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Updated: 17 मई, 2018 07:16 PM
रणविजय सिंह
रणविजय सिंह
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राहत इंदौरी को तो जानते होंगे आप! वही शायर जिनकी शायरियां और गजलें GPRS के जमाने से ही सोशल मीडिया पर तूफान मचाने लगी थीं. हालांकि, उससे पहले भी उनका वजूद मुंजमिद था, लेकिन इंटरनेट क्रांति के दौर में जब इस मुंजमिद वजूद वाले शायर ने रिसना शुरू किया तो एक ओर से बाढ़ सी आ गई. आज उसी शायर के रिसते कलम से लिखी गई एक ग़ज़ल 'अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो' कहीं से नजर के सामने आ गई.

ऐसा नहीं है कि इस गजल को पहले नहीं सुना, लेकिन आज इसकी दो लाइनें बार-बार अपनी ओर खींच रही हैं. इन लाइनों से एक बार‍ को लगता है कि हम इस देश के मालिकान हैं. पहले आप भी इन लाइनों को पढ़ें, जरा ये एहसास आपको भी तो हो. तो हुजूर लाइनें कुछ यूं हैं -

'जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है'

इन लाइनों को आप किसी भी तरह से ले सकते हैं. लेकिन अगर देश के मद में लेंगे तो देश के मालिक होने का कुछ फील तो जरूर आया होगा. वैसे भी पिछले कुछ वर्षों से आपको ये एहसास दिलाने का काम जारी है. आपसे कहा भी जाता रहा है कि आप इस देश के मालिक हैं और आप जैसा कहेंगे वैसा ही होना है.

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खैर, आपके हुक्म की तामील होने और न होने पर कभी और चर्चा करेंगे. आज बात आपके मालिक होने पर करते हैं. तो हुजूर, ऐसा है कि आपके राज में एक कर्नाटक नाम का प्रदेश है. अगर टीवी खोले होंगे तो पता चल ही गया होगा. इन दिनों वहां बहुत हो-हल्ला मचा हुआ है. आपके राज्य को किराए पर लेने के लिए दो किराएदार लड़ रहे हैं. आपको तो पता ही होगा! एक किराएदार पूरा किराया लेकर सामने खड़ा है तो दूसरा पूरे से थोड़ा कम लिए जबरन आपके राज्य में घुस रहा है. लेकिन आप कुछ नहीं कर सकते. क्यों, नहीं कर सकते इसका भी जवाब है. लेकिन पहले आपको पूरी स्थिति समझा दूं. जवाब अंतिम में दिया जाएगा.

हुजूर, दरअसल मामले को थोड़ा आसान तरीके से समझाता हूं. शायद आपके विशाल हृदय तक बात पहुंचे. मान लीजिए कि आपकी कोई हवेली है, जिसका एक हिस्सा आप किराए पर उठाना चाहते हैं. आपने एक किराया तय किया और उस हिस्से पर 'किराएदार चाहिए' की तख्ती टांग दी. लोग आते गए और आपसे बात करते गए. किराए को लेकर बात नहीं बनी तो लौट भी गए. लेकिन इसी बीच तीन ऐसे किराएदार (कांग्रेस-जेडीएस-बीजेपी) आए जो इस हिस्से को किसी भी हाल में लेने को आतुर थे.

इनमें से दो (कांग्रेस-जेडीएस) ने अपना किराया आपस में बांट लिया और आपके बताए गए किराए से कहीं ज्यादा आपको देने को तैयार हो गए. लेकिन तीसरे किराएदार (बीजेपी) के पास उस हिसाब का किराया नहीं है. वो पूरे से थोड़ा कम लिए आपके दरवाजे पर खड़ा था, लेकिन जैसे ही उसने देखा कि बाकी के दोनों किराएदार मिल गए हैं तो वो जबरिया आपके हिस्से पर कब्जा करने लगा. उसका कहना है कि पहले वो कब्जा लेगा, फिर 15 दिन बाद आपको पूरा किराया देगा.

लेकिन हुजूर, सब जानते हैं कि इस किराएदार के पास उतना ही किराया है जितना वो पहले बता रहा था. फिर सोचने वाली बात है कि 15 दिनों में ऐसा क्याा होना है, जिससे वो पूरा किराया जुटा लेगा? क्या 15 दिनों में वो डकैती डालेगा, चोरी करेगा या फिर कहीं से उधार लेगा. अगर उधार भी लेता है तो उसका ब्याज (खरीद-फरोख्त) भी देना ही होगा. क्या ब्याज पर उधार लेकर किराया देने वाले किराएदार को आप रखना चाहेंगे. ओह...माफ करें, आप कहां रख रहे हैं, ये तो कब्जा हो रहा है. और आप कुछ कर नहीं पा रहे! क्योंकि, नहीं कर पा रहे इसका जवाब भी तो देना था.

हुजूर, बात ऐसी है कि आप कोई मालिक नहीं हैं. आपके हाथ में कुछ नहीं. आप सब गवां चुके हैं. आप वैसे मकान मालिक हैं, जिसकी बस जुबान चल सकती है, बाकी के हाथ-पैर और बदन में लकवा मार गया है. हुजूर आप बिस्तर पर पड़े-पड़े सड़ रहे हैं और वहां किराएदार आपकी पूरी हवेली पर कब्जा जमा रहा है. और जब कोई बाहरी पूछता है कि, क्याव कर रहे हो? तो कहता है- मालिक का आदेश है सब साफ कर दो, वही सफाई चल रही है. सफाई. लेकिन आप तो कोई आदेश दे ही नहीं रहे, क्योंकि जानते हैं कि आपके हुक्म की तामील होना अब मुमकिन नहीं. आप बस अपने राज को लुटते देख सकते हैं, अपनी मर चुकी आंखों से.

अंत में आपकी सुकून भरी नींद के लिए ‘राहत’ की दो लाइनें.

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में

यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है.

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लेखक

रणविजय सिंह रणविजय सिंह @ranvijaysinghlive

लेखक आजतक में पत्रकार हैं.

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