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Updated: 28 अक्टूबर, 2016 06:02 PM
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अमर सिंह और शिवपाल यादव ने अपने कदम पीछे खींचने की बात जरूर कही है - लेकिन अखिलेश यादव की ओर से ऐसा संकेत नहीं मिला है. क्या अखिलेश शिवपाल को दोबारा कैबिनेट में शामिल करेंगे - और क्या उन्हें फिर से PWD का मंत्री बनाएंगे? क्या रामगोपाल को वापस ले लेने पर अमर सिंह के खिलाफ अपना स्टैंड वापस लेंगे?

ऐसे में जबकि यूपी जैसे सूबे की सियासत समाजवादी झूले पर झूल रही हो - दयाशंकर सिंह को अखिलेश के ऑफर के क्या मायने हैं? बात गंभीर है या यूं ही मन में आया और बोल दिया?

ये ऑफर क्यों?

बीजेपी से निकाले जाने के बाद जब दयाशंकर सिंह भूमिगत थे. उसी दौरान बीएसपी नेताओं ने दयाशंकर के परिवार को टारगेट किया. बाद में दयाशंकर ने परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के प्रति आभार जताया था. हालांकि, दयाशंकर का ऐसा पहला मामला था जिसमें किसी राजनीतिक गिरफ्तारी के लिए स्पेशल टास्क फोर्स की भूमिका रही - वरना, संगीन मामलों के अपराधियों और गैंगस्टर तक ही उसके जिम्मे रहता है. दयाशंकर, दरअसल, मायावती को काउंटर करने के लिए इस वक्त बेहद कारगर हथियार हैं. बीजेपी स्वामी प्रसाद मौर्य को मायावती के खिलाफ रणनीति इस्तेमाल करने की तैयारी में है. अगर दयाशंकर भी अखिलेश से हाथ मिला लेते हैं तो वो जोरदार जवाबी हमले करा सकते हैं. दूसरी बात, अखिलेश को मालूम है कि दयाशंकर के खिलाफ बीएसपी नेता जिस तरीके से पेश आये उससे यूपी का ठाकुर तबका मायावती से खासा खफा है. जब इलाहाबाद में मायावती ने धनंजय सिंह की घर वापसी करायी तो राजनीतिक हलकों में इसे उसी रूप में देखा गया. वरना, ये वही धनंजय रहे जिन्हें मायावती ने पुलिस बुलाकर अपने सरकारी आवास से जेल भिजवा दिया था. बीजेपी द्वारा स्वाती सिंह को महिला मोर्चा की कमान सौंपना भी यही इशारा करता है.

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अखिलेश ने ऑफर तो कर दिया - लेकिन क्या ये मुमकिन भी है? अव्वल तो बीजेपी नेता दयाशंकर की वापसी के संकेत दे चुके हैं इसलिए ऐसा हो पाएगा नहीं लगता. दूसरे, फिलहाल क्या अखिलेश किसी को समाजवादी पार्टी ज्वाइन कराने की स्थिति में हैं?

अखिलेश के अधिकार

बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश को अधिकार है कि वो किसी को भी मंत्रिमंडल में शामिल कर लें. लगभग इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए वो पवन पांडे को समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद भी मंत्रिमंडल में बनाए हुए हैं. समझा जा सकता है राज्यपाल से मुलाकात में भी वो इस बारे में अपडेट कर चुके होंगे.

अखिलेश चाहें तो दयाशंकर को भी कैबिनेट में शामिल कर सकते हैं - बस छह महीने के भीतर उन्हें विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता हासिल करनी होगी. इतने में चुनाव के दिन आ जाएंगे. हालांकि, ये सब कयासों से ज्यादा टिकाऊ नहीं दिखता.

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दया को मिले अखिलेश के ऑफर में राजनीति...

लेकिन अखिलेश ने दयाशंकर को समाजवादी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया है. उस पार्टी में जिसकी यूपी यूनिट के चीफ उनके वो एक चाचा हैं जो उनके दूसरे चाचा को वापस लेने को तैयार नहीं हैं. उस पार्टी में जिसके यूपी अध्यक्ष पद से उनके पिता ने खुद हटा दिया है - और आखिरी फैसले का अधिकार खुद अपने पास रखा है. उस पार्टी में जिसमें उनके कड़े विरोध के बावजूद अमर सिंह को हस्तलिखित नियुक्ति पत्र किसी और ने नहीं बल्कि उनके पिता ने ही दिया है.

राजनीति में कब, कौन, किससे ब्लैकमेल हो सकता है - और कब कौन खुशी खुशी किसी के लिए बलिदान दे सकता है कहना मुश्किल है. अमर सिंह कह रहे हैं कि अगर उनके बलिदान से समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक ठाक हो जाता है तो वो तैयार हैं. शिवपाल यादव की ओर से भी इशारा किया जा चुका है कि वो यूपी अध्यक्ष का पद छोड़ने को तैयार हैं - क्योंकि किसी भी हालत में उन्हें बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है. वैसे अखिलेश ने तो उसी दिन साफ कर दिया था कि चाहें तो उनकी कुर्सी ले ली जाए, लेकिन टिकट तो वो ही बांटेंगे.

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फिर भी अखिलेश यादव किसी सूरत में दयाशंकर को साध लेते हैं तो वो निश्चित रूप से अमर सिंह के बैलेंसिंग फैक्टर बनेंगे. लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा जब दया और स्वाती को बीजेपी से बढ़िया डील मिले.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि बीएसपी से स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस से रीता बहुगुणा जोशी को झटकने के बाद अब बीजेपी की नजर समाजवादी पार्टी पर ही होगी. हो सकता है अखिलेश को ऐसी कोई भनक लग चुकी हो और वो इस तरीके से उसे आगाह करने की कोशिश कर रहे हों.

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