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Updated: 06 अक्टूबर, 2020 10:22 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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देश की राजनीति में सबसे कद्दावर ताकत रखने वाला राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) हमेशा सुर्खियों में बना रहता है. हाल ही में हुए हाथरस गैंगरेप केस (Hathras Gangrape Case) के बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश में सियासत अपने उफान पर है. उत्तर प्रदेश से सटे बिहार राज्य में अब महज कुछ दिनों बाद ही चुनाव होने हैं ऐसे में उत्तर प्रदेश का कोई भी सियासी संग्राम बिहार में समीकरण बनाएगा भी बिगाड़ेगा भी. उत्तर प्रदेश में भाजपा की अकेले दम पर सरकार है जिसकी कमान योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के हाथों में है. राज्य में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसके लिए तमाम दल रणनीति बनाने में जुटे चुके हैं. राज्य के दो प्रमुख विपक्षी दल सपा (SP) और बसपा (BSP) किस एजेंडे पर काम कर रहे हैं यह समझ से परे है. सबसे पहले सपा की बात करते हैं जो लगातार हाशिये पर जाते हुए दिखाई दे रही है. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में अकेले ही पूरी बहुमत के साथ सत्ता में आने वाली समाजवादी पार्टी वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस (Congress) का साथ पाकर भी सत्ता से कोसों दूर रह गई. साल 2012 तक सपा के सिपहसालार थे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav), जिन्होंने शानदार जीत दर्ज कर राज्य पर कब्ज़ा जमाया था लेकिन उत्तर प्रदेश की सत्ता पर खुद न बैठ उन्होंने इसकी कमान अपने बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को सौंप दी. अखिलेश यादव के हाथ में आते ही सपा में बिखराव शुरू हो गया. सत्ता का कार्यकाल खत्म होते होते चाचा शिवपाल तक सपा से दूरी बना बैठे. अखिलेश यादव राजनीति में नए नवेले ही थे लेकिन वह पूरी तरह से आश्वस्त थे कि वह दुबारा सत्ता हासिल कर लेंगे लेकिन ये महज उनका गुमान रह गया. सपा की 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बुरी हार हुयी जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा बसपा एक साथ थी और बड़ा कारनामा की उम्मीद लगाई जा रही थी लेकिन पार्टी की बुरी हार हुयी.

Yogi Adityanath, Priyanka Gandhi, Sanjay Singh, Akhilesh Yadav, Mayawatiउत्तर प्रदेश में कांग्रेस और आप मायावती और समाजवादी पार्टी को कड़ी चुनौती देती नजर आ रही है

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी की दुर्दशा ही देखने को मिली. लगातार तीन चुनावों में हार का मुंह देख चुकी किसी भी पार्टी को नए सिरे से पार्टी को खड़ा होता है लेकिन अखिलेश यादव इस काम में बेहद पिछड़े नज़र आ रहे हैं. राज्य की बड़ी सी बड़ी घटनाओं पर वह ट्वीटर पर ही एक दो ट्वीट कर रह जाते हैं. जबकि उनके कार्यकर्ताओं में एक बड़ा जोश देखने को मिलता है वह शहर-शहर लाठियां खा रहे हैं और जेल जा रहे हैं लेकिन पार्टी के लीडर के सड़क पर न आने से उनकी आवाज़ को उतना बल नहीं मिल रहा है जो एक विरोधी दल की आवाज़ में होना चाहिए.

दूसरी मुख्य विपक्षी दल है बसपा, जिसकी मुखिया हैं मायावती, खुद को दलितों का मसीहा कहती हैं और खुद की सरकार को सबसे बेहतर कानून व्यवस्था वाली सरकार बतलाती हैं. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में सभी को चित करते हुए राज्य पर काबिज हुयी थीं. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव तक तो कुछ ठीक था लेकिन वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा से हारकर जो गत हुयी उसमें अबतक कोई सुधार नहीं हो सका है. बसपा के वोटबैंक पर वर्ष 2014 में भाजपा ने सेंध मार दी थी. जिससे बसपा अबतक नहीं उभर पाई है.

बसपा का निराशजनक प्रदर्शन वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने सपा के साथ चुनाव लड़कर भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाईं. अब 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा की क्या रणनीति है इसकी जानकारी तो अभी बसपा के ही बड़े नेतााओँ को नहीं होगी. जिस तरह बसपा सुप्रीमो मायावती खामोश हैं उसी तरह उनके कार्यकर्ता भी चुप्पी साधे हुए हैं. किसी भी बड़े मामले पर प्रदर्शन तो दूर बसपा का कोई नेता बयान देने से भी कतराता नज़र आता है.

अब उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बात करते हैं जो तीन दशक से उत्तर प्रदेश में अपनी खोयी पहचान ढ़ूंढ़ रही है. कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019 के चुनाव से पहले ही फोकस करना शुरू कर दिया था. कांग्रेस को मालूम है कि केंद्र पर वापसी से पहले उसे उत्तर प्रदेश में वापसी करनी होगी तब ही केंद्र तक दुबारा पहुंचा जा सकता है. कांग्रेस ने इसी सोच के साथ उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारा था.

प्रियंका गांधी ने राज्य में नए तरीके से संगठन बनाना शुरू किया हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बहुत हद तक कामयाबी नहीं मिल पाई और अमेठी जैसी परंपरागत सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा. प्रियंका इससे टूटी नहीं बल्कि और ही पुरजोर तरीके से मैदान में कूद गई. उत्तर प्रदेश की कोई भी ऐसी घटना नहीं हुयी जिसमें प्रियंका ने राज्य की योगी सरकार को न घेरा हो. नागरिकता कानून के विरोध पर प्रदर्शनकारियों के घर जाना हो या हाथरस पीड़िता के घर, प्रियंका ने हर मौके पर खुद को आगे रखा है. उनके साथ उनकी टीम का सबसे अहम हिस्सा अजय कुमार लल्लू बने जो प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हर रोज़ सड़कों पर होते हैं.

अपने नेताओं के सड़कों पर उतरने से कार्यकर्ताओं में भी एक जोश पैदा हुआ और अब हालत यह हो गई है कि अन्य विपक्षी दल के मुकाबले कांग्रेस ही सबसे मुखर होकर सरकार को घेर रही है. राज्य में नई नवेली है आम आदमी पार्टी, हालांकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में ही यह उत्तर प्रदेश में इंट्री कर चुकी थी लेकिन इस पार्टी का कोई संगठन नहीं था. दिल्ली में दुबारा जीत दर्ज करने के बाद ही आप देश में पैर पसारने को बेचैन हो गई, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर न सिर्फ चुनाव लड़ने का ऐलान किया बल्कि हर शहर हर विधानसभा सीट पर संगठन बनाने का काम शुरू कर दिया.

वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के करीब हर शहर में आम आदमी पार्टी का संगठन खड़ा हो चुका है. उत्तर प्रदेश की कमान संभाले हैं राज्यसभा सांसद संजय सिंह जो हर मुद्दे पर योगी सरकार को घेरने का कार्य कर रहे हैं. पार्टी की ओर से हर शहर में प्रदर्शन किए जा रहे हैं. कांग्रेस की तरह आप भी पूरी तरह से राज्य में विपक्ष की भू्मिका को निभा रही है.इन तस्वीरों को देखकर लगता है कि राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आप को उसकी मेहनत का सिला तो ज़रूर मिलेगा, और सपा बसपा को एक बार फिर से बड़ा नुकसान होने वाला है.

राज्य में सपा ने अकेले चुनाव में जाने का ऐलान कर दिया है. बसपा और कांग्रेस में मध्य प्रदेश और राजस्थान के समीकरण से अनबन है जिससे बसपा भी चुनाव में अकेली ही दिखने वाली है. हालांकि कांग्रेस और आप का गठबंधन की संभावनाएं बनती दिख रही है दोनो ही पार्टी राह खोज रही है ऐसे में दोनों के साथ आने पर कोई हैरत नहीं होगी. राज्य में भाजपा अपने सहयोगी अपना दल के साथ ही चुनाव लड़ेगी यह भी तय है. सपा के साथ रालोद का साथ हो सकता है. यानी कांग्रेस और आप के अलावा कोई बड़ा गठबंधन होते नहीं दिखाई दे रहा है और अगर ये साथ आ गए तो सपा-बसपा की नैया डूबना तय है.

यह दोनों ही पार्टियां बहुत हद तक सपा और बसपा के ही वोटबैंक में सुध लगाएंगी जबकि भाजपा एक बार फिर हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव में जाएगी और उसके वोटबैंक में अभी तक कोई खास सेंध नहीं लगा पाई है. हाथरस मामले पर योगी सरकार बैकफुट पर ज़रूर आई थी लेकिन मामले को सीबीआई को सौंपकर योगी आदित्यनाथ ने बाजी अपने नाम पलट ली थी. हालांकि अभी चुनाव में समय है कई बदलाव दिख सकते हैं लेकिन हालिया वक्त की स्थिति में भाजपा सरकार के सामने कांग्रेस और आप का हल्लाबोल नज़र आ रहा है.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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