते हुए सत्ता पर काबिज हो गयी.

2022 में पंजाब का भी हाल करीब करीब कर 2014 के केंद्र जैसा ही था. बीजेपी दूर दूर तक दिखायी नहीं दे रही थी. अकाली दल एनडीए छोड़ने के बाद अपने पैरों पर खड़ा तक न हो सका. वैसे पांच साल पहले तक बीजेपी अकाली दल के कंधे पर हाथ रख कर ही खड़े हो पाती थी, या कुछ दूर चल पाती थी. कांग्रेस ने तो जैसे थाली ही सजा रखी थी परोसने के लिए - और केजरीवाल और उनकी टीम ने मौके पर चौका जड़ कर कमाल ही कर दिया.

गुजरात में अभी वैसा कोई वैक्यूम नहीं नजर आ रहा है, लेकिन जिस तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल फिट हो गये हैं, वो भी एक रहस्य ही लगता है. आखिर ऐसा कैसे है कि एमसीडी और लोक सभा चुनाव अब तक बीजेपी ही जीतती आ रही है - और विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल कुंडली मार कर बैठ जाते हैं?

जब एमसीडी के चुनाव होते हैं तो लोग बीजेपी को वोट देते हैं. जब लोक सभा के चुनाव होते हैं तो भी लोग बीजेपी को ही वोट देते हैं, लेकिन जब दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए वोट डाले जाते हैं तो वही लोग अरविंद केजरीवाल को 'आई लव यू' बोलने का मौका दे देते हैं. ऐसा क्यों और कैसे होता है? ध्यान रहे जल्दी ही एक बार फिर एमसीडी के चुनाव होने जा रहे हैं और आम आदमी पार्टी और बीजेपी नेतृत्व आमने सामने है.

केजरीवाल ने बीजेपी की चिंता तो बढ़ा ही दी है: हाल ही में मीडिया के जरिये अहमदाबाद में हुई बीजेपी की एक मीटिंग को लेकर काफी महत्वपूर्ण जानकारी सामने आयी थी. खास बात ये रही कि मीटिंग की अध्यक्षता कोई और नहीं बल्कि अमित शाह खुद कर रहे थे.

गुजरात चुनावों को लेकर हुई मीटिंग में चुनावी तैयारियों की समीक्षा कर रहे थे. तभी एक बीजेपी विधायक ने बोल दिया कि गुजरात में आम आदमी पार्टी से बीजेपी को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है. विधायक की दलील थी कि अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस आपस में लड़ते रहेंगे और बीजेपी सत्ता में वापसी कर लेगी.

बीजेपी विधायक को भरी मीटिंग में ही डपटते हुए अमित शाह ने समझाया कि वो आगे के सिर्फ तीन महीने के बारे में सोच रहा है, जबकि वो खुद आने वाले तीन साल को देख रहे हैं. अमित शाह, दरअसल, अगले आम चुनाव और उसके आगे के चुनावों की बात कर रहे थे.

अमित शाह ने जोर देकर बीजेपी के रणनीतिकारों को समझाया कि किसी भी सूरत में गुजरात में अरविंद केजरीवाल की पार्टी को 24 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल करने से रोकना होगा - क्योंकि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 49 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 41 फीसदी वोट शेयर लेकर कांग्रेस ने नाको चने चबवा दिये थे.

ये भी ध्यान रहे कि अरविंद केजरीवाल धीरे धीरे कदम बढ़ा रहे हैं. चुनावों में हनुमान चालीसा पढ़ते हैं और जीतने पर हनुमान जी को थैंकयू बोलते हैं. दिवाली मनाने अयोध्या नहीं जा पाते तो दिल्ली से ही जय श्रीराम बोलने लगते हैं. मंदिर जाने का मुहूर्त नहीं आता तो टीवी पर विज्ञापनों में ही नारे लगाने लगते हैं. अर्थव्यवस्था को ट्रिलियन में पहुंचाने के लिए नुस्खा तो सुझा ही चुके हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जानने की कोशिश करनी चाहिये कि दिल्ली में 'रेवड़ी कल्चर' को काउंटर करना नामुमकिन क्यों हो रहा है?

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#अरविंद केजरीवाल, #गुजरात चुनाव, #नरेंद्र मोदी, Arvind Kejriwal, Laxmi Ganesh Photos On Currency Notes, Gujarat Elections 2022

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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