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Updated: 17 दिसम्बर, 2019 08:57 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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15 दिसंबर 2019 ये तारीख इतिहास में दर्ज हो चुकी है. कारण है राजधानी दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी (Jamia Students Protesting Against CAA) में किया गया वो प्रदर्शन जिसपर छात्रों के, पुलिस के, स्थानीय निवासियों के, राजनेताओं के तर्क अलग हैं. जामिया में 'छात्रों' पर हुए लाठीचार्ज (Lathicharge On Jamia Studnets) के बाद दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है. मामला देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court ON Jamia Protest) गया है. सुप्रीम कोर्ट में, जामिया में छात्रों पर हुए बर्बर लाठीचार्ज पर डाली गई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट भी सख्त नजर आया.चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं से पूछा है कि पहले वो उन्हें ये समझाएं कि उनकी याचिका क्यों सुनी जाए. साथ ही चीफ जस्टिस ने ये भी सवाल किया है कि अगर इस आंदोलन में छात्र नहीं शामिल थे और हिंसा नहीं हुई तो फिर बसे कैसे जली थीं? ध्यान रहे कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में बीते दिनों जामिया यूनिवर्सिटी (Jamia Millia Islamia University ) और आसपास के क्षेत्र में जमकर लोकतंत्र का मखौल उड़ाया गया. विरोध का आलम कुछ यूं था कि लोगों ने सरकारी/ सार्वजानिक संपत्ति को जमकर नुकसान पहुंचाया. स्थिति नाजुक थी और अफवाहों का दौर भी जारी था तो उपद्रवियों को संभालने में पुलिस प्रशासन (Police In Jamia Protest) को भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी.

जामिया मिलिया इस्लामिया, सीएबी, विरोध, अमित शाह, मुस्लिम, Jamia Milliaजामिया मामले में कई चीजें हैं जो छात्रों के उग्र प्रदर्शन के बाद सामने आई हैं और जिनके जवाब तलाश करने जरूरी हैं

जामिया में आंदोलन के नाम पर हुई हिंसा को बीते हुए ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका है और अब वो दौर शुरू हो चुका है जिसमें इस घटना से जुड़े तमाम वो पक्ष / चेहरे सामने आ रहे हैं जो  प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस घटना से जुड़े हैं. तो आइये नजर डालते हैं जामिया प्रोटेस्ट से जुड़े उन चेहरों पर जो जहां सही हैं तो वहीं फेक भी हैं.

हिंसा का कारण 'शाकिर अली'

बात अगर 15 दिसंबर 2019 की हो तो शाम 6 बजे तक CAA और NRC के विरोध में छात्र यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 7 पर अपना प्रोटेस्ट कर रहे थे. इसी बीच अफवाह उड़ी कि पुलिस ने प्रदर्शन में शिरकत करने आए कोटा राजस्थान के शाकिर अली को गोली मार दी है जिससे उसकी मौत हो गई है.

उपद्रवियों का ये सुनना भर था. इस खबर ने आग में घी का काम किया और वो प्रदर्शन जो कुछ समय पहले तक सिर्फ जामिया यूनिवर्सिटी तक सीमित था उसका दायरा बढ़ गया और अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. जल्द ही ये अफवाह जंगल की आग की तरह फैली. नतीजा ये निकला कि उपद्रवियों ने प्राइवेट और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया शुरू कर दिया और बसों में आग लगाई.

कह सकते हैं कि जामिया क्षेत्र में जो कुछ भी हुआ. जैसा तांडव प्रदर्शनकारियों ने मचाया उसमें एक बड़ी भूमिका शाकिर अली की मौत की रही. आपको बताते चलें कि जब पुलिस से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी भी प्रदर्शनकारी पर गोली चलाने से इनकार किया और इसे अफवाह बताया. घटना के दिन मौके पर पहुंचे DSP पूर्वी दिल्ली चिन्मॉय बिस्वाल के अनुसार, असल में कोई फायरिंग नहीं हुई है. यह एक गलत अफवाह है, जिसे फैलाया जा रहा है.

अब चूंकि 'शाकिर अली की मौत' की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई इसलिए इसपर कोई कुछ भी कहे मगर ये शांति व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए फैलाई अफवाह से ज्यादा कुछ नहीं है.

पुलिस पर अंगुली उठाती एक लड़की

पूरे जामिया आंदोलन में वो तस्वीर जिसने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं. वो उस लड़की की है जो अपने दोस्तों को पुलिस से बचाते हुए उन्हें अंगुली दिखा रही है. इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रही इस तस्वीर के बाद जो सबसे पहला सवाल दिमाग में आता है वो ये कि आखिर कौन है ये लकड़ी ?

तो आपको बता दें कि जामिया प्रोटेस्ट में 'अन्याय और बर्बरता' के खिलाफ किसी हीरो की तरह उभरी इस लड़की का नाम फरजाना है. फरजाना के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारियां हमारे सामने हैं. फरजाना, जमात-ए-इस्लामी हिंद गर्ल्स इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन की सदस्य हैं और जामिया से बीए अरबी की छात्रा हैं.

ऐसा पहली बार नहीं है कि मूल रूप से केरल के कन्नूर से ताल्लुख रखने वाली फरजाना ने सोशल मीडिया के अलावा कैम्पस में सुर्खियां बटोरी हों. चाहे कश्मीर से धारा 370 हटाने का सरकार का फैसला रहा हो. या फिर सुप्रीम कोर्ट का राम मंदिर पर फैसला तमाम मौके ऐसे आए हैं जब फरजाना ने ऐसा बहुत कुछ कहा है जिसने न सिर्फ दो समुदायों क सौहार्द को प्रभावित किया है बल्कि ये भी बताया है कि ये लहजा कहीं से भी एक छात्र को शोभा नही देता.

बाकी बात फरजाना और उनके क्रांतिकारी तेवरों की चल रही है तो बता दें कि इन्होंने उस प्रदर्शन का नेतृत्व किया था जो अभी कुछ दिनों पहले तब हुआ था जब जामिया में इजराइल का एक डेलिगेशन आया था.

लाल शर्ट में छात्रों पर लाठी भांजता शख्स कौन है?

इस पूरे जामिया आंदोलन में वो तीसरी बात जिसने लोगों का ध्यान सबसे ज्यादा आकर्षित किया वो था एक ऐसे व्यक्ति का पुलिस के साथ आना और छात्रों पर लाठी भांजना जो लाल रंग की टीशर्ट में है और जिसने ड्राइविंग हेलमेट लगा रखा है. इस मामले को लेकर लगातार  आम लोगों द्वारा अफवाह फैलाई जा रही है. बात अगर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष  सिसोदिया की हो तो उन्होंने भी दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाए हैं.

बात लाल रंग की टीशर्ट लगाए आदमी की हुई है तो तमाम पत्रकारों ने भी अपने ट्वीटस  के जरिये केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह को घेरने की कोशिश की है.

जामिया की स्टूडेंट्स पर लाठी चलाते शख्स ने पूरी दिल्ली पुलिस को सवालों के घेरे में डाल दिया है. ऐसे में हमारे लिए ये जानना जरूरी हो जाता है कि ये आदमी है कौन ? जब  सादी वर्दी में आए इस पुलिस वाले को लेकर पड़ताल हुई तो जो नतीजे आए वो चौंकाने वाले थे. जिस व्यक्ति को आरएसएस का कार्यकर्ता बताया गया दरअसल वो एंटी-ऑटो थेफ्ट स्क्वाड का सिपाही था. पुलिस के अनुसार सिपाही की पोस्टिंग दक्षिणी दिल्ली में है.

ज्ञात हो कि पुलिस के इस सिपाही को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी गई है. सिपाही की फोटो को एक वर्ग द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है और दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में रखा जा रहा है.तमाम ऐसे ट्विटर हैंडल्स हैं जिन्होंने कहा है कि पुलिस के साथ आया ये व्यक्ति भरत शर्मा है जो आरएसएस सदस्य और एबीवीपी की राज्य कार्यकारी समिति का सदस्य है. बताया जा रहा है कि इस व्यक्ति को पुलिस ने संरक्षण दिया था और पुलिस के ही इशारे पर इसने प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर लाठियां बरसाई

इस मामले पर पुलिस ने जो बयान जारी किया है उसके बाद ये बात खुद साफ़ हो गई है कि दिल्ली पुलिस को लेकर अफवाह फैलाई गई है. मामला चूंकि सुर्ख़ियों में है तो हमारे लिए भी ये बताना जरूरी हो जाता है कि अक्सर ही ऐसे आंदोलनों में सादी वर्दी में पुलिस वाले होते हैं जिनका काम गतिविधियों पर नजर रखना और शांति स्थापित करना होता है. इन तमाम जानकारियों के बाद सवाल उनसे है जो पुलिस के इस रूप का विरोध कर रहे हैं. यदि पुलिस ऐसा नहीं करेगी तो फिर आंदोलन कोई भी हो, शायद ही स्थिति कभी संभल पाए. हालात नियंत्रण में कभी आ पाएं.

पुलिस ने लगाई बसों में आग!

पूरे जामिया प्रोटेस्ट में पुलिस द्वारा बसों को आग लगाना भी चर्चा का विषय बन रहा है. क्या आम, क्या ख़ास.मामले को लेकर अफवाहों का दौर लगातार जारी है. तमाम लोग है जो इस बात को लेकर मिथ्या फैला रहे हैं. मामले ने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष  सिसोदिया तक को गहरी चिंता में डाल दिया है. सिसोदिया ने आंदोलन से जुड़ी कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं और इसे राजनीति से प्रेरित बताया है.

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री पूछ रहे हैं कि इस बात की तुरंत निष्पक्ष जांच होनी चाहिए कि बसों में आग लगने से पहले ये वर्दी वाले लोग बसों में पीले और सफ़ेद रंग वाली केन से क्या डाल रहे है. अब चूंकि ये सवाल दिल्ली के उपमुख्यमंत्री  ने पूछा है, तो इसकी सत्यता जानना हमारे लिए भी बहुत जरूरी है. जब मामले की पड़ताल हुई तो पता चला कि जिस पुलिस पर आरोप लग रहा था दरअसल वो आग बुझा रही थी.

आपको बताते चलें कि बस की पिछली सीट पर आग लगी थी और उस स्थान पर लगी आग को बुझाया पुलिस के लिए एक टेढ़ी खीर थी. इसलिए पुलिस ने कैन भर भरकर पानी डाला और आग बुझाने का प्रयास किया. यानी ये बात अपने आप खारिज हो जाती है कि पुलिस ने बसों को आग लगाई और आंदोलन को ख़राब करते हुए जामिया के प्रदर्शनकारी छात्रों को बदनाम किया.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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