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Updated: 03 सितम्बर, 2020 12:49 PM
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मध्य प्रदेश में उपचुनावों (MP By-Elections) को लेकर बिहार चुनाव जैसी ही गहमागहमी बनी हुई है. ये बात अलग है कि चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव की तरह मध्य प्रदेश में उपचुनावों के लिए अभी तक कोई गाइडलाइन नहीं जारी की है. मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन में भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे सहित 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने का इंतजार है.

ये उपचुनाव इतने अहम हैं कि इनके नतीजों पर ही मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की सरकार और बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का भविष्य टिका हुआ है. नतीजे मनमाफिक न आने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया कोई बहानेबाजी न कर सकें, इसलिए बीजेपी नेतृत्व उनकी छोटी छोटी बातों का भी ख्याल रखता आया है.

मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार में मंत्रिमंडल गठन से लेकर मंत्रियों के विभागों के बंटवारे तक में बीजेपी नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया ज्यादातर बातें मान ली है - और यही वजह है कि कहा जाने लगा था कि शिवराज सिंह चौहान तो सिर्फ मुख्यमंत्री हैं, मंत्रिमंडल तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के हिसाब से गठित हुआ है.

बड़े जिगरे के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाथोंहाथ लेने वाली बीजेपी के लिए मुश्किल ये हो रही है कि पार्टी के कई नेता अपना हाल कश्मीरी पंडितों जैसा बता रहे हैं - और ऊपर से नागपुर दरबार में अकेले हाजिरी लगा कर ग्वालियर के 'महाराज' ने अलग ही हड़कंप मचा रखा है.

सिंधिया की नागपुर यात्रा के मायने

कांग्रेस छोड़ने के करीब छह महीने बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया नागपुर पहुंचे जो बीजेपी सबसे बड़ा तीर्थस्थल है. नागपुर में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात की. 27 अगस्त को हुई इस मुलाकात में मोहन भागवत के अलावा संघ के सर कार्यवाह भैयाजी जोशी भी रहे. हैरानी की बात ये रही कि सिंधिया के साथ बीजेपी का कोई भी नेता नहीं रहा. अब तक बीजेपी से जुड़े कार्यक्रमों में शिवराज सिंह चौहान अक्सर साथ में देखे जाते हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस खास मुलाकात को लेकर बीजेपी में हाशिये पर चल रहे कई नेताओं के मन में तमाम आशंकाएं उमड़-घुमड़ रही हैं - और इनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी बताये जाते हैं.

हाल फिलहाल सिंधिया मध्य प्रदेश में उपचुनावों को लेकर खासे एक्टिव देखे गये हैं. ग्वालियर के साथ साथ इंदौर दौरे में भी सुमित्रा महाजन सहित तमाम बीजेपी नेताओं से वो मिले हैं. साथ ही, सिंधिया समर्थकों का दावा है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में बीजेपी के सदस्यता अभियान में उनकी वजह से हजारों की तादाद में कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी से जुड़े हैं. असल में राज्य की 27 में से 16 विधानसभा सीटें इसी इलाके से आती हैं जहां उपचुनाव होने हैं - और उपचुनावों के नतीजों पर ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में भविष्य तय होना है.

चूंकि बीजेपी में तरक्की का रास्ता नागपुर से ही तय होता है, इसलिए संघ मुख्यालय में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हाजिरी उनको दी जाने वाली नयी जिम्मेदारियों के लिए ग्रीन सिग्नल भी हो सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक उनके मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं - और इस मुलाकात के बाद ये संभावना बढ़ी हुई लगने लगी है.

jyotiraditya scindia, shivraj singh chauhanसिंधिया ने शिवराज सिंह चौहान सहित कई बीजेपी नेताओं की चिंता बढ़ा दी है

ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने का पहला फायदा तो यही हुआ कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गयी - और अब बीजेपी मध्य प्रदेश को कांग्रेस मुक्त बनाने में जुटी हुई है. मुश्किल ये है कि सिंधिया के साथियों की वजह से बीजेपी में नाराजगी बढ़ने लगी है.

मध्य प्रदेश उपचुनावों की जिम्मेदारी बीजेपी उपाध्यक्ष प्रभात झा पर है और वो कोरोना के शिकार हो गये हैं. ऐसे में जबकि बीजेपी के पुराने दिग्गजों की नाराजगी चुनौती बनी हुई है, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा ग्वालियर में डेरा डाले हुए हैं. होना तो ये चाहिये था कि वे चुनाव प्रचार की रणनीतियां तय करते लेकिन पहले उन्हें बीजेपी के नेताओं को ही मनाने के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.

कश्मीरी पंडितों जैसा हाल

असल में ज्योतिरादित्य सिंधिया जितने विधायकों के साथ बीजेपी में आये हैं सभी को उन्हीं सीटों से टिकट दिया जाना है जहां से वे बीजेपी उम्मीदवारों को हराकर चुनाव जीते थे. फिर तो बीजेपी नेताओं को टिकट मिलने से रहा.

बात सिर्फ टिकट न मिलने तक होती तो भी दर्द सहन हो जाता - ऊपर से आदेश ये मिल रहा है कि जिन कांग्रेस नेताओं से वे चुनाव हार गये थे अब उनके सपोर्ट में चुनाव प्रचार भी करना है. जयभान सिंह पवैया भी मध्य प्रदेश के उन बीजेपी नेताओं में शुमार रहे हैं जो हमेशा ही सिंधिया घराने की राजनीति के आलोचक रहे हैं. जयभान सिंह पवैया के विरोध का जो रवैया माधवराव सिंधिया के जमाने में रहा वही अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के दौर में भी कायम है - और ये बात खुले दिल से स्वीकार करने में भी उनको कोई गुरेज नहीं है. वैसे भी जयभान सिंह पवैया सिंधिया सीनियर और जूनियर दोनों ही के खिलाफ लोक सभा चुनाव के मैदान में भी दो-दो हाथ कर चुके हैं.

जयभान सिंह पवैया शिवराज सिंह की पिछली सरकार में मंत्री थे, लेकिन 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें भी शिकस्त मिली थी. जयभान सिंह पवैया को हराने वाले प्रद्युम्न सिंह तोमर अब शिवराज सिंह सरकार की कैबिनेट में शामिल हो चुके हैं.

जयभान सिंह पवैया के सामने सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी आलाकमान का आदेश है - ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आये प्रद्युम्न सिंह तोमर के लिए चुनाव प्रचार करना. ये मुश्किल उन सभी बीजेपी नेताओं के सामने है जो उन सीटों पर 2018 में चुनाव हार गये थे जहां अब उपचुनाव होने हैं.

चुनाव की तैयारियों में लगे सीनियर बीजेपी नेताओं के लिए कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार की रणनीति तय करने से पहले अपने नेताओं को कांग्रेस से आये नेताओं के समर्थन में लोगों के बीच जाने के लिए राजी करना है. दूसरी तरफ, कमलनाथ को ऐसे ही बीजेपी नेताओं की तलाश है जो ताजा हालात में पाला बदलने को तैयार हो जायें. पाला बदलने का मतलब भी साफ है, उसी सीट से टिकट मिलना पक्का है. बड़ी मुश्किल ये है कि पाला बदले और चुनाव हार गये तो न इधर के रहेंगे न उधर जाने का कोई मतलब रह जाएगा.

जयभान सिंह पवैया की ही तरह दीपक जोशी भी मंत्री रह चुके हैं और वो भी 2018 में कांग्रेस उम्मीदवार मनोज चौधरी से चुनाव हार गये थे. दीपक जोशी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कैलाश चंद्र जोशी के बेटे हैं और फिलहाल बीजेपी की चुनाव समिति के सदस्य हैं - हालांकि, दीपक जोशी सिंधिया समर्थक मनोज चौधरी के लिए चुनाव प्रचार नहीं करने जा रहे हैं.

दी प्रिंट वेबसाइट से बातचीत में मन की बात जबान पर यूं ही चली आती है - ‘हमारी स्थिति कश्मीरी पंडितों की तरह है, जो अपने देश में विस्थापित हो चुके हैं. हम अपनी ही पार्टी में विस्थापित हो गये हैं. एक नई दुल्हन का स्वागत किया जा रहा है लेकिन समारोहों में, एक पुरानी दुल्हन को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिये... हमारी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है... हमारा भविष्य दांव पर है.’

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