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Updated: 21 जनवरी, 2019 02:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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जिस तरह राजनीति से दूरी बनाकर रहने को भी एक तरीके की राजनीति मानी जाती है, ठीक वैसे ही बयानबाजी के बाद यू-टर्न भी एक तरह का बयान ही समझा जाएगा. मगर, अपने लोगों तक संदेश पहुंचा कर विवादों से पल्ला झाड़ लेने की तरकीब लंबी नहीं चलने वाली.

जिस तरीके से कुंभ मेले के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को बयान और फिर उस पर सफाई आ रही है - वो यूं ही तो नहीं लगती. ऐसा लगता है जैसे राम मंदिर का मुद्दा आम चुनाव के ऐन पहले कहीं फंस रहा हो - और उबरने की हड़बड़ी में हादसे पर हादसे होते जा रहे हैं.

सफाई ही देनी थी तो बयान देने की जरूरत क्या थी?

प्रयागराज के कुंभ में योगी सरकार की बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी बिलकुल वैसी ही है जैसी अयोध्या में दो साल से मनायी जा रही दिवाली. 31 जनवरी और 1 फरवरी को संत समागम तो घोषित रूप से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर फैसले के लिए ही हो रहा है.

कुंभ मेले से संघ के नेता भैयाजी जोशी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट किया था. मोदी सरकार पर भैयाजी जोशी का कटाक्ष था - 'राम मंदिर साल 2025 में बनेगा'. भैयाजी जोशी संघ के बड़े नेता हैं. ऐसा भी नहीं कि कुछ भी बोलते रहने के आदती हों. भैयाजी जोशी के बयान पर भीतर ही भीतर जो भी प्रतिक्रिया हुई हो - 24 घंटे के भीतर ही उनकी सफाई भी आ गयी. सफाई में भैयाजी जोशी ने न तो शब्द बदले, ये समझाया कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. जो बात उन्होंने कही थी वही नये तरीके से समझा दी.

भैयाजी जोशी की ही तरह 24 घंटे में वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार भी बयान देकर पलट गये हैं. वैसे आलोक कुमार ने अपने बयान और सफाई में कहे गये शब्दों में ज्यादा फेरबदल नहीं किया है.

पहले और दूसरे बयान में सिर्फ एक शब्द बदला गया है - 'समर्थन' की जगह 'स्वागत'. आलोक कुमार भी कोई छोटी-मोटी शख्सियत नहीं हैं. वीएचपी के बड़े नेता रहे प्रवीण तोगड़िया को शिकस्त देते हुए चुनाव जीत कर आये हैं. आलोक कुमार की ताकत और हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. संघ प्रमुख मोहन भागवत की ही तरह आलोक कुमार भी राम मंदिर निर्माण पर कानून या अध्यादेश लाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से मांग रहे हैं. कुंभ में मंदिर निर्माण पर संत समागम के आयोजन में आलोक कुमार की भी बड़ी भूमिका है.

वीएचपी नेता आलोक कुमार से जब पूछा गया कि मंदिर निर्माण पर क्या क्या विकल्प हो सकते हैं?

alok kumar vhpमंदिर निर्माण से कांग्रेस का क्या काम...

सवाल के जवाब में आलोक कुमार का कहना रहा कि कांग्रेस अगर अपने दरवाजे खोले और राम मंदिर निर्माण को अपने मैनिफेस्टो में शामिल करे तो उसे समर्थन के बारे में सोचा जा सकता है. सुधरे हुए बयान में आलोक कुमार कह रहे हैं कि कांग्रेस अगर ऐसा करती है तो उसका स्वागत किया जाएगा.

एक बात नहीं समझ आ रही है कि अचानक संघ और बीजेपी खेमे में राम मंदिर निर्माण को लेकर कांग्रेस इतनी प्रासंगिक क्यों बन जा रही है. आखिर राम मंदिर निर्माण कांग्रेस की भूमिका ही कितनी है? कांग्रेस तो इसी बात से परेशान है कि उसे मुस्लिम पार्टी ठहरा दिया गया है. राहुल गांधी तो खुद को जनेऊधारी हिंदू शिव भक्त साबित करने के लिए मंदिर मंदिर मन्नत मांगते फिर रहे हैं.

कांग्रेस के नाम पर गुमराह करने का प्रयास क्यों?

ऐसा क्या है कि राम मंदिर को लेकर संघ, बीजेपी और वीएचपी हाथ धोकर कांग्रेस के पीछे पड़ा है. ले देकर कांग्रेस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में की गयी कपिल सिब्बल की एक गुजारिश है जिसमें उन्होंने चुनावों से पहले अयोध्या पर फैसला न देने को कहा था ताकि बीजेपी उसका राजनीतिक फायदा न उठा ले. जिस बात को सुप्रीम कोर्ट ने कोई तवज्जो नहीं दी वो इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है कि उसे मंदिर निर्माण में सबसे बड़ा रोड़ा बताया जाये. वो एक बार नहीं बल्कि बार बार बताया जाये.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने इंटरव्यू में कांग्रेस को मंदिर निर्माण में बाधा डालने का आरोप लगा चुके हैं. मोदी के भी इस आरोप का आधार कपिल सिब्बल का वही एक बयान भर है. केंद्र में बीजेपी की बहुमत की सरकार है, उसके नेटवर्क में भी देश के बड़े से बड़े वकील हैं - और कांग्रेस के कपिल सिब्बल सब पर भारी पड़ रहे हैं? ऐसा कैसे हो सकता है? मोदी सरकार तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने में भी सक्षम है. एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का संसद से निरस्त हो जाना आखिर क्या है. इसी का उदाहरण तो है. फिर मंदिर निर्माण में बाधा पहुंचाने में कांग्रेस कहां खड़ी होती है? वैसे भी सुप्रीम कोर्ट और उसके फैसले बीजेपी नेताओं के लिए कितना मायने रखते हैं बताने की जरूरत नहीं है. इसे समझने के लिए सबरीमाला के मुद्दे पर अमित शाह का बयान और दिल्ली में सीलिंग के केस में मनोज तिवारी का ताला तोड़ना ही काफी है. सुप्रीम कोर्ट ने तो मनोज तिवारी को तलब भी किया था और उनके खिलाफ एक्शन लेने की जिम्मेदारी भी बीजेपी नेतृत्व के विवेक पर छोड़ दी थी.

कहीं ऐसा तो नहीं कि राम मंदिर मुद्दा अब संघ, बीजेपी और वीएचपी सभी को डराने लगा है? संघ को ये तो नहीं लगता कि मोदी सरकार के बाकी वादे पूरे करने को लेकर उठते सवालों को तो दबाया जा सकता है, लेकिन मंदिर निर्माण पर जनता को भरोसा नहीं दिला पाये तो क्या होगा? बीजेपी के दिल्ली पहुंचने और दोबारा सत्ता हासिल करने में अयोध्या के राम मंदिर की सबसे बड़ी भूमिका है. चाहे बीजेपी हो संघ हो या वीएचपी हो कोई भी कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ कर पल्ला नहीं झाड़ सकता. चुनाव होंगे तो लोग पूछेंगे ही, खासकर वे जिन्होंने मंदिर निर्माण की आशा में बीजेपी को वोट दिया था.

वीएचपी नेता को कांग्रेस को टारगेट करने से पहले बीजेपी के गिरेबान में झांक कर देखना चाहिये - और यही काम बीजेपी को अपने भीतर. बाकी सब तो पब्लिक जानती ही है. अगली बार जब EVM का बटन दबा रही होगी तो किसी और की नहीं सिर्फ अपने 'मन की बात' ही सुनेगी. ध्यान रहे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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