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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 26 अगस्त, 2022 07:03 PM
निधिकान्त पाण्डेय
निधिकान्त पाण्डेय
  @1nidhikant
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देश की राजनीति के समुद्र में टाइटैनिक रुपी कांग्रेस का जहाज तो पहले ही तूफानों में हिचकोले खा रहा थ. और अब लगता है जैसे जम्मू-कश्मीर से एक आइसबर्ग रुपी गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा टकरा गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता समेत सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है और इसे कांग्रेस के लिए एक BIG BLOW यानी बड़ा झटका माना जा रहा है. उन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को जो 5 पन्नों की चिट्ठी भेजी है उसे पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस का जहाज अब डूबता जहाज बन गया है उसके नेता-कार्यकर्ता जहाज छोड़कर भाग रहे हैं. अभी कुछ ही समय पहले एक और वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उन्हें सपा ने राज्यसभा भी भेजा है. इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुनील जाखड़, कैप्टन अमरिंदर सिंह और जयवीर शेरगिल जैसे नेता भी पार्टी छोड़ चुके हैं. गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा ऐसे वक्त पर दिया, जब कांग्रेस ने हाल ही में कुछ समय के लिए अध्यक्ष पद के लिए चुनाव टाल दिया था.

Ghulam Nabi Azad, Congress, Resignation, Rahul Gandhi, Sonia Gandhi, Oppose, Prime Minister, Narendra Modiअपने इस्तीफे के जरिये गुलाम नबी आज़ाद ने पूरी कांग्रेस पार्टी को सकते में डाल दिया है

गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखे इस्तीफे में कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव न कराने को लेकर भी गांधी परिवार पर निशाना साधा है. उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा कि संगठन में किसी भी स्तर पर कहीं भी चुनाव नहीं हुआ. गुलाम नबी आजाद ने लिखा,'बड़े अफसोस और बेहद भावुक दिल के साथ मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना आधा सदी पुराना नाता तोड़ने का फैसला किया है. भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पहले पार्टी को कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी चाहिए.'

गुलाम नबी आजाद लंबे वक्त से कांग्रेस से नाराज थे और वे जी-23 गुट में भी शामिल रहे जो कांग्रेस में लगातार कई बदलाव की मांग करता रहा. कुछ साल पहले कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े परिवर्तन की मांग की थी. सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में नेताओं ने ये सवाल उठाया था कि कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक के दौरान अध्यक्ष के संबोधन के अलावा कुछ नहीं होता.

इस चिट्ठी पर जिन नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं, उनमें पांच पूर्व मुख्यमंत्री और कार्यकारिणी के कई सदस्य भी शामिल हैं. गुलाब नबी आजाद भी उन नेताओं में से एक थे. इन सब बातों का उल्लेख करते हुए गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफे में लिखा- 'एक गलती हमने की और वो ये कि जी-23 के नेताओं ने कांग्रेस की कमजोरियां बताईं और उन्हें दूर करने के उपाय भी लेकिन जी-23 के सभी नेताओं को कांग्रेस वर्किंग कमिटी में अपमानित किया गया, उन्हें बुरा कहा गया.'

लगे हाथ आपको ये भी बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पार्टी की राज्य इकाई की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने निरंतर बाहर रखे जाने एवं अपमान का हवाला देते हुए पार्टी की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था. जी-23, कांग्रेस के उन असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं का समूह है जो संगठन में आमूल-चूल फेरबदल की मांग करता रहता है. शर्मा भी इस समूह का हिस्सा हैं.

गुलाम नबी आजाद ने अपनी इस्तीफे वाली चिट्ठी में कांग्रेस में शामिल होने से छोड़ने तक के सफर के बारे में बताया है. इसके साथ ही उन्होंने वर्तमान कांग्रेस की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं. गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखा कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस चलाने वाली राष्ट्रीय कार्यसमिति ने इच्छाशक्ति और क्षमता खो दी है. गुलाम नबी आजाद ने अपनी चिट्ठी में राहुल गांधी को लेकर नाराजगी जताई है.

उन्होंने लिखा कि राहुल अपने आस-पास अनुभवहीन लोगों को रखते हैं और वरिष्ठ नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया है. राहुल गांधी पर पहले भी पार्ट टाइम पॉलिटिशियन होने के आरोप लगते रहे हैं. इससे पहले भी हार्दिक पटेल और हिमंत बिस्वा सरमा ने उन पर समय न देने का आरोप लगाया था. 'दुर्भाग्य से राहुल गांधी के राजनीति में आने के बाद जब उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था, उन्होंने कांग्रेस के कार्य करने के तौर-तरीकों को खत्म कर दिया.

उन्होंने संपूर्ण सलाहकार तंत्र को ध्वस्त कर दिया. इसके साथ ही राहुल का प्रधानमंत्री द्वारा जारी किया गया अध्यादेश फाड़ना उनकी अपरिवक्ता दिखाता है. इससे 2014 में हार का सामना करना पड़ा.' गुलाम नबी आजाद की नाराजगी पहली बार तब सामने आई थी, जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के कुछ घंटों बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था.

सोनिया गांधी चाहती थीं कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में आजाद के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़े. इसलिए उन्हें चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन गुलाम नबी ने पद मिलने के कुछ घंटों के बाद ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से उन्हें लेकर राजनीतिक गलियारों में तमाम कयास लगाए जा रहे थे. और 26 अगस्त को आखिरकार गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा लिख दिया.

आजाद ने चिट्ठी में कांग्रेस से जुड़ने का जिक्र किया- 'छात्र जीवन में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों से प्रभावित हुआ था. 1975-76 में संजय गांधी के आग्रह पर जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला था. बिना किसी स्वार्थ भाव के दशकों तक पार्टी की सेवा की.'

5 पन्नों की चिट्ठी में गुलाम नबी आजाद ने काफी कुछ लिखा लेकिन अब आपको उनके कुछ इतिहास की जानकारी भी दे दें. गुलाब नबी आजाद कश्मीर से हैं और वहां के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. यूं तो पार्टी में नेताओं का आना-जाना लगा रहता है. लेकिन गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से जाना, कांग्रेस को अगले कई सालों तक सालता रहेगा. आजाद के जाने का मतलब कांग्रेस में एक पीढ़ी के जाने जैसा है... 50 साल किसी पार्टी में रहकर राजनीति करना ही बड़ी बात है.

कांग्रेस के लिए ये बड़े संकट का दौर है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि आजाद के बाद पार्टी के कई और बड़े नेता इस्तीफा दे सकते हैं. इसी साल गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि अचानक किसी दिन आपको पता लगे कि मैं राजनीति से संन्यास ले चुका हूं और समाज सेवा कर रहा हूं- ऐसा नहीं है कि गुलाम नबी आजाद ने एकदम से इस्तीफा दिया है. हाल ही में पांच राज्यों मे कांग्रेस की करारी हार पर गुलाम नबी आजाद ने कहा था- 'मैं हैरान हूं, पार्टी की हार देख कर मेरा दिल रो रहा है. हमने पार्टी को अपनी पूरी ज़िंदगी और जवानी दी है. मुझे भरोसा है कि पार्टी का नेतृत्व सभी कमज़ोरियों और कमियों पर ध्यान देगा जो मैं और मेरे साथी पिछले कुछ समय से उठा रहे हैं.'

9 फरवरी 2021 का दिन आपको याद होगा या न भी हो मैं बता देता हूं. इस दिन पीएम मोदी राज्यसभा को संबोधित कर रहे थे. उसी दिन सदन में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद समेत चार सांसदों को विदाई दी जा रही थी. पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान गुलाम नबी आजाद की जमकर तारीफ की. एक वक्त ऐसा आया, जब गुलाम नबी आजाद की विदाई पर बोलते हुए पीएम मोदी के आंसू छलक गए. ये पहली बार था कि मोदी को किसी विपक्षी नेता के लिए भावुक होते हुए देखा गया था.

गुलाब नबी आजाद की छवि एक ऐसे नेता की है जिन्हें सभी दलों के नताओं से स्नेह मिला... कांग्रेस से खुद को मुक्त करने वाले गुलाब नबी आजाद की एंट्री कैसे हुई थी. कैसा रहा आजाद का राजनीतिक सफर चलिए आपको बताते हैं.

गुलाम नबी आजाद का जन्म जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में हुआ था.

7 मार्च 1949 को जन्मे आजाद के पिता का नाम था रहमतुल्लाह बट.

1972 में उन्होंने श्रीनगर की कश्मीर यूनिवर्सिटी से जूलॉजी में मास्टर्स डिग्री ली.

1975 में राजनीति पसंद आने लगी तो आ गए दिल्ली.

1980 तक आजाद युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बन चुके थे.

1980 में ही वो पहली बार लोकसभा पहुंचे.

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वो महाराष्ट्र के वाशिम से लोकसभा का चुनाव जीते थे.

1982 में इंदिरा गांधी की सरकार में आजाद उपमंत्री रहे.

1985 में वो फिर से संसद पहुंचे.

इसके बाद 1990 में राज्यसभा के लिए चुने गए.

नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री बने.

2005 में जम्मू-कश्मीर के सीएम.

2008 में PDP ने समर्थन वापस लिया तो सरकार गिर गई, तब एक बार फिर से आजाद दिल्ली पहुंचे.

मनमोहन सिंह की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने.

2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था.

गुलाब नबी आजाद की पत्नी शमीम देव आजाद कश्मीर की मशहूर गायिका हैं. उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है. दोनों बचपन से एक-दूसरे को जानते थे. गुलाम नबी आजाद खुद भी गाने का शौक रखते हैं और वो एक अच्छे शायर भी हैं. कभी कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले गुलाम नबी आजाद को बगीचों से खासा लगाव है. कई नेता मानते हैं कि दिल्ली में आजाद का घर कश्मीर ही लगता है. उनके बगीचे में 25-26 वैरायटी के फूल हैं.

मुख्यमंत्री रहते गुलाब नबी आजाद ने एशिया का पहला ट्यूलिप गार्डन कश्मीर में बनाया था. आज वो एक पर्यटक स्थल है. गुलाब नबी आजाद का रोने का वीडियो काफी वायरल हुआ था. उन्होंने कहा था कि वो जिंदगी में पांच बार ही रोए हैं-'मेरे माता-पिता की मौत हुई तो मैं बहुत रोया था. पहली बार तब रोया था जब संजय गांधी की मौत हुई. दूसरी बार तब जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई. तीसरा बार मैं रोया राजीव गांधी की मौत पर.

सोनिया गांधी ने मुझे ओड़िशा भेजा था, वहां सुनामी आई थी. मैंने समंदर में सैकड़ों लाशों को तैरते देखा, मैं बहुत रोया. 2005 में गुजरात के लोगों का दल पर्यटन के लिए कश्मीर पहुंचा था. लेकिन वो आतंकवादियों के बमों का निशाना बन गए. करीब 8 लोगों की मौत हुई थी. मौके पर पहुंचने पर पीड़ित बच्चे मेरे पैरों से लिपट गए, तब मैं पांचवीं बार रोया था.' गुजरात वाले किस्से का जिक्र पीएम मोदी राज्यसभा में भी कर चुके हैं.

जी-23 समूह की कांग्रेस आलाकमान को चिठ्ठी लिखने के बाद भी गुलाब नबी आजाद ने कहा था – 'मेरी कोई निजी महत्वाकांक्षा नहीं है. मैं पार्टी के प्रति निष्ठावान हूं. मैं मुख्यमंत्री रहा हूं, केंद्रीय मंत्री रहा हूं. कार्यसमिति में हूं और पार्टी का महासचिव भी हूं. मुझे और कुछ नहीं चाहिए. मैं अगले 5-7 साल तक सक्रिय राजनीति में रहूंगा. मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं बनना चाहता. सच्चे कांग्रेसी की तरह मैं पार्टी की बेहतरी के लिए चुनाव चाहता हूं.'

गुलाम नबी आजाद की राजनीतिक शैली एक शांत स्वभाव वाले नेता की रही है. लेकिन पिछले कुछ सालों में कांग्रेस में रहते हुए उनके साथ कुछ ऐसी चीजें हुई जो उनके खिलाफ थी या फिर वो कांग्रेस में रहकर अपमान महसूस कर रहे थे. कांग्रेस में एक वक्त ऐसा भी आया जब गुलाम नबी आजाद से उनकी ही पार्टी के लोग चिढ़ गए. कश्मीर में भी उनके खिलाफ कांग्रेस के नेता प्रदर्शन करने लगे. ये वही दौर था जब उन्होंने कांग्रेस का स्थाई अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए आवाज उठाई थी.

चूंकि आजाद जी-23 नेताओं के लिस्ट में सबसे सीनियर थे तो इस समूह के अगुआ के रूप में पार्टी ने शायद आजाद को ही देखा. पूर्व में गुलाब नबी आजाद के एक और बयान को पार्टी ने शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ समझा था. आजाद ने तब कहा था – 'जो अधिकारी या राज्य इकाई के अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष हमारे प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं, उन्हें मालूम है कि चुनाव होने पर वे कहीं नहीं होंगे. यदि संगठन में बदलाव नहीं हुआ तो कांग्रेस अगले 50 वर्षों तक विपक्ष में बैठी रहेगी.'

ये एक बड़ा बयान था. ये कांग्रेस आलाकमान को आईना दिखाने जैसा था. जिससे न सिर्फ कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बल्कि गांधी परिवार के करीबी भी धीरे-धीरे आजाद पर हमलावर होते गए. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जम्मू-कश्मीर के दिग्गज कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण पुरस्कार देने का ऐलान किया गया था. शशि थरूर,राज बब्बर जैसे कांग्रेस के नेताओं ने जहां आजाद का समर्थन किया तो कांग्रेस के एक धड़े ने पुरस्कार मिलने पर चुटकी भी ली.

दरअसल, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को भी पद्म भूषण देने का ऐलान किया गया था. लेकिन सीपीएम के वरिष्ठ नेता ने ये सम्मान स्वीकार करने से इनकार कर दिया. भट्टाचार्य के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के जयराम रमेश ने ट्विटर पर लिखा, "सही कदम उठाया, वह आजाद रहना चाहते हैं, न कि गुलाम." जयराम नरेश ने अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम नबी आजाद पर ही निशाना साधा था.

अटल बिहारी वाजपेयी और संजय गांधी से जुड़ा भी एक किस्सा है जिसमें गुलाम नबी आजाद का जिक्र है. ये 1980 की बात है. संजय गांधी तब संसद में बेहद कम बोलते थे. लेकिन एक दफा संजय काफी देर तक बोलते रहे. संजय गांधी वाजपेयी के खिलाफ बोल रहे थे. गुलाम नबी आजाद ने सदन में संजय का कुर्ता खींचते हुए कहा था कि बैठ जाओ, वो बोलेंगे तो धज्जियां उड़ा देंगे. हालांकि ये अलग बात है कि उस दिन वाजपेयी ने संजय गांधी की तारीफ की थी.

मुंबई में एक कार्यक्रम में बोलते हुए गुलाब नबी आजाद ने बीजेपी को हीरो बताया था और कांग्रेस को जीरो. आजाद ने कहा था कि प्रचार के स्तर पर हम पूरी तरह से शून्य थे. उस कार्यक्रम में बीजेपी नेता देवेन्द्र फडणवीस भी मौजूद थे. कुछ दिन पहले गुलाम नबी आजाद कश्मीर के कई इलाकों के दौरे कर रहे थे. ये अटकलें लगी कि आजाद कांग्रेस छोड़ अपनी नई पार्टी बना सकते हैं.

इस पर गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि मैं कोई पार्टी नहीं बना रहा बल्कि कांग्रेस को ही मजबूत करुंगा.. लेकिन अब उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. क्या गुलाम नबी आजाद भी सिंधिया की तरह बीजेपी का दामन थामेंगे... या फिर अपनी नई पार्टी बनाएंगे...ये सारे सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब आजाद के पास ही है.

इसमें कहीं दो राय नहीं है कि गुलाम नबी आजाद एक सुलझे हुए राजनेता हैं. उनकी छवि एक सेकुलर और सौम्य नेता की है. राज्यसभा में विदाई के दौरान अंतिम दिन उन्होंने कश्मीरी पंडितों पर अपना विचार साझा किया था उन्होंने कहा था- 'मैं जब यूनिवर्सिटी में जीतकर आता था, तब कश्मीरी पंडित मुझे सबसे ज्यादा वोट देते थे. मुझे अफसोस होता है, जब मैं अपने क्लासमेट्स से मिलता हूं. क्योंकि वे कश्मीरी पंडित हैं, जो घर से बेघर हो गए. 'उनके लिए शेर-

गुजर गया वो छोटा सा जो फसाना था,

फूल थे, चमन था, आशियाना था.

न पूछ उजड़े नशेमन की दास्तां,

न पूछ कि चार तिनके मगर आशियाना तो था.

अब कांग्रेस से निकलकर गुलाम नबी आजाद शेर-ओ-शायरी पर फोकस करेंगे, बगीचे संवारेंगे या कोई पार्टी ज्वाइन करेंगे ये तो वही जानें लेकिन उनकी चिट्ठी और इस आर्टिकल में जिक्र में आई बातों से तो यही लगता है कि लोगों से बने गुलशन को संवारने के लिए गुलाम नबी आजाद कोई न कोई कदम जरूर उठाएंगे, 

लेखक

निधिकान्त पाण्डेय निधिकान्त पाण्डेय @1nidhikant

लेखक आजतक डिजिटल में पत्रकार हैं.

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