New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 14 जून, 2019 12:50 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

अध्यक्ष पद को लेकर बीजेपी भी फिलहाल कांग्रेस के ही रास्ते चलने जा रही है. न तो कांग्रेस को Rahul Gandhi का विकल्प मिल रहा है और न, लगता है, बीजेपी को Amit Shah का. कांग्रेस ने तो अध्यक्ष पद को लेकर सारे सवालों को खारिज ही कर दिया है - लेकिन बीजेपी ने फिलहाल होल्ड कर लिया है.

अमित शाह द्वारा बुलाई गयी बीजेपी की बैठक में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी की सदस्यता अभियान समिति की कमान दी गयी है. बीजेपी उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान आम चुनाव में बीजेपी की झोली में 29 में से 28 सीटें डाल देने के बावजूद सिर्फ मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं रहने वाले.

बीजेपी पदाधिकारियों की मीटिंग से अध्यक्ष पद को लेकर खबर का इंतजार था, लेकिन मालूम हुआ पार्टी नेतृत्व यथास्थिति को डिस्टर्ब न करना ठीक समझ रहा है. बताया गया है कि बीजेपी को नया अध्यक्ष 2019 में नहीं मिलने वाला है - फिर तो यही हुआ कि अमित शाह बीजेपी अध्यक्ष बने रहेंगे. सवाल है कि आम चुनाव में भारी कामयादी दर्ज करने के बावजूद बीजेपी रिस्क लेने से क्यों डर रही है - दरअसल, इसी साल तीन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं - जहां बीजेपी सत्ता पर काबिज है.

बीजेपी को नये अध्यक्ष की कितनी जरूरत है?

अमित शाह के मोदी सरकार 2.0 में गृह मंत्री बन जाने के बाद से ही चर्चा शुरू हो गयी थी कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी कौन संभालेगा? दरअसल, एक व्यक्ति एक पद के फॉर्मूले के चलते अमित शाह दोनों कुर्सियों पर बैठना पड़ रहा है. वैसे बीजेपी में ये हाल अकेले अमित शाह का ही नहीं है, बल्कि यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय, बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय और महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष रावसाहेब दानवे के सामने में समान चुनौती खड़ी हो गयी है. अमित शाह सहित ये तीनों ही नेता मोदी सरकार में मंत्री बन चुके हैं - और सभी मामलों में एक ही बात लागू होती है.

सवाल है कि बीजेपी को नये राष्ट्रीय अध्यक्ष की कितनी जरूरत है?

क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष की जरूरत सिर्फ इसलिए है कि 'एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत पर अमल करना जरूरी है?

या फिर एक शख्स के लिए एक साथ दो-दो काम संभालना मुश्किल होगा, इसलिए?

amit shah to remain bjp presidentअमित शाह निर्विकल्प नहीं लेकिन बीजेपी की चुनौतियां बहुत हैं

अमित शाह बड़े ही मेहनती और डेडलाइन को पूरा करने वाले नेता हैं. अमित शाह ने बीजेपी को जिन ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, किसी भी पार्टी के नेता के लिए तकरीबन नामुमकिन सा मुकाम हो सकता है. निश्चित तौर पर अमित शाह की जिम्मेदारियां बढ़ने के साथ साथ वर्कलोड भी डबल हो गया है.

जहां तक बीजेपी के संविधान की बात है तो अगर उसमें नितिन गडकरी के लिए संशोधन हो सकता है, तो अमित शाह तो कुछ ज्यादा के ही हकदार हैं. ये तो महज एक प्रस्ताव की बात है पार्टी हित में कभी भी मीटिंग बुलाकर पारित किया जा सकता है.

देखा जाये तो बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, सत्ता में दोबारा भारी बहुमत के साथ आने के बावजूद बीजेपी के सामने चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं.

1. पश्चिम बंगाल की चुनौती : काफी कड़ी मशक्कत और लगातार कोशिश के बाद बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में जोरदार एंट्री मारी है. पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा के चुनाव होने हैं. बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी को 34 से घटाकर 22 पर लाने और खुद 2 से 18 सीटों पर पहुंच जाने के बाद अब बीजेपी की नजर राइटर्स बिल्डिंग पर जा टिकी है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से मुकाबले के लिए सरकार और संगठन दोनों फ्रंट पर मजबूती से डटे रहना जरूरी है - और ये काम भी अमित शाह के ही वश का है.

2. एनडीए को भी तो मजबूत रखना है : वैसे तो बीजेपी के पास इतनी सीटें हैं कि उसे किसी और दल के सपोर्ट की कोई जरूरत नहीं है. फिर भी कांग्रेस मुक्त भारत में एनडीए की सरकारें होना अति आवश्यक है. एनडीए की भी चुनौतियां कम नहीं हैं. शिवसेना को काबू में रखना, नीतीश कुमार पर नजर बनाये रखना और जगनमोहन रेड्डी को अंदर लाने की कोशिश जैसे काम भला अमित शाह से बेहतर कौन कर पाएगा.

3. राज्य सभा में नंबर महत्वपूर्ण है : लोक सभा में भारी बहुमत के बावजूद बीजेपी के लिए राज्य के नंबर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. नंबर बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा राज्यों में सरकार बनाने के साथ ही, जहां सरकार है वहां भी जीत सुनिश्चित करना जरूरी है.

4. संघ के साथ समन्वय भी तो जरूरी है : सरकार बीजेपी की जरूर है लेकिन महत्वपूर्ण मामलों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहमति जरूरी होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का मजबूत बने रहना समन्वय के लिए आवश्यक है.

5. दिल्ली जीतना बेहद जरूरी है : 2014 में आम चुनाव के बाद बीजेपी को हार का पहला स्वाद दिल्ली में ही चखना पड़ा था - आगे से ऐसा हरगिज न हो, ऐसी बीजेपी की कोशिश होगी.

6. बिहार चुनाव पर खास नजर है : नीतीश कुमार जिस तरह से पेश आ रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि कभी भी छिटक कर महागठबंधन में जा सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए बिहार की सत्ता में हिस्सेदार बने रहना मुश्किल हो जाएगा - ये काम भी अमित शाह ही अच्छे से हैंडल कर सकते हैं.

आजमाने के लिए तो अच्छा मौका था

बीजेपी ने कांग्रेस की तरह ऐसा कोई संदेश नहीं दिया है कि राहुल गांधी की तरह अमित शाह भी निर्विकल्प हैं. कांग्रेस का मामला बिलकुल अलहदा है और बीजेपी को सही वक्त का इंतजार है. बीजेपी अध्यक्ष पद की रेस में जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव बने हुए हैं - लेकिन फिलहाल यथास्थिति का फैसला ही नेतृत्व को सर्वोत्तम लगा है. अब अगर बीजेपी में नये अध्यक्ष की बात उठेगी तो भी 2020 में ही - इस साल तो कतई नहीं.

अक्सर देखा जाता है कि कम जोखिम के वक्त नयी चीजों को आजमाया जाता है. मसलन, जिन तीन राज्यों के चुनाव की बीजेपी को फिक्र सता रही है, वहां वो पहले से ही मजबूत स्थिति में है - महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में बीजेपी की ही सरकारें हैं. लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है. बीजेपी के पास तीनों राज्यों की 72 सीटों में से अकेले 44 सीटें और महाराष्ट्र में शिवसेना की 18 सीटें जोड़ दें तो कुल 62 संसदीय सीटें हो जाती हैं. मुमकिन है थोड़ा बहुत सत्ता विरोधी फैक्टर भी हो, लेकिन आम चुनाव में जो मोदी लहर दिखी है वो अभी थमी नहीं लगती. कम से कम इन विधानसभा चुनावों तक तो असर रहेगा, ऐसा लगता है.

चुनाव की संभावना तो जम्मू-कश्मीर में भी है. केंद्र सरकार ने एक बार फिर राष्ट्रपति शासन की अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी है. वैसे चुनाव आयोग तैयार होता है तो राष्ट्रपति शासन कभी भी हटाया जा सकता है. जब राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग की तो लगा था कि आम चुनाव के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा के चुनाव कराये जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. चुनाव आयोग को हालात माकूल नहीं लगे. तब से ये भी माना जा रहा है कि आम चुनाव के बाद कभी भी विधानसभा के चुनाव कराये जा सकते हैं. जम्मू-कश्मीर में भी बीजेपी को तीन और नेशनल कांफ्रेंस को तीन लोक सभा की सीटें मिली हैं.

गौर करने वाली बात है कि ज्यादातर चीजें पक्ष में होने की बावजूद बीजेपी नये नेताओं को कमान सौंपने से परहेज कर रही है. हरियाणा में तो बीजेपी ने सभी 10 सीटें जीती है. कांग्रेस का खाता तक न खुला. कांग्रेस के कद्दावर नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा दोनों ही चुनाव हार गये. हरियाणा में कांग्रेस का क्या हाल होने वाला था, ये तो बीजेपी को जींद उपचुनाव से ही मालूम हो गया होगा. जींद में राहुल गांधी ने खास दिलचस्पी लेते हुए अपने चमचमाते चेहरे रणदीप सिंह सुरजेवाला को उतारा था - लेकिन वो भी काफी नीचे लुढ़क गये.

ऐसे माहौल में क्या बीजेपी के लिए जेपी नड्डा या भूपेंद्र यादव की अगुवाई में चुनाव लड़ना जोखिमभरा हो सकता था? सारी बातों के बावजूद जीरो रिस्क तो कभी नहीं होता - और शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने यथास्थिति बनाये रखने का फैसला लिया होगा. यही सब सोच कर लगता है मोदी और शाह ने मिल कर नये अध्यक्ष के साथ जोखिम भरा एक्सपेरिमेंट न करने का फैसला किया होगा.

सुनने में आया है कि बीजेपी को 2019 तो नहीं लेकिन 2020 में नया अध्यक्ष मिल सकता है - लेकिन अमित शाह का ट्वीट तो और ही इशारा करता है. पंचायत से पार्लियामेंट तक बीजेपी की सत्ता के पक्षधर अमित शाह ने पश्चिम बंगाल और केरल विधानसभा चुनावों की तरफ इशारा किया है - तो क्या बीजेपी को नया अध्यक्ष 2020 भी नहीं बल्कि 2021 में भी मिल पाएगा!

इन्हें भी पढ़ें :

शक मत करिए, अमित शाह कश्मीर मामले में अपना चुनावी वादा ही निभा रहे हैं

अमित शाह ने गिरिराज सिंह को डपटा लेकिन धड़कन बढ़ गई नीतीश कुमार की!

मोदी-शाह को हैंडल करना RSS के लिए अटल-आडवाणी से मुश्किल होगा

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय