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Updated: 14 अक्टूबर, 2018 12:03 PM
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महीने भर बाद छत्तीगढ़ के लोग वोट डाल रहे होंगे - 12 नवंबर को. विधानसभा चुनाव को हर पार्टी कितनी गंभीरता से ले रही है इसे बड़े नेताओं की मौजूदगी से समझा जाना चाहिये. मुख्यमंत्री रमन सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से अलग हटकर देखें तो तीन बड़े नेताओं के लिए छत्तीसगढ़ चुनाव महत्वपूर्ण है - अमित शाह, राहुल गांधी और मायावती. खास बात ये है कि ये तीनों ही नेता एक साथ छत्तीसगढ़ में डेरा डाले हुए हैं.

छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी को पहला झटका मायावती ने दिया था - अजीत जोगी के साथ गठबंधन करके. दूसरा झटका अब अमित शाह ने दे दिया है. अमित शाह ने बीजेपी में ऐसे शख्स की घर वापसी करा ली है जिसे कांग्रेस ने सूबे का कार्यकारी अध्यक्ष बना रखा था.

17 साल बाद घर वापसी

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उइके फिलहाल कोरबा जिले की पाली-तानाखार विधानसभा सीट से विधायक हैं और ये उनकी चौथी पारी है. छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 17 साल पहले उन्हें बीजेपी से कांग्रेस ज्वाइन कराया था. जोगी के कांग्रेस छोड़ने के बाद भी वो पार्टी मं बने हुए थे. अब रामदयाल उइके ने घर वापसी कर ली है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और रमन सिंह की मौजूदगी में हुई ये घर वापसी ऐसी आम घटनाओं से बिलकुल अलग है.

ramdayal uikeये घरवापसी अलग है

कांग्रेस के लिए उइके का हाथ से निकल जाना जितना भी बड़ा झटका हो, बीजेपी के लिए तो बहुत ही बड़ी उपलब्धि है. 15 साल से सत्ता में बने रहने के बावजूद ये सीट बीजेपी के हाथ नहीं लग पा रही थी. अब किले की कौन कहे बीजेपी ने कमांडर को ही मिला लिया है. 2013 में भी ये सीट बीजेपी की पहुंच से बाहर रही. रामदयाल उइके ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवार को 19 हजार वोटों से हराया था - और बीजेपी का तीसरा नंबर उसके बाद रहा.

छत्तीसगढ़ बनने से पहले रामदयाल उइके मध्य प्रदेश की मरवाही सीट से विधायक थे - और अजीत जोगी के लिए ही उन्होंने सीट छोड़ी भी थी. माना जा रहा है कि एक बार फिर वो मरवाही के मैदान में किस्मत आजमा सकते हैं.

वैसे रामदयाल उइके कांग्रेस छोड़ने के पीछे एक बड़ा वाकया रहा, राहुल गांधी के कार्यक्रम में उन्हें मंच पर जगह नहीं दिया जाना. बीजेपी पहले से ही शिकार की तलाश में थी - और मौका लगते ही छपट पड़ी.

सत्ता हासिल करने से ज्यादा जरूरी है सीटें जीतना

कांग्रेस अगर छत्तीसगढ़ में गुजरात जैसे नतीजे और राजस्थान जैसी उम्मीद जता रही है तो, समझ लेना चाहिये गफलत में है. जिस रामदयाल को कांग्रेस ने गंवाया है बीजेपी ने उन्हें हाथों हाथ लिया है. कहानी भी बिलकुल वैसी ही है जैसी बीजेपी में आने के बाद असम के कद्दावर नेता हिमंत बिस्वा सरमा सुना रहे थे.

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की 90 सीटें हैं. 2013 में बीजेपी ने 49 जबकि कांग्रेस ने 39 सीटें जीते थे. पहली विधानसभा में अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 48 सीटें हासिल की थी और तब बीजेपी के खाते में 38 सीटें आयी थीं. तब से लेकर अब तक विपक्षी पार्टी के पास हर बार 37-39 विधायक रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह चौथी पारी के लिए जी जान से जुटे हैं. सत्ता विरोधी फैक्टर से अलग से उन्हें जूझना ही है, फिर भी कांग्रेस इतने बड़े मौके का फायदा उठाती नहीं दिख रही.

साल दर साल कांग्रेस लगातार कमजोर होती गयी है. नक्सली हमले में भी कांग्रेस को अपने कई बड़े नेताओं से हाथ धोना पड़ा था. मायावती और अजीत जोगी के बीच हुए गठजोड़ से भी कांग्रेस को भारी नुकसान हो सकता है - ऐसे में बेहतर ये होता कि कांग्रेस सत्ता हासिल करने की जगह अपनी सीटें बचाने में जोर लगाती.

छत्तीसगढ़ में मायावती ने कांग्रेस से गठबंधन न होने की वजह भी बतायी. मायावती ने कहा कि कांग्रेस हिंदी पट्टी के राज्यों में बीएसपी के बढ़ते जनाधार से परेशान है. मायावती ने कांग्रेस पर बीएसपी को कमजोर करने का भी आरोप लगाया है और कहा कि वो बहुत कम सीटें देना चाहती थी जबकि बीएसपी सम्मानजनक सीटों की मांग कर रही थी.

कांग्रेस में तो पहले से ही कुछ सीडी को लेकर हड़कंप मचा हुआ है. कहा जा रहा है कि सीडी में कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल से लेकर कांग्रेस के राज्य प्रभारी पीएल पुनिया तक के नाम हैं. दोनों की अलग अलग सीडी हैं जिनमें टिकट बंटवारे पर मतभेद से लेकर किसी लेन-देन तक की बात चल रही है.

वैसे सीडी के बगैर छत्तीसगढ़ में चुनाव भी फीका सा लगता है, करीब करीब वैसे ही जैसे देश के बाकी हिस्सों में बिना EVM विवाद के चुनाव का खत्म हो जाना. सीडी का सिलसिला तो पहले चुनाव में ही चल पड़ा था.

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