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Updated: 04 जुलाई, 2021 03:02 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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साइबर अपराधों की बढ़ती दखल ने जिस तरह से सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती खड़ी की है, उसकी गंभीरता को देखते हुए बिना देर किए साइबर जंजाल को समेटने की जरूरत है. छुटपुट घटनाएं तो काफी समय से हो रही हैं, लेकिन अब बड़े हमलों की भी तस्वीरें दिखने लगी. विभिन्न देशों में बीते एकाध वर्षों से कई साइबर हमलों की खबरें हमें सुनने और देखने को मिली. लेकिन अब इस आफत के हम भी भुक्तभोगी हो गए हैं. हमारे यहां भी ड्रोन ने दस्तक दे दी. जम्मू-कश्मीर में ड्रोन के जरिए किया गया हमला संभवत: हिंदुस्तान में ऐसा पहला हमला है जो साइबर संसाधनों से लबरेज था. हमले की गंभीरता ये है ड्रोन ने घात ऐसी जगह लगाई जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता. अति संवेदनशील जम्मू का एयरफोर्स स्टेशन का सैन्य क्षेत्र जहां इस तरह के हमलों की कोई कल्पना तक नहीं कर सकता. पर, वहां भी हमला हो गया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा ड्रोन हमले ने देश की तमाम सुरक्षा एजेंसियां को सोचने पर मजबूर कर दिया है. एजेंसियों के अलावा स्थानीय पुलिस-प्रशासन, खुफिया तंत्र, केंद्र सरकार व राज्य सरकारों आदियों का भी ध्यान खींचा है. जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर ड्रोन से किए गए हमले ने भले ही ज्यादा नुकसान न पहुंचाया हो, पर सुरक्षा पहलुओं के लिहाज से यह बड़ी घात है. केंद्र सरकार के लिए इस साइबर हमले ने सुरक्षा को नए सिरे से परिभाषित करने की ओर ध्यान आकर्षित किया है.

Jammu Airforce Station, Jammu, Terrorist Attack, Army, Indian Army, Safety, Cyber Crime जम्मू में हुई घटना ने साफ़ कर दिया है कि सााइबर अपराध से लड़ना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है

हालांकि हमले के बाद से ही दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है. साइबर के इस जंजाल को समेटने के लिए गृह विभाग और सुरक्षा के बड़े अधिकारियों के साथ एनएसए प्रमुख अजित डोभाल लगातार मंथन कर रहे हैं. एजेंसियां ये जानने में लगी हैं कि ड्रोन भारत की सीमा में अत्याधुनिक सुरक्षा संयंत्र की नजरों से बचकर कैसे प्रवेश किया, कौन सी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल उनमें किया गया, पाकिस्तान से आया, या फिर चीन से आदि की जांच में मशगूल हैं.

मुकम्मल तरीके से जांच होनी भी चाहिए और एजेंसियों को असल वजहों तक पहुंचा भी चाहिए. देखा जाए तो सुरक्षा अमले का करीब एक तिहाई दस्ता जम्मू में ही डेरा डाले रहता है. बावजूद इतनी बड़ी हिमाकत साइबर तकनीक से हुई. दरअसल सुरक्षा एजेंसियों  को कतई अंदाजा नहीं था कि आसमान से भी कोई ऐसी चीज टपक पड़ेगी जिससे खलबली मच जाएगी. ड्रोन ने अटैक जम्मू एयरफोर्स स्टेशन के टेक्निकल एरिया में किया, जो असंभव है.

कुछ मिनटों के अंतराल में ही ड्रोन ने एक नहीं बल्कि दो धमाके किए. उसके दूसरे दिन फिर से उसी एरिया में दो और ड्रोन मंडराते दिखे. बहरहाल, साइबर हमलों की ये पहली किस्त है, इसे समय रहते सुलझाना होगा, वरना आने वाले समय में ऐसे हमले आम हो जाएंगे? जाहिर है जब अतिसंवेदनशील क्षेत्र सुरक्षित नहीं है, तो सामान्य क्षेत्र कैसे सुरक्षित होंगे? ये तय है ड्रोन से जो हिमाकत सीमा पार के आतंकियों ने की है, उनका मकसद फिलहाल अटैक करना और नुकसान पहुंचाना नहीं था.

वह ये जानना चाहते थे कि अपनी साइबर तकनीक में वह कितना कामयाब हो सकते हैं. सही सलामत ड्रोन भारतीय क्षेत्रों में प्रवेश कर पाएगा या कोई परेशानी आएगी? ड्रोन से उन्हें इतना पता चल गया, वह आगे साइबर हमले कराने में कामयाब हो सकते हैं. इसलिए हमें अभी से सर्तक होना होगा. इस नई किस्म के अपराध का तोड़ समय रहते खोजना होगा. ड्रोन हमले ने ना सिर्फ सेना व तमाम सुरक्षा बलों की भी चिंताएं बढ़ा दी हैं, बल्कि केंद्र सरकार को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है.

एक बात समझ में नई आती आखिरकार क्यों आतंकी हमारे सैन्य ठिकानों को ही निशाना बना रहे हैं. पठानकोट सैन्य क्षेत्र में हमले के बाद जम्मू एयरफोर्स का चुनाव किया. हिंदुस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान पर साइबर तकनीक का यह पहला ड्रोन हमला है, जिसमें आतंकियों ने ड्रोन को आईईडी बम के रूप में इस्तेमाल किया. आतंकियों को पता होता है कि आईईडी में धमाके की तीव्रता कम होती है.

कमोबेश ऐसा जम्मू में तब देखने को भी मिला जब ड्रोन एयरफोर्स एरिया में गिरा. उसके गिरने और फटने की आवाज ज्यादा नहीं हुई. गौरतलब है, साइबर अपराधियों का संसार धीरे-धीरे बड़ा विस्तार लेता जा रहा है. विदेशों में हाल में कई साइबर हमले हुए. अमेरिका भी भुक्तभोगी है. वहां हाल ही में ईंधन पाइपलाइन पर साइबर हमला हुआ था. हमले के बाद वहां की सरकार हरकत में आई, तो कई जरूरी चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया.

सुरक्षा एजंसियों ने माना कि हमला कोरोना महामारी की वजह से हुआ क्योंकि उस पाइपलाइन के अधिकांश इंजीनियर घरों से कंप्यूटर पर काम कर रहे थे. तभी साइबरों आंतकियों ने सेंध लगा ली. हमला निश्चित रूप से बड़ा था. क्योंकि कोलोनियल पाइपलाइन से प्रतिदिन करीब पच्चीस लाख बैरल तेल जाता है. हमले का शिकार हुई पाइपलाइन के जरिए ही ईस्ट कोस्ट के राज्यों में डीजल, गैस और जेट ईंधन की आपूर्ति होती है.

हमले के बाद से अमेरिका ने पाइपलाइन के चारों ओर सुरक्षा पहरा बैठाया हुआ है और क्षतिग्रस्त पाइपलाइन की मरम्मत की जा रही है. हमले के बाद ईंधन की सप्लाई अब पाइपलाइन की जगह सड़क मार्ग से हो रही है. क्योंकि अमेरिका को दोबारा से हमले की आशंका है.

साइबर हमलों के लिए अब आतंकी पूरी तरह से हाइटैक हो चुके हैं इसलिए वह साइबर विशेषज्ञ और हैकरों का सहारा लेने लगे हैं. इसके लिए वह उनको मुंह मांगी कीमत देते हैं. वैसे, देखें तो डार्कसाइड साइबर अपराध की दुनिया में सबसे अग्रणी नाम है जो कंप्यूटरों की स्क्रीन मात्र से ही उसके सर्वर एन्क्रिप्ट करके सभी डाटा चुरा लेता है. लंदन में जब साइबर हमला हुआ तो उसके गुर्गों ने इस बात का खुलासा किया था.

साइबर गैंग सबसे पहले डेटा की लिस्ट बनाते हैं. फिर एक पेज बनाकर उसका यूआरएल यानी लिंक भेजते हैं जिससे कंप्यूटर ऑन होते ही सारा डाटा अपने आप चंद मिनटों में लोड हो जाता है, यानी चोरी कर लिया जाता है. जम्मू हमले से पहले भी शायद ऐसा ही किया गया हो, बाकायदा रेकी की गई हो, हो सकता है इसमें अंदर का भी कोई व्यक्ति शामिल हो. हालांकि ऐसी संभावना जताई भी गई हैं. जम्मू-कश्मीर के डीजीपी ने इशारा भी किया है.

जम्मू में जिस जगह अटैक हुआ वह पाक सीमा के बिल्कुल करीब है. ड्रोन आसानी से कवर कर सकता था. क्योंकि हमले में नीचे उड़ने वाले उन ड्रोन का इस्तेमाल किया गया जो राडार की पकड़ में नहीं आते. ये तय है कि ड्रोन को जीपीएस के माध्यम से संचालित किया गया होगा. साइबर तकनीकों को पकड़ने के लिए भारत का सबसे बड़ा राडार स्टूमेंट जम्मू में स्थापित होने के बावजूद भी ड्रोन की लोकेशन पकड़ में नहीं आईं.

जबकि, सेना की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण जम्मू एयरपोर्ट की हवाई पट्टी और एयर ट्रैफिक कंट्रोल भारतीय वायु सेना के नियंत्रण में है, जो सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. फिलहाल हमले की तय तक जाने के लिए हिंदुस्तान की तकरीबन सभी सुरक्षा व जांच एजेंसियां जांच में जुटी हैं, जिनमें राॅ और एनआईए भी शामिल हैं.

साइबर हमले अगर ऐसे ही बढ़ते गए, तो मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. हमले से सबसे ज्यादा चिंता वायुसेना की बढ़ी हैं, क्योंकि हमला हवाई अड्डे के टेक्निकल एरिया में किया गया. इस कई मायने में महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वहां सभी एयरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर व पुर्जे व हार्डवेयर जमा होते हैं. साइबर हमले रूकने का नाम नहीं ले रहे. पहली जून को भी जम्मू के अररिया क्षेत्र में कुछ ड्रोन दिखे, जिन्हें देखते ही बीएसएफ जवानों ने गोलीबारी शुरू की, कई ड्रोन को गिराया.

ये बहुत ही गंभीर विषय है कि ड्रोन सैन्य ठिकानों को ही निशाना क्यों बना रहे हैं. जम्मू हवाई अड्डा एक घरेलू हवाई अड्डा है जो भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा से मात्र 12-13 किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है. वहां वायुसेना की महत्वपूर्ण रणनीतिक संपत्तियों में शामिल उस हवाई अड्डे से रसद सामग्री आपूर्ति संचालन, आपदा में मदद व घायलों को राहत का कार्य किया जाता है जो सर्दियों में सैन्य गतिविधियों के संचालन का केंद्र रहा है.

सियाचिन ग्लेशियर के लिए भी यहीं से रसद व मदद का काम होता है. पाकिस्तान के साथ हुए कारगिल युद्ध में भी इसकी बड़ी निर्णायक भूमिका रही है. इसलिए जरूरी हो जाता है कि किसी तरह साइबर कृत्य के बढ़ते पांव को तोड़ना ही होगा.

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