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Updated: 14 मार्च, 2018 04:17 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों के नतीजे ( bypoll results ) से जुड़ी जो ख़बरें इस वक़्त तक आ रही हैं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि, इन दोनों ही जगहों पर सपा और बसपा के गठबंधन ने वो कर दिखाया जो किसी अनहोनी से कम नहीं था. इस बात के कयास पहले ही लगाए जा चुके थे कि एक लम्बे वक़्त के बाद हाथ मिलाने और दूरी मिटाने से दोनों को बड़ा फायदा होगा. फिल्हाल ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है. चूंकि अब इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यहां भारतीय जनता पार्टी की हार हुई है तो आइये उन कारणों पर बात कर लें जिन्हें भाजपा ने हल्के में लिया और बदले में उसे हार का सामना करना पड़ा. और अब समाजवादी पार्टी और बसपा के सामने कौन सी चुनौती है.

समाजवादी पार्टी, गोरखपुर, फूलपुर, उपचुनाव   सपा और बसपा के साथ आने से भाजपा का एक बड़ा नुकसान हुआ है

एकता में बल है

ये बात किसी से छुपी नहीं है कि जहां एकता होती है वहां सफलता अपने आप वास करती है. इसे गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों के मद्देनजर सपा-बसपा गठबंधन से समझा जा सकता है. यहां दोनों ही पार्टियों का एक मात्र उद्ददेश भाजपा को हराना था. भाजपा हार सके, इसलिए सपा और बसपा ने अपने शिकवे गिले भुला दिए और एक हो गयी नतीजा हमारे सामने है. इस वक़्त तक चली मतगणना को आधार बनाएं तो कहना गलत नहीं है कि यहां भाजपा को दोनों ही पार्टियों के एक होने ने करारी मात दी है.

जहां एकता है, वहीं फूट है

एकता का उद्देश्य कुछ पाना होता है. भाजपा के विस्तार के अलावा यदि उत्तर प्रदेश की राजनीति का अवलोकन करें तो मिलता है कि यहां सपा और बसपा दोनों ही अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने में जुटी हुई हैं. ऐसे में कहीं न कहीं दोनों का एक होना वक़्त की जरूरत से जयादा और कुछ नहीं कहा जा सकता है. अब चूंकि दोनों ही अपने उद्देश्य के चलते एक हैं और दोनों के ही सामने लड़ाई उज्जवल भविष्य की है तो सम्भावना है कि इस दोस्ती में फूट पड़ जाए. ध्यान रहे किसी भी अभिक्रिया में सदैव तनाव एक प्रभावी कारक होता है. राज्‍य सभा चुनाव और 2019 के संभावित महागठबंधन में सीटों का बंटवारा ऐसे ही तनाव का काम करेगा.

पहचान बाद में, अस्तित्‍व पहले

चूंकि हम इस बात को पहले ही कह चुके हैं आज उत्तर प्रदेश में जैसी सपा और बसपा की हालत है, दोनों ही पार्टियां पहचान के संकट से जूझने की कगार पर हैं. और उनकी लड़ाई भविष्य में लोकसभा चुनावों के अंतर्गत अस्तित्व से जुड़ी हुई है. ऐसे में भले ही पहले सपा और बसपा के बीच गिले शिकवे रहे हों मगर एक होना ये दर्शाता है कि यदि इन्हें अपने आप को जिंदा रखना है तो ऐसी सूझबूझ का परिचय देना ही होगा.

समाजवादी पार्टी, गोरखपुर, फूलपुर, उपचुनाव   उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा को इस हार से सबक लेना चाहिए

सोए हुए शेर को जगा दिया

भाजपा हार चुकी है. ऐसे में ये हार उसके लिए इसलिए भी असरदार होगी क्योंकि इससे उसे भविष्य में और अधिक मजबूत बनने में बल मिलेगा. ज्ञात हो कि अब तक कई स्थानों पर भाजपा जीतती आ रही थी और कहीं न कहीं उसके दिमाग में ये बात रच बस गयी थी की अब किसी भी पार्टी द्वारा उसे हराना एक टेढ़ी खीर है. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों में भाजपा को मिल रही ये हार पार्टी में एक नई ऊर्जा का संचार करेगी और इस भ्रम को भी तोड़ेगी कि उसे अब एक लम्बे वक़्त तक हराया नहीं जा सकता.

चुनाव तो जीत गए, अब आगे क्‍या...

गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों में सपा को बढ़त मिली है, मगर एक प्रश्न सदैव बना रहेगा कि इस उपचुनाव से मिली जीत से सपा या फिर बसपा को फायदा क्या है? साथ ही इस लिहाज से आगे की रणनीति क्या होगी ? ऐसा इसलिए क्योंकि यहां जीत के बाद भी जीता हुआ प्रतिनिधि साइड लाइन में रहेगा. गोरखपुर और फूलपुर में आज भी एक आम आदमी को उम्मीदें भाजपा से हैं और आगे भी रहेंगी. राज्य के स्तर पर उसका काम आज विधायक से पड़ रहा है तो वहीं केंद्र के स्तर पर वो अपने सांसद की ही क्षरण में जाएगा.

समाजवादी पार्टी, गोरखपुर, फूलपुर, उपचुनाव   इस हार का एक बड़ा कारण भाजपा का लोगों की उम्मीद पर खरा न उतरना है

भावनाएं गौण हैं, समस्‍या पहले

ये एक महत्वपूर्ण बिंदु है. हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, जाति-धर्म जैसी चीजें अब भी इस उपचुनाव के अंतर्गत गौण भावना की श्रेणी में रखा जाएगा. यहां अब भी समस्या पहले है. बात अगर गोरखपुर के सन्दर्भ में हो तो कह सकते हैं कि चाहे जापानी एनसेफेलिटिस हो या फिर शिक्षा और रोजगार लोग कई बातों के चलते भाजपा से नाराज थे. वहीं फूलपुर में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है बदहाल सड़कें, मूलभूत जरूरतों का आभाव ऐसी कई बातें थी जिन्होंने लोगों को भाजपा के विरुद्ध वोट करने पर मजबूर किया.

कुल मिलाकर इस चुनावों के परिणामों के बाद इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यहां भाजपा को हार का सामना सिर्फ इसलिए करना पड़ा क्योंकि लोग उससे नाराज थे. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों के बाद लोगों की उम्मीदें भाजपा से काफी बढ़ गयी थीं. ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि भाजपा ने हाल फिल्हाल में उनके लिए ऐसा कुछ नहीं किया है जिसके चलते लोग दोबारा उनका गुणगान कर सकें. इन सारी बातों के अलावा भाजपा को मिली हार में जातिवाद को भी एक बड़े कारकके रूप में देखा जा सकता है. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ये एक मुश्किल वक़्त है और ये वक़्त की जरूरत है कि वो बैठें और इस हार का आंकलन करें.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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