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Updated: 26 जनवरी, 2021 09:39 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर झांकियां निकलती हैं, परेड होता है. इस राष्ट्रीय पर्व के दिन लोग आजादी का जश्न मनाते हैं. 72वें गणतंत्र दिवस के दिन (Republic Day 2021) किसान प्रदर्शन (Farmers Protest) के दौरान जिस तरह का बवाल (Delhi Violence) हुआ, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. जो कुछ हुआ उसे देखकर ऐसा लगा जैसे हम कोई फिल्म देख रहे हैं.

'लाल किला’ जो हमारे लोकतंत्र की मर्यादा का प्रतीक है. वहां किसानों का एक गुट किले पर पहुंच गया और विरोध करते हुए अपना धार्मिक ध्वज 'निशान साहिब' (Nishan Sahib) उस जगह लगा दिया जहां 15 अगस्त को प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं. इस तरह आंदोलनकारियों ने लालकिले पर अपना कब्ज़ा जमा लिया.

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इसे देखकर क्या आपको कैपिटल हिल के सीन की याद नहीं आई? मुझे ऐसा लगा जैसे कोई कैपिटल हिल वाला सीन देख रही हूं. लाल किला जो हमारे देश की गरिमा है, वहां ऐसा होते देखकर अमेरिकी संसद Capitol Hill पर हुए हंगामे की याद आ गई.

जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने वाशिंगटन स्थित कैपिटल हिल में हंगामा करने के बाद कब्ज़ा कर लिया था. ट्रंप समर्थक हथियार के साथ हजारों की संख्या में पहुंचे थे और तोड़ फोड़ की थी. साथ ही सीनेटरों को बाहर निकालकर वहां कब्ज़ा कर लिया था. यह खबर पूरी दिया में फैल गई और अमेरिकी इतिहास के लिए काला दिन रूप में करार दिया गया. अमेरिका में हुए इस हिंसा की काफी निंदा भी हुई.

वैसा ही कुछ हमारे देश में भी देखने को मिला. जब दर्जनों ट्रैक्टर में सवार होकर सैकड़ों आंदोलनकारी लाल किला परिसर में घुस गए और प्रदर्शन कर लालकिले और तिरंगे का अपमान किया. किसानों ने कहा था कि, वो तिंरगे के सम्मान में रैली निकालेंगे लेकिन जिस तरह एक आंदोलनकारी ने तिरंगे को उतार कर फेंक दिया वो दिल को दुखाने वाला है. क्या रैली में तिंरगा लेकर प्रदर्शन करना सिर्फ एक दिखावा था. किसानों ने तो कहा था कि हम गणतंत्र दिवस की शोभा बढ़ाएंगे, हमारे शामिल होने से भव्य नज़ारा होगा लेकिन जो हुआ, वो बड़े शर्म की बात है. ITO से लेकर लालकिले तक आंदोलनकारियों ने खूब उपद्रव मचाया.

चलो इसको भी भूला जा सकता है कि, लाल किला पर होने वाले कार्यक्रम की एक गरिमा है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री वहां पर जाते हैं. वहां तिरंगा झंडा फहराया जाता है, इसकी पूरी विरासत है. जवाहर लाल नेहरू से लेकर सभी प्रधानमंत्री की यह परंपरा रही है तो भी भविष्य में याद किया जाएगा कि, गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर ऐसा भी कुछ हुआ था.

दिल्ली पुलिस ने कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को शर्तों के साथ ट्रैक्टर रैली को इजाज़त दी थी. लेकिन किसानों ने समय से पहले ही रैली निकाल दी. किसान दिल्ली के अलग-अलग बार्डर में घुसने लगे.

ऐसा कुछ होगा, ऐसी तो कोई बात ही नहीं थी. आपका विरोध प्रदर्शन अपनी जगह है. आपको चलने के लिए एक पूरा रूट दे दिया गया था, उस पर आपको चलना था, लेकिन ये क्या हुआ? सुबह से बेरिकेट्स तोड़े गए, पुलिस के साथ झड़प हुई, शक्ति प्रदर्शन हुआ. ये रैली बवाल में कैसे बदल गई? क्या सरकार ने मना कर दिया था कि अब हम किसानों की कोई बात नहीं सुनेंगे या फिर इस प्रदर्शन के पीछे कुछ और करने की चाह थी?

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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