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Updated: 13 जून, 2020 10:41 PM
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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली (PM KP Oli) ने जिस मकसद से नया नक्शा (Napal New Map) बनवाया था, उसमें अब तक कामयाब रहे हैं. आगे भी कायम रहेंगे, ओली के विरोधियों के तेवर देख कर कुछ भी कहना मुश्किल है. असल बात तो ये है कि केपी ओली ने नेपाल का नक्शा नहीं पास कराया है, बल्कि तात्कालिक तौर पर अपनी कुर्सी बचा ली है. समझने वाली बात ये भी है कि केपी ओली ने भारत के खिलाफ ये कदम वैसे ही उठाया है जैसे पाकिस्तान (Pakistan) के हुक्मरान करते आये हैं - ऐसे में भारत के लिए जरूरी हो गया है कि वो हर हाल में नेपाल को पाकिस्तान बनने से रोकने में जल्दी से जुट जाये.

पाकिस्तान जैसी है नेपाल की ये हरकत

नेपाल के विवादित राजनीतिक नक्शे को वहां की संसद की मंजूरी मिल गयी है. संविधान संशोधन विधेयक पर वोटिंग के दौरान विपक्षी नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल ने प्रधानमंत्री केपी ओली सरकार के विधेयक का सपोर्ट किया है.

नेपाल की मौजूदा सरकार के हिसाब से देखें तो प्रधानमंत्री केपी ओली ने राजनीतिक नक्शे के नाम पर भारत के खिलाफ कदम उठा कर अपने विरोधियों को चुप करा दिया है - और अपनी कुर्सी बचा ली है.

सत्ता की राजनीति में देश की संप्रभुता और अखंडता का मुद्दा हमेशा ही कारगर साबित होता रहा है. नेपाल के नये नक्शे के नाम पर केपी ओली ने अपने विरोधियों को अपने साथ खड़ा कर लिया और संविधान संशोधन विधेयक देश की एकता और अखंडता के नाम पर पास करा लिया. महीना भर पहले तक ये विरोधी खेमा केपी ओली का इस्तीफा मांग रहा था. केपी ओली को ऐसे ही एक मुद्दे की तलाश थी जो उनकी कुर्सी बचा सके.

नेपाल के मीडिया के मुताबिक नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी में पुष्प कमल दहल और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल के समर्थकों की तरफ से प्रधानमंत्री केपी ओली के इस्तीफे की मांग की जा रही थी. तभी केपी ओली ने ऐसी चाल चली की सभी चारों खाने चित्त हो गये. अगर विरोधी इस्तीफे की मांग से पीछे नहीं हटते तो जनता में मैसेज जाता कि वे देश विरोधी हैं और ऐसा करके केपी ओली ने फिलहाल तो कुर्सी बचा ही ली है. वैसे विरोधियों का कहना है कि वे अपनी मांग खत्म नहीं किये बल्कि बजट और नक्शे के पारित होने तक होल्ड किये हुए हैं.

पाकिस्तान भी तो ऐसा ही करता है. पाकिस्तानी हुक्मरान हमेशा ही कश्मीर के नाम पर जनता का ध्यान बाकी मुद्दों से भटकाये रखते हैं और जो पार्टी सत्ता पर काबिज होती है वो विरोधियों को ऐसे ही किनारे लगाये रखती है. जो पार्टी ये सब मैनेज कर लेती है उस पर पाक फौज की कृपा बनी रहती है, लेकिन तभी तक जब तक सब मैनेज होता रहे और फौजी नेतृत्व के मनमाफिक चीजें चलती रहें. पाकिस्तान के तख्तापलट को छोड़ दें तो जब भी राजनीतिक नेतृत्व ने फौज को नजरअंदाज करने की कोशिश की, सत्ता से हाथ तो धो ही बैठे, फिर कहीं के नहीं हुए. नवाज शरीफ और इमरान खान होने का फर्क भी फिलहाल इसी हिसाब से देखा जा सकता है.

kp oli and narendra modiनेपाल अगर छोटा भाई है तो वक्त रहते उसे सही रास्ते पर लाना भी जरूरी है

चीन ने भी तो ऐसा ही किया था. जब चीन को लगा कि हांगकांग को लेकर बने कानून का विरोध होने लगा तो उसने भारत के साथ सीमा विवाद को हवा दे दी, ताकि देश की एकता और संप्रभुता के नाम पर किसी भी तरह के विरोध को दबाया जा सके.

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने भी भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान वाली नीति अपना ली और अभी तो सफल ही माने जाएंगे. नेपाल की राजनीति में वैसे भी वामपंथियों के सत्ता में होने के कारण चीन से नजदीकी स्वाभाविक लगती है. केपी ओली शुरू से ही भारत विरोधी रूख के लिए जाने जाते हैं और फिर चीन से नजदीकियां स्वाभाविक हो जाती हैं. चीन बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश भी कर रहा है और नेपाल तक रेलवे लाइन भी बिछा रहा है.

अब तो ये कोई छिपी बात रह भी नहीं गयी है कि नेपाल के भारत विरोधी रवैये के पीछे चीन का ही हाथ है. आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरवणे नेपाल को तो भाई जैसा बताते भी हैं, लेकिन चीन का बगैर नाम लिये कहते भी हैं कि नेपाल के लिपुलेख मुद्दा उठाने के पीछे कोई विदेशी ताकत हो सकती है.

नये नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल ने अपने इलाके में दिखाया है. करीब 35 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्‍सा है जबकि नेपाल सरकार का दावा है कि ये इलाका उसके दारचुला जिले में पड़ता है.

नेपाल के प्रधानमंत्री को तो वैसे भी किसी बड़े मुद्दे की तलाश थी जिस पर सवार होकर वो अपने विरोधियों का मुंह बंद कर सकें. जैसे ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन किया, केपी ओली ने मुद्दा लपक लिया - और फिर फौरन ही नया नक्‍शा जारी कर दिया. भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में साफ साफ कहा भी था - 'नेपाल को भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए. नेपाल के नेतृत्व को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बैठकर बात हो सके.'

लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री के मन में तो कुछ और ही चल रहा था, लिहाजा वो अपने कदम बढ़ाते गये - और नक्शे को संसद की मंजूरी दिलाने में सफल हो गये.

पाक फौज जैसी है नेपाल पुलिस की हरकत

12 जून को साढ़े नौ बजे नेपाल सशस्त्र बल के जवानों और सीमा से लगे सीतामढ़ी जिले के लोगों के बीच झड़प हुई थी. तभी नेपाल पुलिस की फायरिंग में एक भारतीय नागरिक की मौत हो गयी और कई लोग जख्मी भी हो गये. उसी दौरान पुलिसवालों ने लगन राय को पकड़ लिया और अपने साथ लेते गये. बाद में भारत और नेपाल के अधिकारियों की बातचीत के बाद 24 घंटे के भीतर ही लगन राय को नेपाल पुलिस ने छोड़ भी दिया.

ये उस इलाके की बात है जहां सरहद के दोनों तरफ के लोग आपस में रिश्तेदार हैं और लगन राय भी रिश्तेदार से मुलाकात के लिए ही गये हुए थे. बताते हैं कि मुलाकात के लिए नेपाल पुलिस ने पैसों की मांग की और इंकार करने पर लगन राय की पिटाई करने लगे. जब आस पास के लोग इकट्ठा हो गये तो पुलिसवालों ने देखते ही देखते 15-20 राउंड फायरिंग भी कर डाली. फिर लगन राय को उठा ले गये.

नेपाल पुलिस की कैद में करीब 20 घंटे रहे लगन राय बताते हैं, 'नेपाल पुलिस ने मुझे बहुत मारा. मुझे ये कुबूल करने के लिए कहा कि मैं मानव तस्करी गिरोह से जुड़ा हूं और और नेपाल से लोगों को तस्करी करके भारत सीमा में ले जाना चाह रहा था. मैंने जब ऐसा कहने से इंकार कर दिया तो उन लोगों ने मुझे बहुत पीटा.' लगन राय के शरीर पर चोट के निशान उनके साथ हुए सलूक की कहानी अपनेआप कह रहे हैं.

नेपाल पुलिस की ये हरकत भी वैसे ही उकसाने वाली लगती है जैसे पाकिस्तानी फौजी करते रहते हैं. फर्क बस दोनों सरहदों के नियम और कानून का है. पाकिस्तानी सरहद पर भारत और नेपाल की तरह आने जाने का कोई सिलसिला नहीं है, वरना नेपाली पुलिस ने काम तो वैसा ही किया है. अगर जांच हुई तभी ये पता भी लग सकेगा कि ये सब स्थानीय स्तर पर हुआ है या इस तरह का कोई माहौल बनाने की कोशिश हो रही है.

ऐसा भी नहीं की नेपाल ने एक नक्शा पास कर कोई बहुत बड़ी तीर मार ली हो. जिस इलाके को नेपाल अपना बताने की कोशिश कर रहा है वो भारत का है और पूरी तरह कब्जे में है - और हमेशा रहेगा भी. फिर भी होना यही चाहिये कि कभी कोई बड़ी आग लगे उससे पहले हल्के से उठते धुएं पर भी जितना जल्दी हो सके पानी डाल देना चाहिये. नेपाल को मालूम होना चाहिये कि और इस बात का राजनयिक कोशिशों के तहत एहसास भी कराया जाना चाहिये कि पाकिस्तान और उसमें बुनियादी फर्क है - और तिब्बत या हॉन्गकॉन्ग का

हाल देखते हुए उसे अपने भविष्य पर भी गौर करना चाहिये. जैसे नेपाल और भारत में कोई सांस्कृतिक साम्य नहीं है, वैसी ही चीन के साथ भी उसका कहीं कोई मेल नहीं है. भारत के खिलाफ और अपने फायदे के लिए पाकिस्तान भले चीन से कुछ फायदा उठा ले लेकिन नेपाल को सिर्फ नुकसान ही होगा. पाकिस्तान जब अमेरिका के हाथ नहीं लगा तो चीन भी उसको बस थोड़ा बहुत इस्तेमाल कर सकता है उससे ज्यादा कुछ नहीं. पाकिस्तान की फौजी हुकूमत काफी अलर्ट है. नेपाल के लिए एक बार फंस जाने पर चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल हो जाएगा.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेपाल को ऐसे ही समझाने की कोशिश की है. योगी की धार्मिक असर वाली राजनीतिक थ्योरी नेपाल के साथ डिप्लोमैटिक डील में भी काम आ सकती है. जरूरत है तो बस जल्दी से काम पर जुट जाने की.

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