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Updated: 17 जून, 2020 07:37 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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भारत-चीन संबंधों को लेकर बीती बातों पर विचार का वक्त गुजर चुका है. अब वक्त जाया करने से कोई फायदा नहीं है. फिर भी हड़बड़ी में फैसला नहीं होना चाहिये. लेकिन एक बात तो पक्की है - चीन के साथ भारत के लिए आर-पार का वक्त आ चुका है. लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की करतूत उड़ी-पुलवामा से कहीं ज्यादा संगीन है. उड़ी और पुलवामा में तो पाकिस्तान परस्त और प्रशिक्षित आतंकवादियों ने हमले किये थे, लद्दाख (Galwan Valley Ladakh) में तो सीधे सीधे चीन के फौजी शामिल हैं. ये तो करीब करीब कारगिल जैसा ही मामला है.

अब तो जरूरी हो चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) चीन के खिलाफ भी सर्जिकल स्ट्राइक (Surgical Strike) के बारे में जल्द से जल्द फैसला लें, भले ही वो कूटनीतिक तरीके वाला हो!

कैसी हो चीन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक

कोरोना वायरस संकट को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ हो रही दूसरे दिन की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थोड़े शब्दों में जो भी कहा है वो वैसा ही इशारा कर रहा है जैसा फरवरी, 2019 में पुलवामा हमले के बाद उनका बयान था. बाद में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बालाकोट में एयरस्ट्राइक कर पुलवामा का बदला भी लिया था.

चीन का नाम लिये बगैर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'किसी को इस बात का भ्रम नहीं पालना चाहिए कि भारत उकसाने पर चुप बैठेगा... हम किसी को कभी उकसाते नहीं है, लेकिन अगर कोई हमें उकसाता है तो हर तरीके से जवाब देने में सक्षम हैं.'

चीन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार ऐसा सख्त बयान दिया है. डोकलाम विवाद के दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने भी चीन के प्रति अपनी बातों में ऐसी ही सख्ती दिखायी थी - और उस पर चीन की तरफ से रिएक्शन भी आया था. तब जेटली ने कहा था कि चीन को मालूम होना चाहिये कि ये 1962 का भारत नहीं है. हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी चीन को थोड़े सख्त लहजे में आगाह किया था.

प्रधानमंत्री ने कहा, 'भारत ने हमेशा अपने पड़ोसियों के साथ सहयोग और मित्रता का व्यवहार रखा है... जब भी मौका आया है हमने अपनी अखंडता और संप्रभुता के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है.'

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो कहा ही था कि हमारे सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस पर मुहर लगाने के साथ ही दो कदम आगे की तरफ भी इशारा किया है.

narendra modi, putin and xi jinpingदुनिया के सामने चीन तो नंगा करने में अब बिलकुल भी देर नहीं होनी चाहिये.

लद्दाख वैली में चीनी सैनिकों के साथ हुई भिड़ंत में भारत के 20 जवान शहीद हुए हैं - और न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक चीनी फौज के भी कमाडिंग ऑफिसर समेत 43 सैनिक हताहत हुए हैं. हालांकि, चीन की तरफ से इस मामले कुछ भी नहीं बताया गया है.

देश के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री ने चीन की सरहद पर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी और कहा - "सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. हमारे सैनिक मारते-मारते मरे हैं." इस मौके पर शहीद जवानों के लिए शोक स्वरूप दो मिनट का मौन भी रखा गया.

चीन के साथ तनाव का माहौल जरूर रहा करता था, लेकिन अभी तक ऐसा वाकया नहीं देखने को मिला था. डोकलाम विवाद जरूर थोड़ा गंभीर रहा, लेकिन बातचीत से उसका भी समाधान निकाल लिया गया, लेकिन अब तो सिर से ऊपर पानी बहने लगा है. 2014 से लेकर अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 18 बार मिल चुके हैं.

असल बात तो ये है कि अब भारत-चीन संबंधों को लेकर बीती बातों पर विचार-विमर्श का दौर साफ तौर पर खत्म हो चुका है. अब वक्त जाया करने का भी कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है. फिर भी हड़बड़ी में फैसला नहीं होना चाहिये. लेकिन एक बात तो पक्की है - भारत के लिए चीन को उसी के लहजे में सबक सिखाना बहुत ही जरूरी हो गया है.

चीन जैसे देश के लिए सैन्य कार्रवाई से कहीं ज्यादा नुकसानदेह वो एक्शन हो सकता है जो सीधे उसकी अर्थव्यवस्था पर चोट करे. ऐसा एक्शन जिससे दुनिया भर में फैले उसके कारोबार पर सीधी, सटीक और घातक चोट पहुंचे - और वो इस कदर घिर जाये कि मजबूर होकर सोचे कि भारत के खिलाफ ऐसी जुर्रत उसने की ही क्यों?

चीन की पॉलिसी भी तो यही मानी जाती है कि वो अपने दुश्मन को बगैर युद्ध लड़े शिकस्त देने में यकीन रखता है. "100 लड़ाई में 100 जीत हासिल करने के लिए कौशल ही सब कुछ नहीं है - बिना लड़े दुश्मन को वश में करना ही कौशल का परपेक्शन है," ये बात चीनी जनरल सु जू ने ही तो कही था - और आज भी चीन के लिए इससे आगे का सैन्य दर्शन नहीं है. जनरल सुन जू ने ऐसी बातें अपनी किताब द आर्ट ऑफ वॉर में लिखी हैं और अब भी वो चीन में फौज का सबसे बड़ा रणनीतिकार माना जाता है.

अगर शठे शाट्यम् समाचरेत वाले फॉर्मूले के हिसाब से देखें तो चीन को शिकस्त देने के लिए युद्ध लड़ने की कतई जरूरत नहीं है. जरूरी है बगैर कोई युद्ध लड़े चीन को दुनिया के सामने बेबस और मजबूर कर देना.

ये बड़ा ही माकूल वक्त है जब भारत को हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जोर शोर से चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध की डिमांड रखनी चाहिये. अपनी डिमांड के साथ भारत को कोई नयी बात बताने की भी जरूरत नहीं होगी. भारत को बस फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयुक्त राष्ट्र का वो भाषण याद दिलाना होगा - भारत युद्ध नहीं बुद्ध का देश है.

भारत को समझाना होगा कि चीन के खिलाफ तत्काल प्रभाव से आर्थिक प्रतिबंध लागू करने की जरूरत क्यों आ पड़ी है?

कुछ छिपा भी तो नहीं है. भारत को समझाना होगा कि कैसे चीन जगह जगह दोहरे जख्म दे रहा है. हॉन्ग-कॉन्ग को लेकर चीन के नये कानून के खिलाफ पहले से ही गुस्सा है. लगातार उसका विरोध हो रहा है. लद्दाख में चीन ने जो किया है वो भी ऐसे दौर में जब उसी के दिये हुए दर्द से भारत और पूरी दुनिया कराह रही है.

कोरोना जैसी विभीषिका देकर चीन ने तो पूरी दुनिया को तबाह करने की जंग पहले से ही छेड़ रखी है. अब तो वो धीरे धीरे अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए नये नये तौर तरीके अख्तियार कर रहा है और अलग अलग हथकंडे अपना रहा है.

पाकिस्तान इस बात का मिसाल है कि कैसे आतंकवाद को प्रमोट करने के बावजूद जैसे ही उसे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे-लिस्ट का ध्यान आता है, दहशत में आ जाता है और दहशतगर्ती के खिलाफ एक्शन के जरिये सबूत पेश करने लगता है. मान कर चलना होगा अगर चीन के साथ भी इसी तरीके का कोई एक्शन हुआ तो उसे भी अपनी औकात समझते देर नहीं लगेगी.

हाल फिलहाल तो चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध ही सबसे बड़ा सर्जिकल स्ट्राइक साबित हो सकता है - वैसे अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कुछ और भी है तो उनके पास तो ऐसे हर एक्शन और रिएक्शन के लिए पहले के मुकाबले बड़ा ही मैंडेट मिला हुआ है.

कैसा हो चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध

17 अप्रैल, 2020 का मोदी सरकार का वो फैसला बहुत ही जरूरी था. देश में होने वाले FDI यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों को ऐसे पड़ोसी मुल्कों के लिए सख्त कर दिया जिनकी सीमा भारत से लगी हुई हो.

ये नियम लागू होने के बाद से चीन, पाकिस्तान या भारतीय सीमा से लगे किसी भी देश के लिए किसी भी भारतीय कंपनी में हिस्सा लेने से पहले सरकारी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है - और खास बात ये है कि पड़ोसियों में सबसे ज्यादा कारोबार चीन के साथ होने के चलते सबसे ज्यादा असर भी उसी पर होना था. मोदी सरकार के इस फैसले का कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्वागत किया था और ये कहते हुए क्रेडिट लेने की कोशिश की थी ये उनकी ही सलाह और डिमांड थी जिस पर सरकार ने अमल किया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्विनी महाजन की तो मांग है कि मोदी सरकार चीन की कंपनियों को सरकारी टेंडर में हिस्सा लेने से ही बैन कर दे. अश्विनी महाजन का कहना है कि अब समय आ गया है कि चीनी उत्पादों के प्रति देश तिरस्कार की भावना का प्रदर्शन करे. अश्विनी महाजन ने फिल्म स्टार, क्रिकेटर और अन्य शख्सियतों से भी अपील की है कि वे चीन के सामानों को प्रमोट न करें.

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत मुहिम के लिए लोकल को वोकल बनाने की अपील भरी सलाह के बाद केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की कैंटीन सिर्फ स्वदेशी उत्पाद बेचे जाने का फैसला किया था. ये फैसला 1 जून से लागू होने वाला था, लेकिन फिर किन्हीं वजहों से इसे होल्ड कर लिया गया है. अब ऐसा ही फैसला देश की सभी सरकारी कैंटीन में लागू कर दिया जाना चाहिये.

सरकार को ये भी चाहिये कि चीन के सामानों पर आयात शुल्क बढ़ा दे और ज्यादा से ज्यादा कोरोना सेस भी लगा दे - ताकि सस्ते के चक्कर में चीनी प्रोडक्ट लेने वालों के पास भी कोई विकल्प न बचे. ऐसा हुआ तो भारतीय प्रोडक्ट और चीनी उत्पाद दोनों की कीमत बराबर होने पर सस्ते के चक्कर में पड़ने वाले लोग भी स्थानीय सामान लेने को तरजीह देंगे. हो सकता है ऐसा करने से कुछ दिन मुश्किलें हों, ऐसी मुश्किलें लॉकडाउन के दौरान होने वाली दिक्कतों से बड़ी तो नहीं होंगी.

चीन के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी को चाहिये कि संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आवाज उठाने के साथ साथ देशवासियों से भी राष्ट्र के नाम संबोधन देकर ऐसी ही अपील करें. जब पूरा देश प्रधानमंत्री की एक अपील पर एक साथ घर के बाहर खड़े होकर ताली और थाली बजा सकता है, दीया जलाने में होड़ लगा सकता है - चीन के खिलाफ किसी अपील का तो स्वाभाविक तौर पर डबल असर होगा.

ये घरेलू पाबंदियां भी चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों से कम असरदार नहीं होंगी क्योंकि भारत बहुत बड़ा बाजार है और चीन अब तक उसका जी भर फायदा उठाता रहा है - ये देखने में भले ही धीमा लगे लेकिन चीन के लिए ये जोर का झटका होगा. बिलकुल वैसे ही जैसे सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान तिलमिला उठा था. तब भी चीन तक चोट पहुंची ही होगी क्योंकि पाकिस्तान तो उसके लिए दोस्त से भी बढ़ कर बेहद करीबी दोस्त है, लेकिन चोट जब खुद की छाती पर पड़ती है तो दर्द देर तक बना रहता है. ये देर तक हमेशा जितना लंबा भी हो सकता है. वैसे भी शी जिनपिंग भी अब परवेज मुशर्रफ की तरह पेश आने लगे हैं - और चीन में जो हालात हैं वो दिन दूर नहीं जब शी जिनपिंग का हाल भी उनके पुराने खास दोस्त परवेज मुशर्रफ जैसा हो जाये.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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