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Updated: 06 फरवरी, 2021 07:00 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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ईरान ने पाकिस्तान में फिर से सर्जिकल स्ट्राइक किया है. इस हमले का नतीजा यह हुआ कि ईरान ने अपने कुछ अपह्त कर लिए गए नागरिकों को 'जैश उल अदल' नाम के आतंकी संगठन के कब्जे से छुड़वा लिए. ईरान की यह सैन्य कार्रवाई विगत मंगलवार की रात को हुई. हालांकि इसका मीडिया ने कायदे से नोटिस तक नहीं लिया. जैश अल-अदल के आतंकी पाकिस्तान की ईरान से लगती सरहद पर लगातार हमले बोल रहे हैं. उनके 2019 के हमले में 27 ईरानी नागरिक मारे गए थे. गौर करें की पुलवामा हमले से ठीक एक दिन पहले ही यह हमला भी हुआ था ईरान की सीमा में. पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे. ईरान पर हुए हमले में 27 ईरानी नागरिक मारे गये थे.

किन देशों का पड़ोसी जंगली

भारत और ईरान का यह दुर्भाग्य है कि उन्हें पाकिस्तान जैसा जंगली और धूर्त देश पड़ोसी के रूप में है. पाकिस्तान भारत से इसलिए जला भुना रहता है क्योंकि भारत मूलत: हिन्दू देश है हालांकि यहां पर धर्म निरपेक्ष मूल्यों का पूरी तरह पालन होता है. भारत के संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार भी दिए गए हैं. इसी तरह ईरान से पाकिस्तान इसलिए दोस्ती नहीं करता, क्योंकि ईरान एक शिया बहुल देश है. पाकिस्तान में शियाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं जनसंख्या में बहुल सुन्नी.

Iran, Pakistan, Surgical Strike, Terrorist, Terrorist Organisation, Jaish Ul Adl, India, Imran Khanभले ही ईरान ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक आज की हो लेजिन मुल्क बरसों से आतंकवाद के पोषक के रूप में काम करता रहा है

शियाओं का वहां पर लगातार कत्लेआम होता ही रहता है. इसके साथ ही, पाकिस्तान की सऊदी अरब से नजदीकियां भी कभी भी ईरान को रास नहीं आती है.भारत-ईरान दोनों ही पाकिस्तान की बेहूदा हरकतों से परेशान हैं. पाकिस्तान के आतंकियों की फैक्ट्री के रूप में उभरने के चलते वहां भी लोग जूझ रहे हैं. अब सवाल यह है कि दोनों देशों के पास विकल्प ही क्या बचा है. इसके अलावा कि वे पाकिस्तान को घुटनों पर ला सकें?

दरअसल अगर भारत-ईरान मिलकर पाकिस्तान के साथ हर स्तर पर लड़ें तो उसे होश ठिकाने आ सकता है. वक्त का तकाजा है कि ये दोनों देश मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ कोई संयुक्त रणनीति तैयार करें. भारत-ईरान का पाकिस्तान के खिलाफ लामबंद होना तो आज के वक्त की मांग है. पाकिस्तान ऐसे तो सुधरने का नाम ही नहीं लेता. वहां पर हाफिज सईद और मौलाना अजहर महमूद जैसे कुख्यात आतंकी सक्रिय हैं.

ये भारत और ईरान के ऊपर आतंकी हमले करवाने की रणनीति बनाते रहते हैं. अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ईरान के राष्ट्रपति डॉ. हसन रूहानी पाकिस्तान के खिलाफ रणनीति बनाने पर विस्तार से चर्चा कर लें तो बहुत सही रहेगा. वैसे भी दोनों नेताओं के बेहद मधुर संबंध भी हैं. आपको याद होगा कि पुलमावा हमले के जवाब में भारतीय सेना ने जब आजाद कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया, उसी दिन ईरान ने भी पाकिस्तान पर हमला किया था.

भारतीय सेना के कमांडोज ने आजाद कश्मीर में घुसकर 38 आतंकी मार गिराए थे. तब ही पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर ईरान ने मोर्टार दागे थे. ईरान के बॉर्डर गार्ड्स ने सरहद पार से बलूचिस्तान में तीन मोर्टार दागे थे. अगर यह एक्शन मिलकर होता तो पाकिस्तान को जन्नत की हकीकत समझ आ जाती है.

क्यों पाक चाहता भारत से बात करना

अब पाकिस्तान भारत से बातचीत करना चाह रहा है. पाकिस्तान के सेनाप्रमुख कमर जावेद बाजवा ने हाल ही में कहा कि उनका देश भारत के साथ शांति कायम करना चाहता है. पर, भारत ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक पाकिस्तान आतंक और शत्रुता से मुक्त माहौल नहीं बनाएगा, तबतक कोई बातचीत तो नहीं होगी. दुनिया भर में आतंक फैलाने वाले मुल्क से बातचीत करने का कोई मतलब ही नहीं है.

एक तरफ पाकिस्तान भारत से वार्ता करने की बात कर रहा है, दूसरी तरफ पाकिस्तान सीमा पार से कभी घुसपैठियों को भेजता है तो कभी कश्मीर में आग लगाने की कोशिश करता है. पाकिस्तान जैसे गैर- जिम्मेदार मुल्क से बातचीत करने का कोई मतलब भी नहीं है. उसके कई नेता भारत पर परमाणु बम गिराने की चेतावनी देते रहते हैं. इसी से ही उसकी नीच मानसिकता का अँदाजा लग जाता है.

पाकिस्तान जो नीचतापूर्ण काम भारत में कर रहा है, वहीं वह ईरान में भी करता है. पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की सीमा है. इन दोनों देशों के बीच संबंधों में बदलाव तब आया जब दिसंबर, 2015 में सऊदी अरब ने आतंकवाद से लड़ने के लिए 34 देशों का एक 'इस्लामी सैन्य गठबंधन' बनाने का फैसला किया. पर इस गठबंधन में शिया बहुल ईरान को शामिल नहीं किया गया.

इसमें सऊदी अरब ने पाकिस्तान को प्रमुखता के साथ जोड़ा. इस कारण ईरान काफी नाराज हुआ था पाकिस्तान से. पाकिस्तान के स्वीडन में बस गए राजनीतिक चिंतक डा. इश्तिक अहमद ने अपनी किताब 'दि पाकिस्तान गैरिसन स्टेट' में लिखा है कि 'पाकिस्तान की बुनियाद ही नफरत पर रखी गई थी और जिन्ना के बाद उस पर सेना का असर पूरी तरह से हो गया. इसलिए उससे आप कभी भी बेहतर आचरण की अपेक्षा नहीं कर सकते.'

यह बात तो बार-बार साबित हो चुकी है. वहां पर कथित रूप से निर्वाचित सरकारें नाम-निहाद ही होती हैं. अब इतने खराब और गैर –जिम्मेदार देश से तो लड़ने के लिए जरूरी है कि अधिक से अधिक देश साथ मिल जाएं. पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चे में भारत और ईरान को चाहिए कि बांग्लादेश को भी शामिल कर लें. सबको पता है कि बांग्लादेश कभी हिस्सा ही था पाकिस्तान का.

अब बांग्लादेश उसे फूटी नजर भी नहीं देखता. पाकिस्तान बांग्लादेश के भी आतंरिक मामलों में पंगे लेता है. बांग्लादेश ने 1971 के कत्लेआम के गुनाहगार और 'जमात-ए-इस्लामी' के नेता कासिम अली को जब फांसी पर लटकाया तो पाकिस्तान ने आपत्ति जताई. हालांकि बांग्लादेश ने पाकिस्तान की एक नहीं सुनी.

दोनों देशों में 1971 के कत्लेआम के सवाल पर रिश्ते लगातार खराब बिगड़ते रहे ही हैं. कुछ समय पहले बांग्लादेश ने पाकिस्तान के एक राजनयिक को देश से निकलने के आदेश दिए थे. इससे पहले शेख हसीना ने साल 2000 में पाकिस्तान के एक राजनयिक को तुरंत ढाका छोड़कर जाने को कहा था. उसपर आरोप था वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट है और बांग्लादेश के चरमपंथी समूहों की मदद कर रहा है.

अब यह देखने वाली बात है कि कब भारत और ईरान पाकिस्तान के खिलाफ मिलकर लड़ते हैं और उसमें बांग्लादेश को भी शामिल कर लेते हैं.

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आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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