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Updated: 15 नवम्बर, 2022 06:34 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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जैसे-जैसे गुजरात विधानसभा चुनावों के दिन नजदीक आ रहे हैं. वैसे वैसे कुछ सीटें सुर्ख़ियों में आनी शुरू हो गयी हैं. अहमदाबाद की नरोदा सीट ऐसी ही सीट है. जहां से भारतीय जनता पार्टी ने उस व्यक्ति की बेटी को टिकट दिया है जो 2002 के दंगों का दोषी है. भाजपा द्वारा इस फैसले को लेना भर था. चाहे वो आम आदमी पार्टी हो या फिर कांग्रेस और एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी सभी की मन की मुराद पूरी हो गयी है. विपक्ष द्वारा भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि ऐसा करके भाजपा एक गलत प्रथा की शुरुआत कर रही है. ध्यान रहे 2002 के गोधरा कांड के बाद नरोदा में भी दंगे भड़के थे और 97 लोगों की मौत हुई थी. जिक्र दंगे के दोषी का हुआ है तो जो नाम सुर्खियां बटोर रहा है वो नाम है मनोज कुकरानी. भाजपा ने कुकरानी की बेटी पायल कुकरानी को टिकट दिया है और दिलचस्प ये कि बीमारी के नाम पर पैरोल पर बाहर आए मनोज कुकरानी घर घर जाकर बेटी के लिए वोट मांग रहे हैं.

Gujarat, Gujarat Assembly Elections, Gujarat 2002 Riots, Godhra, Naroda, Rioter, Congress, BJPनरोदा से पायल कुकरानी को टिकट मिलने के बाद विपक्ष को भुनाने के लिए मुद्दा मिल गया है

वो तमाम लोग जो भाजपा के इस फैसले पर हैरत जाता रहे हैं उन्हें विचलित होने की कोई जरूरत नहीं है. गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा ने पायल कुकरानी को तो सिर्फ टिकट दिया है उधर एमपी के भोपाल में मालेगांव बम ब्लास्ट में दोषी साध्वी प्रज्ञा ने न केवल भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा बल्कि जीत दर्ज की और आज सांसद हैं. साध्वी प्रज्ञा पर अभी भी एनआईए कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला नहीं लिया है इसलिए अब भी प्रज्ञा अक्सर कोर्ट के सामने हाजिर होती हैं.

भाजपा ने टिकट पायल को दिया है इसलिए हमारे लिए ये भी जरूरी हो जाता है कि हम उनकी योग्यता जानें और उसका गहनता से अवलोकन करें. सबसे पहले तो पायल गुजरात विधानसभा चुनावों में टिकट पाने वाली सबसे कम उम्र की उम्मीदवार हैं. लिखाई पढ़ाई के लिहाज से पायल डॉक्टर हैं और एनेस्थेसिस्ट’ हैं. 

जिक्र मनोज कुकरानी और उनपर जारी विवाद का हुआ है तो बताते चलें कि गुजरात उच्च न्यायालय ने नरोदा पाटिया दंगा मामले में मनोज कुकरानी और 15 अन्य लोगों की दोषसिद्धी को 2018 में बरकरार रखा था. कुकरानी को उम्रकैद की सजा हुई है और फिलहाल वो जमानत पर बाहर हैं. 

हो सकता है कि पायल कुकरानी के टिकट को देखकर एक वर्ग ये मान बैठे कि हिंदू समुदाय को एकजुट करने के उद्देश्य से एक दंगाई की बेटी को भाजपा ने टिकट दिया है. तो सम्पूर्ण रूप से ऐसा बिलकुल नहीं है. इस सीट पर अपनी जीत दर्ज करने के लिए भाजपा ने ठीकठाक मेहनत की है. बात अगर गुजरात की इस नरोदा सीट की हो तो इस सीट को लेकर कई दिलचस्प बातें हैं जो हमारे सामने आ रही हैं.

पहले तो हमें इस बात को समझना होगा कि नरोदा सीट का शुमार गुजरात की उन चुनिंदा सीटों में है जिसपर लंबे समय से भाजपा का कब्ज़ा रहा है. नरोदा सीट सीट सिंधी बाहुल्य सीट है जिसपर प्रवासी लोगों का भी ठीक ठाक दबदबा है. ज्ञात हो कि नरोदा पाटिया में 90 हज़ार के करीब सिंधी वोटर हैं. पटेल समुदाय के 20 हज़ार, खाड़ी समुदाय के 15 हजार वहीं मुस्लिम वोटर 700 के करीब हैं. बाकी 75 हजार करीब प्रवासी वोटर हैं. सीट हो लेकर एक रोचक तथ्य ये भी है कि यहां ज़्यादातर प्रवासी वोटर बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान के रहने वाले हैं.

नरोदा जिस तरह की सीट है और जिस तरह यहां सिंधी बिरादरी का दबदबा है कहना गलत नहीं है कि भाजपा ने अगर यहां दांव चला है तो सोच समझ कर चला है. जैसी तैयारी चल रही है अगर उसे देखे और उसका अवलोकन करें तो ये बात स्वतः ही जाहिर हो जाती है कि 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों में पार्टी इस सीट को गंवाने के मूड में हरगिज नहीं है और कुकरानी की बेटी को टिकट भी शायद इसी लिए दिया गया है.

बाकी जो चर्चा नरोदा और आसपास में गर्म है वो ये कि बेटी पायल तो सिर्फ बहाना है असल में भाजपा ने टिकट मनोज कुकरानी को उनके रसूख और इलाके में पकड़ के लिए दिया है और सिंधी होना उनके लिए सोने पर सुहागा से कम नहीं है. 

बहरहाल जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि मनोज कुकरानी की बेटी को भाजपा द्वारा टिकट दिए जाने ने गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले ही सूबे में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है. इसलिए  अगर पायल नरोदा से जीत जाती है तो हमें हैरत इसलिए भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि 2019 में हम साध्वी प्रज्ञा की जीत के रूप में ऐसा बहुत कुछ देख चुके हैं जिनके बाद भय और अपराधमुक्त समाज की अवधारणा सिर्फ एक अवधारणा ही है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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