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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 01 सितम्बर, 2021 07:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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G-23 तो अब नाम मात्र ही रह गया है - क्योंकि जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी चले जाने से एक नंबर कम तो हुआ ही है, पार्टी हित में बागी बने नेताओं (G-23 Congress Leaders) के तौर पर अपनी अलग पहचान बना चुके ये नेता लगता है लक्ष्य भी बदल चुके हैं.

अब तक G-23 के नेता खुद को कांग्रेस का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश करते रहे हैं. मौके बेमौके दावा करते रहे हैं कि वे कांग्रेस में सुधार की लड़ाई लड़ रहे हैं. कांग्रेस जो पटरी से उतर चुकी है, कांग्रेस जो बेजान सी होती जा रही है - उसे उसके सुनहरे दिनों की वापसी की लड़ाई लड़ रहे हैं.

हाल ही में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के बर्थडे पर हुई डिनर पार्टी तक G-23 की ऐसी ही छवि नजर भी आ रही थी. डिनर पार्टी में सिर्फ बागी गुट के नेता ही नहीं बल्कि विपक्षी खेमे के दिग्गजों की भी मौजूदगी रही और वहां निकल कर जो खबर आयी थी उसका मकसद और मैसेज दोनों ही बहुत साफ दिखायी दे रहा था. एक बड़ी सोच और समझाइश के साथ सलाह देने की कोशिश हो रही थी - कांग्रेस नेतृत्व को यूपी चुनाव से ही बीजेपी को घेरने का प्रयास करना चाहिये.

बेशक कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी चुनाव में गठबंधन की पहल की हो, लेकिन G-23 की रणनीति और कांग्रेस नेतृत्व के स्टैंड में बड़ा फर्क देखने को मिला है, लेकिन डिनर पार्टी में कांग्रेस नेता विपक्षी दिग्गजों के साथ हां में हां मिलाते लगे थे कि कांग्रेस को अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का सपोर्ट करना चाहिये. दरअसल, अब तक अखिलेश यादव ही बीजेपी के खिलाफ चुनावों में चुनौती देने की स्थिति में लग रहे हैं. किसी तरह के चुनावी गठबंधन से इंकार तो बीएसपी नेता मायावती ने भी किया है - और पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा जगह जगह ब्राह्मण सम्मेलन करते हुए अकेले चुनाव लड़ने की बात दोहरा रहे हैं. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि बीजेपी ने भी महेंद्र नाथ पांडेय और कलराज मिश्रा को आगे कर बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलन को न्यूट्रलाइज करने का प्लान तैयार कर लिया है.

बीते सात साल में कांग्रेस नेतृत्व के सामने समस्या रही है पार्टी को पहले की तरह खड़ा करने की. अभी कांग्रेस जिस तरह समस्याओं से चौतरफा घिरी है, उसके लिए अस्तित्व बचाने जैसा संकट खड़ा हो गया है. दिल्ली में बगावत और पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान में तकरार - ये ऐसी मुश्किलें हैं कि पार्टी का सफर बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा है.

कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता अपनी डिमांड के साथ प्रियंका गांधी वाड्रा से संपर्क स्थापित करने के बाद राहुल गांधी और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के दरबार में हाजिरी भी लगा रहे हैं, लेकिन फिर मनमानी शुरू कर दे रहे हैं - नवजोत सिंह सिद्धू जहां सड़क पर उतर कर राहुल गांधी को सीधे ललकार रहे हैं, वहीं भूपेश बघेल और अशोक गहलोत जैसे नेता अपने लंबे राजनीतिक अनुभव का पूरा फायदा उठा रहे हैं. ऐसे नेताओं के सामने पूरा गांधी परिवार कदम कदम पर बेबस नजर आ रहा है.

आखिर इन समस्याओं की वजह से ही तो राहुल गांधी को प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को हायर करने या कोई महत्वपूर्ण भूमिका देने के बारे में सोचना पड़ रहा है, लेकिन अब तो कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद एंड कंपनी तो प्रशांत किशोर को ही निशाना बनाने लगे हैं, ताजा मीडिया रिपोर्ट तो यही बता रही है.

कांग्रेस जिन मुश्किलों से गुजर रही है, पार्टी के लिए प्रशांत किशोर और उनकी टीम किसी लाइफ सपोर्ट सिस्टम से कम नहीं लगती - लेकिन G-23 ने तो विरोध कर लगभग साफ ही कर दिया है कि वे पार्टी के हितैषी नहीं बल्कि घोर मतलबी हैं और उनकी भलाई की बातें किसी आम प्रोपेगैंडा जैसी ही हैं.

आखिर चाहते क्या हैं कांग्रेस के स्वयंभू-हितैषी?

कपिल सिब्बल के बर्थडे के बाद श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का मौका भी कांग्रेस के बागी नेताओं के मीटिंग करने का बढ़िया बहाना दे गया. हालांकि, इस मीटिंग से विपक्षी नेताओं को दूर रखा गया था. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने के करीब साल भर बाद हुई इस तथाकथित अनौपचारिक बैठक में भी सारे नेता वैसे ही जुटे जैसे कुछ महीने पहले जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे. ये राहुल गांधी के जम्मू कश्मीर दौरे के काफी पहले की बात है. तब G-23 नेताओं के सिर पर भगवा साफा और जबान पर घुमा फिरा कर मोदी-मोदी सुना गया और अलग ही इरादे महसूस किये गये थे.

कपिल सिब्बल के यहां मुश्किल से तीन महीने बाद पहुंचे नेताओं में गुलाम नबी आजाद और हाल ही में नवजोत सिंह सिद्धू के बयान पर शेरो शायरी के साथ कड़ा ऐतराज जताने वाले मनीष तिवारी के अलावा आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर, मुकुल वासनिक, विवेक तन्‍खा और भूपिंदर सिंह हुड्डा भी शामिल थे.

prashant kishor, kapil sibal, ghulam nabi azadG-23 नेताओं का स्टैंड ही नहीं बदला है, प्रशांत किशोर के नाम पर गुटबाजी के भी संकेत मिल रहे हैं

G-23 नेताओं में मुकुल वासनिक की भूमिका अब तक समझ में नहीं आयी है. जब सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी जाती है तो वो साइन भी कर देते हैं. जब कार्यकारिणी की बैठक में चिट्ठी लिखने को लेकर गांधी परिवार के सबसे करीबी होने के दावेदार टूट पड़ते हैं तो मुकुल वासनिक इमोशनल हो जाते हैं, जैसे अफसोस जता रहे हों - और अब बागियों की मीटिंग में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. बीच बीच में मुकुल वासनिक को कांग्रेस में अध्यक्ष या कम से कम कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी देने पर विचार विमर्श की खबरें भी पार्टी में सूत्र बन कर कई लोग लीक करते रहे हैं.

कांग्रेस के बागी नेताओं में से कुछ ने मीडिया के जरिये अपनी बात समझाने की कोशिश भी की है. बातचीत में ऐसे ही एक नेता ने कांग्रेस में भी टैलेंट होने की बात दोहरायी है और प्रशांत किशोर के बहाने कांग्रेस नेतृत्व के ऐसे किसी फैसले पर सवालिया निशान भी लगा दिया है.

ऐसी ही बात एक बार कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने भी की थी. संदीप दीक्षित के बयान को एनडोर्स करते हुए शशि थरूर ने उसे ज्यादातर कांग्रेस नेताओं के मन की बात बतायी थी. फिर कुछ और भी नेताओं ने समर्थन के संकेत दिये थे, लेकिन खुल कोई बड़ा नेता मुसीबत मोल लेने के मूड में नहीं दिखा. संदीप दीक्षित, दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं और सांसद भी रह चुके हैं.

बागी नेता आखिर कांग्रेस के भीतर किस टैलेंट की बात कर रहे हैं?

राहुल गांधी के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर भी G-23 नेताओं की तरफ से कभी कोई आपत्ति नहीं दर्ज करायी गयी है. हां, ये जरूर समझाने की कोशिश कर रहे हैं जो भी अध्यक्ष बने वो काम करता हुआ सबको दिखे भी.

अब ये क्या बात हुई? कहने का मतलब तो यही समझ में आता है कि कांग्रेस अध्यक्ष रहते राहुल गांधी कभी काम करते हुए ऐसे नेताओं को नजर नहीं आये. फिर वे खुल कर ये ऐतराज भी क्यों नहीं करते कि राहुल गांधी को दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर देखना नहीं चाहते.

प्रशांत किशोर को लेकर उनके कांग्रेस ज्वाइन करने की संभावना तक जतायी जा चुकी है. ये भी खबर आ चुकी है कि वो कांग्रेस में महासचिव बनाये जा सकते हैं - और उस कोर ग्रुप की अगुवाई भी कर सकते हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष को चुनाव और पार्टी की रणनीतियों पर सलाहों की लिस्ट तैयार करेगा - लेकिन कांग्रेस कार्यकारिणी से मंजूरी की जरूरत होगी.

बैठक में शामिल हुए एक नेता का कहना है, 'हमने उत्तर प्रदेश में प्रशांत किशोर को देखा है. उनकी सफलता स्पेसिफिक है.' साथ ही वही नेता कहते हैं, 'पार्टी को आउटसोर्स करने के बारे में निश्चित रूप से गंभीर आशंकाएं हैं.'

प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस नेताओं के शुरुआती रिएक्शन पर आई खबर से मालूम हुआ कि ज्यादातर नेताओं की राय में प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लेने का आइडिया बुरा नहीं है, लेकिन ये नया शिगूफा छोड़ा गया है. हालांकि, G-23 ग्रुप में भी ऐसे कुछ नेता हैं जो प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने के पक्षधर दिखायी देते हैं. बताते हैं कि कपिल सिब्बल की जन्माष्टमी पॉलिटिक्स में ऐसे कुछ नेताओं की वर्चुअल हिस्सेदारी देखी गयी है.

पंजाब एक्सपेरिमेंट तो फेल ही रहा

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को जो चिट्ठी लिखी गयी थी उसे एक शिकायती लहजे में मांग पत्र या ज्ञापन के तौर पर लिया जा सकता है, लेकिन प्रशांत किशोर को लेकर G-23 के नेता जो कुछ कह रहे हैं वो किसी विरोध प्रदर्शन जैसा ही है.

लेकिन क्या ये बहाने से किया जा रहा विरोध प्रदर्शन वैसा ही है जैसा पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू के बयान 'ईंट से ईंट खड़का देंगे' जैसा ही माना जा सकता है?

या कपिल सिब्बल के किसी न किसी बहाने होने घर बुला कर G-23 के बागी नेताओं के साथ की मीटिंग को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आलाकमान के निर्देशों को नजरअंदाज किये जाने की खबरों से जोड़ कर देखा जा सकता है?

या फिर कपिल सिब्बल के संयोजन में बागियों की नयी पैंतरेबाजी को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राहुल गांधी की इच्छा के विरुद्ध छत्तीसगढ़ मॉडल को गुजरात मॉडल जैसा प्रोजेक्ट करने को लेकर गुमराह करने जैसा समझा जा सकता है?

पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कड़े विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का प्रधान बनाये जाने के फैसले में सिद्धू के प्रति भाई-बहन राहुल-प्रियंका की पंसद के साथ साथ प्रशांत किशोर की कार्यशैली के लहजे से जोड़ कर देखा गया. अगर कैप्टन जैसे नेताओं को कोई मैसेज देने की कोशिश की गयी है, फिर तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस में मौका मिलते ही किसी के भी भस्मासुर बनने में देर नहीं लगेगी - अगर वास्तव में प्रियंका गांधी वाड्रा की पहल और प्रशांत किशोर की सलाह पर सिद्धू के मामले में राहुल गांधी ने मुहर लगायी है और सोनिया गांधी ने उस पर दस्तखत किया है, तो ये भी 'प्रथम ग्रासे मक्षिका पात:' जैसी ही मिसाल है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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