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Updated: 14 अगस्त, 2021 08:03 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस (Congress) के लिए मुश्किलों का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. भारत में कोरोना महामारी की आवक के बाद कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के एक गुट ने पार्टी आलाकमान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. पार्टी नेतृत्व में बदलाव की मांग करने वाले ये जी-23 नेता कांग्रेस पार्टी की बैठकों में मुखर होकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का विरोध करते हुए नजर आए हैं. बीते साल शुरू हुआ अदावतों का ये दौर अभी भी बदस्तूर जारी है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के हालिया जम्मू-कश्मीर दौरे पर जी-23 गुट के नेता गुलाम नबी आजाद कई मौकों पर नदारद नजर आए थे. हालांकि, कांग्रेस कार्यालय के उद्घाटन कार्यक्रम में गुलाम नबी आजाद मौजूद रहे. लेकिन, कहा जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद की मौजूदगी कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के चलते हुई. खैर, कारण कोई भी हों, जी-23 गुट के नेता राहुल गांधी के खिलाफ जाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के जम्मू-कश्मीर दौरे के बीच ही जी-23 गुट के नेता कपिल सिब्बल के घर 'बर्थ डे' पार्टी का आयोजन किया गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के इस कार्यक्रम में गांधी परिवार का कोई अन्य सदस्य शामिल नहीं हुआ. गांधी परिवार से किसी को बुलावा नहीं भेजा गया या बुलावा भेजे जाने के बावजूद किसी ने उपस्थिति दर्ज नहीं कराई, ये बहस का अलग विषय है. लेकिन, कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी में 17 विपक्षी पार्टियों के करीब 45 नेता और सांसद का जुटना कहीं न कहीं कांग्रेस आलाकमान को सीधे एक मैसेज भेजने की तरह देखा गया. इस डिनर पार्टी में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, अकाली दल के नरेश गुजराल, और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह भी शामिल हुए थे. ये सभी उन पार्टियों के नेता हैं, जिनकी राज्यों में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता भाजपा से इतर कांग्रेस के साथ भी है. इस लिस्ट में YSRCP और बीजेडी का नाम भी शामिल है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस फिर से टूट के मुहाने पर खड़ी है?

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्रमोह का खामियाजा पूरी पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्रमोह का खामियाजा पूरी पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.

राहुल गांधी की लाइन 'My way or the highway'

बीते कुछ समय में हिमंता बिस्व सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे कई बड़े कांग्रेसी नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं. हिमंता बिस्व सरमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस का हाथ छोड़ने की वजह से तो असम और मध्य प्रदेश में पार्टी सत्ता से ही बाहर हो गई है. और, इन दोनों ही नेताओं को भाजपा ने भरपूर तरीके से सहेजा भी है. हिमंता असम के मुख्यमंत्री बन चुके हैं और सिंधिया को मोदी मंत्रिमंडल में वो मंत्रालय दिया गया है, जिसे कभी उनके पिता संभाला करते थे. कुल मिलाकर अगर राजस्थान को छोड़ दिया जाए, तो 'ऑपरेशन लोटस' और नेताओं की नई पौध खड़ी करने में कांग्रेस की तुलना में भाजपा हमेशा ही फिनिश लाइन के पास नजर आती है. लेकिन, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्रमोह का खामियाजा पूरी पार्टी को भुगतना पड़ रहा है. कांग्रेस में कई गुट बन चुके हैं, जो राहुल गांधी को स्थायी अध्यक्ष के तौर पर फिलहाल स्वीकार करने के पक्ष में नजर नही आते हैं. उनका मानना है कि 2014 और 2019 के बाद राहुल गांधी ने अभी तक खुद को साबित नहीं किया है. विपक्षी पार्टियों भी दबी जुबान में ही सही, लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाती रहती हैं. कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी में अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से कब्जे से मुक्त करने की बात कही.

वहीं, राहुल गांधी ने बीते महीने ही आरएसएस और भाजपा के विचारों से सहानुभूति रखने वालों को पार्टी से निकलने का रास्ता दिखा दिया है. कांग्रेस के सोशल मीडिया सेल के वॉलंटियर्स के साथ ऑनलाइन मीटिंग में उन्होंने कहा कि कांग्रेस को निडर लोगों की जरूरत है, डरपोकों की नहीं. ऐसे डरपोक लोग आरएसएस के आदमी हैं. हमें ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है, वो कांग्रेस छोड़कर चले जाएं. जो निडर हैं, उन्हें कांग्रेस में लाएं. राहुल गांधी ने किसी बॉलीवुड अभिनेता की तरह पार्टी के कार्यकर्ताओं के सामने अपनी लाइन तय कर दी है कि भविष्य में वो 'My way or the highway' के सिद्धांत पर चलने वाले हैं. ये बयान पहली नजर में ही कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के गुट के लिए दिखता है. लेकिन, कांग्रेस में संगठनात्मक बदलावों मांग करने वाले जी-23 नेताओं से इतर ये बयान धारा 370, राम मंदिर, नरेंद्र मोदी के विरोध और हिंदुत्व जैसे मुद्दों पर भाजपा के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले नेताओं के लिए भी है. उनके इस बयान से स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस अपनी विचारधारा को त्यागने के मूड में नही है. और, वह इसकी वजह से होने वाले नुकसान को उठाने के लिए भी तैयार है.

कांग्रेस में टूट का कारण बनेगी कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी

देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल में अब तक 70 बार टूट हो चुकी है. भारत के राज्यों में क्षत्रपों की संख्या बढ़ाने में कांग्रेस का सर्वाधिक योगदान है. वर्तमान में विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में जुटे एनसीपी चीफ शरद पवार और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममत बनर्जी भी किसी समय कांग्रेस में ही शामिल रहे हैं. वहीं, जी-23 नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी में इन तमाम नेताओं की मौजूदगी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी नजर आती है. जिस कमजोर स्थिति में कांग्रेस नजर आ रही है, YSRCP, बीजेडी, अकाली दल, आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दल शायद ही उसके साथ सियासी संबंधों को बनाने के पक्षधर होंगे. वहीं. कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की चिट्ठी लिखने वाले गुट के अगुआ नेताओं में शामिल होने के नाते कपिल सिब्बल की इस डिनर पार्टी के मायने अपने आप में काफी बढ़ जाते हैं. ममता बनर्जी ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद खुद को एक 'कार्यकर्ता' की हैसियत से आगे बढ़ाने की बात कही थी. लेकिन, इस बयान के बाद साझा विपक्ष की कोशिशों में उनके साझीदार शरद पवार से ममता बनर्जी की मुलाकात नहीं हो पाई थी.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक सियासी दल के तौर पर कांग्रेस का फैलाव देश के हर राज्य में है. लेकिन, बीते कुछ समय में ये लगातार सिमटता जा रहा है. पंजाब, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को छोड़ दिया जाए, तो अन्य राज्यों में कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है. हालिया हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का खाता ही नहीं खुल सका. वहीं, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब और मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सामने प्रतिद्वंदी के तौर पर आम आदमी पार्टी राजनीति में हिस्सेदारी मांगने पहुंच रही हैं. राहुल गांधी पहले ही बता चुके हैं कि विचारधारा के नाम पर वो झुकेंगे नहीं. इस स्थिति में हिंदुत्व और अन्य मुद्दों पर सॉफ्ट कॉर्नक रखने वाले सियासी दलों से उसका गठबंधन होना मुश्किल नजर आता है. इस संभावना से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि जी-23 नेताओं के साथ बड़ी संख्या में कांग्रेस में असंतुष्ट बगावत कर सकते हैं. हालांकि, कपिल सिब्बल ने डिनर पार्टी के बाद सफाई में कहा था कि वो विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं और इसका कांग्रेस आलाकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन से कोई संबंध नही है.

लेकिन, ऐसी ही एक कोशिश कुछ समय पहले न्याय मंच के बैनर तले शरद पवार ने भी की थी. हालांकि, कांग्रेस नेता कमलनाथ से मुलाकात के बाद शरद पवार के सुर बदल गए थे. लेकिन, शरद पवार की लालू प्रसाद यादव से लेकर अन्य विपक्षी नेताओं से मुलाकात एक अलग खिचड़ी पकने का संकेत तो दे ही रही है. कांग्रेस की ब्रेकफास्ट पॉलिटिक्स में शामिल होने के साथ ही इनकी एक अलग राजनीति भी चल रही है. वहीं, हर राज्य में कांग्रेस किसी न किसी तरह के संकट से घिरी हुई है. अगर जी-23 नेताओं की मांग को जल्द ही अमल में नहीं लाया गया, तो पार्टी में टूट की संभावनाएं प्रबल हो जाएंगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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