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Updated: 28 जून, 2020 05:09 PM
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ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) काम पर लग गये हैं. लग क्या गये हैं, जेपी नड्डा (JP Nadda) ने अस्पताल से लौटते ही काम पर लगा दिया है. बिलकुल वही काम जिसकी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने वर्चुअल रैली में याद दिलायी थी. वैसे तो मध्य प्रदेश की वर्चुअल रैली में सिंधिया की शिरकत ही काम पर लौटने का संकेत था, लेकिन नड्डा ने जोर जोर से तारीफ कर हर तरह से समझाने का प्रयास भी किया कि उनके बीजेपी में आने का मकसद और पार्टी की अपेक्षा याद रहनी चाहिये.

रैली के बाद ट्विटर पर मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता जीतू पटवारी पर हमला बोल कर सिंधिया ने भी अपने तरीके से मैसेज देने की कोशिश की ही - आ रहा हूं मैं. समर्थकों को कमर कस लो और विरोधियों सावधान हो जाओ. अब दो-दो हाथ होना ही है.

मध्य प्रदेश की 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं और हाल फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जोर शोर से उपचुनाव की तैयारियों में ही जुटे हुए हैं. कमलनाथ बीजेपी को घेरने और नाराज नेताओं को तोड़ने की कोशिश में जुटे हैं तो, बीजेपी को सिंधिया का भरोसा है - दरअसल, 24 में से 16 सीटें उसी इलाके में हैं जिसे मध्य प्रदेश की राजनीति में महाराज कहे जाने वाले सिंधिया का गढ़ माना जाता रहा है.

अब तक सिंधिया और बीजेपी दोनों ही एक दूसरे की मदद में एक एक कदम ही बढ़ाया है. सिंधिया ने कमलनाथ की सरकार गिरा कर शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की बनवा दी और बीजेपी ने सिंधिया को सांसद बना दिया - अब आगे का भविष्य तो उपचुनाव के नतीजों से ही तय होना है.

'जिगरा' है तो चुनाव भी जिताओ!

बीजेपी की मध्य प्रदेश वाली वर्चुअल रैली में अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तारीफ करने को लेकर होड़ लगने जैसा महसूस हुआ. ये भी साफ साफ समझ में आया कि सब कुछ आने वाले उपचुनावों की कवायद है. ये भी समझ में आया कि दोनों नेताओं को सिंधिया से क्या अपेक्षा है. और ये भी कि सिंधिया को तारीफों का बदला कैसे चुकाना है - उपचुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीटें बीजेपी की झोली में भरना है.

सिंधिया को जोरदार तरीके से मध्य प्रदेश बीजेपी कार्यकर्ताओं के सामने पेश कर नड्डा कांग्रेस कार्यकर्ताओं और आम जनता को ये संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि पार्टी में महाराज को कितनी अहमियत दी जा रही है. साथ ही, सिंधिया के लिए ये संदेश भी रहा कि वक्त बहुत कम है और जल्द से जल्द अब वो उपचुनाव की तैयारियों में जुट जायें.

उपचुनाव के नतीजे जितने महत्वपूर्ण शिवराज सिंह चौहान के लिए हैं, उतने ही या ये भी कह सकते हैं कि उससे ज्यादा सिंधिया के लिए मायने रखते हैं. शिवराज सिंह चौहान की चुनौती तो बस जैसे तैसे सरकार बचाने भर से है, लेकिन सिंधिया के लिए तो ये ऐसा चैलेंज है जिस पर उनका भविष्य टिका हुआ है. सिंधिया के मुकाबले शिवराज सिंह को कम ही फिक्र होनी चाहिये क्योंकि वो ये तो मान कर चल रहे होंगे कि सरकार तो बच ही जाएगी क्योंकि कांग्रेस विधायकों से इस्तीफा दिलाकर भगवा पहना चुके सिंधिया से डील तभी पूरी मानी जाएगी जब वे बीजेपी के टिकट पर चुन कर विधानसभा पहुंच जायें.

scindia, kamal nathअभी तो कमलनाथ से सिंधिया ने हिसाब बराबर किया है, शिकस्त तो अभी बाकी ही है

पहले तो सिंधिया को लेकर कमलनाथ थोड़ा परहेज भी करते रहे, लेकिन अब उनको दगाबाज साबित करने की तैयारी कर रहे हैं. दगाबाजी का ये आरोप सिंधिया के साथ साथ कांग्रेस छोड़ने वाले विधायकों पर भी कमलनाथ की टीम लगा रही है. कांग्रेस नेता मध्य प्रदेश के लोगों के सामने सिंधिया को भी वैसे ही पेश कर रहे हैं जैसे लालू यादव का परिवार बिहार में नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करता है. कमलनाथ की टीम के एक नेता का कहना रहा कि प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को 5 साल के लिए जनादेश दिया था, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता लोलुपता के चलते कमलनाथ की सरकार को अल्पमत में लाकर गिरा दिया गया. जाहिर है ये काम सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ मिल कर किया है.

कांग्रेस की दगाबाजी के आरोपों को काउंटर करने के लिए बीजेपी दलित उपेक्षा का इल्जाम लगा रही है - और इसके लिए मिसाल के तौर पर फूल सिंह बरैया को पेश कर रही है. बीजेपी ने फूल सिंह बरैया को राज्य सभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था और वो हार गये. ऐसा भी नहीं कि बरैया की जीत पक्की थी और कांग्रेस ही उनकी हार के लिए जिम्मेदार हो, बल्कि बीजेपी गुजरात की तरह कांग्रेस के भीतर सेंध लगाने में नाकाम रही इसलिए बरैया नहीं जीत पाये.

रैली में बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने सिंधिया के जिगरा का जिक्र किया था जो अब उनके लिए नया और मुश्किल टास्क बन गया है - जिगरा है तो उपचुनाव जिताओ. वैसे सिंधिया की मदद के लिए ही बीजेपी दलित उपेक्षा को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. ग्वालियर के चंबल इलाके में SC/ST वोटों को दबदबा है और कई विधानसभा क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां इनकी निर्णायक भूमिका भी होती है. ग्वालियर का ये इलाका ही सिंधिया का गढ़ माना जाता है.

दलित मुद्दा उछाल कर बीजेपी के पास ये कहने को तो हो ही गया है कि पार्टी ने माहौल बना दिया है और अब सिंधिया फील्ड में पहुंच कर उसे आगे बढ़ायें और अंजाम तक पहुंचायें. सिंधिया भी संकेत समझ चुके हैं और उसी हिसाब से हाजिरी भी लगा चुके हैं. जीतू पटवारी पर सिंधिया का हमला इसी बात का सबूत है.

असल में कमलनाथ के करीबी कांग्रेस नेता जीतू पटवारी नोटबंदी और जीएसटी के नाम पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार हमला बोल रहे थे - हड़बड़ी में एक ट्वीट में ऐसी बात कह दी जो बेटे और बेटियों में फर्क पैदा करने वाला रहा. जीतू पटवारी ने वो ट्वीट भी डिलीट कर दिया और सफाई देकर माफी भी मांग ली, लेकिन कांग्रेस बेटियों के अपमान को लेकर पूरी तरह घिर गयी.

बीजेपी तो पहले से ही बेटियों के सम्मान को सबसे ऊपर रखती आयी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तो नारा ही है - बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. सिंधिया ने टास्क मिलते ही मुद्दा वहीं से उठाया और सीधा हमला जीतू पटवारी पर बोल दिया.

उपचुनाव के नतीजों पर टिका सिंधिया का भविष्य

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार गिरा दी थी. फिर बीजेपी ने उनको राज्य सभा भेज दिया है - अब सिंधिया की बारी है उपचुनाव जिता दें तो बीजेपी भी मोदी सरकार में शामिल करने को लेकर सीरियस हो.

गुना-शिवपुरी लोक सभा सीट से अपने पुराने सहयोगी और बीजेपी उम्मीदवार केपी यादव से बुरी तरह हारे सिंधिया 13 महीने बाद फिर से संसद पहुंच चुके हैं. ये काम साल भर के भीतर ही हो गया होता अगर कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन नहीं होता और चुनाव आयोग राज्य सभा का चुनाव नहीं टालता.

बहरहाल, सिंधिया के राज्य सभा पहुंच जाने के बाद अब सिंधिया कैंप में हर कोई खुद और सिंधिया को भी मंत्री बनते देखना चाहता है. शिवराज सिंह चौहान का मंत्रिमंडल विस्तार भी कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते ही रुका है और सिंधिया खेमे के कांग्रेस नेताओं को भी मौका मिलने की उम्मीद है, साथ ही वे ये भी उम्मीद कर रहे हैं कि अब राज्य सभा पहुंच जाने के बाद सिंधिया को मोदी कैबिनेट 2.0 में भी जगह मिल जानी चाहिये - लेकिन ये तो तभी मुमकिन होता लगता है जब सिंधिया उपचुनाव के नतीजे बीजेपी के मनमाफिक ला सकें.

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