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Updated: 15 मई, 2018 02:23 PM
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कर्नाटक में भी एग्जिट पोल फेल हो गये, कुछ अपवादों को छोड़ कर. वैसे हंग एसेंबली की भविष्यवाणी करने वाले एग्जिट पोल खुद ही खंडित देखे गये थे. बीजेपी ने पूरे धैर्य से अपने आप पर भरोसा किया - और कांग्रेस एग्जिट पोल के झांसे में आ गयी. कांग्रेस के इंटरनल सर्वे ने तो ऐसी रिपोर्ट दी कि सिद्धारमैया दलित सीएम के नाम पर कुर्सी छोड़ने की बात करने लगे.

भ्रष्टाचार वास्तव में कोई मुद्दा नहीं

कर्नाटक के नतीजों ने कम से कम अभी तो ये साफ कर ही दिया है कि चुनावी राजनीति में फिलहाल भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं रह गया है. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके सीएम कैंडिडेट सिद्धारमैया भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी पर हमलावर रहे. कांग्रेस ने येदियुरप्पा के जेल जाने और रेड्डी बंधुओं के जेल से छूट कर बाहर आने की बार बार दुहाई देते रहे. इसके लिए ही '2+1' फॉर्मूले का आविष्कार हुआ था - 'दो रेड्डी और एक येड्डी'. राहुल गांधी कहते रहे जब मोदी खड़े होते हैं तो उनके एक तरफ जेल जा चुके येदियुरप्पा खड़े होते हैं तो दूसरी तरफ ताजा ताजा जेल से निकले रेड्डी बंधु खड़े होते हैं, लेकिन लोगों ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया. बीजेपी ने दो रेड्डी बंधुओं के अलावा उनके छह और करीबियों को टिकट दिये थे.

reddy, modiरेड्डी बंधुओं को लेकर मोदी पर बेकार गया कांग्रेस का वार

राहुल गांधी के आरोपों को मोदी ने एक ही झटके में न्यूट्रलाइज कर दिया. हिमाचल प्रदेश की ही तरह मोदी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेशनल हेरल्ड केस में जमानत पर छूटा हुआ बताया - और कहा कि येदियुरप्पा ने आरोपों को लेकर अदालत का सामना किया है. येदियुरप्पा को लेकर प्रधानमंत्री पर हमलों के बाद मोदी का पलटवार भी काफी जोरदार रहा - 'ये मोदी है लेने के देने पड़ जाएंगे'. हालांकि, कांग्रेस को प्रधानमंत्री की ये बात बेहद नागवार गुजरी है और उसने राष्ट्रपति से मोदी की भाषा को लेकर शिकायत की है.

बीजेपी ने तीन रेड्डी बंधुओं में सिर्फ दो को टिकट दिया था, जबकि तीसरे को तो कोर्ट ने बल्लारी में कदम रखने तक की इजाजत नहीं दी थी. रेड्डी बंधुओं में सबसे छोटे गली जनार्दन रेड्डी बाहर से ही बैठे निगरानी करते रहे.

rahul gandhi, siddaramaiahकोई नुस्खा काम न आया...

चुनाव के दौरान भी ऐसी रिपोर्ट आती रहीं कि वोट देने के लिए लोगों को उम्मीदवार की छवि से कोई मतलब नहीं देखा गया. मालूम हुआ कि लोगों को बस इस बात से मतलब है कि किसे वोट देने से क्या फायदा मिल सकता है. वोट के लिए रुपये बांटने की बातें तो इंडिया टुडे के स्टिंग में ही सही साबित हो चुकी थीं.

इकनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार बल्लारी में एक वोट की कीमत ₹ 1000 से ₹ 4000 रही. बेल्लारी के ही एक गांव की महिला अखबार से कहती है - 'आखिर हम क्यों केवल चंद लोगों और उनके परिवार को ही चुनाव जीतने का फायदा उठाने दें? हम अपने हिस्से के रूप में जितना संभव हो सकेगा, वोट के बदले उतनी ही कीमत की मांग करेंगे.'

बेकार गया कांग्रेस का लिंगायत कार्ड

सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं, येदियुरप्पा को घेरने के लिए कांग्रेस ने लिंगायत कार्ड की पहले से ही तैयारी कर ली थी. हालांकि, लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने में इतनी देर हो गयी कि बीजेपी को आचार संहिता के नाम पर पूरा मौका मिल गया. वैसे बीजेपी ऐसा करने के मूड में भी नहीं रही.

भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते येदियुरप्पा को कुर्सी और उसके बाद बीजेपी को सत्ता भी गंवानी पड़ी. ये येदियुरप्पा ही रहे जो बीजेपी को दक्षिण की राज्यों में सबसे पहले एंट्री दिलाये थे - और बीजेपी ने भी उम्रदराज होने का दरकिनार करते हुए उन पर ही आखिर तक भरोसा किया. वैसे भी बीजेपी के पास येदियुरप्पा के अलावा लिंगायतों का कोई बड़ा नेता नहीं रहा.

हर क्षेत्र में बीजेपी का जलवा

वैसे तो कर्नाटक के ज्यादातर इलाकों में कमल खिला, लेकिन बीजेपी को खास तौर पर फायदा मिला तीन इलाकों में - बॉम्बे कर्नाटक, कोस्टल कर्नाटक और सेंट्रल कर्नाटक में.

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बॉम्बे कर्नाटक : बॉम्बे कर्नाटक या मुंबई कर्नाटक के तहत 50 सीटें आती हैं और इसे लिंगायतों का गढ़ माना जाता रहा है और इसी के चलते येदियुरप्पा का यहां दबदबा बना रहा. 2013 के चुनाव से पहले येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद जब बीजेपी ने निकाल दिया तो उन्होंने अलग पार्टी बनायी - कर्नाटक जनता पक्ष. येदियुरप्पा को पार्टी बनाकर कोई खास फायदा तो नहीं हुई, लेकिन बीजेपी को बहुत नुकसान हो गया. तब कांग्रेस ने इसका पूरा फायदा उठाया था.

येदियुरप्पा के बीजेपी में लौटने का तो पार्टी को पूरा फायदा मिला लेकिन कांग्रेस का लिंगायत कार्ड पूरी तरह नाकाम रहा.

कोस्टल कर्नाटक : कोस्टल कर्नाटक के तहत 21 सीटें आती हैं और यही वो इलाका रहा जहां बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड जम कर चला. आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या और सांप्रदायिक तनाव के मसले बीजेपी ने जोर शोर से उठाये. यही वो इलाका रहा जहां वोट बटोरने के लिए बीजेपी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को मोर्चे में लगाया. इस इलाके में योगी के प्रभाव की बड़ी वजह उनका नाथ संप्रदाय का महंथ होना है - और योगी को भले ही सिद्धारमैया के ताने सुन कर दौरा बीच में ही छोड़ कर यूपी लौटना पड़ा लेकिन तब तक वो अपना करिश्मा दिखा चुके थे. योगी का यहां 35 रैलियों का कार्यक्रम रहा.

मध्य कर्नाटक : मध्य कर्नाटक में भी येदियुरप्पा का खासा असर रहा है. 2013 में बीजेपी और येदियुरप्पा की पार्टी के बीच वोटों के बंट जाने के चलते कांग्रेस ने पूरा फायदा उठाया था. पांच साल बाद येदियुरप्पा की घर वापसी हो जाने से कांग्रेस की दाल नहीं गल पायी.

हैदराबाद कर्नाटक : हैदराबाद कर्नाटक ही वो इलाका है जहां रेड्डी भाइयों का बोलबाला है. यहां 31 सीटें हैं और 20 से ज्यादा सीटों पर रेड्डी बंधुओं का प्रभाव रहा है. 2008 में बीजेपी ने रेड्डी बंधुओं के बूते ही फतह हासिल की थी - और 10 साल बाद इतिहास काफी हद तक दोहरा रहा है.

ओल्ड मैसूर : ओल्ड मैसूर क्षेत्र में विधानसभा की 61 सीटें आती हैं और यहां वोक्कालिगा समुदाय की आबादी ज्यादा है. वोक्कालिगा जेडीएस के परंपरागत वोटर रहे हैं और उसे इसका फायदा मिलता रहा है. वोक्कालिगा वोटों के लिए ही बीजेपी ने कांग्रेस से सीनियर नेता एसएम कृष्णा को हथिया कर भगवा पहनाया था. कृष्णा बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन प्रधानमंत्री की एक रैली में मंच पर साथ जरूर दिखे थे. वोक्कालिगा में पैठ न होने के कारण कांग्रेस ने यहां अल्पसंख्यकों और हिंदुओं के ओबीसी और दलितों को मिला कर 'अहिंदा' फॉर्मूला आजमाया था.

ग्रेटर बेंगलुरू : ग्रेटर बेंगलुरू ही वो इलाका रहा जहां कांग्रेस ने बीजेपी को जबरदस्त टक्कर दी. इस इलाके में कुल 21 सीटें आती हैं.

कर्नाटक की जीत से जहां मोदी-शाह का बढ़ा हुआ अतिआत्मविश्वास और बढ़ा दिया है, वहीं राहुल गांधी के लिए मुश्किलें मुंह बाये खड़ी नजर आ रही हैं. अब विपक्षी खेमे में भी उन्हें वो भाव नहीं मिलने से रहा, जबकि विपक्ष को उसकी लिमिट बताने के लिए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर भी दावेदारी जता डाली थी. कर्नाटक के नतीजों ने राहुल गांधी को फिलहाल तो इतना कमजोर कर ही दिया है कि जो कुछ गुजरात में हासिल हुआ था सब मिट्टी में मिला लगने लगा है.

बीजेपी के अब तक के प्रदर्शन के नायक बनकर उभरे हैं बीएस येदियुरप्पा जिन्होंने नतीजे आने के काफी पहले ही ऐलान कर दिया था कि वो ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनेंगे - और 17 मई को शपथग्रहण करेंगे.

कुल मिला कर कर्नाटक की पूरी कहानी का सारांश सिर्फ इतना है- '...और इस तरह कर्नाटक भी कांग्रेस मुक्त हो ही गया!'

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