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Updated: 12 जुलाई, 2019 04:00 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के बाद 25 मई को राहुल गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की मीटिंग के दौरान पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी तो उस समय कई समीक्षक और दूसरी पार्टी के नेता इसे स्टंट बाजी और नाटक करार दे रहे थे. हालांकि लगातार राहुल दोहराते रहे कि उनकी मंशा गंभीर है और वो हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद पर नहीं रहना चाहते हैं. पार्टी के कई दिग्गज नेता उनसे उनके फैसले पर विचार करने के लिए भी लगातार दबाव बनाये हुए थे. लेकिन जैसे राहुल ने संकल्प ले लिया था तो ले लिया था. कितना भी दबाव उन पर बनाया गया लेकिन कोई भी चीज राहुल के दृढ़ संकल्प को हिला नहीं सकी और आख़िरकार 3 जुलाई को उन्होंने ट्विटर पर एक पत्र पोस्ट करते हुए स्पष्ट रूप से लिखा कि वो अपना निर्णय नहीं बदलेंगे यानी उनका निर्णय अपरिवर्तनीय है. मतलब साफ था कि वो कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर नहीं रहना चाहते और उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.

कांग्रेस, कर्नाटक, गोवा, भाजपा, karnatakaपहले लोकसभा में मिली हार फिर राहुल गांधी का पद छोड़ना कांग्रेस की स्थिति वाकई गंभीर है

राहुल गांधी के जाने के तुरंत बाद कांग्रेस जैसे अपने आप को असहाय महसूस करने लगी है. उनके जाने के बाद एक तरफ जहां कर्नाटक और गोवा में कांग्रेस के लिए सियासी संकट उत्पन्न हो गया है. तो वही दूसरी ओर राहुल के जाने के बाद गैर-गांधी परिवार से किसी नेता को कांग्रेस की कमान सौंपना भी महत्वपूर्ण हो गया है.मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के लिए कई चैलेंज मुंह बाये खड़े हैं. नए अध्यक्ष की तलाश के साथ ही अपनी संगठनात्मक संरचना का पुनर्निर्माण करना और देश भर में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है.

कुछ महीनों के बाद ही झारखण्ड, बिहार और हरियाणा में विधान सभा चुनाव होने हैं और ऐसे में कांग्रेस का राहुल गांधी  के जाने बाद इस तरह कमजोर होना बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त भारत ' के संकल्प को और मजबूती प्रदान करते हुए देखा जा सकता है. कांग्रेस की गति को देख कर ऐसा महसूस हो रहा है कि भारत में विपक्ष का कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को टक्कर देने के लिए 134 वर्षीय पार्टी शायद बचे ही नहीं.

राहुल के जाने के बाद कांग्रेस अपने बुरे दिन से गुजर रही है. कर्नाटक और गोवा में जहां संकट जारी है. वही केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद से और राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से ही कई राज्यों में खींचतान शुरू हो गई है.

कर्नाटक में राजनीतिक संकट बरकरार है

कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस- जेडीएस गठबंधन के 16 विधायकों के इस्तीफे के बाद सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. अगर बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जाते हैं तो सत्तारूढ़ गठबंधन बहुमत गंवा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पीकर अपने फैसले से कोर्ट को अवगत कराएंगे. वहीं, विधायकों ने आरोप लगाया कि स्पीकर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रहे हैं. उन्हें अयोग्य ठहराने की कोशिशें हो रही हैं. कर्नाटक के इस संकट के लिए भी कांग्रेस और जेडीएस ये आरोप लगाने से नहीं चूक रहे हैं कि ये सारा खेल बीजेपी द्वारा रचित हैं.

गोवा हुई लगभग कांग्रेस मुक्त

लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस पार्टी के लिए लगातार बुरी खबरें आ रही हैं. कर्नाटक में कांग्रेस, सरकार बचाने की पुरजोर कवायद में जुटी है, वहीं इन सब के बीच कांग्रेस के लिए गोवा से ऐसी खबर आई है जो किसी बड़े झटके से कम नहीं है. कांग्रेस के 15 में 10 विधायकों ने बीजेपी की सदस्यता ले ली है. और इसके साथ ही बीजेपी की ताकत अब बढ़कर 27 हो गई है और गोवा में कांग्रेस के मात्र 5 विधायक बच गए हैं.

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने

राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार भले ही बना ली हो लेकिन सरकार के अंदर खींचतान का दौर जारी है. अब तक इशारों-इशारों में एक दूसरे पर हमला कर रहे अशोक गहलोत और सचिन पायलट अब खुल कर सामने आ गए हैं. दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं. सचिन पायलट कह रहे हैं कि जनता ने अशोक गहलोत के नाम पर वोट नहीं दिया और ऐसा ही आरोप अशोक गहलोत भी सचिन पायलट पर लगा रहे हैं. इन सब के बीच कांग्रेस को राजस्थान में सरकार की स्थिरता को लेकर भी चिंता सता रही है कि कहीं कर्नाटक की तरह यहां भी कांग्रेस के विधायक बागी तेवर न अपना लें.

कांग्रेस को मध्य प्रदेश में डर सता रहा है

कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में सरकार की स्थिरता को लेकर काफी चिंतित है. उसे लगता है कि कर्नाटक जैसी स्थिति कहीं मध्य प्रदेश में भी न हो जाये. मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ज्यादा अंतर नहीं है. अगर कांग्रेस के आठ-दस विधायक भी इस्तीफा देते हैं, तो बीजेपी आसानी से बहुमत के आंकड़े के पास पहुंच जाएगी. विधानसभा की 230 सीट में कांग्रेस के पास 114 और बीजेपी के पास 108 विधायक हैं. कांग्रेस को बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है. एक सीट वहां पर फिलहाल खाली है. अगर जरा सा भी समीकरण इधर से उधर होता है तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जाना निश्चित है.

लोकसभा चुनाव से पहले किसी ने भी नहीं सोचा था की कांग्रेस की दुर्गति इस तरह होगी. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने ने कांग्रेस के अंदर की खींचतान और झगड़े को बिलकुल उजागर कर दिया है. आने वाले समय में कांग्रेस की स्तिथि कैसी रहती है ये देखना दिलचस्प होगा.

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आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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