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Updated: 28 नवम्बर, 2018 10:28 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अयोध्या में शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे का कार्यक्रम चर्चा में खूब रहा. भीड़ तो वीएचपी के संत समागम में जुटी लेकिन उतनी नहीं, जिसके दावे किये जा रहे थे. अब अगला पड़ाव दिल्ली का रामलीला मैदान है जहां 9 दिसंबर को वीएचपी की धर्म संसद का आयोजन करने जा रही है. मंदिर जब बनेगा तब बनेगा, माहौल तो बन ही गया है.

वैसे आचार संहिता की दुहाई देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इंद्रेश कुमार ने राम मंदिर से जुड़ी एक बड़ी खबर काफी हद तक लीक तो कर ही दी है. कुछ कुछ इस अंदाज में कि जैसे इतने दिन तक इंतजार किये, कुछ दिन और सही - क्योंकि 7 दिसंबर के बाद राम मंदिर पर कानून आने वाला है! ऐसा क्या?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार शिव सेना और हिंदू संगठनों के निशाने पर हैं. दूसरी तरफ, आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सुप्रीम कोर्ट और जजों को लगातार टारगेट कर रहे हैं. आखिर माजरा क्या है?

क्या राम मंदिर पर सबसे बड़ी खबर आने वाली है?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून को लेकर संघ, बीजेपी और शिवसेना से लेकर हिंदू संगठनों के नेता देश में अलख जगाये हुए हैं - लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छिटपुट जिक्र को छोड़ दें तो वो खामोशी अख्तियार किये हुए हैं. असल में इसकी खास वजह है जिसका खुलासा संघ के एक नेता ने कर भी दिया है.

narendra modiबस एक मजबूरी है, बाकी पूरी तैयारी है...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार की मानें तो केंद्र सरकार विधानसभा चुनावों के चलते लागू आदर्श आचार संहिता के चलते चुप है. फिर तो लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी वजह से चुप्पी साधे हुए हैं. फिर तो ये भी लगता है प्रधानमंत्री मोदी 7 दिसंबर को चुनाव का आखिरी दौर खत्म हो जाने के बाद बड़ी खबर देने वाले हैं.

यहां तक तो ठीक है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को लेकर इंद्रेश कुमार ने जो कुछ कहा वो सार्वजनिक रूप से किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति के मुंह से सुनने को तो नहीं ही मिलता है. सुप्रीम कोर्ट के जजों को लेकर इंद्रेश कुमार ने जिस तरह की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल किया है, उससे भी सवाल उठता है कि आखिर राम मंदिर को लेकर ये नेता लक्ष्मण रेखा क्यों लांघ रहे हैं?

लक्ष्मण रेखा क्यों लांघ रहे हैं नेता?

हाल की ही बात है. सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी सांसद मनोज तिवारी को अवमानना का नोटिस दिया था. मनोज तिवारी ने दिल्ली में सीलिंग के तहत लगाया गया एक ताला समर्थकों की भीड़ के साथ तोड़ दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने मनोज तिवारी को कोई सजा तो नहीं दी, लेकिन टिप्पणी बड़े ही सख्त लहजे में की, बशर्ते मौजूदा सियासत में उसे महत्वपूर्ण माना जाता हो. सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में मनोज तिवारी को ये कहते हुए जाने दिया कि उनकी पार्टी बीजेपी चाहे तो उनके खिलाफ एक्शन ले सकती है.

आरएसएस के इंद्रेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किसी सरकारी मुलाजिम द्वारा जड़ा ताला तो नहीं तोड़ा है, लेकिन मर्यादा की सारी सीमाएं तो लांघ ही डाली हैं. इंद्रेश कुमार डंके की चोट पर लोगों को ललकारते हुए सवाल कर रहे हैं - 'क्या देश इतना अपंग हो चुका है कि दो-तीन जज इसकी आस्था, लोकतंत्र, संविधान और मूलभूत अधिकारों को दबा दें?'

indresh kumarगुस्सा न्यायपालिका पर क्यों?

चंडीगढ़ में हुए एक सेमिनार का टॉपिक था - 'राम जन्मभूमि से अन्याय क्यों?' ये सेमिनार जोशी फाउंडेशन की तरफ से पंजाब यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया था. सेमिनार में ही इंद्रेश कुमार ने संदेश दिया कि अगर चुनाव आचार संहिता लागू नहीं होती तो सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी रहती.

इंद्रेश कुमार बोले, 'हो सकता है कि आदेश लाने के खिलाफ कोई सिरफिरा सुप्रीम कोर्ट जाएगा, तो आज का चीफ जस्टिस उसे स्टे भी कर सकता है!'

आगे की बातें भी जान लीजिए, इंद्रेश कुमार कहते हैं, 'भारत का संविधान जजों की बपौती नहीं है, क्या वो कानून से भी ऊपर हैं?'

बाकी वैचारिक साथियों की तरह इंद्रेश कुमार भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या पर सुनवाई टाले जाने से गुस्से में हैं, 'मैंने नाम नहीं लिया है क्योंकि 125 करोड़ भारतीय उनके नाम जानते हैं... तीन सदस्यीय बेंच... उन्होंने देर की...'.

फिर संसद हमले के सजायाफ्ता याकूब मेमन के हवाला देते हुए पूछते हैं, 'क्या हम और आप असहाय होकर देखते रहेंगे? क्यों और आखिर किसलिए? जो आतंकवाद को अर्धरात्रि में सुन सकते हैं, वो शांति का अपमान और उपहास कर दे... यहां तक कि अंग्रेजों की भी न्यायिक प्रक्रिया के साथ ऐसा अत्याचार करने की हिम्मत नहीं थी.'

ये शब्द और भाषा तो नहीं, लेकिन तकरीबन यही लहजा अमित शाह के भाषण में भी नजर आया था, जब वो केरल दौरे पर थे. पूरे केरल दौरे में अमित शाह सुप्रीम कोर्ट को लेकर भी उतने ही गुस्से में नजर आये जितने मुख्यमंत्री पी. विजयन को लेकर रहे.

तब केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह का कहना रहा कि सबरीमला पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसा है कि जिस पर अमल नहीं किया जा सकता. अमित शाह का कहना रहा, 'कोर्ट को ऐसे फैसले नहीं सुनाने चाहिये जो लोगों की आस्था को तोड़ने वाला हो.'

अमित शाह की ही तरह योगी आदित्यनाथ और दूसरे बीजेपी नेताओं के भी बयान आये. अब तो मनोज तिवारी का भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से मिली निराशा के बाद राम भक्तों के सब्र का बांध टूटने लगा है - और एक वीएचपी नेता से मुलाकात में मनोज तिवारी ने यकीन दिलाया है कि पार्टी फोरम और संसद दोनों जगह वो राम मंदिर का मुद्दा जोर शोर से उठाएंगे.

खबर है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर मनोज तिवारी भी निजी विधेयक ला सकते हैं. इससे पहले बीजेपी के राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा भी घोषणा कर चुके हैं कि राम मंदिर पर कानून के लिए वो प्राइवेट मेंबर बिल लाने वाले हैं.

राम मंदिर पर कानून या अध्यादेश लाने की चर्चा संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद से जोर पकड़ी है. ये कहते हुए कि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के रहते साढ़े चार साल बीत जाने के बाद लोगों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है. मोहन भागवत ने ही सलाह दी है कि मोदी सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून बनाना चाहिये.

लोगों को कानून बनाने या अध्यादेश लाने की मांग का हक भी है और सरकार के पास अधिकार भी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज होना भी उतना आपत्तिजनक नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, बेंच और जजों के खिलाफ अपमानजनक शब्द, भाषा और टिप्पणी कहीं ज्यादा खतरनाक है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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