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Updated: 26 अक्टूबर, 2016 05:09 PM
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यूपी में राष्ट्रपति शासन की बात इस बार अदालत की तरफ से आई है, इसलिए गंभीर है. हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा है क्यों न धारा 356 के तहत कार्रवाई की सिफारिश की जाये? मायावती तो कई बार ये मांग कर चुकी हैं. पहले उन्होंने केंद्र सरकार से इसकी मांग की. बाद में उन्होंने इल्जाम लगाया कि मोदी सरकार ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

हाल में आयोग से जल्दी चुनाव कराने की मांग करते हुए भी मायावती ने समझाया कि यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाना क्यों जरूरी है - मुलायम सिंह यादव के परिवार में 'अंदरूनी झगड़े' का अखिलेश यादव की सरकार के कामकाज पर उल्टा असर पड़ेगा.

वैसे हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन की बात उत्तर प्रदेश में डेंगू के मामलों को लेकर कही है - और चीफ सेक्रेट्री को तलब किया है. उधर, दशहरा बीत जाने के बाद भी समाजवादी पार्टी का रामलीला खत्म नहीं हो सका है.

ड्रामा चालू आहे

समाजवादी पार्टी का ड्रामा चालू है. इस ड्रामेबाजी में मसाले की भी कोई कमी नहीं. कुछ कुछ होता है तभी पर्दा गिरता है. लगता है ये क्लाइमेक्स था, लेकिन तभी पर्दे के पीछे शोर और शेड में हाथापाई और धक्का-मुक्की होने की आभासी छवि उभरती है. सूत्रधार कहता है - सब ठीक ठाक है. सुन कर लगता है ये तो ड्रामा नहीं हकीकत है. इसके आगे तो हर जादुई यथार्थ फेल है.

एक सीन में एक किरदार कहता है - उसने मुझे वहां चांटा मारा. लेकिन आवाज कोई नहीं सुनता. शायद शोर ज्यादा होने के चलते ऐसा हो रहा हो. पर्दा उठता है कुछ बड़े किरदार नजर आते हैं - घोषणा होती है उस 'दूसरे' को छह साल के लिए दल-बदर किया जाता है. शंखध्वनि तेज होने की वजह से या किसी और कारण मालूम नहीं कैसे ये आवाज भी उस जगह पहुंच पाती है या नहीं जहां की घटना बताई जाती है.

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इस फेड-इन और फेड-आउट फेर में दर्शकों का माथा अगर घूम जाता है तो समझिये सभी निर्विकार भाव से देख रहे हैं - और अगर किसी को मैजिक रियलिज्म का अहसास हो तो जरूर उसके मन में कोई स्थाई भाव है. संदेह और भ्रांतिमान् के बीच की स्थिति में ऐसा ही होता है.

अभी आगे है...

जब तक अमर सिंह मुलायम के हस्तलिपिबद्ध पाती पाकर दिल से दल में शिफ्ट नहीं हुए थे - अखिलेश उन्हें बाहरी बताते रहे, लेकिन तकनीकी तौर पर अब वो ऐसा नहीं कर सकते. इसलिए अब वो सवाल उठा रहे हैं कि जब राम गोपाल यादव छह साल तक बाहर रहेंगे तो अमर सिंह अंदर कैसे रह सकते हैं.

अखिलेश यादव ने अमर सिंह को दलाल कहा था - और शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव को 'दलाल' बताया. हिसाब बराबर. लेकिन एक भीतर और एक बाहर, ऐसा कैसे होगा? अखिलेश ने ये भी साफ कर दिया है कि अगर सपा के सालाना जलसे में अमर कथा आयोजित हुई तो वो तो प्रसाद लेने आने से रहे.

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तो क्या 'बाहरी' अंदर नहीं!

मुलायम सिंह की 'ऑल इज वेल' वाली प्रेस कांफ्रेंस में जब अमर सिंह का नाम आया तो वो बिफर उठे - अमर सिंह को बीच में क्यों लाते हो? फिर उन्होंने जिस 'बाहरी' की ओर इशारा किया उस बात ने ड्रामा के अगले एपिसोड को लेकर दिलचस्पी बढ़ा दी है.

रामगोपाल को बाहर करते वक्त शिवपाल ने एक और बात कही - उन्हीं के चलते नेताजी मुलायम सिंह प्रधानमंत्री नहीं बन पाये. इस हिसाब से देखें तो मुलायम के साथ दूसरी बार धोखा हुआ. रामगोपाल से पहले ऐसा लालू प्रसाद ने किया था, लेकिन तब वो रिश्तेदार नहीं थे. रामगोपाल सगे न सही चचेरे भाई तो हैं.

बिहार के महागठबंधन से अलग होते वक्त भी मुलायम के फैसले पर लोगों की यही टिप्पणी थी कि वो सब कुछ सीबीआई के डंडे के दबाव में कर रहे हैं. मुलायम ने भी बीजेपी की जगह नीतीश कुमार को हराने की अपील कर ऐसी बातों को दमदार बना दिया था.

लेकिन मुलायम पर तो ऐसे आरोप तब भी लगे जब मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का साथ न देते हुए वो पूरे परिवार के साथ संसद में बैठे रहे.

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क्या तब भी रामगोपाल ने मुलायम को ऐसा करने के लिए कहा था. क्या मुलायम सिंह पर रामगोपाल का इतना असर था कि वो उनकी हर बात आंख मूंद कर मान लेते रहे? लेकिन ऐसा क्या हुआ कि मुलायम सिंह ने उन्हीं रामगोपाल को छह साल के लिए खदेड़ने का हुक्म जारी करा दिया. क्या सिर्फ इसलिए शिवपाल यादव ने मुलायम को ऐसा करने के लिए कहा? या फिर इसलिए क्योंकि जब एक चाचा अखिलेश को झूठा बता रहा था तो दूसरे ने कहा दिया कि वो सच के सिवा कभी कुछ बोलता ही नहीं - वही तो एक ऐसा है जिसके बारे में इस तरह के दावे किये जा सकते हैं.

शिवपाल की नजर से देखा जाए तो रामगोपाल का परिवार सीबीआई के लपेटे में आये यूपी के पूर्व इंजीनियर यादव सिंह के साथ फंस रहा है - और वो उन्हें बचाने के लिए विरोधी बीजेपी के हाथों खेल रहे हैं.

तो क्या शिवपाल की सलाह पर मुलायम सिंह यादव रामगोपाल यादव को बाहर कर बचने की कोशिश कर रहे हैं? अगर ऐसा कुछ है भी तो क्या इतने भर से वे बच पाएंगे. मुलायम सिंह यादव जैसे मझे हुए राजनेता से ऐसी अपेक्षा तो नहीं हो सकती.

प्रेस कांफ्रेंस में मुलायम सिंह ने दावा किया कि जो 'बाहरी' समाजवादी परिवार या पार्टी को डिस्टर्ब कर रहा है - उसका पता लगा लिया गया है.

इसका मतलब तो अमर सिंह तब भी वो 'बाहरी' नहीं थे जब अखिलेश को इस बात का शक था. इससे तो ऐसा लगता है कि अखिलेश को अमर सिंह को लेकर कोई गलतफहमी रही या फिर वो किसी और वजह से उनके अंदर बदले की भावना घर कर गयी है.

माना जाता है कि छह साल पहले अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से बाहर करने के पक्ष में रामगोपाल और अखिलेश यादव दोनों थे, लेकिन फ्रंट पर आजम खां की ही आवाज गूंजती रही. अमर सिंह की दोबारा एंट्री से पहले भी अगर मुखालफत की कोई आवाज सुनने को मिलती तो वो आजम की ही होती.

कुछ सवाल ऐसे भी उठाये जा रहे हैं, मसलन - कहीं ऐसा तो नहीं कि जिस 'बाहरी' की ओर मुलायम का इशारा है उसका अमर सिंह से भी कोई कनेक्शन है - और इसी वजह से अखिलेश हाथ धोकर उनके पीछे पड़े हैं?

असल बात जो भी हो, मुलायम सिंह के बयान से ये तो समझ ही लेना चाहिये कि परिवार में भूचाल लाने वाला तथाकथित 'बाहरी' अब भी बाहर ही है. कहीं वो 'बाहरी' पिंजरे में कोई पंछी तो लेकर नहीं घूम रहा - जिसे मुलायम सिंह 'तोता' समझ रहे हों और अखिलेश यादव 'कबूतर' समझ कर पीछे पड़े हों.

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