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Updated: 04 मार्च, 2020 08:29 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को अभी सवा साल नहीं हुए हैं, इसलिए संकट भले टल गया हो - लेकिन खतरा बरकरार है. खतरा तो तभी से है जब कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार को सत्ता छोड़ कर मजबूरन विपक्ष का चोला ओढ़ना पड़ा - ये खतरा तबसे और भी बढ़ गया जब महाराष्ट्र में रातोंरात तैयारी कर सवेरे सवेरे देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ कर नाश्ता करने लगे.

वैसे मध्य प्रदेश में मामला तिल का ताड़ बनाया गया लगता है. अगर वाकई ये ऑपरेशन लोटस (Operation Lotus in MP) होता तो दिग्विजय सिंह का भी वही हाल हुआ रहता जैसा मुंबई के होटल के बाहर डीके शिवकुमार का हुआ था. ऐसा जरूर लगता है कि ये सब महज फीडबैक लेने की कोशिश भर थी - और ये सब सूबे के तीन कद्दावर नेताओं के आपसी संघर्ष का नतीजा भी है.

26 मार्च को राज्य सभा की 55 सीटों के लिए वोटिंग होनी है, जिनमें तीन सीटें मध्य प्रदेश की हैं. कांग्रेस और बीजेपी को एक एक सीट तो मिलनी तय है, लेकिन तीसरी सीट को लेकर दोनों में जंग होने वाली है. एक सीट पर दिग्विजय सिंह की भी नजर टिकी हुई है और यही वजह है कि वो कमलनाथ (Kamal Nath and Digvijay Singh) के काफी करीब पहुंच गये हैं, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) फिर से चूक गये हैं.

आधीरात को ऑपरेशन या महज फीडबैक?

आम चुनाव के बाद जब जून-जुलाई, 2019 में कर्नाटक में सियासी उठापटक शुरू हुई, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ दौड़ कर बेंगलुरु पहुंचे थे. एचडी कुमारस्वामी की जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार कुछ दिन बाद गिर भी गयी, लेकिन कमलनाथ अपने लिए कुछ नुस्खे सीख जरूर लिये थे. वही सरवाइवल किट कमलनाथ सरकार को बनाये हुए है, या कहें कि बचाये हुए है.

मध्य प्रदेश में दो विधायकों के निधन के बाद 230 की जगह फिलहाल 228 विधानसभा सीटें ही हैं. कांग्रेस के पास 115 विधायक हैं और उसे 3 निर्दलीय, 2 बीएसपी और 1 समाजवादी पार्टी के विधायक का समर्थन मिला हुआ है - दूसरी छोर पर बीजेपी अपने 107 विधायकों के साथ मौके की ताक में टकटकी लगाये हुए है. फिलहाल, जादुई आंकड़ा 115 का है, जबकि कांग्रेस को 121 विधायकों का समर्थन हासिल है.

जो खबरें आई हैं उनसे मालूम होता है कि कांग्रेस विधायक बिसाहू लाल सिंह, हरदीप सिंह के अलावा निर्दलीय और बीएसपी के विधायकों के साथ मध्य प्रदेश बीजेपी के कुछ सीनियर नेता दिल्ली के एक फाइव स्टार होते में ठहरे हुए थे. इसी बीच बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली पहुंचे और तभी पता चला कि विधायकों को दिल्ली से मानेसर के एक फाइव स्टार होटल में शिफ्ट कर दिया गया.

जब इतनी सारी गतिविधियां हों तो भोपाल में कमलनाथ सरकार का बेचैन होना स्वाभाविक ही है. 3 मार्च, 2020 को देर शाम फटाफट कमलनाथ के मंत्री होटल पहुंचे और बीजेपी नेताओं ने पुलिस बुला ली. सुना है दोनों पक्षों में हाथापाई तक की नौबत आ गयी थी. रात के करीब दो बज चुके थे और कमलनाथ के सबसे बड़े संकटमोचक दिग्विजय सिंह ने भी होटल पर धावा बोल दिया - और तभी बीएसपी विधायक रमाबाई कांग्रेस नेताओं के साथ लौटने के लिए राजी हो गयीं.

दिग्विजय सिंह के लिए ये बहुत बड़ी कामयाबी रही. बोले भी - 'बीजेपी की रोकने की कोशिश के बाद भी रमाबाई हमारे साथ आ गयीं' और दावा किया, 'यहां कोई खतरा नहीं है। हम सब एकजुट हैं.'

दिग्विजय सिंह ने एक और दावा किया, 'अगर वहां छापा पड़ा होता तो वे पकड़े जाते... हमें लगा कि 10 से 11 विधायक वहां होंगे लेकिन अब सिर्फ 4 विधायक उनके पास हैं वे भी जल्द लौट आएंगे.'

digvijay singh, kamal nath, shivraj singhकमलनाथ बच तो गये लेकिन कब तक?

जब भी ऐसा कोई वाकया होता है, कर्नाटक और बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा सहज तौर पर याद आ जाते हैं. दरअसल, येदियुरप्पा ही इस खेल के संस्थापक और माहिर खिलाड़ी हैं. दक्षिण के राज्यों में सबसे पहले भगवा फहराने का क्रेडिट भी वो अपनी इसी कला के बूते हासिल किया और अब तक बरकरार रखा है.

अब अगर मध्य प्रदेश में जो कुछ हुआ उसकी तुलना कर्नाटक के वाकये से करें तो कई बातें अजीब लगती हैं. ये दोनों ही वाकये उस जगह हुए जहां सत्ता की बागडोर बीजेपी के पास रही. कर्नाटक कांड के वक्त महाराष्ट्र में भी बीजेपी की सरकार थी - और अभी हरियाणा में गठबंधन सरकार है.

सवाल है कि डीके शिवकुमार मुंबई में होटल के बाहर दिन भर डेरा डाले रहे और आखिरकार पुलिस ने गाड़ी में बिठाकर एयरपोर्ट ले जाकर डिपोर्ट कर दिया - और दिग्विजय सिंह पहुंचते ही विधायकों को झोले में भर कर लेते आये. ऐसा कैसे मुमकिन हुआ? दो ही बातें हो सकती हैं - या तो शिवराज सिंह चौहान वाकई येदियुरप्पा नहीं हैं - या फिर ये बीजेपी का ऑपरेशन लोटस नहीं, बल्कि चीजों को आजमाने का एक तरीका भर था. फीडबैक पॉलिटिक्स भी कह सकते हैं.

पूरी कवायद को थोड़ा अलग हटकर देखें तो राज्य सभा चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा सकता है. मध्य प्रदेश से राज्यसभा की 11 सीटों में से 8 फिलहाल बीजेपी और तीन कांग्रेस के पास हैं. एक सीट जीतने के लिए हर उम्मीदवार को 58 वोटों की जरूरत होगी. कांग्रेस के 114, बीजेपी के 107, बीएसपी के 2 और समाजवादी पार्टी के पास 1 विधायक है, जबकि चार निर्दलीय हैं. मौजूदा स्थिति ये बनती है कि कांग्रेस को तीसरी सीट जीतने के लिए 2 विधायकों की जरूरत होगी, जबकि बीजेपी को 9 की. सपा-बसपा के अलावा निर्दलीय विधायक कमलनाथ सरकार का सपोर्ट कर रहे हैं जिनकी बदौलत कांग्रेस का पलड़ा भारी है. अगर बीजेपी तीसरी सीट पर जोर लगाती है तो उसे नौ विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी.

तात्कालिक स्थिति में तो यही लगता है कि बीजेपी को सरकार के लिए सरकार गिराने से ज्यादा महत्वपूर्ण फिलहाल राज्य सभा की सीटें हैं - और हालिया कवायद से क्रॉस वोटिंग की थोड़ी भी गुंडाइश बन जाये और बीजेपी तीसरी सीट निकालने में कामयाब होती है तो, मिशन सफल ही माना जाएगा - और ये ऑपरेशन लोटस के लिए बहुत बड़ा फीडबैक भी समझा जाएगा. कह सकते हैं ये 'ऑपरेशन कमल' नहीं बल्कि 'ऑपरेशन कमलनाथ' रहा.

कमलनाथ का काउंटर कैंपन कामयाब रहा

मध्य प्रदेश को लेकर राजनीतिक घटनाक्रम पर मुख्यमंत्री कमलनाथ की प्रतिक्रिया रही, 'मैं दिग्विजय सिंह के बयान से पूरी तरह सहमत हूं... बीजेपी डरी हुई है क्योंकि आने वाले दिनों में उनके 15 साल के शासन में हुए घोटालों का खुलासा होने वाला है.'

साथ में कमलनाथ ने जोड़ा भी, 'MLA ही मुझसे कह रहे हैं कि हमें इतना पैसा दिया जा रहा है - मैंने विधायकों से कहा है कि फोकट का पैसा मिल रहा है तो ले लेना.'

मध्य प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री गोविंद सिंह ने तो ये भी बता दिया कि लोक कैसे संपर्क कर रहे थे, बोले, ‘लगातार कई लोग मेरे पास आये थे कि आप पैसा ले लें. मैंने कहा कि कौन पैसा दे रहा है? उसका नाम तो बता दो. वह जगह बता दो जहां पैसा दिया जाएगा.'

गोविंद सिंह ऐसी पेशकश करने वाले एक व्यक्ति का नाम भी लिया है जो भिंड के इर्द-गिर्द का रहने वाला है - 5 से 25 करोड़ तक के ऑफर की भी बात बतायी है. दावा ये भी है कि वो शख्स शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्र का नाम ले रहा था.

ध्यान देने वाली बात ये है कि ये सब तब हो रहा है जब कमलनाथ और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की लड़ाई काफी तेज हो चुकी है. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की ही कमलनाथ सरकार के खिलाफ चुनावी वादे न पूरे करने को लेकर आंदोलन छेड़ने की धमकी दे चुके हैं - और कमलनाथ कह चुके हैं कि आंदोलन कर लेने दीजिये.

महाराष्ट्र चुनावों का प्रभारी बनाये जाने के बाद सिंधिया की ताजा मध्य प्रदेश यात्रा इन्हीं बातों को लेकर सुर्खियों में भी रही - और राज्य सभा के चुनाव के साथ मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के चलते भी सिंधिया चर्चाओं के केंद्र में रहे. एक चर्चा ये रही कि दिग्विजय सिंह के साथ साथ सिंधिया भी मध्य प्रदेश के कांग्रेस कोटे से राज्य सभा जाना चाहते हैं. 2019 के आम चुनाव में ये दोनों ही नेता अपनी अपनी सीटों से हार गये थे.

ध्यान देने वाली एक और बात ये रही कि दिग्विजय सिंह जहां पूरी रात एक्टिव रहे, वहीं सिंधिया ने पूरी तरह दूरी बनाये रखी - और पूछे जाने पर भी यही कहा कि उनको तो विधायकों के खरीद फरोख्त की जानकारी तक नहीं है. सिंधिया के कुछ दिनों से बीजेपी नेताओं से करीबी की भी चर्चा रही है. खास कर उनका ट्विटर प्रोफाइल बदल जाने के बाद से जिसमें कांग्रेस का नाम गायब है. अभी फरवरी के शुरू में ही सिंधिया को बीजेपी नेताओं उमा भारती और कैलाश विजयवर्गीय के साथ ग्वालियर स्टेशन पर देखा गया था और बड़ी ही आत्मीय मुलाकात के तौर पर जाना गया था.

कमलनाथ और सिंधिया की लड़ाई के बीच ये भी सुनने में आ रहा है कि राज्य सभा को लेकर दिग्विजय सिंह की दिलचस्पी तो है लेकिन सिंधिया का ज्यादा जोर मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर है. फिलहाल कमलनाथ ही PCC अध्यक्ष हैं और दिग्विजय सिंह के साथ करीबी इसलिए हो जाती है क्योंकि शुरू से ही दोनों के कॉमन विरोधी सिंधिया परिवार रहा है. जब तक ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया थे, कमलनाथ दिल्ली में और गांधी परिवार के करीबी होने के चलते दिग्विजय सिंह की पूरी मदद करते रहे - अब जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया चैलेंज कर रहे हैं, एक तरीके से दिग्विजय सिंह कमलनाथ के एहसानों का बदला चुका रहे हैं.

कमलनाथ की मुश्किल ये है कि उनकी कुर्सी के लिए शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ही बराबर के खतरनाक हैं - दिग्विजय सिंह की मदद से कमलनाथ ने बीजेपी को तो काउंटर किया ही है, लगे हाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी कुछ दिनों के लिए मुंह बंद कर दिया है. अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ से कमलनाथ सरकार के खिलाफ कोई हरकत होती है तो मुख्यमंत्री के एक इशारे पर वो आलाकमान के यहां तलब किये जा सकते हैं. वैसे भी राहुल गांधी के वायनाड चले जाने के बाद से सिंधिया का हाल बगैर टिकट वाले रेल यात्री का बना हुआ है.

मध्य प्रदेश से प्रियंका गांधी के भी राज्य सभा जाने की चर्चा रही - और अब तो राजस्थान के बाद गुजरात से भी ऐसे ही ऑफर आये हैं. हालांकि, सूत्रों के हवाले से आ रही खबर बता रही है कि प्रियंका गांधी वाड्रा राज्य सभा न जाने का मन बना चुकी हैं. वैसे भी वो तो घोषित तौर पर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं. कांग्रेस के लिए नुकसान ये भी होगा कि प्रियंका के उम्मीदवार बनने की सूरत में दूसरे नेताओं का टिकट कट जाएगा.

अब जो खबर आ रही है, उससे मालूम होता है कि दिग्विजय सिंह तो आधी रात के चैंपियन बन कर राज्य सभा की अपनी सीट पक्की कर चुके हैं - और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी बगावत का फायदा मिल सकता है क्योंकि ऐसा न हुआ तो उनके समर्थक विधायक कब और किस पहर ऑपरेशन लोटस के लिए बीजेपी को जरूरी सुविधायें मुहैया करा दें ये कोई नहीं कह सकता.

वैसे कमलनाथ के कैबिनेट साथी उमंग सिंघार ने एक ट्वीट में साफ कर दिया है कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार खतरे से बाहर है - और ये बताने का उनका अंदाज भी काफी अलग है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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