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Updated: 07 मार्च, 2020 12:19 PM
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) अपने ही बुने जाल में तेजी से उलझते (Side Effects of Operation Lotus) जा रहे हैं. राजनीति के जो दांव-पेच खेल कर येदियुरप्पा ने कर्नाटक में सरकार बनायी वही नुस्खा बिलकुल उसी तरीके से बैकफायर करने लगा है. देखा जाये तो येदियुरप्पा की भी हालत वैसी ही हो चली है जैसी मध्य प्रदेश में कमलनाथ (Kamalnath government in trouble) की फिलहाल हो रही है.

बीजेपी के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री येदियुरप्पा मंत्री न बनने से नाराज विधायकों के गुस्से का तो शिकार हो ही रहे हैं, उन पर वंशवाद की राजनीति का भी इल्जाम लग रहा है. जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को सवा साल में CM की कुर्सी से बेदखल कर देने वाले येदियुरप्पा के लिए अपनी सरकार के साल भर पूरा करना भी भारी पड़ रहा है. कर्नाटक बीजेपी के भीतर राजनीतिक हालात ऐसे हो चले हैं कि सवाल ये उठता है कि क्या येदियुरप्पा खुद अपनी सरकार का एक साल पूरा कर पाएंगे?

मुश्किल हो रहा है बागियों को संभालना

27 फरवरी को बीएस येदियुरप्पा 77 साल के हो गये - और बीजेपी में वो अकेले ऐसे नेता हैं जो 75 पार होकर भी नामुमकिन को मुमकिन बनाये हुए हैं. जब कद्दावर नेता मार्गदर्शक मंडल में बैठा दिये गये हों और बाकी किसी न किसी वजह से राजभवन में अपनी जगह कुछ दिन के लिए पक्की कर ही फूले न समा रहे हों - बीएस येदियुरप्पा डंके की चोट पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने हुए हैं.

कर्नाटक बीजेपी के कई नेताओं को एक गुमनाम चिट्ठी मिली है - और उसके बाद पार्टी में तमाम तरह की चर्चाएं चल पड़ी हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, गुमनाम चिट्ठी के जरिये बीजेपी नेताओं को येदियुरप्पा की जगह नया मुख्यमंत्री चुनने की सलाह दी गयी है. वैसे येदियुरप्पा के समर्थक चिट्ठी को ये कहते हुए खारिज कर रहे हैं कि ये येदियुरप्पा से नाराज विधायकों की शरारत हो सकती है.

चिट्ठी में नया मुख्यमंत्री चुने जाने की पहली वजह तो येदियुरप्पा की उम्र ही बतायी गयी है. दूसरी वजह, येदियुरप्पा का गिरता स्वास्थ्य बताया गया है. हालांकि वो अपना काम नियमित तौर पर कर रहे हैं - और अभी अभी येदियुरप्पा ने कर्नाटक सरकार का बजट भी पेश किया है.

bs yediyurappaवंशवाद की राजनीति को लेकर घिरते येदियुरप्पा की कुर्सी पर बन आयी है

अभी फरवरी में ही येदियुरप्पा ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है - और कांग्रेस-जेडीएस से बगावत कर बीजेपी में आये विधायकों को एडजस्ट करने के चक्कर में येदियुरप्पा पार्टी के ही सीनियर नेताओं के नाराज कर बैठे हैं. वैसे अपनी पार्टियों में बगावत कर आने वाले विधायकों को भी खुश करना येदियुरप्पा के लिए कम मुश्किल नहीं था. छह मंत्री तो ऐसे थे कि उनके विभाग बदलने पड़े थे.

अब दूसरे दलों से बगावत कर बीजेपी में आये विधायकों को तवज्जो मिलेगी तो पार्टी में असंतोष और उसके नतीजे में बगावत तो होगी ही. हो भी वही रहा है. मंत्रिमंडल विस्तार में भी जब उमेश कुट्टी, मुरुगेश नीरानी और एमपी रेणुकाचार्य जैसे सीनियर नेताओं को जगह नहीं मिली तो वो गुस्सा फूट पड़ा. ऐसे नेता बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर अपनी शिकायत भी दर्ज करा चुके हैं.

ऐसे नेताओं में से एक तो अब मंत्री पद कौन कहे सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा जताने लगे हैं. बीजेपी विधायक उमेश कुट्टी कहते हैं, 'मैं 13 साल से मंत्री हूं... भगवान की कृपा से, अब मेरा लक्ष्य मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करना है.'

येदियुरप्पा के खिलाफ बगावत पर उतरे नेताओं की फेहरिस्त भी लंबी होती जा रही है - मोहन लिंबीकाई, एस. मुनेनकोप्पा, सीएम निंबन्नवार, अरविंद बेल्लाड़, महेश कुम्ताहल्ली और शशिकांत अक्कप्पा नाइक जैसे नेता जब भी और जहां कहीं भी मौका मिल रहा है अपनी मन की बात सार्वजनिक करने से नहीं चूक रहे हैं.

वंशवाद के आरोपों से निकलना मुश्किल

येदियुरप्पा अपनी उम्र और सेहत की मुश्किल तो चलते फिरते उबर जाते लेकिन कुछ ऐसी चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं जिनसे पार पान मुश्किल हो रहा है. एक मुश्किल तो यही है कि जिस लिंगायत समुदाय का नेता होने के नाते येदियुरप्पा राजनीति में अब तक बने हुए हैं, उसी की नींव हिलने लगी है. कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय ही ऐसे हैं जो सत्ता की तकदीर तय करते हैं. कुमारस्वामी वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं और उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने वोक्कालिगा लोगों के सपोर्ट से ही जेडीएस को सत्ता दिलाने में कामयाब हुए.

ठीक वैसे ही लिंगायत समुदाय की बदौलत येदियुरप्पा ने कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा किया और खुद भी मजबूती के साथ अब तक खड़े रहे हैं, लेकिन अब लिंगायत नेताओं ने ही येदियुरप्पा का विरोध शुरू कर दिया है - और उसकी भी खास वजह है.

येदियुरप्पा बाकी सभी चुनौतियों से तो पार पाने में सक्षम हैं - समझौता भी कर सकते हैं, लेकिन एक मुद्दा है जहां मामला नाजुक हो जाता है - दरअसल, वो अपने बेटे बीवाई विजयेंद्र को कर्नाटक बीजेपी की राजनीति में अच्छी पोजीशन पर स्थापित करना चाहते हैं जो विरोधियों को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है.

26 जुलाई, 2019 को जब येदियुरप्पा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे तभी समझना मुश्किल हो रहा था कि विकास के काम कौन कहे, टेबल पर मिली चुनौतियों की फाइल कैसे निबटाएंगे? ये येदियुरप्पा ही हैं जिन्हें कर्नाटक ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में कमल खिलने के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करने का क्रेडिट हासिल है, लेकिन ताजा मुश्किल ये है कि उनको अब बीजेपी के भीतर ही सूबे के दिग्गज नेता नाराज होने लगे हैं.

ऐसे नेताओं की ओर से एक और आवाज उठने लगी है - वंशवादी राजनीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. येदियुरप्पा के विरोध में लामबंद हो रहे ज्यादातर नेताओं की जबान से ऐसी बातें थोड़ी देर की बातचीत में ही सुनने को मिल जाएंगी.

भले ही बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस पर पारिवारवाद की राजनीति के आरोप लगाये, लेकिन खुद इससे अछूती है ऐसा तो बिलकुल नहीं है. चुनावों में जब भी टिकट बंटता है नेताओं के बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को मौका मिल ही जाता है, लेकिन जो चीज येदियुरप्पा चाहते हैं वो तो कतई संभव नहीं लगता.

अव्वल तो येदियुप्पा भी किसी भी पिता की तरह अपनी कुर्सी बेटे के लिए ही खाली करने की ख्वाहिश रखते होंगे, लेकिन ऐसा न होने पर इतना जरूर चाहते हैं कि उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को बीजेपी में ऐसी पोजीशन मिल जाये जो भविष्य में मुख्यमंत्री पद का रास्ता तय करने में आसानी हो. राजनीति क्या किसी भी फील्ड में हर पिता की शायद यही सबसे बड़ी कमजोरी होती है - और ज्यादातर लड़ाइयों में जीत हासिल करने में काम रहे येदियुरप्पा भी इस मामले में शिकस्त के मुहाने पर पहुंच चुके लगते हैं.

सबसे बड़ी मुश्किल तो ये है कि जिस तरह कर्नाटक में येदियुरप्पा को लिंगायत नेताओं का सपोर्ट नहीं मिल रहा है, वैसे ही दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी साथ देने से रहे - कम से कम इस मामले में तो बिलकुल नहीं.

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