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Updated: 08 मार्च, 2019 05:53 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अयोध्या विवाद में मध्यस्थता की औपचारिक पहल शुरू हो गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक पैनल भी बना दिया है जिसके तीन सदस्यों में से एक श्रीश्री रविशंकर भी हैं. श्री श्री रविशंकर ने 2017 में भी अपने स्तर पर मध्यस्थता की कोशिश की थी लेकिन कुछ लोगों के विरोध के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा था.

आम चुनावों की तारीख तो अभी नहीं आयी है, लेकिन लगता है कि मंदिर पर मध्यस्थता और चुनाव प्रक्रिया दोनों लगभग साथ साथ चलेंगे - लेकिन बड़ा फर्क ये होगा कि मध्यस्थता से जुड़ी कोई भी खबर नहीं मिल सकेगी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी है.

कैसे होगी मध्यस्थता?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अयोध्या विवाद पर होने जा रही है मध्यस्थता की सारी बातें पूरी तरह गोपनीय होंगी - और सूत्रों के हवाले से भी कोई खबर मीडिया में देखने को नहीं मिलेगी. अदालत का ये आदेश न सिर्फ मध्यस्थता की प्रक्रिया में शामिल लोगों पर लागू होगा, बल्कि इस पर मीडिया रिपोर्टिंग भी नहीं हो सकेगी. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि ये कोई गैग-ऑर्डर नहीं है, लेकिन ऐसा ही करना होगा.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस बारे में साफ तौर पर कह दिया है, 'कोर्ट की निगरानी में होने वाली मध्यस्थता की प्रक्रिया गोपनीय रखी जाएगी.'

अयोध्या विवाद पर मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होनी है. वैसे तो मध्यस्थता की पूरी प्रक्रिया के लिए अदालत ने आठ हफ्ते का वक्त तय किया है, लेकिन चार हफ्ते में एक अंतरिम रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है. अभी से लेकर एक हफ्ते के भीतर ये प्रक्रिया शुरू कर देनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश मुताबिक मध्यस्थता की ये कार्यवाही फैजाबाद में होगी - और इसके लिए यूपी सरकार को सारे जरूरी इंतजाम करने होंगे. कोर्ट ने यूपी सरकार को भी इस बारे में हिदायत दे दी है.

सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला को मध्यस्थता पैनल का चैयरमैन बनाया गया है और उनके साथ होंगे - सीनियर एडवोकेट श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर

मध्यस्थता करने वाले कौन लोग हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए जो पैनल बनाया है वो भी काफी दिलचस्प है, खासतौर पर श्रीराम पंचू को शामिल किया जाना. देखा जाये तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने श्रीश्री रविशंकर को लेकर पिछले विरोध और उनकी नाकामी को दरकिनार रख कर एक बार फिर साबित करने का मौका दिया है.

1. जस्टिस फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला - मध्यस्थता पैनल के प्रमुख जस्टिस फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं. 1975 में वकालत से करियर की शुरुआत करने वाले जस्टिस कलीफुल्ला श्रम कानून से संबंधित मामलों में सक्रिय रहे थे. मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीश रहे रहे जस्टिस कलीफुल्ला जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके हैं. 2000 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जस्टिस कलीफुल्ला 2011 में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाये गये थे.

2. श्रीश्री रविशंकर - श्रीश्री रविशंकर वैसे तो अपने कोर बिजनेस आर्ट ऑफ लिविंग के लिए मशहूर हैं, लेकिन मध्यस्थता उनका प्रमुख शगल रहा है. श्रीश्री रविशंकर की खासियत ये रही है कि वो ऐसी कोशिशें नाकाम रहने के बावजूद हार नहीं मानते - और देश ही नहीं विदेशों में मध्यस्थता के लिए पहल करते रहते हैं.

2017 में श्रीश्री रविशंकर ने बड़े ही जोर शोर से मध्यस्थता की कोशिश की थी. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक तो वो खूब मुस्कुराते देखे गये लेकिन अयोध्या जाकर मायूस होना पड़ा था. अयोध्या में उन्होंने पक्षकारों से मिलने की कोशिश की लेकिन कोई बड़ा नाम उनसे नहीं मिला. साधु-संतों के विरोध के चलते उन्हें लौटना पड़ा.

कहने को तो महंत राजू दास ने मीडिया के जरिये इस बार भी श्रीश्री रविशंकर के नाम पर सवाल उठाया है. राजू दास का सवाल है कि क्या अयोध्या में संत नहीं थे जो मध्यस्थता के लिए श्री श्री रविशंकर को भेजा जा रहा है?

बहरहाल, अब ऐसे सवालों का कोई मतलब नहीं रह गया है क्योंकि इस बार सुप्रीम कोर्ट ने श्रीश्री रविशंकर को मध्यस्थों के पैनल का सदस्य बनाया है. इस बार उन्हें संवैधानिक मान्यता प्राप्त है इसलिए अब उन्हें अपने अधूरे काम पूरे करने का भरपूर मौका है.

2. श्रीराम पंचू - श्रीराम पंचू वरिष्ठ वकील होने के साथ साथ मध्यस्थता के जरिये केस सुलझाने में माहिर माने जाते रहे हैं. मध्यस्थता के माध्यम से केस सुलझाने के लिए श्रीराम पंचू ने बाकायदा एक संस्था भी बनायी है - द मीडिएशन चैंबर. श्रीराम पंचू एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष भी हैं. वो बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट में भी शामिल रहे हैं. श्रीराम पंचू ने एक किताब भी लिखी है - मीडिएशन पाथ एंड लॉ.

sriram panchuसीनियर वकील श्रीराम पंचू मध्यस्थता मामलों के माहिर माने जाते हैं

श्रीराम पंचू देश के कई जटिल और बड़े मामलों में मध्यस्थता कर चुके हैं जिनमें कमर्शियल, कॉरपोरेट, कॉन्ट्रैक्ट के केस शामिल हैं. महाराष्ट्र में पारसी समुदाय से जुड़े एक मामले में अपनी खास भूमिका निभा चुके श्रीराम पंचू को असम और नगालैंड के बीच 500 किलोमीटर भूभाग का मामला सुलझाने के लिए भी मध्यस्थ नियुक्त किया गया था.

मध्यस्थता की पिछली नाकाम कोशिशें

अयोध्या विवाद में श्रीश्री रविशंकर की कोशिश ताजातरीन है और उन्हें ये मौका दोबारा मिला है इसलिए उन्हें खास तवज्जो मिल रही है. अयोध्या विवाद को सुलझाने के प्रयास अदालतों और निजी कोशिशों के साथ साथ सरकारी स्तर पर भी हुए हैं जिसमें सीधे देश के प्रधानमंत्रियों की भी भूमिका रही है.

1. 90 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने अयोध्या विवाद के दोनों पक्षकारों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू कराया था. एक ऑर्डिनेंस की भी तैयारी हुई लेकिन तभी बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा शुरू हो गयी और राजनीति ने ऐसी करवट ली कि सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े.

2. वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर की सरकार बनी तो भी बातचीत के जरिये अयोध्या मसले को सुलझाने की कोशिश हुई, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.

3. जनवरी, 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया. बातचीत के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति भी हुई लेकिन फिर भी बात नहीं बन सकी.

4. वाजयेपी सरकार में ही जून, 2003 में भी कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती आगे आये. स्वामी जयेंद्र सरस्वती का दावा रहा कि वो मामले को सुलझाने के करीब पहुंच चुके थे, लेकिन हासिल शून्य ही रहा.

5. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी अपनी ओर से कोशिश की. अगस्त, 2010 में सभी पक्ष के वकीलों को जज के चेंबर में बुलाया गया और समाधान तलाशने की कोशिश हुई - लेकिन दोनों पक्ष एक राय नहीं हो सके.

6. 2017 में उच्चतम न्यायालय की ओर से कोर्ट के बाहर मामला सुलझाने की पहल हुई थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने सुझाव दिया था कि बेहतर होता अगर इस मसले को मिल-बैठकर सुलझा लिया जाता.

7. नवंबर, 2017 में श्रीश्री रविशंकर ने अयोध्या विवाद सुलझाने का प्रयास किया था. तब श्रीश्री रविशंकर का एक बयान खासा चर्चित रहा. श्रीश्री रविशंकर ने कहा था, 'ये मामला नहीं सुलझा तो देश सीरिया बन जाएगा. अयोध्या मुस्लिमों का धार्मिक स्थल नहीं है. उन्हें इस धार्मिक स्थल पर अपना दावा छोड़ कर मिसाल पेश करनी चाहिए.'

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गये मध्यस्थता पैनल के सामने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षकार अपनी बातें रखेंगे. उसके बाद ये पैनल पहले एक अंतरिम और फिर फाइनल रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करेगा - और उसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आगे क्या करना है ये फैसला लेगा. कानूनी नजरिये से देखा जाये तो पहली बार सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ये काम अपने हाथ में लिया है - उम्मीदें इसीलिए इस बार ज्यादा हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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