New

होम -> सियासत

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 06 दिसम्बर, 2018 10:15 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

सियासी अयोध्याकांड के 26 साल हो चुके. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों के एक विशेष जत्थे ने बाबरी मस्जिद को कुछ ही घंटों में जमींदोज कर दिया था. तब से हिंदू पक्ष शौर्य दिवस तो मुस्लिम पक्ष काला दिवस मनाते रहे हैं. ये अयोध्या मामला ही है जिसकी बदौलत केंद्र की सत्ता में बीजेपी की दूसरी पारी है और हैसियत ऐसी कि सामने बेहद कमजोर विपक्ष है.

आरएसएस के नेतृत्व में बीजेपी नेता भी राम मंदिर पर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. संघ प्रमुख मोहन भागवत कह रहे हैं कि जवाब देना मुश्किल हो रहा है कि अब भी मंदिर क्यों नहीं बन पा रहा, तो उद्धव ठाकरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ताने मार रहे हैं. इसी बीच संघ के इंद्रेश कुमार ने ऐसे संकेत भी दिये हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी तोड़ी तो वो ब्रेकिंग न्यूज ही देंगे. ये ब्रेकिंग न्यूज मंदिर निर्माण पर कानून या कोई अध्यादेश से कम तो होगी नहीं.

इसी दरम्यान बीजेपी की सीनियर नेता उमा भारती ने 2019 की चुनावी राजनीति से ब्रेक लेकर पूरा ध्यान राम मंदिर निर्माण पर लगाने की बात कही है. 2014 में उमा भारती ने गंगा की सफाई को लेकर इससे बड़ा वादा किया था, लेकिन नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर कामकाज ऐसा रहा कि मोदी कैबिनेट में ये विभाग उनसे लेकर नितिन गडकरी के हवाले कर दिया गया. अब जबकि उमा भारती ने अपना नया प्लान बताया है, सवाल उठता है कि राम मंदिर अभियान का हाल भी तो कहीं नमामि गंगे जैसा ही नहीं होने वाला.

1992 से उभरे बीजेपी नेताओं का हाल

जिन नेताओं की बदौलत बीजेपी शून्य या दो से शिखर पर पहुंची वे सारे के सारे या तो भुला दिये गये हैं या हाशिये के भी बाहर हैं. ये उन्हीं नेताओं की बोयी फसल है जिसे मोदी-शाह की जोड़ी बड़े शान से काट रही है.

advani, kalyan singh, joshiबीजेपी के अयोध्या आंदोलन के नायक

वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी तो मार्गदर्शक मंडल में हैं लेकिन उससे बाहरवालों का भी हाल कोई अलग नहीं है. कल्याण सिंह राजस्थान के राजभवन में वक्त बिता रहे हैं. विनय कटियार और उमा भारती बीजेपी में हैं जरूर लेकिन उनकी पूछ न के बराबर ही है.

1. कल्याण सिंह - 30 अक्टूबर, 1990 को जब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे तो पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चलायी थी, लेकिन 6 दिसंबर 1992 को वही पुलिस मूकदर्शक बन तमाशा देखती रही.

कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद गिराये जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसंबर, 1992 को ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. कल्याण सिंह ने राम मंदिर के लिए सिर्फ सत्ता ही नहीं गंवाई, बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वो एकमात्र शख्स हैं. अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने और उसकी सुरक्षा करने में नाकाम रहने के लिए कल्याण सिंह को एक दिन की सजा भी मिली.

uma bharti, mm joshiबाबरी मस्जिद गिरने के बाद उमा और जोशी

2. आडवाणी और जोशी - 6 दिसंबर को बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी भी अयोध्या में ही थे. राम मंदिर निर्माण के पक्ष में देश में माहौल खड़ा करने का श्रेय आडवाणी ने को भी जाता है. 1990 में उनकी सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकाली रथ यात्रा से मंदिर आंदोलन की धार तेज हुई. ये आडवाणी की यात्रा की ही देन रही कि देश के कोने कोने से कारसेवक अयोध्या निकल पड़े और गलियों में गूंजने लगा - 'राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे'. मस्जिद गिराने के आरोपियों में सीबीआई की चार्जशीट में आडवाणी के साथ मुरली मनोहर जोशी का भी नाम है जो फिलहाल साथ साथ मार्गदर्शक मंडल में बने हुए हैं.

3. उमा और कटियार - उमा भारती तो मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं लेकिन अब वो 2019 का लोक सभा चुनाव न लड़ने पर अडिग हैं. विनय कटियार तब बजरंग दल के संयोजक हुआ करते थे, लेकिन बाद में बीजेपी में आये और यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे. सुर्खियां बटोरने वाले बयान देने के अलावा अब उनकी सक्रियता जीरो के बराबर हो चुकी है.

अयोध्या पर बीजेपी का स्टैंड और उमा की मुहिम

बीजेपी के दो वरिष्ठ नेता अब तक 2019 में लोक सभा चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुके हैं - सुषमा स्वराज और उमा भारती. दोनों ही के चुनाव न लड़ने की वजह उनकी सेहत ठीक न होना है, लेकिन सियासी इरादों में साफ फर्क है. सुषमा स्वराज ने लोक सभा चुनाव न लड़ने की घोषणा की है, जबकि उमा भारती चुनावी राजनीति से दूरी बनाकर राम मंदिर निर्माण पर फोकस करने की बात कही है. वैसे सुषमा स्वराज की ही तरह उमा भारती ने भी कहा है, 'मेरे इस फैसले पर पार्टी ही अंतिम फैसला लेगी'.

राम मंदिर को लेकर अपनी दिशा और दशा को और उमा भारती ने इशारा भी कर दिया है. उमा भारती का कहना है कि राम मंदिर निर्माण पर बीजेपी का पेटेंट नहीं है इसलिए बीएसपी और समाजवादी पार्टी के साथ साथ उनके नेता आजम खां को भी आगे आना चाहिये.

uma bharti, advani26 साल बाद नये अभियान की तैयारी में उमा भारती

नमामि गंगे प्रोजेक्ट को लेकर भी उमा भारती बड़े बड़े दावे किया करती थीं. एक इंटरव्यू में उमा ने कहा भी था, '2015 जुलाई में हम बैठे हैं आप 2018 जुलाई में मुझे बुलाइएगा, या तो मरूंगी या गंगा को निर्मल कर के रहूंगी.' जो डेडलाइन उमा भारती ने दी थी वो आते आते खुद उन्हें ही अपने मंत्रालय से रुखसत होना पड़ा. अगस्त, 2018 में इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक चार साल बाद भी गंगा की स्थिति में कोई सुधार देखने को नहीं मिला है.

गंगा को लेकर जल संसाधन विशेषज्ञ और पर्यावरणवादी रवि चोपड़ा की टिप्पणी बड़ी महत्वपूर्ण है. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में रवि चोपड़ा का कहना रहा, 'नमामि गंगा प्रोजेक्ट भी 1986 में तत्कालीन सरकार द्वारा शुरू किये गये गंगा एक्शन प्लान की कॉर्बन कॉपी है. यमुना एक्शन प्लान का भी वही हाल रहा.'

सुषमा स्वराज की तरह उमा भारती ने भी कहा है कि उनके बारे में आखिरी फैसला पार्टी ही लेगी. मतलब जो भी उनका कदम होगा वो बीजेपी के मन की बात ही होगी. अगर उमा भारती नमामि गंगे प्रोजेक्ट का लक्ष्य हासिल नहीं कर पायीं तो राम मंदिर अभियान को किस लेवल तक ले जा पाएंगी कहना मुश्किल है. अगर बीजेपी के एजेंडे में राम मंदिर भी नमामि गंगे की ही तरह है फिर तो कोई बात ही नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि राम मंदिर निर्माण के माहौल में ये चुनाव उमा के कंधों पर निकाल लेने की योजना हो और अगली बार ये काम भी उनसे लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे किसी नेता को थमा दिया जाएगा?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर कल्याण सिंह का कहना है कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है - जनभावनाओं का हर हाल में ख्याल रखा जाना चाहिये, मुद्दा चाहे राम मंदिर निर्माण का हो या कुछ और.

बीजेपी को अगर लगता है कि इस बार तो मंदिर पर हवाबाजी से भी काम चल जाएगा क्योंकि उसे चुनावी मैदान में सामने से मजबूत चुनौती नहीं दिखायी देती. फिर तो उमा भारती ही राम मंदिर अभियान के लिए सबसे फिट हैं. पुराना चेहरा भी हैं - ओल्ड इज गोल्ड. ऐसा भी तो हो सकता है उमा भारती राम मंदिर अभियान को अपने लिए मार्गदर्शक मंडल का एक्सटेंशनल काउंटर बनाने की सोच रही हों - क्योंकि छिटपुट चर्चा तो 2019 में उनके टिकट कटने की भी आती रहती है.

इन्हें भी पढ़ें :

संघ के मुताबिक मोदी ने चुप्पी तोड़ी तो राम मंदिर पर ब्रेकिंग न्यूज ही देंगे

1992 से बहुत अलग है 2018 में अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन

काले धन की वापसी से मुश्किल तो नहीं था - प्रोफेसर अग्रवाल की जान बचाना

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय