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Updated: 27 जनवरी, 2021 07:19 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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पाकिस्तान भी आज हमारी अंदरूनी हरकतों पर हंस रहा है. दरअसल, हमारे लोगों ने कारनामा ही कुछ ऐसा कर दिखाया है. उनकी मीडिया हमारे लोकतंत्र पर चटकारे मारकर हंस रहा है, उपहास और तिरस्कार कर रहा है. पाकिस्तान को छोड़िए, बल्कि समूचा संचार हम पर थू-थू कर रहा है. गनीमत इस बात की समझें इस बार गणतंत्र दिवस (Republic Day) पर दिल्ली के राज पथ की परेड में कोई विदेशी अतिथि नहीं आया, वरना मिट्टी और पलीत हो जाती. ट्रैक्‍टर परेड (Tractor parade) की आड़ में किसानों ने जो किया, वह शायद ही किसी ने सोचा हो. सबसे बड़ी गलती दिल्ली पुलिस ने की जिन्होंने बिना सोचे समझे गणतंत्र की परेड के दिन रैली करने की इजाज़त दी. इसलिए उपद्रवियों के साथ-साथ घटना की जिम्मेदार पुलिस भी है. लाल किले पर देश का तिरंगा उतार कर अपना लगाना हम सबों के लिए शर्म वाली बात है. ये हरकत निश्चित रूप से माफ करने योग्य नहीं? तिरंगा हमारा गुरुर है, स्वाभिमान है, इसके तीनों ही रंगों पर हमें घमंड है. मुल्क की आन-बान-शान है तिरंगा. पर, इसके साथ की छेड़छाड़ ने सिर शर्म से झुका दिया, देश की अखंडता और मानवता शर्मसार हो गई. ...नहीं करना चाहिए था ये सब? हुकूमतों से मुद्दों पर हमें सहमति-असहमति हो सकती है लेकिन उसकी आड़ में संप्रभुता की अखंडता से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता. राजधानी में शांतिपूर्ण ठंग से करीब दो महीनों किसानों का आंदोलन संचालित है. पर, आज उसके माथे पर ऐसा कलंक लग गया, जो किसी साबुन-पाॅउडर से नहीं धुलेगा. आंदोलनों की विश्वसनीयता पर गहरा ढेस पहुंचा दिया है.

Farmer Protest, Demonstration, Violence, Delhi, Red Fort, Dharna, Rallyलाल किले पर कुछ इस तरह किसानों ने लोकतंत्र को शर्मसार किया है

किसान संगठनों को इस बात का अंदेशा पहले दिन से था कि उन्हें उकसाने के लिए कुछ हरकतें हो सकती हैं, उन्हें सावधान रहना होगा. योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत के अलावा करीब चालीस वुद्विजीवी नेता ऐसे हैं जो मौलिक रूप से हर चीज के गुणा-भाग को समझते हैं. संभावित खतरों के अंदेशों को भी भांपते हैं. लेकिन वह भी गच्चा खा गए, 26 जनवरी को उनके आंदोलन को सुनियोजित तरीके से तितर-बितर करने की कोशिशें होंगी, फिर भी आंदोलनकारियों को संभाल नहीं पाए.

लालकिले पर जब हंगामा कट रहा था, तब पाकिस्तानी मीडिया हमारी अंदरूनी हरकतों को टीवी पर लाइव दिखा कर चटकारे मार रहा था. जिस लोकतंत्र का हम गर्व-गुमान करते हैं उसकी वह सामूहिक तरीके से धज्जियां उड़ा रहा था. हमने अपने दुश्मन देश को शायद ही इससे पहले कभी हंसने और खुश होने का इतना बड़ा मौका दिया हो. राज पथ पर एक बजे के आसपास जैसे ही परेड खत्म हुई. तय समय के मुताबिक किसानों की ट्रैक्टर रैली निकलनी शुरू हुई.

देखते ही देखते किसानों के ट्रैक्टर लालकिले और आईटीओ पर पहुंच गए. जबकि वहां जाने की इजाज़त नहीं दी गई थी. लेकिन ट्रैक्टर चालक पुलिस का घेरा फांदकर निकाल ले गए. दिल्ली के जीटी रोड, आउटर रिंग रोड, बादली रोड, केएन काटजू मार्ग, मधुबन चैक, कंजावाला रोड, पल्ला रोड, नरेला और डीएसआईडीसी नरेला रोड पर ट्रैक्टरों का जमावड़ा लगा रह.

दो बजे के करीब एक साथ हजारों की संख्या में किसान लालकिले के प्राचीर में दाखिल हुए, पुलिस ने रोका, लेकिन रूके नहीं? छतों पर चढ़ गए, तोड़ फोड़ करने के साथ सुरक्षा कर्मियों से भी उलझना शुरू कर दिया. आरोप ये भी उन्होंने भारत का तिरंगा उतार कर अपना झंड़ा गाड़ दिया. बहरहाल, उसके बाद किसानों के रूप में उपद्रवियों ने जो कारनामा लालकिले के भीतर किया, उसने हमें शर्मसार कर दिया. संविधान की मान्यता के पर्व पर देश की राजधानी के दृश्य लोकतंत्र की गरिमा को चोट पहुंचाया.

हमें एक बात याद रखनी होगी, यदि देश का सम्मान है तो आपका-हमारा है. हिंसा लोकतंत्र की जड़ों में दीमक के समान होती हैं. पर गणतंत्र के मौके पर किसानों ने जो अमर्यादा का परिचय दिया, उसने बेहद सम्माननीय आंदोलन की वैधता, संघर्ष और उसकी विश्वसनीयता को धूमित कर दिया. इस हरकत ने भविष्य में जब कोई अपनी बात सरकार के समझ रखेगा तो उसकी शुचिता व स्वीकार्यता सवाल खड़ा कर दिया है. हंगामें को लेकर कुछ सवाल उठ रहे हैं.

जबाव कौन देगा फिलहाल पता नहीं, लेकिन वक्त जब कभी पलटी मारेगा, तो जबाव खुद बे खुद मिल जाएगा. दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकाल रहे किसान क्यों बे काबू हुए,उनको किसी ने उकसाया, या फिर इस बवाल की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी. किसानों ने अपने ट्रैक्टर से पुलिस वालों को कुचलने की कोशिशें की.

घटना के संबंध में जो तस्वीरें सामने आईं, उनमें किसान इतनी तेजी से ट्रैक्टर चलाते दिखे कि पुलिसवाले डर के मारे जान बचाने के इधर-उधर भागते दिखे. घटना की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए, आरोपियों पर ऐसी कर्रवाई हो जिससे भविष्य में कोई ऐसी हरकत करने से भी डरे. रूट बदलकर किसानों का जत्था कैसे लालकिले पर पहुंचा इसकी जांच होनी चाहिए.

उपद्रव करने वाले किसान थे या फिर कोई और ये किसान संगठन के नेताओं को सार्वजनिक करना चाहिए. उप द्रव की जांच हो उसमें सहयोग भी करें. घटना घट जाने के बाद जांचें तो होती ही हैं, लेकिन आंखों के सामने जो कुछ है वह शर्मसार करने जैसा है. लोकतंत्र की बनाई दीवारों के माथे पर जो कलंक उपद्रवियों ने लगाया है, वह कब मिटेगा, किसी को नहीं पता?

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